इस्लाम में लिंग समानता
परिचय
इस्लाम एक ऐसा दीन है जो इंसानियत, इंसाफ़, और बराबरी को बढ़ावा देता है। लिंग समानता, यानी औरतों और मर्दों को बराबर का हक़ और सम्मान देना, इस्लाम की बुनियादी तालीम का हिस्सा है। कुरआन और हदीस में बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि अल्लाह के नज़र में इंसान की इज़्ज़त उसके लिंग से नहीं, बल्कि उसके तक़वे (अल्लाह के डर) और अच्छे कर्मों से तय होती है। लेकिन आज के दौर में, कुछ लोग इस्लाम को गलत समझते हैं और सोचते हैं कि यह औरतों को कम हक़ देता है। यह गलतफहमी ज़्यादातर सांस्कृतिक रिवाजों और गलत तफ़सीरों की वजह से है, न कि इस्लाम की सही तालीम की वजह से।
इस्लाम की बुनियादी तालीम में लिंग समानता
इस्लाम ने 1400 साल पहले उस दौर में लिंग समानता की बात की, जब दुनिया के ज़्यादातर समाजों में औरतों को कम हक़ मिलते थे। कुरआन और हदीस ने साफ़ तौर पर औरतों और मर्दों की आध्यात्मिक और नैतिक बराबरी का ज़िक्र किया है।
अल्लाह तआला कुरान में फरमाता है:
يَا أَيُّهَا النَّاسُ إِنَّا خَلَقْنَاكُم مِّن ذَكَرٍ وَأُنثَىٰ وَجَعَلْنَاكُمْ شُعُوبًا وَقَبَائِلَ لِتَعَارَفُوا ۚ إِنَّ أَكْرَمَكُمْ عِندَ اللَّهِ أَتْقَاكُمْ ۚ إِنَّ اللَّهَ عَلِيمٌ خَبِيرٌ
"ऐ लोगो! हमने तुम्हें मर्द और औरत से पैदा किया और तुम्हें क़ौमों और क़बीलों में बाँटा ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो। बेशक अल्लाह के नज़दीक सबसे ज़्यादा इज़्ज़त वाला वह है जो सबसे ज़्यादा तक़वा रखता है।", सूरह अल-हुजुरात (49:13)
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "النِّسَاءُ شَقَائِقُ الرِّجَالِ"
अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा के रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: "औरतें मर्दों की हमसफ़र (बराबर की साथी) हैं।"
मुसनद अहमद, हदीस नं. 8737।
आध्यात्मिक बराबरी
इस्लाम कहता है कि अल्लाह के सामने औरत और मर्द की कोई भेदभाव नहीं। दोनों को नमाज़, रोज़ा, हज, और ज़कात जैसे इबादत के फ़र्ज़ बराबर हैं।
मिसाल: हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा
हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पहली बीवी, इस्लाम की पहली मानने वाली थीं। वह एक मशहूर व्यापारी थीं और उनकी समझदारी और नेकी की वजह से पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी बहुत इज़्ज़त की।(1)
नैतिक बराबरी
इस्लाम में औरत और मर्द दोनों को अच्छे कर्म करने और बुराई से बचने की एक जैसी ज़िम्मेदारी दी गई है।
अल्लाह तआला कुरान में फरमाता है:
إِنَّ الْمُسْلِمِينَ وَالْمُسْلِمَاتِ وَالْمُؤْمِنِينَ وَالْمُؤْمِنَاتِ وَالْقَانِتِينَ وَالْقَانِتَاتِ وَالصَّادِقِينَ وَالصَّادِقَاتِ وَالصَّابِرِينَ وَالصَّابِرَاتِ وَالْخَاشِعِينَ وَالْخَاشِعَاتِ وَالْمُتَصَدِّقِينَ وَالْمُتَصَدِّقَاتِ وَالصَّائِمِينَ وَالصَّائِمَاتِ وَالْحَافِظِينَ فُرُوجَهُمْ وَالْحَافِظَاتِ وَالذَّاكِرِينَ اللَّهَ كَثِيرًا وَالذَّاكِرَاتِ أَعَدَّ اللَّهُ لَهُم مَّغْفِرَةً وَأَجْرًا عَظِيمًا
"बेशक मुस्लिम मर्द और मुस्लिम औरतें, ईमान लाने वाले मर्द और औरतें, आज्ञाकारी मर्द और औरतें, सच्चे मर्द और औरतें, सब्र करने वाले मर्द और औरतें, डर रखने वाले मर्द और औरतें, ख़ैरात करने वाले मर्द और औरतें, रोज़ा रखने वाले मर्द और औरतें, अपनी शर्मगाह की हिफाज़त करने वाले मर्द और औरतें, और अल्लाह को बहुत याद करने वाले मर्द और औरतें—अल्लाह ने उनके लिए माफ़ी और बड़ा अज्र तैयार किया है।" सूरह अल-अहज़ाब (33:35)
औरतों के हक़
इस्लाम ने औरतों को कई हक़ दिए, जो उस वक़्त के समाज में क्रांतिकारी थे।
- शिक्षा का हक़
इस्लाम में औरतों को इल्म हासिल करने का पूरा हक़ है। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने औरतों को तालीम देने पर ज़ोर दिया।
عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "طَلَبُ الْعِلْمِ فَرِيضَةٌ عَلَى كُلِّ مُسْلِمٍ"
अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: "इल्म हासिल करना हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है।" (यहाँ "मुसलमान" में मर्द और औरत दोनों शामिल हैं।) सुनन इब्न माजह, हदीस नं. 224
हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा
हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवी, एक महान विद्वान थीं। उन्होंने 2210 हदीसें रिवायत कीं और सहाबा को फ़िक़्ह और तफ़सीर की तालीम दी। उनकी विद्वता की मिसाल आज भी दी जाती है। (2)
- संपत्ति का हक़
इस्लाम ने औरतों को संपत्ति रखने, ख़रीदने, और बेचने का हक़ दिया। औरतें अपनी संपत्ति पर पूरा नियंत्रण रख सकती हैं, जो उस वक़्त के समाज में अनोखा था।
وَلَا تَتَمَنَّوْا مَا فَضَّلَ اللَّهُ بِهِ بَعْضَكُمْ عَلَىٰ بَعْضٍ ۚ لِّلرِّجَالِ نَصِيبٌ مِّمَّا اكْتَسَبُوا ۖ وَلِلنِّسَاءِ نَصِيبٌ مِّمَّا اكْتَسَبْنَ ۚ وَاسْأَلُوا اللَّهَ مِن فَضْلِهِ ۚ إِنَّ اللَّهَ كَانَ بِكُلِّ شَيْءٍ عَلِيمًا
"और उस चीज़ की तमन्ना न करो जिससे अल्लाह ने तुम में से कुछ को कुछ पर फ़ज़ीलत दी। मर्दों के लिए वह हिस्सा है जो उन्होंने कमाया, और औरतों के लिए वह हिस्सा है जो उन्होंने कमाया।" कुरआन, सूरह अन-निसा (4:32)
हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा का व्यापार
हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा एक सफल व्यापारी थीं। उन्होंने अपनी संपत्ति का इस्तेमाल इस्लाम की खिदमत में किया और पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को आर्थिक मदद दी।(3)
- शादी में हक़
इस्लाम में शादी के लिए औरतों की भी रजामंदी अनिवार्य है और उसे महर लेने का हक़ है। महर औरत का निजी हक़ है, जिसे कोई छीन नहीं सकता।
हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की शादी
हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा की शादी हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु से उनकी मर्ज़ी से हुई। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी पसंद का पूरा ख़याल रखा। (4)
इस्लाम की तालीम और सामाजिक भूमिकाएँ
इस्लाम ने औरतों और मर्दों को अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ दी हैं, लेकिन इसका मतलब बराबरी की कमी नहीं है। यह ज़िम्मेदारियाँ उनकी प्रकृति और समाज की ज़रूरतों के हिसाब से हैं।
माँ का दर्जा
इस्लाम में माँ का दर्जा बहुत ऊँचा है।
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ، قَالَ: جَاءَ رَجُلٌ إِلَى رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَقَالَ: يَا رَسُولَ اللَّهِ، مَنْ أَحَقُّ النَّاسِ بِحُسْنِ صَحَابَتِي؟ قَالَ: أُمُّكَ، قَالَ: ثُمَّ مَنْ؟ قَالَ: أُمُّكَ، قَالَ: ثُمَّ مَنْ؟ قَالَ: أُمُّكَ، قَالَ: ثُمَّ مَنْ؟ قَالَ: أَبُوكَ
अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने फरमाया: एक शख्स ने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा, "ऐ अल्लाह के रसूल! मेरे सबसे अच्छे व्यवहार का हक़दार कौन है?" उन्होंने फरमाया: ""तुम्हारी माँ।" उसने पूछा: "फिर कौन?" फरमाया: "तुम्हारी माँ।" फिर पूछा: "फिर कौन?" फरमाया: "तुम्हारी माँ।" फिर पूछा: "फिर कौन?" फरमाया: "तुम्हारे अब्बू।" सही बुखारी, हदीस नं. 5971।
औरतों की सामाजिक भूमिका
इस्लाम ने औरतों को समाज में अहम भूमिका दी है। वे शिक्षक, व्यापारी, और समाज सुधारक हो सकती हैं।
हज़रत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा
हज़रत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने हुदैबिया की संधि के दौरान पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सलाह दी, जिससे तनाव कम हुआ। यह दिखाता है कि इस्लाम औरतों की राय को अहमियत देता है।(5)
गलतफहमियाँ और उनकी हक़ीक़त
कुछ लोग इस्लाम को औरतों के हक़ों के ख़िलाफ़ समझते हैं। यह गलतफहमियाँ सांस्कृतिक रिवाजों और गलत तफ़सीरों की वजह से हैं।
हिजाब का मसला
कई लोग हिजाब को औरतों की आज़ादी पर पाबंदी समझते हैं, लेकिन इस्लाम में हिजाब औरत की इज़्ज़त और हिफाज़त का प्रतीक है। यह उनकी मर्ज़ी पर निर्भर है।
وَقُل لِّلْمُؤْمِنَاتِ يَغْضُضْنَ مِنْ أَبْصَارِهِنَّ وَيَحْفَظْنَ فُرُوجَهُنَّ وَلَا يُبْدِينَ زِينَتَهُنَّ إِلَّا مَا ظَهَرَ مِنْهَا ۖ وَلْيَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلَىٰ جُيُوبِهِنَّ
"और मोमिन (विश्वास करने वाली) औरतों से कहो कि वे अपनी निगाहें नीची रखें और अपनी शर्मगाहों की हिफाज़त करें, और अपनी ज़ीनत (सौंदर्य) को ज़ाहिर न करें, सिवाय इसके जो (खुद-ब-खुद) ज़ाहिर हो जाए। और अपने दुपट्टों को अपनी छातियों पर डाल लिया करें।" सूरह अन-नूर (24:31)।
2023 में, भारत की एक मुस्लिम छात्रा, आयशा अज़ीज़, ने हिजाब पहनकर पायलट बनने का सपना पूरा किया। यह दिखाता है कि हिजाब औरत की प्रगति में रुकावट नहीं है।(6)
विरासत में हिस्सा
कुछ लोग कहते हैं कि इस्लाम में औरतों को मर्दों से आधा हिस्सा मिलता है, जो बराबरी के ख़िलाफ़ है। लेकिन यह हिस्सा औरतों की ज़िम्मेदारियों के हिसाब से तय किया गया है, क्योंकि मर्दों को परिवार की ज़िम्मेदारी ज़्यादा दी गई है।
मिसाल: आला हज़रत का फ़तवा
आला हज़रत अहमद रज़ा खान बरेलवी रज़ियल्लाहु अन्हु ने फतावा रज़विय्या में लिखा कि औरतों को विरासत में हिस्सा देना अनिवार्य है। उन्होंने कुरआन और हदीस के हवाले से इसे साबित किया।(7)
आधुनिक दौर में इस्लाम और लिंग समानता
आज के डिजिटल युग में, इस्लाम की तालीम औरतों और मर्दों की बराबरी को और मज़बूत कर रही है। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, जैसे यूट्यूब और ऐप्स, ने औरतों को इस्लामी तालीम और आधुनिक शिक्षा तक पहुँच दी है।2022 में, अल-हुदा इंटरनेशनल ने हिंदी में ऑनलाइन कुरआन कोर्स शुरू किया, जिसमें हज़ारों औरतों ने हिस्सा लिया। यह लिंग समानता की मिसाल है। मुस्लिम औरतें आज हर क्षेत्र में आगे हैं, जैसे विज्ञान, खेल, और साहित्य।
मिसाल: हिना सिद्दीक़ी
2024 में, भारत की हिना सिद्दीक़ी ने वैज्ञानिक अनुसंधान में पुरस्कार जीता। उन्होंने कहा, "इस्लाम ने मुझे तालीम और मेहनत की हिम्मत दी।"
चुनौतियाँ और समाधान
इस्लाम की सही तालीम के बावजूद, कुछ सांस्कृतिक रिवाज और गलतफहमियाँ लिंग समानता में रुकावट हैं।
- सांस्कृतिक रिवाज: कुछ समाजों में औरतों को कम हक़ देने की गलत परंपराएँ।
• गलत तफ़सीर: कुरआन और हदीस की गलत व्याख्या।
• जागरूकता की कमी: इस्लाम की सही तालीम का प्रचार न होना।
समाधान
- तालीम: औरतों और मर्दों को इस्लाम की सही तालीम देना।
• जागरूकता: सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सही जानकारी फैलाना।
• संवाद: मज़हबी और सामाजिक नेताओं को लिंग समानता के लिए काम करना।
2023 में, जामिया मिलिया इस्लामिया ने लिंग समानता पर एक सेमिनार आयोजित किया, जिसमें इस्लाम की तालीम के आधार पर औरतों के हक़ों पर चर्चा हुई।
निष्कर्ष
इस्लाम ने औरतों और मर्दों को आध्यात्मिक और नैतिक बराबरी दी है। कुरआन और हदीस साफ़ तौर पर कहते हैं कि इज़्ज़त तक़वे और अच्छे कर्मों से मिलती है, न कि लिंग से। हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा, हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा, और मलाला यूसुफ़ज़ई जैसी शख्सियतों ने दिखाया कि इस्लाम औरतों को हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की इजाज़त देता है। हिजाब, विरासत, और शादी जैसे मसलों पर गलतफहमियाँ सांस्कृतिक रिवाजों की वजह से हैं, जिन्हें सही तालीम से दूर किया जा सकता है। डिजिटल युग में, इस्लाम की तालीम को औरतों तक पहुँचाने के लिए ऑनलाइन कोर्स और सोशल मीडिया बहुत असरदार हैं। हमें चाहिए कि इस्लाम की सही तालीम को फैलाएँ और समाज में औरतों और मर्दों की बराबरी को और मज़बूत करें, ताकि एक ऐसा समाज बने जो इंसाफ़ और भाईचारे का प्रतीक हो।
सन्दर्भ
- इब्न हिशाम, सीरत रसूलल्लाह, खंड 1, पृ. 100-120 (हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा)।
- बुखारी, सही बुखारी, खंड 5, पृ. 50-70 (हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा)।
- इब्न साद, तबक़ात अल-कुबरा, खंड 8, पृ. 20-30 (हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा)।
- इब्न हिशाम, सीरत रसूलल्लाह, खंड 2, पृ. 150-160 (हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा)।
- बुखारी, सही बुखारी, खंड 3, पृ. 80-90 (हज़रत उम्मे सलमा रज़ियल्लाहु अन्हा)।
- "Ayesha Aziz: India’s Youngest Pilot," The Hindu, 2023।
- खान, फतावा रज़विय्या, खंड 4, पृ. 200-220, 1996 (आला हज़रत अहमद रज़ा खान बरेलवी रज़ियल्लाहु अन्हु)।
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