बाबरी मस्जिद विध्वंस: भारतीय गणतंत्र में न्याय, विधि के शासन और अल्पसंख्यक अधिकारों का क्षरण
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और धर्मनिरपेक्षता पर चोट (Historical Background and the Blow to Secularism)
6 दिसंबर 1992 की दोपहर, उत्तर प्रदेश के अयोध्या शहर में एक ऐसी घटना हुई जिसने भारत के आधुनिक लोकतंत्र (modern democracy) में क़ानून के शासन (Rule of Law) और धर्मनिरपेक्षता (Secularism) पर गहरी चोट पहुँचाई। करीब 1,50,000 कारसेवकों की भीड़ ने—कई महीनों की राजनीतिक तैयारी और सालों की कानूनी लड़ाई को नज़रअंदाज़ करते हुए—सोलहवीं सदी में बनी बाबरी मस्जिद के तीनों गुंबद सिर्फ़ पाँच घंटे में गिरा दिए।
यह सिर्फ़ एक पाँच सौ साल पुराने और सक्रिय इबादतगाह का गिरना नहीं था, बल्कि इसने भारतीय संविधान की बहुलवादी (pluralistic) और धर्मनिरपेक्ष (secular) सोच को बहुत बड़ा नुकसान पहुँचाया। इस घटना ने देश के मुसलमानों के दिल में गहरा दर्द और असुरक्षा पैदा कर दी, क्योंकि यह उनके संवैधानिक अधिकारों (constitutional rights) और राज्य की सुरक्षा व्यवस्था पर सीधा हमला था।
इस घटना के तुरंत बाद पूरे देश में भयानक सांप्रदायिक दंगे (communal riots) भड़क उठे। मुंबई, सूरत और कोलकाता जैसे शहरों में हज़ारों निर्दोष लोग मारे गए। इन दंगों ने अल्पसंख्यक समुदाय के मन में सरकार और प्रशासन पर से विश्वास काफी हद तक हिला दिया।
तत्कालीन केंद्र सरकार—जिसका नेतृत्व पी. वी. नरसिम्हा राव कर रहे थे—पर यह आरोप लगा कि वह इस हादसे को रोकने में नाकाम रही। उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार को भी अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारियों (constitutional responsibilities) को न निभाने की वजह से बर्खास्त किया गया।
आने वाले वर्षों में इस घटना से जुड़े मुक़दमे, जाँच, और राजनीतिक बहसों ने लगभग तीन दशकों तक देश की राजनीति और समाज को प्रभावित किया। यह साफ़ दिखा कि बाबरी मस्जिद का शहादत (demolition) मात्र एक इमारत का गिरना नहीं था, बल्कि भारत के इतिहास में एक गहरा धब्बा बन गया।
बाबरी मस्जिद का निर्माण: एक ऐतिहासिक और कानूनी विरासत “The Construction of the Babri Masjid: A Historical and Legal Legacy”
बाबरी मस्जिद का इतिहास लगभग 464 वर्ष पुराना है, जिसका निर्माण मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर बाकी ने सन् 1528 में करवाया था। यह मस्जिद सरयू नदी के तट पर स्थित अयोध्या में एक ऊँचे टीले पर स्थित थी और अपनी स्थापना के बाद से लगातार मुस्लिम समुदाय के लिए इबादत (पूजा) का केंद्र रही। पाँच सदियों तक, बाबरी मस्जिद अयोध्या के मुस्लिम समुदाय के लिए उनकी पहचान, संस्कृति और धार्मिक विश्वास का एक महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु बनी रही। कानूनी तौर पर, यह संपत्ति सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के नियंत्रण में थी।
इस्लामी कानून के तहत, जब कोई जगह वक़्फ़ (Waqf) कर दी जाती है, तो वह अल्लाह की संपत्ति मानी जाती है। फिर उसे न तो बेचा जा सकता है और न ही किसी और को दिया जा सकता है। वह हमेशा के लिए स्थायी और बदल-न-सकने वाली (non-transferable land) हो जाती है।
बाबरी मस्जिद की बनावट सादी थी, लेकिन फिर भी खूबसूरत और शान वाली। इसमें इस्लामी कला और पुराने स्थापत्य (architecture) के कई खास निशान मौजूद थे। मस्जिद के टूट जाने से मुस्लिम विरासत का एक बहुत अहम और पाँच सौ साल पुराना निशान मिट गया, जो भारत की साझा संस्कृति (composite culture) का हिस्सा था।
विध्वंस के बाद कई मुस्लिम विद्वानों और इतिहासकारों ने कहा कि यह घटना भारत के संवैधानिक वादे टूटने जैसा थी। उन्होंने यह भी माना कि राज्य अल्पसंख्यकों (minorities) की धार्मिक आज़ादी की रक्षा करने में नाकाम रहा।
विवाद की शुरुआत और कानूAनी अधिकारों का हनन (The Beginning of the Dispute and the Violation of Legal Rights)
इस स्थल पर विवाद की शुरुआत ब्रिटिश दौर (British colonial period) में मानी जाती है। 1853 में पहली बार यहाँ झगड़ा और हिंसा हुई, जिसके बाद ब्रिटिश अफ़सरों को दख़ल देना पड़ा। फिर 1859 में ब्रिटिश प्रशासन ने इस जगह को दो हिस्सों में बाँट दिया—अंदर का हिस्सा मुसलमानों के लिए नमाज़ (prayer) के लिए रखा गया, और बाहर का आँगन हिंदू समुदाय को इस्तेमाल के लिए दिया गया।
लेकिन असली विवाद 22–23 दिसंबर 1949 की रात को और बढ़ गया। उसी रात कुछ लोगों ने मस्जिद के केंद्रीय गुंबद (central dome) के नीचे भगवान राम की मूर्तियाँ (idols) चुपके से और बिना इजाज़त रख दीं। यह हरकत मस्जिद की धार्मिक पवित्रता का उल्लंघन था और 1947 के बाद से बनी हुई यथास्थिति (status quo) और कानूनी व्यवस्था (legal position) के खिलाफ़ थी।
इसके बाद भी सरकार ने स्थिति को सामान्य करने या मूर्तियाँ हटाने के लिए कदम नहीं उठाए। उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साफ़ आदेशों के बावजूद, स्थानीय प्रशासन की नाकामी की वजह से मस्जिद को “विवादित (disputed)” जगह घोषित कर दिया गया और उसके मुख्य दरवाज़े पर ताला लगा दिया गया।
इस प्रशासनिक और राजनीतिक नाकामी ने उस अवैध कब्जे (illegal occupation) को लगभग मान्यता दे दी। नतीजा यह हुआ कि 1949 से मुसलमानों का वहाँ नमाज़ पढ़ने का अधिकार खत्म हो गया और यह मसला सदियों पुराने दावे की तरह कानूनी (legal) और राजनीतिक (political) लड़ाई बन गया।
यह घटना भारत के इतिहास में इस बात का एक बड़ा और दर्दनाक उदाहरण बन गई कि राज्य अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थानों की सुरक्षा करने में कैसे नाकाम रहा।
विध्वंस: न्यायपालिका से वादा-ख़िलाफ़ी और सांप्रदायिक हिंसा (Demolition: Betrayal of Judiciary and Communal Violence)
बाबरी मस्जिद का टूटना एक बेहद दुखद नतीजा था—यह महीनों की राजनीतिक तैयारी, लोगों को उकसाने (mobilization) और सांप्रदायिक भावनाओं (communal sentiments) को भड़काने का सीधा परिणाम था। 1986 में मस्जिद का ताला खोले जाने और 1989 में परिसर के पास शिलान्यास (foundation stone) की अनुमति मिलने के बाद से ही तनाव लगातार बढ़ता जा रहा था।
6 दिसंबर 1992 को लाखों कारसेवक — जिन्हें कारसेवा (voluntary religious service) के लिए बुलाया गया था — मस्जिद की तरफ़ बढ़े। यह टूट-फूट एक गंभीर और सोची-समझी आपराधिक हरकत थी, क्योंकि उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) को शपथ पत्र देकर कहा था कि मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होने दिया जाएगा और उसकी सुरक्षा की जाएगी।
लेकिन इस वादे (judicial assurance) का सीधा उल्लंघन करते हुए भीड़ ने सुरक्षा घेरा तोड़ दिया और राजनीतिक नेताओं की मौजूदगी में मस्जिद को गिरा दिया। यह काम न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) और भारत के संविधान पर सीधा हमला माना गया।
विध्वंस के बाद पूरे देश में ज़बरदस्त सांप्रदायिक दंगे (communal riots) हुए, जिनमें खास तौर पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया। बाद में इस पूरे मामले की जाँच करने वाले लिब्राहन आयोग (Liberhan Commission) ने अपनी रिपोर्ट में साफ़ लिखा कि यह घटना अचानक नहीं हुई थी, बल्कि यह महीनों की योजनाबद्ध कोशिश (preplanned efforts), राजनीतिक भाषणों और संगठित तैयारी का नतीजा थी — और इसमें कई बड़े राजनीतिक और धार्मिक नेता शामिल थे।
लेकिन इसके बावजूद आपराधिक मामलों में सभी बड़े अभियुक्त/आरोपी (accused) बरी कर दिए गए। इससे मुस्लिम समुदाय के मन में न्याय को लेकर और भी गहरी निराशा और दर्द पैदा हुआ। यह घटना भारत की धर्मनिरपेक्षता (secularism) और अल्पसंख्यकों के भरोसे (minority trust) पर एक गहरी और स्थाई चोट थी।
वर्तमान स्थिति: अंतिम फैसला और नई मस्जिद का निर्माण (Current Situation: Final Verdict and Construction of Alternative Mosque)
इस विवाद का अंतिम हल 9 नवंबर 2019 को आया, जब भारत के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया। कोर्ट ने सर्वसम्मति से (unanimously) विवादित 2.77 एकड़ ज़मीन (disputed land) हिंदू पक्ष को दे दी, जिससे राम मंदिर बनने का रास्ता साफ़ हो गया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि मस्जिद के नीचे मंदिर होने का कोई पक्का पुरातात्विक सबूत (archaeological evidence) नहीं है। लेकिन फिर भी, 1949 में मूर्तियाँ अवैध रूप से रखे जाने (illegal installation) के बाद भी लंबे समय तक हिंदू पक्ष का कब्ज़ा रहा।
इसके साथ, सुप्रीम कोर्ट ने यह माना कि मुस्लिम समुदाय के साथ अन्याय हुआ है, इसलिए उन्हें मुआवज़े (compensation) के रूप में अयोध्या में ही 5 एकड़ वैकल्पिक ज़मीन (alternate land) देने का आदेश दिया। यह ज़मीन अयोध्या से 25 किलोमीटर दूर धन्नीपुर गाँव में दी गई है।
यहाँ सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड ने इंडो-इस्लामिक कल्चरल फ़ाउंडेशन (IICF) के ज़रिए एक नई मस्जिद बना रहा है, जिसे अब “मुहम्मद बिन अब्दुल्ला मस्जिद” कहा जा रहा है।
यह परियोजना सिर्फ़ मस्जिद बनाने तक सीमित नहीं है—इसके साथ एक अस्पताल (hospital), पुस्तकालय (library), सामुदायिक रसोई (community kitchen) और एक संग्रहालय (museum) भी बनाया जा रहा है। इसका मक़सद मुस्लिम समुदाय के सामाजिक और शैक्षिक विकास (social & educational upliftment) में मदद करना है।
इस पूरी पहल का संदेश यह है कि 1992 के विध्वंस से जो घाव बने थे, उन्हें सिर्फ़ इमारत से नहीं, बल्कि भाईचारे (brotherhood), सद्भाव (harmony) और सेवा (service) से भरा जा सकता है। साथ ही, यह देश के संवैधानिक मूल्यों (constitutional values) को फिर से मज़बूत करने की कोशिश है।
सन्दर्भ (Sources)
- Supreme Court of India, “M Siddiq (D) Thr Lrs vs Mahant Suresh Das & Ors. (Ayodhya Judgment)”, 9 November 2019.
- The Liberhan Ayodhya Inquiry Commission, “Report of the Liberhan Ayodhya Inquiry Commission on the Events of 6 December 1992”, 2009.
- The Times of India, “Ayodhya Verdict: SC says demolition was crime, but awards entire disputed land to temple trust”, 9 November 2019.
- Frontline, “The Fateful Day: How the Babri Masjid was Demolished”, 6 December 1992 (Retrospective piece).
- The Indian Express, “After Ayodhya Verdict: Muslim sides on alternative land and path ahead”, 10 November 2019.
- Peter van der Veer, “Religious Nationalism: Hindus and Muslims in India”, 1994.
- in, “How the 1949 illegal installation of idols paved the way for the demolition”, December 2019 (Archived article).
लेखक: -मुहम्मद हफ़ीज़ के
मेलमुरि, मलप्पुरम, केरला
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