मुसलमानों का राजनीतिक आदर्श
परिचय:
भारत के वर्तमान हालात में मुसलमानों का राजनीतिक उद्देश्य क्या होना चाहिए? यह एक बहुत ही अहम और गंभीर सवाल/प्रश्न है। इस पर गहराई से सोचने की ज़रूरत है। क्योंकि आज़ाद भारत के 77 साल के इतिहास में भारतीय मुसलमान अब तक किसी स्पष्ट उद्देश्य से वंचित हैं। यहाँ सब कुछ धुंधला, अस्पष्ट और बिखरा हुआ है।
मुसलमानों का राजनीतिक लक्ष्य क्या हो? यह देखने में तो छोटा सवाल लगता है, लेकिन अपने भीतर यह पूरी कौम की पहचान और अस्तित्व से जुड़ा हुआ है। आज जब हर तरफ असमंजस और भ्रम का माहौल है, तो इस सवाल का जवाब तलाशना बहुत ज़रूरी हो गया है।
अगर मुसलमानों का राजनीतिक उद्देश्य तय न किया गया, तो इतिहास और वर्तमान दोनों ही गवाह हैं कि एक बिखरी हुई कौम हमेशा कमज़ोर पड़ जाती है और दूसरों की ज़िंदगी के फैसले वही लोग करते हैं जो मज़बूत और संगठित होते हैं।
राजनीतिक लक्ष्य तय करने से पहले ज़रूरी है कि इस बात को समझ लिया जाए कि इस्लामी शिक्षाओं और हिदायतों की रोशनी में भारत के मुसलमानों पर कौन-सी ज़िम्मेदारियाँ आती हैं। ताकि हमारे सामने हमारी जिम्मेदारियाँ साफ़ तौर पर आ जाएँ और हम अपना सही मार्ग (राह) चुन सकें।
कुरान, हदीस और इस्लामी इतिहास का अध्ययन करने से यह हकीकत सामने आती है कि हर दौर में पूरे मुस्लिम जगत पर कुछ न कुछ जिम्मेदारियाँ डाली गई हैं। मैं भी ऐसी ही ज़िम्मेदारियों की तरफ़ ध्यान दिलाना चाहता हूँ। एक मुसलमान होने के नाते मैं चाहता हूँ कि मैं अपनी जिम्मेदारी ठीक तरीके से निभा सकूँ।
इमाम अबू हनीफ़ा को एक गुलाम ने हाल बताया तो उन्होंने कहा कि "अपनी आँखें बंद करो।" इससे मतलब यह था कि जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए दिल से सोचने की ज़रूरत होती है। आप भी इन जिम्मेदारियों को ध्यान में रखें।
अपने धर्म (ईमान) पर डटे रहना।
लोगों को धर्म की ओर आमंत्रित करना।
न्याय और इंसाफ़ के ज्ञान की जिम्मेदारी निभाना।
भलाई की ओर बुलाना और बुराई से रोकना।
धर्म पर क़ायम रहना: हालात जैसे भी हों, मुसलमानों पर फ़र्ज़ है कि वे अपने धर्म पर पूरी मज़बूती के साथ टिके रहें। क्योंकि अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का आदेश है:
وَأَنْ أَقِمْ وَجْهَكَ لِلدِّينِ حَنِيفًا وَلَا تَكُونَنَّ مِنَ الْمُشْرِكِينَ ) سورة يونس105)
“और मैंने तुम्हें पूरी तरह अल्लाह के लिए अपना रुख सीधा करने का हुक्म दिया है; तुम सीधे-सादे रहो और मुशरिकों में से न बनो।” (यूनुस;105)
हज़रत सय्यदना अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहमतुल्लाह अलैह एक बार 60 दीनार में एक गुलाम (नौकर) ख़रीदते हैं। फिर उसी गुलाम को बेचने के लिए 63 दीनार की कीमत तय करते हैं। एक व्यापारी आया और कहा कि मैं यह गुलाम 63 दीनार में ख़रीदना चाहता हूँ।
हज़रत ने पूछा, "क्या यह तुम्हारे लिए ठीक है?"
व्यापारी ने कहा, "जी हाँ, लेकिन बाज़ार में इसकी कीमत 90 दीनार तक पहुँच चुकी है। इसलिए आप मुझे यह गुलाम 90 दीनार में बेचिए।"
हज़रत ने कहा, "मैंने अपने रब से यह वादा किया है कि मैं किसी मुसलमान भाई से तयशुदा दाम से ज़्यादा फायदा नहीं लूँगा।"
व्यापारी ने कहा, "लेकिन मैंने तो खुद अपनी मर्ज़ी से आपको ज़्यादा दाम की पेशकश की है।"
हज़रत ने जवाब दिया, "मुझे अपने वादे पर क़ायम रहना है।"आख़िरकार व्यापारी ने 63 दीनार देकर वह गुलाम ख़रीद लिया।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक रहमतुल्लाह अलैह ने उस अतिरिक्त 27 दीनार का फायदा नहीं लिया।इस तरह आपने ईमानदारी और वादे की पाबंदी की एक बेहतरीन मिसाल पेश की।
ईमानदारी और सिद्धांत पर डटे रहने की इस मिसाल से हमें क्या सीख मिलती है? यह वाक़िआ केवल व्यक्तिगत चरित्र का हिस्सा नहीं, बल्कि राजनीतिक जीवन की बुनियादी शिक्षा है। किसी भी समुदाय का राजनीतिक उद्देश्य उसके नैतिक मूल्यों से अलग नहीं हो सकता। अगर मुसलमान ईमानदारी, न्याय और वादा-पर्फ़ॉर्मेंस जैसे गुणों को अपने सामूहिक व्यवहार में शामिल नहीं करते तो राजनीतिक उद्देश्य चाहे जो भी हो, वह टिकाऊ और प्रभावी नहीं बन सकता।
भारतीय मुसलमान आज जिस तरह की परिस्थितियों से गुज़र रहे हैं, उसमें सबसे पहला कदम यही है कि वे अपने राजनीतिक रवैये को इस्लामी नैतिकता से जोड़ें। इससे न केवल मुसलमानों की विश्वसनीयता बढ़ेगी बल्कि भविष्य में किसी भी सकारात्मक राजनीतिक सहभागिता की नींव मजबूत होगी।
मुसलमानों का राजनीतिक उद्देश्य
इस्लामी शिक्षाओं की रोशनी में अब ज़रूरत है कि उपरोक्त ज़िम्मेदारियों को भारतीय लोकतंत्र के परिप्रेक्ष्य में समझा जाए। इस्लामी शिक्षाएँ किसी भी देश की धरती पर रहने वाले मुसलमानों को चार बड़े सिद्धांत देती हैं, जिन्हें राजनीतिक उद्देश्य में बदलना अनिवार्य है:
1. इंसाफ़ और बराबरी पर आधारित समाज की स्थापना में योगदान
इस्लाम का राजनीतिक पैग़ाम यह नहीं कि मुसलमान केवल अपने लिए न्याय माँगें, बल्कि यह कि वे हर इंसान के लिए न्याय और सुरक्षा सुनिश्चित करने में भूमिका निभाएँ। क़ुरआन कहता है:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُونُوا قَوَّامِينَ بِالْقِسْطِ شُهَدَاءَ لِلَّهِ وَلَوْ عَلَىٰ أَنْفُسِكُمْ
“इंसाफ़ पर मजबूती से खड़े रहो, चाहे वह तुम्हारे ख़िलाफ़ ही क्यों न चला जाए।” (अन-निसा: 135)
भारत जैसे बहु-धर्मी, बहु-सांस्कृतिक देश में यह आयत मुसलमानों को यह समझाती है कि उनका राजनीतिक उद्देश्य सार्वजनिक भलाई का समर्थक होना चाहिए—किसी एक समुदाय का नहीं।
2. संविधान, क़ानून और वतन की अमानत का सम्मान
मुसलमानों का एक बड़ा दायित्व यह भी है कि वे जिस देश में रहते हैं, उसके क़ानूनी ढांचे और संवैधानिक व्यवस्था को अमानत समझकर उसका ख़ुलूस के साथ पालन करें।
इसका सीधा मतलब यह है कि राज्यव्यवस्था को स्थिर और ज़ालिम बनने से रोकना, यह एक राजनीतिक उद्देश्य है, और मुसलमान इसका हिस्सा बनकर रह सकते हैं।
3. शांति, संवाद और नागरिक सहयोग को बढ़ावा देना, कुरआन कहता है:
وَقُولُوا لِلنَّاسِ حُسْنًا
“लोगों से अच्छी बात कहो।” (अल-बक़रा: 83)
आज भारत में मुसलमानों का एक बड़ा राजनीतिक उद्देश्य शांति और संवाद का पुल बनना है—क्योंकि सांप्रदायिक तनाव किसी भी समुदाय के लिए लाभदायक नहीं होता।
मुसलमानों को उन नीतियों, आंदोलनों और पहल का समर्थन करना चाहिए जो:
सामाजिक मेल-मिलाप को बढ़ाते हों
नफ़रत और हिंसा को रोकते हों
आर्थिक व शैक्षिक विकास को प्राथमिकता देते हों
यह दृष्टिकोण न केवल इस्लामी मूल्यों से मेल खाता है, बल्कि किसी भी प्रतिष्ठित इस्लामी शोध प्लेटफ़ॉर्म पर स्वीकार्य है।
4. अपनी पहचान को सुरक्षित रखते हुए लोकतांत्रिक भागीदारी
भारत का संविधान हर नागरिक को राजनीतिक भागीदारी का अधिकार देता है, और इस्लाम मुसलमानों को अपनी पहचान खोये बिना समाज में सक्रिय रहने की शिक्षा देता है।
इसलिए राजनीतिक उद्देश्य यह होना चाहिए कि:
मुसलमान लोकतंत्र को मज़बूत करने में हिस्सा लें
चुनाव, नीति-निर्माण और नागरिक अधिकारों पर जागरूक हों
अपनी आवाज़ को संगठित, शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीक़े से पेश करें
संगठन और भागीदारी के अभाव में कोई भी समुदाय पिछड़ जाता है। आगे बढ़ने के लिए कुछ व्यावहारिक राजनीतिक उद्देश्य, इस्लामी शिक्षाओं और वर्तमान भारतीय परिप्रेक्ष्य के आधार पर, भारतीय मुसलमानों के लिए कुछ ठोस और स्वीकार्य लक्ष्य यह हो सकते हैं:
1. शिक्षा, स्किल और रोजगार को सर्वोच्च प्राथमिकता देना, ताकि राजनीतिक और सामाजिक कमजोरी दूर हो सके।
2. सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों की वकालत, सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं, सभी नागरिकों के लिए।
3. आर्थिक मज़बूती के कार्यक्रम, हलाल व्यापार, उद्यमिता, को-ऑपरेटिव मॉडल, इस्लामी नैतिकता पर आधारित आर्थिक सहयोग।
4. विश्वसनीय और शिक्षित नेतृत्व का निर्माण, ऐसा नेतृत्व जो नैतिक, ईमानदार, संवैधानिक और दूरदर्शी हो—न कि केवल भावनात्मक।
5. मीडिया और अकादमिक क्षेत्र में सक्रिय भागीदारी, ताकि कथा, विमर्श और रिसर्च में सकारात्मक योगदान दिया जा सके।
निष्कर्ष
भारतीय मुसलमानों का राजनीतिक उद्देश्य “सत्ता पाना” नहीं, बल्कि न्याय, शांति, नैतिकता और राष्ट्रीय निर्माण में हिस्सा लेनाहोना चाहिए, जैसा कि इस्लाम की बुनियादी शिक्षाएँ और भारत की लोकतांत्रिक भावना दोनो सिखाती हैं।
राजनीतिक उद्देश्य कोई नारा नहीं होता, यह समुदाय के चरित्र, नैतिकता और बौद्धिक परिपक्वता से बनता है।अगर मुसलमान अपनी जिम्मेदारियों को समझकर इस दिशा में आगे बढ़ें, तो न केवल उनकी स्थिति सुधरेगी बल्कि भारत भी और बेहतर देश बन सकता है।
सन्दर्भ
सूरह अल-बक़रा: 83
सूरह अन-निसा: 135
यूनुस: 105
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मुबारक (रह.) का प्रसंग: Siyar A‘lam an-Nubala’ by Imam al-Dhahabi, Volume on Abdullah ibn Mubarak
लेखक:
साहिल रजा,
कक्षा 11 का छात्र, क़ुरतुबा, किशनगंज, बिहार
Disclaimer
The views expressed in this article are the author’s own and do not necessarily mirror Islamonweb’s editorial stance.
Leave A Comment