गाज़ा: मानवता की पुकार और अत्याचार की कथा

गाज़ा पट्टी, एक छोटा सा भू-भाग, आज दुनिया के सामने इंसानियत की सबसे बड़ी त्रासदी बनकर खड़ा है। यहाँ का दर्द, यहाँ की पुकार, और यहाँ की तबाही सिर्फ़ एक इलाके की कहानी नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक सबक़ है कि जब ताक़त का गलत इस्तेमाल होता है, तो इंसानी हक़ कितनी आसानी से छिन जाते हैं। गाज़ा में जो कुछ हो रहा है, वो सिर्फ़ एक जंग नहीं, बल्कि इज़रायली नीतियों और ज़ायनवादी विचारधारा का वो क्रूर चेहरा है, जिसने लाखों फिलिस्तीनियों को भुखमरी, बेघरी और मौत के मुँह में धकेल दिया है।

7 अक्टूबर 2023 से शुरू हुई इज़रायली फौज की गाज़ा पर बमबारी और सैन्य कार्रवाइयाँ आज भी रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। अल जज़ीरा के ताज़ा आँकड़ों (7 अगस्त 2025) के मुताबिक, गाज़ा में कम से कम 61,258 फिलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं, जिनमें 18,430 से ज़्यादा बच्चे शामिल हैं। इसके अलावा, 150,027 लोग ज़ख्मी हुए हैं। एक स्वतंत्र सर्वे, जो मेडरक्सिव प्रीप्रिंट सर्वर पर जून 2025 में प्रकाशित हुआ, बताता है कि अक्टूबर 2023 से जनवरी 2025 तक गाज़ा में 84,000 लोग मारे गए, जिनमें 75,200 की मौत हिंसक कारणों से और 8,540 की गैर-हिंसक कारणों जैसे भुखमरी, बीमारी और स्वास्थ्य सेवाओं के पतन के कारण हुई। ये आँकड़े सिर्फ़ ठंडे नंबर नहीं, बल्कि उन हज़ारों ज़िंदगियों की चीख़ हैं, जो इज़रायली नीतियों की भेंट चढ़ गईं।

मार्च 2024 में इज़रायल ने युद्धविराम तोड़ा और गाज़ा में मानवीय सहायता पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी। इसका नतीजा ये हुआ कि गाज़ा में भुखमरी, कुपोषण और बीमारियाँ महामारी का रूप ले चुकी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसे "मानव-निर्मित सामूहिक भुखमरी" करार दिया और इसकी ज़िम्मेदारी इज़रायली नाकाबंदी पर डाली। इंटीग्रेटेड फूड सिक्योरिटी फेज क्लासिफिकेशन (IPC) की 12 मई 2025 की रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2025 तक गाज़ा की पूरी आबादी (लगभग 21 लाख लोग) तीव्र खाद्य असुरक्षा (IPC फेज 3 या उससे ऊपर) का सामना करेगी, जिसमें 5 लाख लोग आपदा स्तर (IPC फेज 5) पर होंगे, जो अत्यधिक भोजन की कमी, भुखमरी और मौत की स्थिति को दर्शाता है। गाज़ा में जून 2025 में 484 संदिग्ध मैनिंजाइटिस के मामले दर्ज किए गए, जो सामान्य से कहीं ज़्यादा हैं। गाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, हाल के हफ्तों में कम से कम 101 लोग, जिनमें 80 बच्चे शामिल हैं, भुखमरी की वजह से मरे हैं। एक तीन महीने का बच्चा, यह्या फादी अल-नज्जार, भूख और दूध की कमी की वजह से दुनिया छोड़ गया। ये सिर्फ़ एक कहानी नहीं, बल्कि गाज़ा में बिखरी हज़ारों दर्दनाक हक़ीक़तों का प्रतीक है।

इज़रायल की नाकाबंदी ने गाज़ा को एक खुली जेल में तब्दील कर दिया है। ज़मीन के रास्तों से खाना, दवाइयाँ, शिशु फॉर्मूला और मेडिकल सप्लाई जैसी बुनियादी ज़रूरतों को रोक दिया गया है। गाज़ा के अधिकारियों ने बार-बार सड़क मार्ग से मदद की गुहार लगाई, लेकिन इज़रायल ने इन माँगों को ठुकरा दिया। अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद इज़रायल ने गाज़ा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन (GHF) को सहायता बाँटने की ज़िम्मेदारी दी थी। लेकिन ये कोशिश नाकाम रही और हालात को और बदतर कर दिया। GHF के सिक्योरिटी गार्ड्स और इज़रायली फौज ने खाने की कतारों में खड़े भूखे फिलिस्तीनियों पर गोलियाँ चलाईं, जिसमें 27 मई से 21 जुलाई 2025 तक 1,054 लोग मारे गए, जिनमें 766 GHF सप्लाई कॉम्प्लेक्स के पास और 288 अन्य सहायता ट्रकों के आसपास शहीद हुए। इस वाकये ने GHF की साख को मिट्टी में मिला दिया और इसे बंद करना पड़ा। ये साफ है कि ये संकट हमास की हरकतों का नतीजा नहीं, बल्कि इज़रायल की उन नीतियों का परिणाम है, जो गाज़ा की आबादी को सजा देने के लिए बनाई गई हैं।

जब ज़मीन से मदद रोक दी गई, तो कई मुल्कों ने हवाई रास्ते से गाज़ा में सहायता भेजने की कोशिश की। लेकिन ये एयरड्रॉप्स राहत की जगह खतरा बन गए। गाज़ा के सरकारी मीडिया दफ्तर के मुताबिक, असुरक्षित एयरड्रॉप्स की वजह से 23 लोग मारे जा चुके हैं और 124 ज़ख्मी हुए हैं। पैराशूट फेल होने, समुद्र में पैलेट गिरने और भीड़ में पैकेज गिरने की घटनाएँ आम हो गई हैं। पिछले साल, 13 फिलिस्तीनी समुद्र में डूब गए, जब वो मदद लेने की कोशिश कर रहे थे। मानवीय माहिरीन ने इन एयरड्रॉप्स को "पीआर स्टंट" करार दिया है, जो असल मदद के बजाय सिर्फ़ प्रचार के लिए किए जा रहे हैं। इज़रायली कब्जे वाले इलाकों या जबरन खाली कराए गए क्षेत्रों में सहायता पैकेजों का गिरना और भी खतरनाक है। इन इलाकों में पहुँचने की कोशिश करने वाले लोग सीधे इज़रायली फौज के निशाने पर आ जाते हैं। UNOSAT की ताज़ा सैटेलाइट इमेजरी (8 जुलाई 2025) के मुताबिक, गाज़ा में 20,000 से ज़्यादा इमारतें पूरी तरह नष्ट या गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं, जिसने लोगों को बेघर और असुरक्षित कर दिया है।

गाज़ा का संकट सिर्फ़ फौजी कार्रवाइयों या नाकाबंदी तक सीमित नहीं; ये ज़ायनवादी विचारधारा का नतीजा है, जो फिलिस्तीनी लोगों को उनके बुनियादी हक़ों से महरूम करती है। इज़रायल की नीतियाँ, जैसे गाज़ा में नागरिकों पर हमले, जबरन बेदखली और मदद पर रोक, एक ऐसी सोच को ज़ाहिर करती हैं, जो फिलिस्तीनी आबादी को हाशिए पर धकेलना चाहती है। अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने इज़रायली वज़ीरे आज़म बेंजामिन नेतन्याहू और तत्कालीन वज़ीरे दिफा योआव गैलांट के खिलाफ जंगी जुर्म और इंसानियत के खिलाफ अपराधों के लिए गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में इज़रायल के खिलाफ नरसंहार का मुकदमा चल रहा है। ये कानूनी कदम इस बात का सबूत हैं कि गाज़ा का संकट हमास की कार्रवाइयों का नतीजा नहीं, बल्कि इज़रायल की नीतियों का परिणाम है।

गाज़ा में पत्रकारों की हालत भी इस संकट का एक अहम हिस्सा है। अब तक करीब 200 पत्रकार, जिनमें ज़्यादातर फिलिस्तीनी हैं, इस जंग में शहीद हो चुके हैं। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (CPJ) के मुताबिक, ये जंग पत्रकारों के लिए अब तक की सबसे खतरनाक साबित हुई है। अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठन स्थानीय फिलिस्तीनी पत्रकारों और मानवीय कार्यकर्ताओं पर निर्भर हैं, लेकिन इज़रायल ने विदेशी प्रेस को गाज़ा में दाखिल होने से रोक रखा है। 100 से ज़्यादा मशहूर पत्रकारों, जैसे मेहदी हसन, क्रिस्टियाना अमनपोर, क्लैरिसा वॉर्ड, डॉन मैक्कुलिन और एलेक्स क्रॉफर्ड ने 'फ्रीडम टू रिपोर्ट' याचिका पर दस्तखत किए हैं। इस याचिका में गाज़ा में बिना रोक-टोक प्रेस की पहुँच की माँग की गई है। ये याचिका न सिर्फ़ पत्रकारिता की आज़ादी की हिफाज़त की बात करती है, बल्कि ये चेतावनी भी देती है कि गाज़ा में प्रेस की आवाज़ को दबाना, दुनियाभर में प्रेस की आज़ादी को कुचलने की साजिश का हिस्सा है। याचिका में कहा गया है कि विदेशी पत्रकारों की बेरोकटोक पहुँच ज़रूरी है, ताकि जंग के ज़ुल्म को दुनिया के सामने लाया जा सके और सच्चाई सिर्फ़ ताक़तवरों के नैरेटिव तक सीमित न रहे।

हाल ही में खान यूनुस और रफा के पास हुई एक घटना ने दुनिया को हिलाकर रख दिया। भूख से तड़प रहे फिलिस्तीनी GHF के सहायता केंद्रों पर खाना लेने पहुँचे थे, लेकिन इज़रायली फौज ने उन पर गोलियाँ बरसाईं। इस हमले में कम से कम 32 लोग शहीद हुए, जिनमें से 25 शव नासिर अस्पताल में लाए गए। चश्मदीद महमूद मोकैमिर ने बताया कि टैंकों और ड्रोनों से गोलीबारी शुरू हुई, जिसने लोगों को चारों तरफ से घेर लिया। एक और गवाह, अकरम अकर ने कहा कि कोई भी भाग नहीं सकता था। नासिर अस्पताल के नर्सिंग प्रमुख डॉ. मोहम्मद साकर ने बताया कि ज़्यादातर ज़ख्मियों को सिर और सीने में गोली लगी थी, और दवाइयों की कमी की वजह से एक बच्चे को फर्श पर इलाज देना पड़ा। इज़रायली फौज ने इस घटना में अपनी भूमिका से इनकार किया, लेकिन उनकी चेतावनियाँ और गोलीबारी की रणनीति इस बात का सबूत है कि ये हमला सुनियोजित था।

इज़रायली फौज ने हाल ही में मध्य गाज़ा के लिए नई निकासी चेतावनियाँ जारी की हैं, जिसके बाद डेर अल बलाह से रफा और खान यूनुस का राब्ता पूरी तरह कट गया है। फौज ने नागरिकों को मुवासी इलाके की तरफ जाने का हुक्म दिया है, जिसे इज़रायल ने "मानवीय ज़ोन" करार दिया है। लेकिन इस इलाके में भी बुनियादी सुविधाओं की कमी और फौजी कार्रवाइयों का खतरा बरकरार है। अल-मवासी के फील्ड अस्पताल के निदेशक डॉ. सुहैब अल-हम्स ने चेतावनी दी है कि विस्थापित लोगों में अंग विफलता की वजह से "मौत की लहर" आ सकती है।

दुनियाभर का जवाब इस संकट के सामने नाकाफी रहा है। अमेरिका, जो इज़रायल का सबसे बड़ा हिमायती है, ने गाज़ा में मानवीय संकट को माना तो है, लेकिन उसकी कार्रवाइयाँ सिर्फ़ दिखावटी रही हैं। अमेरिकी खास दूत स्टीव विटकॉफ ने हाल ही में गाज़ा के एक सहायता स्थल का दौरा किया, लेकिन हालात सुधारने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भुखमरी की बात कुबूल की, लेकिन ये बयान इज़रायली दावों के खिलाफ होने के बावजूद कोई बदलाव नहीं लाया। अंतरराष्ट्रीय संगठन, जैसे WHO, ICC और ICJ, ने इज़रायली नीतियों की निंदा की है, लेकिन इनकी कार्रवाइयाँ असरदार नहीं रही हैं।

गाज़ा का संकट सिर्फ़ एक इलाकाई मसला नहीं; ये इंसानियत के सामने एक इम्तिहान है। इज़रायली नीतियाँ, जो ज़ायनवादी सोच से प्रेरित हैं, गाज़ा के लोगों को उनके बुनियादी हक़ों से महरूम कर रही हैं। भुखमरी, बेदखली और हिंसा की ये त्रासदी हमास का बनाया नहीं, बल्कि इज़रायल की सुनियोजित नीतियों का नतीजा है। दुनियाभर को अब सिर्फ़ हमदर्दी जताने के बजाय ठोस कदम उठाने होंगे। गाज़ा में प्रेस की आज़ादी, मानवीय सहायता की बेरोकटोक पहुँच और नागरिकों की हिफाज़त को यकीनी बनाना वक्त की ज़रूरत है। गाज़ा के लोग भूख, हिंसा और बेघरी के बीच जी रहे हैं। उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिशें, चाहे वो पत्रकारों की हत्या हो या सहायता पर रोक, एक ऐसी दुनिया की तस्वीर पेश करती हैं, जहाँ इंसानी हक़ अब हक़ नहीं रहे। ये हम सब की ज़िम्मेदारी है कि हम इस ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाएँ और गाज़ा के लोगों के लिए इंसाफ की माँग करें।

Disclaimer

The views expressed in this article are the author’s own and do not necessarily mirror Islamonweb’s editorial stance.

Leave A Comment

Related Posts