हिजरा: मदीना की ओर हिजरत और इसकी अहमियत

परिचय

हिजरा, यानी पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके साथियों की मक्का से मदीना की ओर हिजरत, इस्लामिक इतिहास की सबसे अहम घटनाओं में से एक है। 622 ई. में हुई यह हिजरत न सिर्फ़ एक भौगोलिक बदलाव था, बल्कि इस्लाम के प्रसार और एक मज़बूत मुस्लिम समाज की नींव रखने का शुरुआती बिंदु था। इसने इस्लाम को नई ताकत दी और मदीना में एक ऐसा समाज बनाया जो इंसाफ़, भाईचारा, और धार्मिक आज़ादी पर आधारित था। आज के दौर में, हिजरा की शिक्षाएँ हमें सब्र, यकीन, और एकता की प्रेरणा देती हैं।

हिजरत की पृष्ठभूमि और कारण

मक्का में ज़ुल्म

मक्का में इस्लाम की शुरुआत के बाद, मुसलमानों को कुरैश कबीले के सख्त विरोध और ज़ुल्म का सामना करना पड़ा। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके साथियों को ताने, मारपीट, और सामाजिक बहिष्कार सहना पड़ा।
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है:
وَاذْكُرُوا إِذْ أَنتُمْ قَلِيلٌ مُّسْتَضْعَفُونَ فِي الْأَرْضِ تَخَافُونَ أَن يَتَخَطَّفَكُمُ النَّاسُ
"
और याद करो जब तुम ज़मीन में कमज़ोर और थोड़े थे, डरते थे कि लोग तुम्हें उठा ले जाएँ।" (सूरह अल-अनफाल 8:26)
मक्का में मुसलमानों की ज़िंदगी इतनी मुश्किल हो गई थी कि उन्हें अपनी जान और इमान की हिफाज़त के लिए नई जगह की ज़रूरत थी।

मदीना की दावत

मदीना (तब यसरिब) के खज़रज और औस कबीलों के कुछ लोगों ने मक्का में पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुलाकात की, इस्लाम कबूल किया, और उन्हें मदीना आने की दावत दी। यह "अकबा की बैअत" के नाम से मशहूर है।(1)

हिजरत का हुक्म

अल्लाह ने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मदीना की ओर हिजरत करने का हुक्म दिया।
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है:
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَالَّذِينَ هَاجَرُوا وَجَاهَدُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ أُولَٰئِكَ يَرْجُونَ رَحْمَتَ اللَّهِ
"
बेशक जो लोग ईमान लाए और जिन्होंने हिजरत की और अल्लाह के रास्ते में जिहाद किया, वही लोग अल्लाह की रहमत की उम्मीद रखते हैं।" (सूरह अल-बक़रा 2:218)

हिजरत की घटना

पैगंबर की हिजरत

622 ई. में, कुरैश ने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कत्ल करने की साजिश रची। अल्लाह ने उनकी साजिश को नाकाम किया।
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है:
وَإِذْ يَمْكُرُ بِكَ الَّذِينَ كَفَرُوا لِيُثْبِتُوكَ أَوْ يَقْتُلُوكَ أَوْ يُخْرِجُوكَ ۚ وَيَمْكُرُونَ وَيَمْكُرُ اللَّهُ ۖ وَاللَّهُ خَيْرُ الْمَاكِرِينَ
"
और जब काफिरों ने तुम्हारे खिलाफ़ साजिश की कि तुम्हें कैद करें, कत्ल करें, या निकाल दें। वे साजिश करते हैं, और अल्लाह भी साजिश करता है, और अल्लाह सबसे बेहतर साजिश करने वाला है।" (सूरह अल-अनफाल 8:30)
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने जिगरी दोस्त हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु के साथ मक्का से निकले और गार-ए-सौर (सौर की गुफा) में छिपे। एक मकड़ी ने गुफा के मुहाने पर जाला बुन दिया, जिससे कुरैश को लगा कि कोई अंदर नहीं है।(4)

मदीना में आगमन

पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु मदीना पहुँचे, जहाँ उनका ज़ोरदार स्वागत हुआ। लोग खुशी से गीत गा रहे थे:
طلع البدر علينا
"
चाँद हम पर उगा।" (सीरत इब्न हिशाम)(2)
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मस्जिद-ए-नबवी बनाई, जो इस्लाम का पहला सामुदायिक केंद्र बना।

मुहाजिर और अंसार का भाईचारा

पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्का से आए मुहाजिरों और मदीना के अंसार के बीच भाईचारा कायम किया।
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है:
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَهَاجَرُوا وَجَاهَدُوا بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنفُسِهِمْ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَالَّذِينَ آوَوا وَّنَصَرُوا أُولَٰئِكَ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ
"
जो लोग ईमान लाए, हिजरत की, और अल्लाह के रास्ते में अपने माल और जान से जिहाद किया, और जिन्होंने पनाह दी और मदद की, वे एक-दूसरे के दोस्त हैं।" (सूरह अल-अनफाल 8:72)

हिजरत की अहमियत

इस्लाम का प्रसार

हिजरत ने इस्लाम को नया आधार दिया। मदीना में मुसलमानों को आज़ादी मिली, जिससे वे इबादत और दावत को खुलकर फैला सके। मदीना इस्लाम का पहला केंद्र बना।

सामाजिक इंसाफ़ और एकता

पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीना में "मीसाक-ए-मदीना" (मदीना का संविधान) बनाया, जिसमें मुसलमानों, यहूदियों, और अन्य समुदायों के लिए बराबर हक़ तय किए गए। यह दुनिया का पहला लिखित संविधान माना जाता है।(3)

आध्यात्मिक मज़बूती

हिजरत ने मुसलमानों को सब्र और यकीन की ताकत दी।
हदीस में है:
عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "الْمُهَاجِرُ مَنْ هَجَرَ مَا نَهَى اللَّهُ عَنْهُ"
अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: "सच्चा मुहाजिर वह है जो उस चीज़ को छोड़ दे जिससे अल्लाह ने मना किया।" (सही बुखारी)

इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत

हिजरत की अहमियत की वजह से हज़रत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने इसे इस्लामी (हिजरी) कैलेंडर की शुरुआत के लिए चुना।(4)

हिजरत से जुड़ी खास घटनाएँ

गार--सौर की गुफा

पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु गार-ए-सौर में छिपे। हज़रत अबू बक्र डर रहे थे, लेकिन पैगंबर ने तसल्ली दी:
لَا تَحْزَنْ إِنَّ اللَّهَ مَعَنَا
"
घबराओ मत, अल्लाह हमारे साथ है।" (सूरह अत-तौबा 9:40)
अल्लाह ने उनकी हिफाज़त की, और कुरैश गुफा के पास से चले गए।

सूआका बिन मालिक का साथ

रास्ते में सूआका बिन मालिक ने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु को देखा, लेकिन उनकी हिफाज़त की और बाद में इस्लाम कबूल किया। यह पैगंबर की शख्सियत का असर दिखाता है।

मस्जिद--कुबा की स्थापना

मदीना पहुँचने से पहले पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुबा में मस्जिद-ए-कुबा बनाई, जो इस्लाम की पहली मस्जिद थी।
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है:
لَمَسْجِدٌ أُسِّسَ عَلَى التَّقْوَىٰ مِنْ أَوَّلِ يَوْمٍ أَحَقُّ أَن تَقُومَ فِيهِ
"
वह मस्जिद जो पहले दिन से तकवा पर बनाई गई, उसमें नमाज़ पढ़ने का ज़्यादा हक़ है।" (सूरह अत-तौबा 9:108)

आधुनिक समाज में हिजरत की प्रासंगिकता

मुश्किलों में सब्र

हिजरत हमें सिखाती है कि मुश्किल वक़्त में सब्र और अल्लाह पर यकीन रखना चाहिए। आज कई लोग धार्मिक या सामाजिक ज़ुल्म की वजह से अपनी जगह छोड़ते हैं, और हिजरत की मिसाल उन्हें हिम्मत देती है।

भाईचारा और एकता

मुहाजिर और अंसार का भाईचारा आज भी एकता की प्रेरणा देता है। 2020 की कोविड-19 महामारी में मुस्लिम संगठनों ने ग़रीबों और बेघर लोगों की मदद की, जो इस भावना को दर्शाता है।(5)

सामाजिक इंसाफ़

मदीना का संविधान हमें बराबर हक़ और निष्पक्ष समाज की प्रेरणा देता है, जो आज नस्लवाद और धार्मिक भेदभाव के खिलाफ़ ज़रूरी है।

नई शुरुआत

हदीस में है:
عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "الْمُهَاجِرُ مَنْ هَجَرَ مَا نَهَى اللَّهُ عَنْهُ"
अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: "सच्चा मुहाजिर वह है जो उस चीज़ को छोड़ दे जिससे अल्लाह ने मना किया।" (सही बुखारी)

निष्कर्ष

हिजरत सिर्फ़ एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि सब्र, यकीन, और भाईचारे का सबक है। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके साथियों की हिजरत ने इस्लाम को मज़बूत किया और मदीना में इंसाफ़ व एकता का समाज बनाया। गार-ए-सौर, मस्जिद-ए-कुबा, और मुहाजिर-अंसार के भाईचारे की घटनाएँ हमें अल्लाह पर भरोसा और दूसरों की मदद सिखाती हैं। आज के दौर में, हिजरत की शिक्षाएँ हमें मुश्किलों में हिम्मत, समाज में एकता, और नैतिक ज़िंदगी जीने की प्रेरणा देती हैं। हमें कुरआन और हदीस की रोशनी में सही रास्ते पर चलना चाहिए ताकि हमारा समाज इंसाफ़ और मोहब्बत का प्रतीक बने।

सन्दर्भ

  1. इब्न हिशाम, सीरत रसूलल्लाह, खंड 1, पृ. 431.
  2. इब्न हिशाम, सीरत रसूलल्लाह, खंड 2, पृ. 97.
  3. वाट, विलियम मॉन्टगोमरी, मुहम्मद एट मदीना, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1961.
  4. इब्न कसीर, अल-बिदाया वन-निहाया, खंड 3, पृ. 223.

"Muslim Charities During COVID-19," Al Jazeera, 2020.

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