अगर प्रेम जताना अपराध है, तो धर्मनिरपेक्षता का भविष्य कहाँ जाएगा?
परिचय
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, जहाँ करोड़ों लोग अलग-अलग धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों के साथ मिलकर रहते हैं। यह विविधता ही भारत की सबसे बड़ी ताकत और खूबसूरती है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और अन्य समुदायों के लोग सदियों से एक-दूसरे के साथ भाईचारे में जीते आए हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में यह आपसी प्यार और भाईचारा कमज़ोर पड़ता दिख रहा है। खासकर मुसलमानों के लिए हालात दिन-ब-दिन कठिन होते जा रहे हैं। देश में मुसलमानों की आबादी करीब 20 करोड़ है, जो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी है। मुसलमानों ने भारत के इतिहास, संस्कृति, कला, विज्ञान और भाषा में बहुत बड़ा योगदान दिया है। मुगल काल की शानदार इमारतें जैसे ताजमहल, लाल किला और जामा मस्जिद से लेकर उर्दू भाषा की मिठास, सूफी संगीत और स्वतंत्रता संग्राम में मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे नेताओं का योगदान—ये सब मुसलमानों की देन हैं। फिर भी आज मुसलमानों के खिलाफ नफरत, हिंसा और भेदभाव की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। यह सिर्फ धर्म का मामला नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीति, मीडिया और समाज की सोच से जुड़ी गहरी वजहें हैं।
हाल ही में उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुई एक घटना ने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया है। रबीउल अव्वल का महीना था, जो मुसलमानों के लिए पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से प्रेम जताने का खास मौका होता है। इस दौरान सैयद नगर इलाके में मुसलमानों ने "I Love Muhammad" लिखा एक बैनर लगाया था। यह बैनर सिर्फ एक साधारण संदेश था—पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के प्रति मोहब्बत और शांति का प्रतीक। लेकिन कुछ लोगों को यह पसंद नहीं आया। उन्होंने बैनर फाड़ दिया और हंगामा खड़ा कर दिया। सबसे दुखद बात यह रही कि पुलिस ने बैनर फाड़ने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि उन मुसलमान युवकों पर एफआईआर दर्ज कर ली जिन्होंने बैनर लगाया था। यह घटना सितंबर 2025 की है, जब ईद मिलाद उन नबी की तैयारी चल रही थी। पुलिस का कहना था कि यह बैनर मिश्रित आबादी वाले इलाके में लगा था और इससे शांति भंग हो सकती थी। लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रेम जताना अपराध है? अगर ऐसा है, तो भारत की धर्मनिरपेक्षता का भविष्य क्या होगा? इस लेख में हम इस घटना को विस्तार से समझेंगे, इसके ऐतिहासिक संदर्भ देखेंगे, संवैधानिक अधिकारों पर बात करेंगे और समाज के लिए इसके मायने तलाशेंगे।
इतिहास की पृष्ठभूमि और बढ़ती नफरत
भारत का इतिहास सदियों से सहिष्णुता (Tolerance) और एकता का प्रतीक रहा है। लेकिन ब्रिटिश काल में अंग्रेजों ने "फूट डालो और राज करो" (Divide and Rule) की नीति अपनाई, जिसने हिंदू और मुसलमानों के बीच दूरी बढ़ाई। 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने मुसलमानों को ज्यादा दोषी ठहराया और उन्हें दबाने की कोशिश की। यह दूरी 1947 के बंटवारे में और गहरी हो गई। बंटवारे के बाद भारत में रहने वाले मुसलमानों पर उनकी "वफादारी" को लेकर शक किया जाने लगा। कई लोग उन्हें पाकिस्तान से जोड़कर देखने लगे, जबकि उन्होंने भारत को अपना घर चुना था। समय के साथ यह शक राजनीतिक हथियार बन गया।
आज की स्थिति और भी चिंताजनक है। पिछले सालों में हेट स्पीच, मॉब लिंचिंग और धार्मिक भेदभाव की घटनाएँ आम हो गई हैं। उदाहरण के लिए, 2024 में दिल्ली में एक मुस्लिम युवक को सिर्फ इसलिए पीटा गया क्योंकि उसने नमाज पढ़ी थी। इसी तरह, उत्तर प्रदेश और गुजरात में मस्जिदों पर हमले और मुसलमानों की संपत्ति पर बुलडोजर चलाने की घटनाएँ हुई हैं। ये सब राजनीतिक फायदे के लिए हो रही हैं। कुछ राजनीतिक दल चुनावों में ध्रुवीकरण का सहारा लेते हैं, जहाँ मुसलमानों को "दूसरा" दिखाया जाता है। मीडिया भी इसमें भूमिका निभाता है, जहाँ मुसलमानों से जुड़ी खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है।
कानपुर की घटना इसी सिलसिले की एक कड़ी है। सितंबर 2025 में सैयद नगर में मुसलमान युवकों ने ईद मिलाद उन नबी के मौके पर बैनर लगाया। यह बैनर पिछले साल भी लगा था, लेकिन इस बार कुछ हिंदू संगठनों ने विरोध किया। उन्होंने दावा किया कि यह बैनर हिंदू बहुल इलाके में लगा था और इससे तनाव फैल सकता था। सीसीटीवी फुटेज के आधार पर पुलिस ने कहा कि मुसलमानों ने जानबूझकर शांति भंग करने की कोशिश की। नतीजा? 20 से ज्यादा मुसलमान युवकों पर एफआईआर दर्ज हुई, कुछ गिरफ्तार हुए, लेकिन बैनर फाड़ने वालों पर कोई ऐक्शन नहीं। इस घटना ने पूरे देश में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए। उत्तर प्रदेश, गुजरात और उत्तराखंड में "I Love Muhammad" के समर्थन में रैलियाँ निकलीं, लेकिन वहाँ भी 1300 से ज्यादा लोगों पर एफआईआर दर्ज हुई और 38 गिरफ्तारियाँ हुईं। यह दिखाता है कि कैसे एक साधारण धार्मिक अभिव्यक्ति को राजनीतिक मुद्दा बना दिया जाता है।
संविधान, धर्म की आज़ादी और दोहरा मापदंड
भारतीय संविधान दुनिया के सबसे मजबूत संविधानों में से एक है, जो हर नागरिक को समान अधिकार देता है। अनुच्छेद 25 (Right to Freedom of Religion) कहता है कि हर व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, उसका प्रचार करने और शांतिपूर्ण तरीके से अभ्यास करने की आज़ादी है। अनुच्छेद 14 (Right to Equality) समानता की बात करता है, और अनुच्छेद 15 (Right against Discrimination) धर्म के आधार पर भेदभाव को रोकता है। तो "I Love Muhammad" जैसे बैनर में क्या गलत है? यह न तो किसी को भड़काता है, न नफरत फैलाता है। यह सिर्फ एक व्यक्तिगत भावना है, जैसे कोई कहे "I Love Jesus" या "Jai Shri Ram"। अगर राम नवमी पर जुलूस निकलते हैं, हनुमान जयंती पर बैनर लगते हैं, तो उन पर कोई आपत्ति क्यों नहीं? क्या वे नए रिवाज नहीं थे? इतिहास बताता है कि राम नवमी के जुलूस 19वीं सदी में शुरू हुए, लेकिन आज वे सामान्य हैं। फिर मुसलमानों के साथ दोहरा मापदंड क्यों?
पुलिस का रवैया सबसे ज्यादा दुखद है। कानपुर में बैनर फाड़ने वालों को छोड़ दिया गया, लेकिन लगाने वालों पर धारा 153A (धर्म के आधार पर दुश्मनी फैलाना) और 295A (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना) लगाई गई। पुलिस ने कहा कि बैनर मिश्रित इलाके में था, लेकिन क्या यह बहाना है? अगर यही बैनर किसी हिंदू त्योहार पर लगता, तो क्या पुलिस ऐसी ही सख्ती दिखाती? हाल के सालों में कई हेट स्पीच के मामले देखे गए, जैसे 2023 में हरिद्वार धर्म संसद में मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिए गए, लेकिन दोषियों पर मुकदमा सालों तक चला। वहीं, मुसलमानों की छोटी-छोटी बातों पर तुरंत कार्रवाई हो जाती है।
यह दोहरा रवैया भारत की धर्मनिरपेक्षता को कमज़ोर कर रहा है। धर्मनिरपेक्षता का मतलब है कि राज्य किसी धर्म को तरजीह न दे, बल्कि सबको बराबर सम्मान दे। लेकिन आज की राजनीति में बहुसंख्यकवाद हावी है, जहाँ अल्पसंख्यकों को दबाया जाता है। बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में मुसलमानों के खिलाफ चुनौतियाँ बढ़ रही हैं, जो धर्मनिरपेक्षता को खतरे में डाल रही हैं। इसी तरह, द हिंदू के संपादकीय में लिखा है कि बढ़ती असहिष्णुता भारत के भविष्य को अंधकारमय बना रही है। अगर प्रेम जताना अपराध बन गया, तो कल "I Am Muslim" कहना भी जुर्म हो सकता है।
मोहब्बत अपराध कैसे और समाज पर असर
पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से प्रेम करना मुसलमानों की आस्था का हिस्सा है। कुरआन और हदीस में पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मोहब्बत को ईमान की निशानी बताया गया है। "I Love Muhammad" कोई राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि दिल की आवाज़ है। दुनिया के करोड़ों मुसलमान इसे जताते हैं, लेकिन भारत में इसे अपराध बना दिया गया। यह सिर्फ मुसलमानों का मसला नहीं, बल्कि पूरे समाज का है। अगर नफरत को आज़ादी मिले और प्रेम को सज़ा, तो समाज टूट जाएगा।
इस घटना का असर दूरगामी है। मुसलमान युवा अब डरते हैं कि अपनी धार्मिक भावनाएँ जताने पर क्या होगा। यह असुरक्षा की भावना पैदा करता है, जो सामाजिक एकता को तोड़ती है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में सैयद नगर के निवासियों ने कहा कि पिछले साल भी यही बैनर लगा था, तो अब क्या गलत हुआ? यह दिखाता है कि कैसे कानून का दुरुपयोग हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की छवि खराब हो रही है। डेली सबाह की रिपोर्ट में इसे इस्लामोफोबिया का उदाहरण बताया गया है।
निष्कर्ष
भारत का भविष्य तभी सुरक्षित रहेगा जब हर धर्म को समान अधिकार मिलेंगे। अगर प्रेम जताना अपराध है, तो धर्मनिरपेक्षता का क्या होगा? हमें महात्मा गांधी, मौलाना आज़ाद और डॉ. अंबेडकर के सपनों को याद रखना चाहिए—एक ऐसा भारत जहाँ बराबरी और सम्मान हो। अब समय है कि हम सब मिलकर नफरत की राजनीति का विरोध करें, कानून का सही इस्तेमाल सुनिश्चित करें और भाईचारे को मजबूत करें। तभी भारत सच्चा लोकतंत्र बनेगा।
सन्दर्भ
- The Constitution of India- Article 25 (Freedom of Religion)
- The Wire- “Do Indians have right to freedom of religion? Constitution says yes but the laws no.”
- Centre for Justice & Peace (CJP) “an Indian Law on Hate Speech: The Contradictions and Lack of Conversation”
- Muslim Mirror - “I Love Muhammad Controversy: Kanpur Police Clarify Action Against Muslim Youths,” 2025.
- Frontline - “The ‘I Love Muhammad’ Controversy in Uttar Pradesh,” 2025.
- Daily Sabah - “Beyond Islamophobia: India Cracks Down on ‘I Love Muhammad’ Posters,” 2025.
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