पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का जीवन और आज के नौजवानों के लिए रास्ता

परिचय

पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का मुकम्मल जीवन पूरी इंसानियत के लिए रहमत है। अल्लाह तआला ने कुरआन में साफ फरमाया:

وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا رَحْمَةً لِّلْعَالَمِينَ

“और हमने आपको नहीं भेजा मगर सारी कायनात के लिए रहमत बनाकर।” (सूरह अल-अंबिया 21:107)

आज की तेज रफ्तार वाली दुनिया में नौजवान करियर, सोशल मीडिया, दोस्ती-यारी और ख्वाहिशात के जाल में फंसे हैं। ऐसे में पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सीरत एक चमकता मीनार-ए-नूर है जो सही रास्ता दिखाती है। अल्लाह ने खुद हुक्म दिया:

لَقَدْ كَانَ لَكُمْ فِي رَسُولِ اللَّهِ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ لِّمَن كَانَ يَرْجُو اللَّهَ وَالْيَوْمَ الْآخِرَ

“बेशक तुम्हारे लिए रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) में सबसे बेहतरीन नमूना है, उस शख्स के लिए जो अल्लाह और आखिरत की उम्मीद रखता हो।” (सूरह अल-अहज़ाब 33:21)

यह आयत हर नौजवान के लिए सीधा पैगाम है कि दुनिया और आखिरत में कामयाबी के लिए पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत अपनाओ।

मजबूत चरित्र और ईमानदारी की मिसाल

नबूवत से पहले ही मक्का के लोग आपको “अस-सादिक” और “अल-अमीन” कहते थे। यह लक़ब आपके चरित्र की बुलंदी का सबूत है।

आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:

إِنَّ الصِّدْقَ يَهْدِي إِلَى الْبِرِّ وَإِنَّ الْبِرَّ يَهْدِي إِلَى الْجَنَّةِ وَإِنَّ الرَّجُلَ لَيَصْدُقُ حَتَّى يُكْتَبَ عِنْدَ اللَّهِ صِدِّيقًا

“सच्चाई नेकी की तरफ ले जाती है और नेकी जन्नत की तरफ। आदमी सच्चा चलता है यहाँ तक कि अल्लाह के यहाँ सिद्दीक लिखा जाता है।” (सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम) 

आज ऑनलाइन ठगी (online fraud), नकल (cheating) और छोटे-मोटे झूठ (misrepresentation) आम हैं। नौजवान याद रखें कि अल्लाह ने फ़रमाया:

فَمَنْ يَّعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ خَيْرًا يَّرَهُ ۝ وَمَنْ يَّعْمَلْ مِثْقَالَ ذَرَّةٍ شَرًّا يَّرَهُ

“जो शख्स जर्रा बराबर नेकी करेगा वह उसे देख लेगा, और जो जर्रा बराबर बदी करेगा वह उसे देख लेगा।”

(सूरह अज़-ज़िल्ज़ाल 99:7-8)

विनम्रता और अहंकार से दूरी

सबसे बड़े नबी होने के बावजूद आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) जमीन पर बैठते, अपने कपड़े खुद सीते और गरीब-यतिमों के साथ खाना खाते थे।

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

مَنْ تَوَاضَعَ لِلَّهِ رَفَعَهُ اللَّهُ

“जो अल्लाह के लिए तवाज़ो (विनम्रता) इख्तियार करता है अल्लाह उसे बुलंद करता है।”

( सहीह मुस्लिम)

कुरआन में अल्लाह ने फरमाया:

وَلَا تَمْشِ فِي الْأَرْضِ مَرَحًا ۖ إِنَّكَ لَنْ تَخْرِقَ الْأَرْضَ وَلَنْ تَبْلُغَ الْجِبَالَ طُولًا

“और जमीन में घमंड से मत चल, तू न जमीन को फाड़ सकता है न पहाड़ों की ऊँचाई तक पहुँच सकता है।”

(सूरह बनी इस्राईल 17:37)

इल्म हासिल करने की तड़प

क़ुरआन की सबसे पहली वही (revelation) ही मुसलमानों को पढ़ने और सीखने की प्रेरणा देती है। अल्लाह तआला ने फ़रमाया:

اِقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِي خَلَقَ

"पढ़ो, अपने उस रब के नाम से जिसने पैदा किया।"

इस आयत से साफ़ होता है कि इस्लाम की शुरुआत ही ‘इक़रा’ (Read) यानी पढ़ने, समझने और ज्ञान हासिल करने के हुक्म से हुई। यही वजह है कि मुसलमानों को हर दौर में इल्म (knowledge) की तलाश में आगे बढ़ने की तालीम दी गई है।

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

طَلَبُ الْعِلْمِ فَرِيضَةٌ عَلَى كُلِّ مُسْلِمٍ

“इल्म हासिल करना हर मुसलमान मर्द-औरत पर फर्ज है।”

(सुनन इब्ने माजा)

और फरमाया:

مَنْ سَلَكَ طَرِيقًا يَطْلُبُ فِيهِ عِلْمًا سَلَكَ اللَّهُ بِهِ طَرِيقًا مِنْ طُرُقِ الْجَنَّةِ

“जो शख्स इल्म हासिल करने का रास्ता अपनाता है, अल्लाह उसके लिए जन्नत का रास्ता आसान कर देता है।”

(सहीह मुस्लिम)

सब्र और मुश्किलों में डटे रहना

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का में 13 साल जुल्म सहे, ताहफ में पत्थर खाए, उहुद में दांत शहीद हुए – मगर कभी शिकायत न की।

अल्लाह ने फरमाया:

وَاسْتَعِينُوا بِالصَّبْرِ وَالصَّلَاةِ ۚ وَإِنَّهَا لَكَبِيرَةٌ إِلَّا عَلَى الْخَاشِعِينَ

“सब्र और नमाज से मदद मांगो, यह बड़ी बात है मगर खाशईन के लिए आसान।”

(सूरह अल-बकरा 2:45)

समय की कद्र और अनुशासन

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

نِعْمَتَانِ مَغْبُونٌ فِيهِمَا كَثِيرٌ مِنَ النَّاسِ الصِّحَّةُ وَالْفَرَاغُ

“दो नेमतें जिनमें लोग ठगे जाते हैं: सेहत और फुरसत।” (सहीह बुखारी)

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

اغْتَنِمْ خَمْسًا قَبْلَ خَمْسٍ: شَبَابَكَ قَبْلَ هَرَمِكَ، وَصِحَّتَكَ قَبْلَ سَقَمِكَ، وَغِنَاكَ قَبْلَ فَقْرِكَ، وَفَرَاغَكَ قَبْلَ شُغْلِكَ، وَحَيَاتَكَ قَبْلَ مَوْتِكَ

यह हदीस हमें एक बहुत गहरी और ज़रूरी सीख देती है। पैग़ंबर मुहम्मद ﷺ फ़रमाते हैं:

“पाँच चीज़ों को पाँच चीज़ों से पहले ग़नीमत (कीमती) समझो: अपनी जवानी को बुढ़ापे से पहले, अपनी सेहत को बीमारी से पहले, अपने माल-दौलत को तंगी से पहले, अपने खाली समय को व्यस्तता से पहले, और अपनी ज़िंदगी को मौत से पहले।” (मुस्तदरक अल-हाकिम)

 काम में पूर्णता (परफेक्शन)

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ إِذَا عَمِلَ أَحَدُكُمْ عَمَلًا أَنْ يُتْقِنَهُ

“अल्लाह को पसंद है कि जब तुममें से कोई काम करे तो इतक़ान (पूर्णता) के साथ करे।” (अल-बैहक़ी)

समाज सेवा और इंसानियत

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आखिरी हज के खुत्बे में इरशाद फ़रमाया:

لا فَضْلَ لِعَرَبِيٍّ عَلَى أَعْجَمِيٍّ وَلا لِعَجَمِيٍّ عَلَى عَرَبِيٍّ وَلا لأَبْيَضَ عَلَى أَسْوَدَ وَلا لأَسْوَدَ عَلَى أَبْيَضَ إِلاَّ بِالتَّقْوَى

“न किसी अरब को किसी गैर-अरब पर कोई श्रेष्ठता है, न किसी गैर-अरब को किसी अरब पर। न किसी गोरे को काले पर कोई ऊँचाई है, न काले को गोरे पर—सिवाय तक़वा (अल्लाह से डरने और नेक होने) के।” (मुस्नद अहमद) 

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

خَيْرُ النَّاسِ أَنْفَعُهُمْ لِلنَّاسِ

“सबसे बेहतर इंसान वह जो लोगों के लिए सबसे ज्यादा नफा पहुंचाए।”

(अल-तबरानी, अल-मुअज़्म अल-अवसत में)

पर्यावरण और जानवरों से मोहब्बत

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया:

مَا مِنْ مُسْلِمٍ يَغْرِسُ غَرْسًا أَوْ يَزْرَعُ زَرْعًا فَيَأْكُلُ مِنْهُ طَيْرٌ أَوْ إِنْسَانٌ أَوْ بَهِيمَةٌ إِلَّا كَانَ لَهُ بِهِ صَدَقَةٌ

"कोई भी मुसलमान जब कोई पौधा लगाता है या कोई फसल बोता है, और फिर उस पौधे या फसल में से कोई पक्षी, इंसान या कोई जानवर खा ले — तो वह सब कुछ उस मुसलमान के लिए सदक़ा (नेकी) बन जाता है।" (सहीह बुखारी)

निष्कर्ष 

पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सीरत किताबों में पढ़ने की नहीं, हर लम्हा जीने का तरीका है। अल्लाह ने फरमाया:

قُلْ إِن كُنتُمْ تُحِبُّونَ اللَّهَ فَاتَّبِعُونِي يُحْبِبْكُمُ اللَّهُ

 “आप फरमा दीजिए! अगर तुम अल्लाह से मोहब्बत करते हो तो मेरी इताअत करो, अल्लाह तुमसे मोहब्बत करेगा।” (सूरह आल-इमरान 3:31) अल्लाह हमें और सारी उम्मत को आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तरीके पर चलने की तौफीक अता फरमाए। आमीन।

संदर्भ

अल-कुरआन अल-करीम

सहीह अल-बुखारी

सहीह मुस्लिम

सुनन इब्ने माजा

मुस्नद इमाम अहमद

मुस्तदरक अल-हाकिम

 (मुस्तदरक अल-हाकिम)

लेखक:

मुहम्मद सनाउल्लाह

दारुल हुदा इस्लामिक यूनिवर्सिटी,मलप्पुरम, केरल के डिग्री सेकंड

ईयर के छात्र हैं। वे बिहार से ताल्लुक रखते हैं। उनका रुझान इतिहास के क्षेत्र में है।

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