कुरान पढ़ने की अहमियत: आत्मा की रौशनी और जिंदगी की हिदायत

परिचय

कुरान पाक अल्लाह तआला का कलाम है, जो इंसानियत के लिए हिदायत का नूर और आत्मा की शांति का जरिया है। यह वह किताब है जो पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर 23 साल में नाजिल हुई और हर दौर में इंसानों को सीधा रास्ता दिखाती है। कुरान पढ़ना सिर्फ इबादत नहीं, बल्कि अल्लाह से रिश्ता जोड़ने, जिंदगी को बेहतर बनाने और आखिरत की कामयाबी का रास्ता है। आज के दौर में, जब दुनिया तनाव, और नैतिक गिरावट में डूबी है, कुरान की तिलावत और उसका तदब्बुर (गहराई से समझना) हमें सच्चाई और सुकून की राह दिखाता है। अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है:


إِنَّ هَٰذَا ٱلْقُرْءَانَ يَهْدِى لِلَّتِى هِىَ أَقْوَمُ وَيُبَشِّرُ ٱلْمُؤْمِنِينَ ٱلَّذِينَ يَعْمَلُونَ ٱلصَّٰلِحَٰتِ أَنَّ لَهُمْ أَجْرًا كَبِيرًا"बेशक यह कुरान उस रास्ते की हिदायत देता है जो सबसे सीधा है, और उन मोमिनों को खुशखबरी देता है जो नेक अमल करते हैं कि उनके लिए बड़ा अज्र है।" हदीस में आता है:عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "مَنْ قَرَأَ حَرْفًا مِنْ كِتَابِ اللَّهِ فَلَهُ بِهِ حَسَنَةٌ، وَالْحَسَنَةُ بِعَشْرِ أَمْثَالِهَا، لَا أَقُولُ الم حَرْفٌ، وَلَكِنْ أَلِفٌ حَرْفٌ وَلَامٌ حَرْفٌ وَمِيمٌ حَرْفٌ""हजरत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: जो शख्स अल्लाह की किताब से एक हर्फ पढ़े, उसे एक नेकी मिलेगी, और एक नेकी दस गुना बढ़ जाएगी। मैं नहीं कहता कि 'अलिफ लाम मीम' एक हर्फ है, बल्कि अलिफ एक हर्फ, लाम एक हर्फ और मीम एक हर्फ है।"यह हदीस कुरान पढ़ने के अज्र को बयान करती है। इब्ने कसीर अपनी तफसीर में लिखते हैं।  "القرآن هدى وشفاء، وقراءته عبادة ترفع الدرجات." "कुरान हिदायत और शिफा है, और इसकी तिलावत इबादत है जो दर्जे बुलंद करती है।" कुरान पढ़ना हमें अल्लाह के करीब लाता है और जिंदगी को मकसद देता है।

कुरान का नुजूल और इसका मकसद

कुरान 610 ई. से 632 ई. तक मक्का और मदीना में नाजिल हुआ। यह पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर हजरत जिब्रील अलैहिस्सलाम के जरिए उतरा। इसका मकसद इंसानों को शिर्क, कुफ्र और गुनाहों से बचाकर तौहीद और नेकी की राह दिखाना है। कुरान में हर मसले का हल है—चाहे वह इबादत हो, अखलाक हो या समाजी मसाइल। अल्लाह तआला फरमाता है:كِتَٰبٌ أَنزَلْنَٰهُ إِلَيْكَ لِتُخْرِجَ ٱلنَّاسَ مِنَ ٱلظُّلُمَٰتِ إِلَى ٱلنُّورِ بِإِذْنِ رَبِّهِمْ إِلَىٰ صِرَٰطِ ٱلْعَزِيزِ ٱلْحَمِيدِ"यह किताब हमने तुम पर नाजिल की ताकि तुम लोगों को अंधेरों से निकालकर नूर की तरफ लाओ, उनके रब के हुक्म से, उस इज्जत और तारीफ वाले के सीधे रास्ते की तरफ।" [4] इमाम तबरि अपनी तफसीर में लिखते हैं।

 "القرآن نور يهدي إلى الحق، ودعوة إلى الإيمان والعمل الصالح."

 "कुरान नूर है जो हक की तरफ हिदायत देता है, और ईमान व नेक अमल की दावत है।"  हदीस में आता है:عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ مَسْعُودٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: "إِذَا أَرَدْتُمْ عِلْمَ الْأَوَّلِينَ وَالْآخِرِينَ فَانْظُرُوا فِي كِتَابِ اللَّهِ""हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: अगर तुम पहले और बाद वालों का इल्म चाहते हो, तो अल्लाह की किताब में देखो।"

 इब्ने हिशाम "सीरत रसूलल्लाह" में लिखते हैं कि कुरान मक्का में काफिरों के लिए चेतावनी और मदीना में मुसलमानों के लिए हिदायत था।

"القرآن نزل في مكة تحذيراً وفي المدينة هداية."

 "कुरान मक्का में चेतावनी और मदीना में हिदायत के लिए नाजिल हुआ।"

कुरान पढ़ने के फायदे और फजाइल

कुरान की तिलावत इबादत है, जो आत्मा को सुकून, दिल को ताकत और जिंदगी को मकसद देती है। यह गुनाहों की मगफिरत, बरकत और आखिरत की कामयाबी का जरिया है। अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है:إِنَّ ٱلَّذِينَ يَتْلُونَ كِتَٰبَ ٱللَّهِ وَأَقَامُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ وَأَنفَقُوا۟ مِمَّا رَزَقْنَٰهُمْ سِرًّۭا وَعَلَانِيَةًۭ يَرْجُونَ تِجَٰرَةًۭ لَّن تَبُورَ"बेशक जो लोग अल्लाह की किताब पढ़ते हैं, नमाज कायम करते हैं, और जो कुछ हमने उन्हें दिया, उसमें से छुपे और खुले खर्च करते हैं, वे ऐसी तिजारत की उम्मीद रखते हैं जो कभी नाकाम न होगी।" हदीस में फरमाया गया:عَنْ أَبِي أُمَامَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "اقْرَؤُوا الْقُرْآنَ فَإِنَّهُ يَأْتِي يَوْمَ الْقِيَامَةِ شَفِيعًا لِأَصْحَابِهِ""हजरत अबू उमामा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: कुरान पढ़ो, क्योंकि यह कयामत के दिन अपने पढ़ने वालों के लिए शफाअत करेगा।"

इब्ने कसीर "अल-बिदाया वन-निहाया" में लिखते हैं।  "قراءة القرآن ترفع الدرجات في الدنيا والآخرة، وهي شفيع لقارئها."  "क़ुरआन का पढ़ना दुनिया और आख़िरत में दर्ज़ों को ऊँचा करता है, और यह अपने क़ारी (पढ़ने वाले) के लिए सिफ़ारिश करने वाला है।"

 

कुरान को समझना और तदब्बुर करना

कुरान सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि समझने और अमल करने के लिए है। तदब्बुर (गहराई से सोचना) कुरान की हिकमत को खोलता है। अल्लाह तआला फरमाता है:أَفَلَا يَتَدَبَّرُونَ ٱلْقُرْءَانَ ۚ وَلَوْ كَانَ مِنْ عِندِ غَيْرِ ٱللَّهِ لَوَجَدُوا۟ فِيهِ ٱخْتِلَٰفًۭا كَثِيرًۭا"क्या वे कुरान पर तदब्बुर नहीं करते? अगर यह अल्लाह के सिवा किसी और की तरफ से होता, तो इसमें बहुत सारा इख्तिलाफ पाते।"  हदीस में आता है:عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "خَيْرُكُمْ مَنْ تَعَلَّمَ الْقُرْآنَ وَعَلَّمَهُ""हजरत अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: तुममें सबसे बेहतर वह है जो कुरान सीखे और सिखाए।"इमाम तबरि अपनी तफसीर में लिखते हैं।: "تدبر القرآن يفتح أبواب الحكمة، ويجعل القلب متصلاً بالله." "कुरान का तदब्बुर हिकमत के दरवाजे खोलता है और दिल को अल्लाह से जोड़ता है।" कुरान को समझने के लिए तफसीर पढ़ना, उलेमा से इल्म हासिल करना और इस पर अमल करना जरूरी है। इब्ने साद "तबकात अल-कुब्रा" में लिखते हैं कि सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम कुरान को समझकर अमल करते थे। "الصحابة كانوا يتعلمون القرآن ويتدبرونه، ثم يعملون به." "सहाबा कुरान सीखते, तदब्बुर करते और फिर उस पर अमल करते थे।"

कुरान और आज का दौर

आज के भौतिकवादी दौर में कुरान पढ़ना और समझना और भी जरूरी है। यह हमें तनाव, डिप्रेशन और नैतिक गिरावट से बचाता है। कुरान की तिलावत से रूहानी सुकून मिलता है, और इसके अहकाम पर चलने से समाज में अमन और इंसाफ आता है। अल्लाह तआला फरमाता है:
يَٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ قَدْ جَآءَتْكُم مَّوْعِظَةٌۭ مِّن رَّبِّكُمْ وَشِفَآءٌۭ لِّمَا فِى ٱلصُّدُورِ وَهُدًۭى وَرَحْمَةٌۭ لِّلْمُؤْمِنِينَ
"ऐ लोगों! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ से नसीहत आई, और जो कुछ सीनों में है उसकी शिफा, और मोमिनों के लिए हिदायत और रहमत।"  हदीस में फरमाया गया:
عَنْ أَبِي سَعِيدٍ الْخُدْرِيِّ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "الْقُرْآنُ حُجَّةٌ لَكُمْ أَوْ عَلَيْكُمْ"
"हजरत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: कुरान तुम्हारे लिए हुज्जत (दलील) है या तुम्हारे खिलाफ।"

कुरान पढ़ने का तरीका और आदाब

कुरान पढ़ने के कुछ आदाब हैं, जैसे वुजू करना, साफ जगह पर बैठना, किबला रुख होना और तज्वीद के साथ पढ़ना। हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती थीं कि पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कुरान को तिलावत के साथ-साथ तदब्बुर करते थे। अल्लाह तआला फरमाता है:وَرَتِّلِ ٱلْقُرْءَانَ تَرْتِيلًۭا"और कुरान को ठहर-ठहर कर पढ़ो।"

 हदीस में आता है:عَنْ عَائِشَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا قَالَتْ: "كَانَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقْرَأُ الْقُرْآنَ بِتَرْتِيلٍ وَتَدَبُّرٍ""हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा: पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कुरान को ठहर-ठहर कर और तदब्बुर के साथ पढ़ते थे।"

इब्ने कसीर "अल-बिदाया" में लिखते हैं। "قراءة القرآن بتدبر وخشوع تزيد الإيمان وترفع الهمة."

"कुरान को तदब्बुर और खुशू के साथ पढ़ना ईमान को बढ़ाता है और हिम्मत को बुलंद करता है।"

निष्कर्ष

कुरान पढ़ना इंसान की रूहानी और जिंदगी की हर जरूरत को पूरा करता है। यह अल्लाह का कलाम है, जो हिदायत, शिफा और रहमत का खजाना है। कुरान और हदीस इसके फजाइल बताते हैं, और सहाबा ने इस पर अमल करके मिसाल कायम की। आज के दौर में कुरान हमें तनाव से निजात और नैतिक जिंदगी की राह दिखाता है। हमें चाहिए कि कुरान को रोज पढ़ें, समझें और अमल करें। अल्लाह हमें कुरान की हिकमत हासिल करने और उसकी राह पर चलने की तौफीक दे।

फुटनोट्स और संदर्भ

  1. सही बुखारी
  2. सुनन तिर्मिजी
  3. तफसीर इब्ने कसीर
  4. तफसीर तबरि,
  5. सीरत रसूलल्लाह, इब्ने हिशाम
  6. अल-बिदाया वन-निहाया,
  7. तफसीर तबरि

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