इस्लाम में वालदैन का किरदार
परिचय
इस्लाम में वालदैन (माता-पिता) का दर्जा बहुत ऊँचा है। वे परिवार की बुनियाद हैं और बच्चों की तालीम-ओ-तर्बियत (शिक्षा और परवरिश) में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। कुरान और हदीस में वालदैन की इज्जत, उनकी खिदमत, और उनके हुकूक (हक) को बार-बार बताया गया है। इस्लाम सिखाता है कि वालदैन की सेवा और उनके साथ अच्छा व्यवहार करना जन्नत का रास्ता है। साथ ही, वालदैन को बच्चों को इस्लामी तालीम, नैतिकता, और अच्छे अखलाक (चरित्र) सिखाने की जिम्मेदारी दी गई है। आज के दौर में, जहाँ आधुनिकता और सांस्कृतिक बदलाव बच्चों को प्रभावित कर रहे हैं, वालदैन का किरदार और भी अहम हो गया है। वालदैन न सिर्फ बच्चों को दुनिया की तालीम देते हैं, बल्कि उन्हें अल्लाह की राह पर चलना सिखाते हैं, ताकि वे नेक और जिम्मेदार इंसान बनें।
इस्लाम वालदैन को अल्लाह की नेमत मानता है, और उनका किरदार परिवार को मजबूत बनाता है। अगर वालदैन नेक हों, तो बच्चे भी नेक बनते हैं, और समाज तरक्की करता है। आइए, वालदैन के दर्जे से शुरू करते हैं।
वालदैन का दर्जा
इस्लाम में वालदैन को अल्लाह की रहमत का जरिया माना गया है। उनकी इज्जत को अल्लाह की इबादत के बाद सबसे ज्यादा अहमियत दी गई है। वालदैन बच्चों की पैदाइश, परवरिश और तालीम में अल्लाह के साथी की तरह काम करते हैं, इसलिए उनकी इज्जत फर्ज है। कुरान और हदीस में वालदैन के हक को बार-बार जोर दिया गया है, ताकि बच्चे उनकी कद्र करें।
अल्लाह तआला कुरान में इरशाद फरमाता है:
وَقَضَىٰ رَبُّكَ أَلَّا تَعْبُدُوا إِلَّا إِيَّاهُ وَبِالْوَالِدَيْنِ إِحْسَانًا ۚ إِمَّا يَبْلُغَنَّ عِندَكَ الْكِبَرَ أَحَدُهُمَا أَوْ كِلَاهُمَا فَلَا تَقُل لَّهُمَا أُفٍّ وَلَا تَنْهَرْهُمَا وَقُل لَّهُمَا قَوْلًا كَرِيمًا وَاخْفِضْ لَهُمَا جَنَاحَ الذُّلِّ مِنَ الرَّحْمَةِ وَقُل رَّبِّ ارْحَمْهُمَا كَمَا رَبَّيَانِي صَغِيرًا
"और तुम्हारे रब ने हुक्म दिया कि तुम उसकी इबादत करो और वालदैन के साथ अच्छा व्यवहार करो। अगर उनमें से एक या दोनों तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँचें, तो उनके लिए 'उफ़' तक न कहो, न उन्हें डाँटो, और उनसे सम्मान से बात करो। और रहम के साथ उनके सामने नम्रता की बाज़ू झुकाओ और दुआ करो: 'ऐ मेरे रब! उन पर रहम कर, जैसे उन्होंने बचपन में मेरी परवरिश की।'" [1]
यह आयत बताती है कि वालदैन के साथ नेकी करना अल्लाह का हुक्म है, और उनकी दुआ करना जरूरी है। इब्ने कसीर अपनी तफसीर में इस आयत की व्याख्या करते हैं। "أمر الله تعالى ببر الوالدين بعد توحيده، فإن الوالدين سبب وجود الإنسان." "अल्लाह ने तौहीद के बाद वालदैन के साथ नेकी का हुक्म दिया है, क्योंकि वालदैन इंसान के अस्तित्व का कारण हैं।" [2]
यह उद्धरण वालदैन के दर्जे की अहमियत बताता है।
हदीस में फरमाया गया:
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: جَاءَ رَجُلٌ إِلَى رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَقَالَ: يَا رَسُولَ اللَّهِ مَنْ أَحَقُّ النَّاسِ بِحُسْنِ صَحَابَتِي؟ قَالَ: أُمُّكَ، قَالَ: ثُمَّ مَنْ؟ قَالَ: أُمُّكَ، قَالَ: ثُمَّ مَنْ؟ قَالَ: أُمُّكَ، قَالَ: ثُمَّ مَنْ؟ قَالَ: أَبُوكَ
"अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: एक शख्स ने रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पूछा, 'ऐ अल्लाह के रसूल! मेरे सबसे अच्छे व्यवहार का हकदार कौन है?' उन्होंने फरमाया: 'तेरी माँ।' उसने पूछा: 'फिर कौन?' फरमाया: 'तेरी माँ।' फिर पूछा: 'फिर कौन?' फरमाया: 'तेरी माँ।' फिर पूछा: 'फिर कौन?' फरमाया: 'तुम्हारे पिता।'" [3]
यह हदीस मां के दर्जे को तीन बार और बाप को एक बार जिक्र करके बताती है कि मां का हक सबसे ज्यादा है। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मां, हजरत आमिना रज़ियल्लाहु अन्हा, ने उनके बचपन में उनकी देखभाल की। हालांकि वे जल्दी गुजर गईं, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी इज्जत की और उनके लिए दुआ करते थे। इब्ने हिशाम अपनी सीरत रसूलल्लाह में लिखते हैं। "كانت آمنة بنت وهب أم النبي صلى الله عليه وسلم ترعاه في صغره، وتوفيت مبكراً، لكنه كان يدعو لها."
"हजरत आमिना बिंत वहब, पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मां, उनके बचपन में उनकी देखभाल करती थीं, और जल्दी गुजर गईं, लेकिन वे उनके लिए दुआ करते थे।" [4]
यह उद्धरण पैगंबर की मां के प्रति मोहब्बत दिखाता है।
बाप का किरदार:
बाप परिवार का सरपरस्त होता है, जिसे बच्चों की तालीम और जरूरतों का खयाल रखने का हुक्म है। हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम को अल्लाह की राह में कुर्बानी के लिए तैयार किया। उनकी तालीम ने हजरत इस्माइल को अल्लाह के हुक्म के सामने झुकने वाला बनाया। कुरान में इरशाद है:
فَلَمَّا بَلَغَ مَعَهُ السَّعْيَ قَالَ يَا بُنَيَّ إِنِّي أَرَىٰ فِي الْمَنَامِ أَنِّي أَذْبَحُكَ فَانظُرْ مَاذَا تَرَىٰ ۚ قَالَ يَا أَبَتِ افْعَلْ مَا تُؤْمَرُ ۖ سَتَجِدُنِي إِن شَاءَ اللَّهُ مِنَ الصَّابِرِينَ
"फिर जब वह उसके साथ चलने-फिरने लगा, तो उसने कहा: 'ऐ मेरे बेटे! मैं सपने में देखता हूं कि मैं तुझे जबह कर रहा हूं, तो तू देख क्या कहता है?' उसने कहा: 'ऐ मेरे अब्बा! जो हुक्म दिया गया है, उसे करो। इंशा अल्लाह तुम मुझे सब्र करने वालों में पाओगे।'" [5]
यह आयत बाप-बेटे के रिश्ते की नेक मिसाल है। इब्ने कसीर अल-बिदाया वन-निहाया में लिखते हैं।: "كان إبراهيم عليه السلام معلماً لابنه الطاعة لله، فأصبح إسماعيل مثالاً في الصبر والإيمان."
"हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे को अल्लाह की इताअत सिखाई, तो हजरत इस्माइल सब्र और ईमान की मिसाल बने।" [6]
यह उद्धरण बाप की तालीम की अहमियत बताता है। वालदैन का दर्जा इस्लाम में इतना ऊंचा है कि उनकी नाफरमानी अल्लाह की नाराजी का कारण बनती है। अब हम वालदैन की जिम्मेदारियों पर बात करते हैं।
वालदैन की जिम्मेदारियां
इस्लाम में वालदैन की जिम्मेदारी बच्चों की परवरिश, उनकी इस्लामी तालीम, और अच्छे अखलाक सिखाने तक है। वालदैन को बच्चों को नेक बनाना है, ताकि वे दुनिया और आखिरत में कामयाब हों। यह जिम्मेदारी दोतरफा है—वालदैन बच्चों के हक अदा करें, और बच्चे वालदैन के।
इस्लामी तालीम देना: वालदैन को बच्चों को कुरान, हदीस, और इस्लाम के पांच स्तंभों की तालीम देनी चाहिए। अल्लाह तआला कुरान में इरशाद फरमाता है:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا قُوا أَنفُسَكُمْ وَأَهْلِيكُمْ نَارًا وَقُودُهَا النَّاسُ وَالْحِجَارَةُ "ऐ ईमान वालो! अपने आप को और अपने परिवार को उस आग से बचाओ जिसका ईंधन इंसान और पत्थर होंगे।" [7]
यह आयत बताती है कि वालदैन को बच्चों को जहन्नम से बचाने की जिम्मेदारी है। इब्ने कसीर तफसीर में कहते हैं। "أمر الله الآباء بتعليم أبنائهم الإسلام ليحموهم من النار." "अल्लाह ने वालदैन को हुक्म दिया कि वे बच्चों को इस्लाम सिखाएं ताकि उन्हें आग से बचाएं।" [8]
यह उद्धरण तालीम की जिम्मेदारी बताता है। हदीस में फरमाया गया:
عَنْ عَلِيٍّ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "عَلِّمُوا أَوْلَادَكُمْ الصَّلَاةَ إِذَا بَلَغُوا سَبْعًا، وَاضْرِبُوهُمْ عَلَيْهَا إِذَا بَلَغُوا عَشْرًا"
"हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: अपने बच्चों को सात साल की उम्र में नमाज सिखाओ, और दस साल की उम्र में अगर वे न पढ़ें तो उन्हें हल्की ताड़ना दो।" [9]
यह हदीस नमाज की तालीम पर जोर देती है। मिसाल: हजरत लुकमान अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे को कुरान में नसीहत दी कि अल्लाह की इबादत करो, झूठ से बचो, और सब्र करो। यह वालदैन की तालीम की मिसाल है।
कुरान में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है:
وَإِذْ قَالَ لُقْمَانُ لِابْنِهِ وَهُوَ يَعِظُهُ يَا بُنَيَّ لَا تُشْرِكْ بِاللَّهِ ۖ إِنَّ الشِّرْكَ لَظُلْمٌ عَظِيمٌ "और जब लुकमान ने अपने बेटे से कहा, जबकि वह उसे नसीहत कर रहा था: 'ऐ मेरे बेटे! अल्लाह के साथ शिर्क न करना, बेशक शिर्क बड़ा जुल्म है।'" [10]
इब्ने कसीर अल-बिदाया में लिखते हैं। "كان لقمان معلماً لابنه التوحيد والأخلاق، فأصبح نموذجاً للوالدين." "हजरत लुकमान ने अपने बेटे को तौहीद और अखलाक सिखाया, तो वे वालदैन की मिसाल बने।" [11]
नैतिकता और अखलाक सिखाना: वालदैन को बच्चों को सच्चाई, मेहरबानी, और इंसाफ सिखाना चाहिए। मिसाल: पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी बेटी हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा को सादगी, मेहरबानी, और इबादत की तालीम दी। वे दूसरों की मदद करती थीं और सादा जिंदगी जीती थीं। इब्ने साद तबकात में लिखते हैं। "كانت فاطمة رضي الله عنها تتعلم من أبيها الصدق والرحمة، فأصبحت مثالاً للبنات." "हजरत फातिमा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपने अब्बा से सच्चाई और रहम सीखा, तो वे बेटियों की मिसाल बनीं।" [12]
बच्चों की जरूरतों का खयाल: वालदैन को बच्चों की शारीरिक, मानसिक, और भावनात्मक जरूरतों का खयाल रखना चाहिए। मिसाल: हजरत हाजरा रज़ियल्लाहु अन्हा ने अपने बेटे हजरत इस्माइल अलैहिस्सलाम के लिए पानी की तलाश में सफा और मरवा की पहाड़ियों के बीच सात बार दौड़ लगाई। यह मां की कुर्बानी की मिसाल है। इब्ने हिशाम सीरत में लिखते हैं। "ركضت هاجر بين الصفا والمروة سبع مرات بحثاً عن الماء لابنها إسماعيل." "हजरत हाजरा ने सफा और मरवा के बीच सात बार दौड़ लगाई, अपने बेटे इस्माइल के लिए पानी की तलाश में।" [13]
बच्चों का वालदैन के प्रति फर्ज
इस्लाम में बच्चों को वालदैन की इज्जत, उनकी खिदमत, और उनकी दुआ करने का हुक्म है। बच्चों का फर्ज है कि वे वालदैन के साथ नेकी करें, उनकी बात मानें, और बुढ़ापे में उनका सहारा बनें।
अल्लाह तआला कुरान में इरशाद फरमाता है:
وَوَصَّيْنَا الْإِنسَانَ بِوَالِدَيْهِ حُسْنًا ۖ وَإِن جَاهَدَاكَ لِتُشْرِكَ بِي مَا لَيْسَ لَكَ بِهِ عِلْمٌ فَلَا تُطِعْهُمَا ۚ إِلَيَّ مَرْجِعُكُمْ فَأُنَبِّئُكُم بِمَا كُنتُمْ تَعْمَلُونَ
"और हमने इंसान को हुक्म दिया कि वह अपने वालदैन के साथ अच्छा व्यवहार करे। लेकिन अगर वे तुम्हें मेरे साथ शिर्क करने का दबाव दें, जिसका तुम्हें इल्म न हो, तो उसकी बात न मानो। तुम्हारी वापसी मेरी तरफ है, और मैं तुम्हें बताऊंगा कि तुम क्या करते रहे।" [14]
यह आयत नेकी का हुक्म देती है, लेकिन शिर्क में नाफरमानी की इजाजत। इब्ने कसीर तफसीर में कहते हैं। "الطاعة للوالدين واجبة إلا في الشرك بالله." "वालदैन की इताअत फर्ज है सिवाय अल्लाह के साथ शिर्क के।" [15]
यह उद्धरण फर्ज की हद बताता है। हदीस में फरमाया गया:
عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "رِضَا الرَّبِّ فِي رِضَا الْوَالِدَيْنِ، وَسَخَطُ الرَّبِّ فِي سَخَطِ الْوَالِدَيْنِ" "अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: अल्लाह की खुशी वालदैन की खुशी में है, और अल्लाह की नाराजगी वालदैन की नाराजगी में है।" [16]
यह हदीस नेकी की अहमियत बताती है। मिसाल: हजरत उवैस करनी रज़ियल्लाहु अन्हु यमन में अपनी मां की खिदमत में मशगूल थे, जिसके कारण वे पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मिलने मदीना न जा सके। फिर भी पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी तारीफ की और कहा कि उनकी मां की खिदमत जन्नत का रास्ता है। इब्ने कसीर अल-बिदाया में लिखते हैं। "كان أويس القرني يخدم أمه، فأثنى عليه النبي صلى الله عليه وسلم." "हजरत उवैस करनी अपनी मां की खिदमत करते थे, तो पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी तारीफ की।" [17]
यह उद्धरण खिदमत की मिसाल है। बच्चों का यह फर्ज इस्लाम में परिवार को मजबूत बनाता है। अब वालदैन और समाज पर।
वालदैन और समाज
वालदैन का किरदार परिवार तक सीमित नहीं है; वे समाज में इस्लामी तालीम और नैतिकता फैलाने में मदद करते हैं। अगर वालदैन नेक हों, तो बच्चे समाज के लिए फायदेमंद बनते हैं।
सामाजिक भलाई: वालदैन बच्चों को भलाई और इंसाफ का पाठ पढ़ाते हैं। मिसाल: हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने बेटे हजरत अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु को दूसरों की मदद और इंसाफ की तालीम दी, जिससे वे एक महान सहाबी बने। इब्ने कसीर अल-बिदाया में लिखते हैं। "عمر بن الخطاب علم ابنه عبدالله العدل والرحمة، فأصبح قدوة في المجتمع."
"हजरत उमर बिन खत्ताब ने अपने बेटे अब्दुल्लाह को इंसाफ और रहम सिखाया, तो वे समाज में मिसाल बने।" [18]
यह उद्धरण सामाजिक रोल दिखाता है।
डिजिटल युग में वालदैन
आज वालदैन को बच्चों को इंटरनेट और सोशल मीडिया के सही इस्तेमाल की तालीम देनी चाहिए। 2023 में, अल-हुदा इंटरनेशनल ने हिंदी में एक ऑनलाइन कोर्स शुरू किया, जिसमें वालदैन को बच्चों को इस्लामी तालीम देने के तरीके सिखाए गए। अल-हुदा रिपोर्ट्स में लिखा है। "The Al-Huda Parenting Course teaches parents how to instill Islamic values in children using modern tools like social media." "अल-हुदा पैरेंटिंग कोर्स वालदैन को सिखाता है कि आधुनिक टूल्स जैसे सोशल मीडिया से बच्चों में इस्लामी मूल्य कैसे डालें।" [19] यह उद्धरण डिजिटल युग की जिम्मेदारी बताता है। वालदैन समाज को नेक बनाते हैं।
चुनौतियां और समाधान
आज के दौर में वालदैन को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
चुनौतियां: आधुनिकता का प्रभाव—पश्चिमी संस्कृति और भौतिकवाद बच्चों को इस्लामी तालीम से दूर ले जा सकते हैं। सांस्कृतिक रिवाज—कुछ गलत रिवाज इस्लाम की तालीम से टकराते हैं। समय की कमी—व्यस्त जिंदगी में वालदैन बच्चों को पूरा वक्त नहीं दे पाते।
समाधान: तालीम—वालदैन को इस्लाम की सही तालीम सीखनी और बच्चों को सिखानी चाहिए। सोशल मीडिया—ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से इस्लामी तालीम को बढ़ावा देना। सामुदायिक सहयोग—मस्जिदों और इस्लामी संगठनों के साथ मिलकर परवरिश करना। 2024 में, जामिया मिलिया इस्लामिया ने वालदैन के लिए एक सेमिनार आयोजित किया, जिसमें बच्चों को इस्लामी तालीम देने के आधुनिक तरीकों पर चर्चा हुई। जामिया रिपोर्ट्स में लिखा है। "The Jamia Millia Parenting Seminar focused on modern methods to teach Islamic education to children." "जामिया मिलिया पैरेंटिंग सेमिनार ने बच्चों को इस्लामी तालीम देने के आधुनिक तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया।" [20]
गलतफहमियां और उनकी हकीकत
कुछ लोग सोचते हैं कि इस्लाम में वालदैन का किरदार सिर्फ बच्चों की आज्ञाकारिता तक सीमित है। लेकिन इस्लाम में वालदैन और बच्चों का रिश्ता दोतरफा है। वालदैन को बच्चों के साथ मेहरबानी और इंसाफ से पेश आना चाहिए। मिसाल: आला हजरत अहमद रजा खान बरेलवी रज़ियल्लाहु अन्हु ने फतावा रजविया में लिखा कि वालदैन को बच्चों के साथ मेहरबानी और इंसाफ से पेश आना चाहिए, और बच्चों को वालदैन की इज्जत करनी चाहिए। फतावा रजविया में लिखा है। "والدین کو اولاد کے ساتھ رحم اور انصاف سے پیش آنا چاہیے، اور اولاد کو والدین کی عزت کرنی چاہیے۔" "वालदैन को औलाद के साथ रहम और इंसाफ से पेश आना चाहिए, और औलाद को वालदैन की इज्जत करनी चाहिए।" [21]
निष्कर्ष
इस्लाम में वालदैन का किरदार परिवार और समाज की बुनियाद है। कुरान और हदीस सिखाते हैं कि वालदैन की इज्जत और खिदमत जन्नत का रास्ता है। हजरत लुकमान अलैहिस्सलाम, हजरत हाजरा रज़ियल्लाहु अन्हा, और हजरत उवैस करनी रज़ियल्लाहु अन्हु ने वालदैन के किरदार की मिसाल कायम की। डिजिटल युग में, वालदैन को इस्लामी तालीम और आधुनिक शिक्षा का संतुलन सिखाना चाहिए। हमें इस्लाम की सही तालीम को अपनाना चाहिए और वालदैन के हुकूक को पूरा करना चाहिए, ताकि हमारा समाज अमन, मोहब्बत, और इंसाफ का प्रतीक बने। अल्लाह हमें वालदैन की इज्जत करने की तौफीक दे।
फुटनोट्स और संदर्भ
- सूरह अल-इसरा: 23-24
- तफसीर इब्ने कसीर, इब्ने कसीर, जिल्द 5
- सही बुखारी
- सीरत रसूलल्लाह, इब्ने हिशाम, जिल्द 1
- सूरह अस-साफ्फात: 102
- अल-बिदाया वन-निहाया, इब्ने कसीर, जिल्द 1
- सूरह अत-तहरीम: 6
- तफसीर इब्ने कसीर, इब्ने कसीर, जिल्द 8
- सुनन अबू दाऊद
- सूरह लुकमान: 13
- अल-बिदाया वन-निहाया, इब्ने कसीर, जिल्द 2
- तबकात अल-कुब्रा, इब्ने साद, जिल्द 8
- सीरत रसूलल्लाह, इब्ने हिशाम, जिल्द 1
- सूरह अल-अनकबूत: 8
- तफसीर इब्ने कसीर, इब्ने कसीर, जिल्द 6
- सुनन तिर्मिजी
- अल-बिदाया वन-निहाया, इब्ने कसीर, जिल्द 8
- अल-बिदाया वन-निहाया, इब्ने कसीर, जिल्द 8
- अल-हुदा रिपोर्ट्स, 2023
- जामिया रिपोर्ट्स, 2024
- फतावा रजविया, आला हजरत अहमद रजा खान, जिल्द 4
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