बिहार की राजनीति में मुसलमानों की कम भागीदारी: अधूरा लोकतंत्र

परिचय

बिहार हमेशा से भारत की राजनीति का एक अहम केंद्र रहा है। यहाँ के लोग जागरूक हैं, राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं, और हमेशा अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाते रहे हैं।
लेकिन इसी जागरूकता के बीच एक सच्चाई छिपी है। बिहार की लगभग 17 से 18 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है, फिर भी उन्हें सत्ता और नीति बनाने की जगह पर बहुत कम प्रतिनिधित्व मिलता है। यह कोई नई बात नहीं, बल्कि सालों से चली आ रही कमी है। जब तक बिहार के मुसलमान राजनीति में बराबर की हिस्सेदारी नहीं पाएँगे, तब तक बिहार का लोकतंत्र अधूरा ही रहेगा।

इतिहास की झलक

आज़ादी की लड़ाई के दिनों में मज़हरुल हक़ और सैयद हसन इमाम जैसे मुसलमान नेता बिहार की आवाज़ बने। आज़ादी के बाद कांग्रेस के ज़माने में भी मुस्लिम नेताओं को कुछ हद तक जगह मिली। लेकिन 1980 के दशक के बाद तस्वीर बदलने लगी। मंडल आंदोलन ने जाति को बड़ा मुद्दा बना दिया, और राम मंदिर आंदोलन ने धर्म के नाम पर समाज को बाँट दिया।
धीरे-धीरे राजनीति का केंद्र इंसाफ़ या विकास नहीं, बल्कि जाति और धर्म की गिनती बन गया। मुसलमान अब भी चुनावों में बड़ी भूमिका निभाते हैं, वोट देते हैं, मेहनत करते हैं, लेकिन नतीजों के बाद, उनका योगदान भुला दिया जाता है।

आंकड़ों की सच्चाई

2025 के चुनावों के आंकड़े खुद इस असमानता को दिखाते हैं।
बिहार की आबादी में मुसलमान 17.7% हैं, लेकिन विधानसभा में उनका हिस्सा 9% से भी कम है।

बड़ी पार्टियों ने सिर्फ़ 35 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे:

  • RJD – 18
  • कांग्रेस – 10
  • JD(U) – 4
  • अन्य – 3

243 सीटों में यह कुल मिलाकर सिर्फ़ 14% है।
जबकि मुसलमान 53 सीटों में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। यानि जहाँ उनका वोट किसी को भी जितवा या हरवा सकता है, फिर भी, उन्हें टिकट नहीं दिए जाते।

 

कम प्रतिनिधित्व के कारण

  1. ध्रुवीकरण का डर:
    पार्टियाँ सोचती हैं कि अगर वे ज़्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतारेंगी तो हिंदू वोट एकजुट हो जाएंगे। इसलिए टिकट सीमित कर दिए जाते हैं।
  2. जातीय गणना की राजनीति:
    बिहार की राजनीति जातियों पर टिकी है। मुस्लिम इलाकों में भी OBC या ऊँची जाति के उम्मीदवारों को इसलिए उतारा जाता है कि “सबका वोट मिल जाए।”
  3. मुस्लिम नेतृत्व में एकता की कमी:
    मुस्लिम समाज खुद कई हिस्सों में बँटा है — अशराफ और पसमांदा, अमीर और गरीब। यह बँटवारा राजनीतिक ताक़त को कमजोर करता है।
  4. धर्मनिरपेक्ष राजनीति का पतन:
    कांग्रेस की कमजोरी और क्षेत्रीय दलों के जातिवादी रुझान ने मुसलमान नेताओं के लिए जगह कम कर दी है।
  5. शिक्षा और संसाधनों की कमी:
    बहुत से मुसलमानों के पास न तो चुनाव लड़ने के पैसे हैं, न ही राजनीतिक प्रशिक्षण।
    इसलिए नए नेता सामने नहीं आ पा रहे हैं।

 

लोकतंत्र का अधूरा वादा

लोकतंत्र का मतलब सिर्फ़ वोट डालना नहीं होता, बल्कि यह बराबरी और भागीदारी का नाम है। अगर एक बड़ा समुदाय, जो राज्य की एक-पाँचवीं आबादी है, सत्ता और नीति बनाने से बाहर रखा जाए,
तो लोकतंत्र की आत्मा अधूरी रह जाती है।

यह समस्या साम्प्रदायिक नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक असंतुलन की है। जब तक हर वर्ग को बराबर मौका नहीं मिलेगा, “जनता की सरकार” का सपना सच नहीं हो सकता।

 

भारत का संदर्भ

यह सिर्फ़ बिहार की बात नहीं है। पूरे भारत में 1990 के दशक से मुसलमानों का प्रतिनिधित्व घटता जा रहा है।
वे वोट तो भरपूर देते हैं, लेकिन सत्ता में बहुत कम दिखते हैं।
इसलिए कहा जा सकता है कि बिहार की हालत भारत के लोकतंत्र का आईना है।

 

समाधान क्या हो सकते हैं?

  1. उचित प्रतिनिधित्व:
    पार्टियों को मुसलमान उम्मीदवारों को उनकी जनसंख्या और भूमिका के अनुसार टिकट देना चाहिए।
  2. नया नेतृत्व तैयार करना:
    शिक्षित, समझदार और समाजसेवी नौजवानों को राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
  3. मुद्दों पर आधारित राजनीति:
    धर्म या पहचान की जगह, शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा और विकास पर बात होनी चाहिए।
  4. धर्मनिरपेक्ष सोच को मज़बूत करना:
    गांधी, मौलाना आज़ाद और जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं की सोच को दोबारा जीवित करना होगा।

 

निष्कर्ष

बिहार में मुसलमानों का कम प्रतिनिधित्व सिर्फ़ आंकड़ों का मामला नहीं है, यह लोकतंत्र की अधूरी कहानी है। एक ऐसा राज्य, जहाँ मुसलमान लगभग 20% हैं, उन्हें सत्ता और नीति में बराबर की जगह मिलनी ही चाहिए। अगर बिहार को सच में समावेशी और न्यायपूर्ण लोकतंत्र बनाना है, तो उसे हर वर्ग — चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या तबके का हो, उसे समान अवसर देना होगा।

जब तक ऐसा नहीं होता, बिहार की राजनीति और भारत का लोकतंत्र — दोनों अधूरे रहेंगे।

संदर्भ:

  1. The Hindu (2025). “No proportional representation for Muslims among Bihar poll candidates.”
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  2. Vartha Bharati (2025). “Bihar polls: Just 35 Muslim candidates fielded, highlighting underrepresentation.”
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  3. DNA India (2025). “Bihar Election 2025: Muslims hold sway in 53 seats, parties undervalue their strength.”
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  4. The Nous Network (2025). Facebook Video: “17% of Bihar’s people are Muslim, yet remain severely underrepresented in power and policy.”
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