शिक्षा में मुस्लिम पिछड़ेपन का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
परिचय
आज के समय में शिक्षा किसी भी समाज के विकास और प्रगति का सबसे अहम आधार मानी जाती है। किसी भी समुदाय की सामाजिक(Socia), आर्थिक (Economic) और बौद्धिक (Intellectual) स्थिति उस समाज की शैक्षिक स्थिति से गहरे जुड़ी होती है। दुर्भाग्यवश, आज मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ापन झेल रहा है। चाहे वह भारत हो, दक्षिण एशिया, अफ्रीका हो या अरब जगत के कुछ हिस्से — मुसलमान शिक्षा के मामलों में अन्य समाजों के मुकाबले पीछे हैं।
इस पिछड़ापन का असर केवल विज्ञान और तकनीक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक विकास में भी बड़ी बाधा डालता है। यह अजीब बात यह है कि इस्लाम ने शिक्षा को बहुत ऊँचा स्थान दिया है। कुरआन, हदीस और पैग़म्बर ﷺ की शिक्षाओं में तालीम को विशेष महत्व दिया गया है। इसके बावजूद मुसलमानों की शैक्षणिक स्थिति आज भी चिंता का विषय बनी हुई है।
यह सवाल उठता है कि आखिर एक ऐसा धर्म, जो शिक्षा को इतना महत्व देता है, उसके अनुयायी और उसके मानने वाले शिक्षा में क्यों पिछड़े हैं? इसी सवाल का विश्लेषण यहाँ किया जायेगा और साथ ही कुछ रिपोर्ट‑आधारित आंकड़े भी प्रस्तुत किए गए हैं।
इस्लाम में शिक्षा की अनिवार्यता: कुरआन और हदीस का स्पष्ट संदेश
इस्लाम ने अपने पैरोकारों को शिक्षा की ओर प्रोत्साहित किया है। क़ुरआन आरंभ ही “इल्म” (ज्ञान) से हुआ। सबसे पहली आयत में अल्लाह तआला ने इंसान को पढ़ने और ज्ञान प्राप्त करने का आदेश दिया:
"اقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِي خَلَقَ…" पढ़ो अपने उस रब के नाम से जिसने पैदा किया।”
कुरआन में शिक्षा को श्रेष्ठता का आधार बताया गया है:
" قل هَلْ يَسْتَوِي الَّذِينَ يَعْلَمُونَ والذين لا يعلمون…" “कह दो: क्या जानने वाले और न जानने वाले दोनों बराबर हो सकते हैं?” (सूरह अज़-ज़ुमर (39:9)
पैगंबर ﷺ ने फ़रमाया:
"طَلَبُ الْعِلْمِ فَرِيضَةٌ عَلَى كُلِّ مُسْلِمٍ" “इल्म (ज्ञान) हासिल करना हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है।” (सुनन इब्न माजा)
अल्लाह तआला क़ुरआन पाक में इरशाद फरमाता है:
" ُ وَقُلْ رَبِّ زِدْنِي عِلْمًاऔर कहो: ‘ऐ मेरे रब! मेरे इल्म में इज़ाफ़ा कर।’ (सूरह त़ाहा — आयत 114)
साथ ही, सीरत-ए-इब्ने हिशाम में उल्लेख है कि पैगंबर ﷺ ने कैदियों की रिहाई तब स्वीकार की जब उन्होंने मुसलमान बच्चों को लिखना-पढ़ना सिखाया। यह सब साबित करता है कि शिक्षा इस्लाम में कितनी महत्वपूर्ण है।
मुसलमानों के शैक्षणिक पिछड़ेपन के कारण
मुसलमानों के शैक्षणिक पिछड़ने के पीछे कई ऐतिहासिक, सामाजिक और मानसिक वजहें हैं। इन कारणों की पुष्टि कई रिसर्च, स्टडीज़ और सरकारी/ग़ैर-सरकारी रिपोर्टों में भी की गई है:
- स्कूल में कम भागीदारी (low participation), बीच में पढ़ाई छोड़ देना (dropout), और अच्छी तालीम तक कम पहुँच (low access)
- एक बड़े अध्ययन (Sachar Committee, 2006) में पाया गया कि 6–14 साल के करीब एक-चौथाई मुस्लिम बच्चे या तो स्कूल नहीं जाते (non-enrolment), या फिर पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं (dropout)।
- उस रिपोर्ट के मुताबिक, 17 साल से ऊपर की उम्र में मुसलमानों में मैट्रिक स्तर (matriculation level) तक पढ़ाई पूरी करने वालों का प्रतिशत सिर्फ़ 17% था, जबकि पूरे देश का औसत (national average) 26% था।
- मध्य विद्यालय (middle school) के बाद, केवल लगभग 50% मुस्लिम छात्र ही आगे सेकंडरी (secondary) स्तर तक पहुँच पाते थे, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह दर लगभग 62% थी।
- उच्च शिक्षा में बहुत कम भागीदारी (low participation in higher education)
- All India Survey on Higher Education (AISHE) के आंकड़ों के मुताबिक, मुसलमानों की उच्च शिक्षा (higher education) में भागीदारी दूसरे सामाजिक-धार्मिक समूहों—जैसे SC, ST और OBC—की तुलना में बहुत कम पाई गई है।
- उदाहरण के लिए, 2014–15 के समय मुसलमानों का हिस्सा उच्च शिक्षा में लगभग 4.4% था।
- 2010–11 से 2018–19 तक मुसलमानों की उच्च शिक्षा में नामांकन (Enrolment) दर में बढ़त हुई है; लेकिन इसके बावजूद भी उनकी हिस्सेदारी अन्य पिछड़े वर्गों की तुलना में कम है।
- राज्य‑स्तरीय असमानता व विशेष रूप से अल्पसंख्यक स्कूलों में पिछड़ापन
- एक अध्ययन, जिसे Council for Social Development द्वारा करवाया गया और जिसे Telangana Minority Residential Educational Institutions Society (TMREIS) से संबंध रखा गया, दिखाता है कि तेलंगाना के अल्पसंख्यक रेसिडेंशियल स्कूलों में मुस्लिम छात्रों की शैक्षणिक स्थिति अन्य अल्पसंख्यक समूहों की तुलना में सबसे अधिक पिछड़ चुकी है।
- इस अध्ययन के मुताबिक, कई विद्यालयों में मुस्लिम बच्चों का स्कूल छोड़ना, खराब प्रदर्शन, और उच्च शिक्षा की ओर अनिच्छा — ये समस्याएं देखी गई।
- देहाती पृष्ठभूमि (rural background) और सामाजिक-आर्थिक असमानियाँ (socio-economic disparities)
- एक रिसर्च (Educational Mobility of Muslims in Rural West Bengal), जिसमें ग्रामीण पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले के मुस्लिम गांवों की तालीमी तरक़्क़ी (educational mobility) का जायज़ा लिया गया, यह दिखाता है कि आर्थिक गरीबी (economic poverty), कम संसाधन (lack of resources) और माँ-बाप की कम तालीमी पृष्ठभूमि (low parental educational background) की वजह से पढ़ाई में बड़ा फ़ासला दिखाई देता है। मुसलमानों और दूसरे धर्मों/जातियों के लोगों के बीच तालीम की असमानता (educational inequality) अभी भी बनी हुई है।
- ऐसे गांवों में अक्सर स्कूल (schools), पढ़ाने के संसाधन (teaching resources), लड़कियों की तालीम (girls’ education) और स्कूल जाने की सुविधाएँ (school accessibility) काफी कमज़ोर होती हैं। इसी वजह से पढ़ाने की गुणवत्ता (quality of teaching) भी प्रभावित हो जाती है।
- नई तालीमी नीतियाँ (new educational policies) और उन्हें लागू करने में चुनौतियाँ
- एक ताज़ा रिसर्च — Challenges in Schooling of Muslim Minority Children (2024) — भारत की नीतियों (policies) और कार्यक्रमों (programmes) की समीक्षा करके बताता है कि हालाँकि संविधान और नीतिगत प्रावधान (policy provisions) मौजूद हैं, लेकिन मुस्लिम अल्पसंख्यक बच्चों को स्कूल तक लाना (school access), अच्छी शिक्षा देना (quality education), और डिजिटल व आधुनिक तालीम (digital & modern education) पहुँचाना अभी भी पर्याप्त नहीं हो पाया है।
- यह रिसर्च यह भी बताता है कि कई इलाक़े — ख़ासकर जहाँ मुसलमानों की आबादी ज़्यादा है — आज भी बुनियादी स्कूलिंग (basic schooling), ढांचा और सुविधाओं (infrastructure & basic facilities) जैसे शौचालय (toilets), पानी (water) और सफ़र की सुविधा (transport) की कमी से परेशान हैं। इसी वजह से बच्चों में ड्रॉपआउट (dropout) ज़्यादा है और आगे की पढ़ाई में जाने की दर (progression rate) कम रह जाती है।
इन रिपोर्टों से यह साफ़ दिखाई देता है कि मुसलमानों का तालीमी पिछड़ापन (educational backwardness) कोई निजी या सिर्फ़ सांप्रदायिक मामला (communal issue) नहीं है, बल्कि बड़ी संरचनात्मक असमानियाँ (structural inequalities), सामाजिक-आर्थिक गैप (socio-economic gap), नीतियों की कमज़ोरियाँ (policy weaknesses) और सीमित अवसर (limited opportunities) — इन सबका मिला-जुला नतीजा है।
शिक्षा सुधार के उपाय
- ख़ास नीतियों पर ध्यान (special policy focus) और अल्पसंख्यकों की योजनाओं का ठीक क्रियान्वयन (proper implementation)
— जैसा कि 2024 के शोध में कहा गया है, अल्पसंख्यक मुसलमान बच्चों के लिए नीतियाँ (scholarships, संस्था‑निर्माण, आधारभूत सुविधाएँ) तो हैं, लेकिन उनका प्रभावी क्रियान्वयन और मॉनिटरिंग नहीं हो रही। स्थानीय स्तर पर स्कूल इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षकों की नियुक्ति, छात्रवृत्ति, परिवहन आदि सुनिश्चित करना चाहिए।
2024 की रिसर्च कहती है कि मुसलमान अल्पसंख्यक बच्चों के लिए कई नीतियाँ मौजूद हैं — जैसे scholarships, नए institutions, और basic facilities — लेकिन इनका सही तरीके से लागू होना (implementation) और निगरानी (monitoring) ठीक से नहीं हो रही।
इसलिए ज़रूरी है कि स्थानीय स्तर पर स्कूल का ढांचा (school infrastructure), टीचर्स की नियुक्ति (teacher recruitment), छात्रवृत्ति (scholarships) और आने-जाने की सुविधा (transport) ठीक तरह से उपलब्ध कराई जाए।
- देहाती और पिछड़े इलाकों में स्कूल पहुँच (school access) और संसाधनों में सुधार (resource improvement)
जिन इलाकों में मुसलमानों की आबादी ज़्यादा है, वहाँ नए प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल (primary & secondary schools) खोलना ज़रूरी है। साथ ही अच्छे पढ़ाने के साधन (teaching resources) भी उपलब्ध कराना चाहिए।
यह कदम ख़ासकर देहाती इलाकों (rural areas) के लिए बहुत ज़रूरी है — जैसा कि मुर्शिदाबाद आदि की स्टडीज़ (studies) में भी साफ़ दिखाया गया है।
- मदरसा और मॉडर्न स्कूलिंग (modern schooling) का संतुलन
पारंपरिक मदरसों (traditional madrasas) में आज के ज़रूरी विषय — जैसे गणित (Maths), साइंस (Science), इंग्लिश (English), टेक्निकल एजुकेशन (technical education) — को शामिल करना चाहिए, ताकि बच्चे मॉडर्न दुनिया में बराबरी से आगे बढ़ सकें। इस तरह की सुधार की सलाह कई एक्सपर्ट्स (experts) भी देते रहे हैं।
- लड़की की तालीम (female education) पर खास ध्यान
मुस्लिम समाज में लड़कियों की पढ़ाई में कई रुकावटें आती हैं — सांस्कृतिक और आर्थिक (cultural & economic barriers)। कई रिपोर्टों (reports) में भी बताया गया है कि मुस्लिम महिलाओं की साक्षरता (female literacy) और तालीमी हिस्सेदारी (educational participation) अभी भी कम है।
इसलिए ज़रूरी है कि लड़कियों की तालीम को बढ़ावा दिया जाए (promotion of girls’ education), उन्हें छात्रवृत्ति (scholarships) दी जाए, और आने-जाने व सुरक्षा (transport & safety) का अच्छा इंतज़ाम किया जाए।
- परिवार और कम्युनिटी स्तर पर जागरूकता (awareness) और सोच में बदलाव (mindset change)
पहले की पीढ़ियों में पढ़ाई को लेकर कई गलत धारणाएँ थीं — जैसे सिर्फ़ दीन की तालीम ही काफ़ी है, या बचपन में काम करना पढ़ाई से ज़्यादा ज़रूरी है।
कम्युनिटी को यह समझाना ज़रूरी है कि मॉडर्न तालीम (modern education) सिर्फ़ “दुनियावी” नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक तरक़्क़ी (social & economic progress) के लिए बहुत ज़रूरी है।
- डिजिटल तालीम (digital education) और मॉडर्न हुनर (modern skills)
डिजिटल क्लासेज़ (digital classes), ऑनलाइन कोर्स (online courses), टेक्निकल तालीम (technical education) और स्किल डेवलपमेंट (skill development) पर ज़ोर देना चाहिए।
आज की दुनिया में यही असल भविष्य (future) है।
सरकार (government), एनजीओज़ (NGOs) और स्थानीय कम्युनिटी (local community) मिलकर इस दिशा में आसान और बेहतर काम कर सकते हैं।
निष्कर्ष
इस्लाम ने तालीम (education) को हमेशा बहुत ऊँचा मुक़ाम दिया है। मुसलमानों का सुनहरा दौर—विज्ञान (science), तिब्ब/चिकित्सा (medicine), फ़लसफ़ा (philosophy) और सितारा-शुमारी (astronomy)—इस बात का साफ़ सबूत है कि मुसलमान कभी इल्म से दूर नहीं थे। लेकिन आज, अलग-अलग रिपोर्टों और स्टडीज़ (studies) के मुताबिक, मुसलमानों की तालीमी हालत—स्कूलिंग (schooling), सेकेंडरी लेवल (secondary level), higher education, संसाधन (resources), लड़की की तालीम (female education) और देहाती इलाक़ों की पहुँच (rural access)—काफ़ी चिंताजनक है।
यह मसला सिर्फ़ किसी एक शख़्स की कमी नहीं, बल्कि सामाजिक-आर्थिक असमानियाँ (socio-economic inequalities), नीतिगत कमजोरियाँ (policy weaknesses) और अवसरों की कमी (lack of opportunities) का नतीजा है। इसलिए ज़रूरी है कि मुसलमान अपनी इस्लामी विरासत (Islamic heritage) और मॉडर्न दुनिया (modern world) दोनों को समझें, और तालीम को सिर्फ़ “religious duty” नहीं, बल्कि “basic necessity” समझकर आगे बढ़ें।
संतुलित (balanced), बेहतरीन (quality) और सबको शामिल करने वाली तालीम (inclusive education) ही मुस्लिम समाज को उसकी खोई हुई leadership, इज़्ज़त (dignity) और social-economic progress वापस दिला सकती है।
संदर्भ
- सूरह अल-‘अलाक
- सूरह ज़ुमार
- सूरह ताहा
- सूरह अल-मुज़म्मिल
- सहिह मुस्लिम
- सचार कमेटी रिपोर्ट (2006) – भारत सरकार की रिपोर्ट।
- ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन (AISHE) – भारत सरकार, शिक्षा मंत्रालय।
- Council for Social Development / TMREIS अध्ययन – तेलंगाना के अल्पसंख्यक रेसिडेंशियल स्कूलों पर अध्ययन।
- Educational Mobility of Muslims in Rural West Bengal – ग्रामीण पश्चिम बंगाल में मुस्लिम शिक्षा पर शोध
- Challenges in Schooling of Muslim Minority Children (2024) – मुस्लिम अल्पसंख्यक बच्चों की शिक्षा संबंधी चुनौतियों पर शोध रिपोर्ट
लेखकः
सैफ़ रज़ा
सीनियर सेकेंडरी, क़ुर्तुबा इंस्टिट्यूट ऑफ़ अकैडमिक एक्सीलेंस, बिहार
Disclaimer
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