बिहार का नया मिज़ाज: सीमांचल ने अपनी कहानी खुद लिखी

बिहार की राजनीति को अगर कोई दूर से भी देख ले तो उसे तुरंत समझ आ जाएगा कि 2025 का चुनाव सिर्फ़ सत्ता बदलने या चेहरे बदलने का मामला नहीं था ये पूरा का पूरा दौर एक ऐसे इलाक़े की जागृति की तरह था जो बरसों से अपने हक़ की आवाज़ धीमी-सी, हल्की-सी, किनारों में दबाकर रखा करता था। उस आवाज़ ने इस बार न सिर्फ़ खुद को तेज़ किया बल्कि पूरे बिहार को ये एहसास करा दिया कि सीमांचल अब परछाई नहीं रहा वो अब मुकम्मल किरदार है, पूरा रोल, पूरा वज़न लेकर।

सीमांचल, जिसे कभी कोई अख़बार के आख़िरी पन्ने में मिल जाता था, कभी किसी मंत्री के भाषण में दो लाइनें, तो कभी किसी योजना के कागज़ में, एक औपचारिक सा जिक्र आज उस मुक़ाम पर खड़ा है जहाँ वो खुद कह रहा है: “भाई, बस बहुत हो गया… अब हम खुद बोलेंगे, अपनी ज़मीन से बोलेंगे, अपनी शिद्दत से बोलेंगे।”

और AIMIM का लगातार उभरना 2020 के बाद 2025 में भी इस बात का पक्का सबूत है कि यह इलाक़ा सिर्फ़ वोट नहीं डालता, बल्कि अब पैटर्न बनाता है, संदेश देता है, और सियासत की दिशा भी तय करता है।

सच कहें, तो सीमांचल का यह बदलता चेहरा किसी एक पार्टी की जीत से ज़्यादा, उस लंबे दर्द का जवाब है जिसे लोग अब तक चुपचाप ढोते रहे थे। आप इस इलाक़े में निकल जाइए पूर्णिया की हवा से लेकर किशनगंज की सुबह तक हर गली, हर चौक, हर चाय की दुकान पर एक ही बात सुनाई देती है: “हमको सिर्फ़ चुनाव के वक़्त याद किया गया, बाकी दिन हम अपना दर्द खुद सँभालते रहे।”

लोग याद करते हैं कि 15 साल के लालू राज में भी, और 20 साल के नीतीश मॉडल में भी सीमांचल का हाल कुछ खास नहीं बदला। बड़े-बड़े नारे आए, बड़ी-बड़ी योजनाएँ आईं, लेकिन निर्देशिका के काग़ज़ से ज़मीन का फ़ासला शायद ही कभी कम हुआ। बाढ़ आई तो पूरा इलाक़ा डूबा, नौकरी की बात हुई तो फॉर्म से पहले ही उम्मीदें मर गयीं, अस्पतालों की बात हुई तो लोग पटना तक की दूरी गिनते-गिनते थक गए।

ऐसे में AIMIM का उभरना सिर्फ़ राजनीतिक घटना नहीं था ये एक मनोवैज्ञानिक बदलाव की शुरुआत थी। लोग महसूस करने लगे कि “भाई, कोई है जो सिर्फ़ चुनावी भाषण नहीं मारता, हमारे मोहल्लों की भी बात करता है। कोई है जो पटना से नहीं, यहीं से बोलता है।” यही वजह है कि जब 2025 में मजलिस ने फिर से अपनी पकड़ दिखाई, तो उसे वोट का ट्रेंड नहीं, बल्कि बदलती सोच की लहर कहा गया।

गठबंधन के नाम पर वोट बैंक

और RJD जिसका MY समीकरण कभी बिहार की राजनीति का “अजेय फॉर्मूला” माना जाता था। लेकिन, सच ये है कि सीमांचल के लोगों ने पहली बार एलान कर दिया कि MY का वह पुराना नारा अब बस एक मिथ बनकर रह गया। हकीकत में प्रतिनिधित्व तो मिला नहीं, राहत मिली नहीं, विकास तो दूर की बात थी। लोग समझने लगे कि सिर्फ़ “गठबंधन के नाम पर वोट बैंक” बनाना एक बात है, और वास्तव में किसी समुदाय या इलाके की तरक्की में हिस्सेदारी देना दूसरी बात है। और इस बार, सीमांचल ने साफ़ कहा: हम संयोजन से नहीं, प्रतिनिधित्व से चलेंगे।

तेजस्वी यादव का मुद्दा भी लोगों की निगाह में आया। मजलिस ने सिर्फ़ छह सीटों की बात की थी वही सीटें जहाँ उन्होंने 2020 में जीत या दूसरा स्थान हासिल किया था। मगर RJD का इंकार और वो भी बिना किसी गंभीर बातचीत या सम्मानजनक संवाद के कई मतदाताओं को अखरा। उन्हें लगा कि “हमारी ज़मीन, हमारा इलाका, और हमारे मुद्दे इन सब पर दूसरे बैठकर फैसला कर रहे हैं।” यह भावनात्मक पहलू भी इस बार वोटिंग पैटर्न में साफ़ दिखा।

उधर JDU–BJP की नीतियों, खासकर वक़्फ़ कानून जैसे मामलों पर उनका रुख, सीमांचल में खूब चर्चा में रहा। लोग ये बात महसूस करते रहे कि कुछ कानून और फैसले ऐसे थे जो उनके सामाजिक ढाँचे को लेकर ज्यादा संवेदनशील नहीं थे। AIMIM ने इसे चुनावों में मुद्दा बनाया और लोगों ने भी इसका असर महसूस किया।

लेकिन, यहाँ एक दिलचस्प मोड़ भी आता है AIMIM पर जो सबसे बड़ा इल्ज़ाम अक्सर लगाया जाता है, वो यह कि “ये किसी पार्टी की बी-टीम  है।” मगर ECI के बूथ डेटा, 2015–2020–2025 के परिणाम, और तीनों चुनावों के वोट पैटर्न देखकर एक बात साफ़ निकलती है कि AIMIM का वोट “किसी एक पार्टी से टूटकर आया हुआ” नहीं है ये एक अलग पहचान, एक अलग थॉट, और एक अलग भूगोल की राजनीतिक तलब है। सीमांचल के लोग ये जान चुके हैं कि उन्हें अपने सवाल खुद तय करने होंगे।

ज़रा सीमांचल की गलियों में घूमकर देखिए वहाँ की बातचीत का मिज़ाज ही बदल चुका है। लोग कहते हैं, “हम किसी के वोट बैंक नहीं हैं। हम अब अपने नेतृत्व, अपनी आवाज़ के साथ आगे बढ़ेंगे।” यह बात सिर्फ़ भावनात्मक नहीं सियासी भी है, सामाजिक भी, और भविष्य के लिहाज़ से बहुत बड़ी है।

निष्कर्ष

2025 के नतीजों ने बता दिया कि बिहार की राजनीति अब सिर्फ़ पटना में नहीं बनती इस पर सीमांचल की हवा का भी असर होगा। बड़े दलों को अब यह समझना पड़ेगा कि यह इलाका सिर्फ़ “अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्र” नहीं बल्कि एक पूरी राजनीतिक इकाई है जिसके अपने सवाल हैं, अपनी ज़मीन है, और अब अपना राजनीतिक केंद्र भी बन रहा है। यह दौर सिर्फ़ मजलिस की उपलब्धियों का नहींयह पूरे सीमांचल के उठ खड़े होने का दौर है। यह वह पल है जब एक इलाका कहता है, हम किसी की परछाई नहीं, अपना सूरज खुद बनाएँगे। और ये कहानी अभी शुरू हुई है। बिहार की राजनीति का अगला अध्याय अब सीमांचल लिखेगा अपने टोन में, अपने मसले लेकर, अपनी पहचान के साथ।

 

संदर्भ:

  1. “Muslim votes in Seemanchal split between Mahagathbandhan and AIMIM, NDA finishes ahead”, Indian Express
  2. “Asaduddin Owaisi’s AIMIM delivers in Seemanchal; set to win 5 seats, runner-up in 2 more”, Hindustan Times
  3. “Bihar poll results: AIMIM leads in five seats, all in Seemanchal”, The News Minute
  4. “Who are BJP’s dozen who lost despite party’s 88% strike rate in Bihar?”, India Today
  5. “JD(U) suffers setback in Seemanchal as Mujahid Alam quits over endorsement of waqf act amendments”, The Print

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