चार खलीफाओं की इस्लाम को मज़बूत करने में भूमिका

परिचय

पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात (632 ई.) के बाद, इस्लाम को दुनिया भर में फैलाने और मज़बूत करने में खुलफा-ए-राशिदीन (चार सही खलीफाओं) का बहुत बड़ा योगदान रहा। ये चार खलीफा—हजरत अबू बक्र, हजरत उमर, हजरत उस्मान, और हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हुम—पैगंबर के सबसे करीबी सहाबी थे। इन्होंने इस्लाम को न केवल अरब में, बल्कि मिस्र, सीरिया, इराक, और फारस तक फैलाया। इनकी हुकूमत में इस्लाम का पैगाम शांति, इंसाफ, और एकता के साथ दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचा। हजरत अबू बक्र ने इस्लाम को बिखरने से बचाया, हजरत उमर ने इंसाफ की मिसाल कायम की, हजरत उस्मान ने कुरान की हिफाजत की, और हजरत अली ने मुश्किलों में एकता बनाई। इनकी जिंदगी पैगंबर की सुन्नत पर आधारित थी, और उन्होंने मुसलमानों को एकजुट रखा। आज के दौर में, जब दुनिया में बंटवारा बढ़ रहा है, इनकी शिक्षाएं हमें इंसाफ और भाईचारे का सबक देती हैं।

जरत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु: पहले खलीफा (632-634 ई.)

हजरत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सबसे करीबी दोस्त और पहले खलीफा थे। उनकी खिलाफत का दौर सिर्फ दो साल का था, लेकिन इस दौरान उन्होंने इस्लाम को कई बड़े खतरों से बचाया और इसकी नींव को मजबूत किया। वे पैगंबर के बाद उम्मत को एकजुट रखने में कामयाब हुए और रिद्दा (इस्लाम से मुर्तद होने) के फितने को दबाया।

रिद्दा युद्ध (अपोस्टेसी युद्ध): पैगंबर की वफात के बाद, कुछ अरब कबीले इस्लाम से मुकर गए और जकात देने से इंकार कर दिया। हजरत अबू बक्र ने इन बागियों के खिलाफ रिद्दा युद्ध छेड़ा। उन्होंने हजरत खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु को सेनापति बनाकर इन कबीलों को फिर से इस्लाम में शामिल किया। यह उनकी दृढ़ता और इस्लाम के लिए प्यार की मिसाल थी।

कुरान में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है:

إِلَّا تَنْصُرُوهُ فَقَدْ نَصَرَهُ اللَّهُ إِذْ أَخْرَجَهُ الَّذِينَ كَفَرُوا ثَانِيَ اثْنَيْنِ إِذْ هُمَا فِي الْغَارِ إِذْ يَقُولُ لِصَاحِبِهِ لَا تَحْزَنْ إِنَّ اللَّهَ مَعَنَا "अगर तुम उसकी (पैगंबर की) मदद न करो, तो अल्लाह ने उसकी मदद की, जब काफिरों ने उसे निकाला, वह दो में से दूसरा था, जब वे गार (गुफा) में थे। वह अपने साथी (अबू बक्र) से कह रहा था, ‘घबराओ मत, अल्लाह हमारे साथ है।’" [1]

यह आयत हजरत अबू बक्र के पैगंबर के साथ वफादारी को दिखाती है। इब्ने कसीर अल-बिदाया वन-निहाया में रिद्दा युद्ध पर लिखते हैं।: "كانت حروب الردة أول تحدي للإسلام بعد وفاة النبي، وأبو بكر قمعها بحزم." "रिद्दा युद्ध पैगंबर की वफात के बाद इस्लाम का पहला चैलेंज था, और हजरत अबू बक्र ने इसे दृढ़ता से दबाया।" [2]

कुरान का संकलन: हजरत अबू बक्र ने कुरान को किताब की शक्ल में जमा करने का आदेश दिया। यमामा की जंग में कई हफ्फाज (कुरान याद करने वाले) शहीद हो गए थे। हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के सुझाव पर, हजरत अबू बक्र ने हजरत जायद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु को कुरान को संकलित करने की जिम्मेदारी दी। यह काम इस्लाम की हिफाजत के लिए बहुत अहम था।

हदीस में फरमाया गया:

عَنْ أَبِي بَكْرٍ الصِّدِّيقِ، قَالَ: لَمَّا تُوُفِّيَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، قُلْتُ: إِنِّي أَخَافُ أَنْ يُؤْخَذَ الْقُرْآنُ مِنَّا، فَأَمَرْتُ زَيْدَ بْنَ ثَابِتٍ أَنْ يَجْمَعَهُ "अबू बक्र सिद्दीक (रज़ि.) ने कहा: जब रसूलल्लाह (स.अ.व.) की वफात हुई, तो मुझे डर हुआ कि कुरान हमसे छिन न जाए। इसलिए मैंने जायद बिन साबित को इसे जमा करने का आदेश दिया।" [3]

यह हदीस कुरान की हिफाजत में उनकी भूमिका बताती है। हजरत अबू बक्र की खिलाफत ने इस्लाम को स्थिर किया और आगे के खलीफाओं के लिए रास्ता बनाया।

हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु: दूसरे खलीफा (634-644 ई.)

हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी सख्ती, इंसाफ, और इस्लाम के लिए जज्बे के लिए मशहूर थे। उनकी खिलाफत में इस्लाम ने अरब से बाहर सीरिया, मिस्र, और फारस तक फैलाव किया। उन्होंने प्रशासनिक सुधार किए और मुसलमानों को एकजुट रखा।

यरूशलम की फतह:

637 ई. में, हजरत उमर ने यरूशलम पर कब्जा किया। उन्होंने वहां के ईसाइयों और यहूदियों के साथ उमर की संधि की, जिसमें उन्हें धार्मिक और सामाजिक आजादी दी गई। हजरत उमर ने खुद मस्जिद-ए-अक्सा को साफ किया, जो इस्लाम की सहनशीलता और शांति की मिसाल थी।

अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है:

قُلْ يَا أَهْلَ الْكِتَابِ تَعَالَوْا إِلَىٰ كَلِمَةٍ سَوَاءٍ بَيْنَنَا وَبَيْنَكُمْ أَلَّا نَعْبُدَ إِلَّا اللَّهَ وَلَا نُشْرِكَ بِهِ شَيْئًا "कहो, ‘ऐ अहले किताब! आओ एक ऐसी बात की ओर जो हमारे और तुम्हारे बीच समान है कि हम केवल अल्लाह की इबादत करें और उसके साथ किसी को शरीक न करें।’" [4]

यह आयत अन्य धर्मों के साथ शांति की बात करती है। इब्ने कसीर अल-बिदाया में लिखते हैं। "عمر بن الخطاب فتح القدس وأعطى الأمان لأهلها، مما يظهر عدل الإسلام." "हजरत उमर बिन खत्ताब ने कुद्स फतह किया और उसके लोगों को अमान दिया, जो इस्लाम के इंसाफ को दिखाता है।" [5] यह उद्धरण उनकी शांति नीति बताता है।

उमर का इंसाफ:

हजरत उमर अपने इंसाफ के लिए मशहूर थे। एक बार एक यहूदी ने उनके खिलाफ शिकायत की कि उनके बेटे ने उसे मारा। हजरत उमर ने अपने बेटे को सजा दी और कहा, "किसी पर जुल्म करना इस्लाम में हराम है।" यह उनकी इंसाफ और शांति की नीति को दिखाता है।

हदीस में आता है:

عَنْ عُمَرَ بْنِ الْخَطَّابِ، قَالَ: "إِنَّمَا أَهْلَكَ الَّذِينَ مِنْ قَبْلِكُمْ أَنَّهُمْ كَانُوا إِذَا سَرَقَ فِيهِمُ الشَّرِيفُ تَرَكُوهُ، وَإِذَا سَرَقَ فِيهِمُ الضَّعِيفُ أَقَامُوا عَلَيْهِ الْحَدَّ"

"उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: तुमसे पहले के लोग इसलिए बर्बाद हुए कि जब उनके बीच कोई रईस चोरी करता था, तो उसे छोड़ दिया जाता था, और जब कोई कमजोर चोरी करता था, तो उस पर सजा लागू की जाती थी।" [6] यह हदीस इंसाफ पर जोर देती है। हजरत उमर की खिलाफत ने इस्लाम को राजनीतिक ताकत दी।

हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु: तीसरे खलीफा (644-656 ई.)

हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी उदारता और कुरान की हिफाजत के लिए मशहूर थे। उनकी खिलाफत में इस्लाम उत्तरी अफ्रीका, साइप्रस, और मध्य एशिया तक फैला। उन्होंने आर्थिक और प्रशासनिक सुधार किए।

कुरान का मानकीकरण:

हजरत उस्मान ने कुरान को एक मानक रूप में संकलित किया। अलग-अलग इलाकों में कुरान के उच्चारण में फर्क होने लगा था। उन्होंने हजरत जायद बिन साबित रज़ियल्लाहु अन्हु की अगुवाई में एक कमेटी बनाई, जिसने कुरान की एक मानक प्रति तैयार की और उसे पूरी दुनिया में भेजा। यह काम इस्लाम की एकता और हिफाजत के लिए बहुत अहम था।

कुरान में इरशाद है:  إِنَّا نَحْنُ نَزَّلْنَا الذِّكْرَ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ "बेशक, हमने ही इस जिक्र (कुरान) को उतारा और हम ही इसकी हिफाजत करेंगे।" [7]

यह आयत कुरान की हिफाजत का वादा है। इब्ने कसीर तफसीर में लिखते हैं।: "عثمان رضي الله عنه أمر بتوحيد المصاحف للحفاظ على القرآن من التحريف."

"हजरत उस्मान रज़ियल्लाहु अन्हु ने कुरान की हिफाजत के लिए मसाहिफ को एक करने का हुक्म दिया ताकि तहरीफ से बचाव हो।" [8]

उस्मान की उदारता:

हजरत उस्मान अपनी दौलत को अल्लाह के रास्ते में खर्च करने के लिए मशहूर थे। बदर की जंग से पहले, जब मुसलमानों के पास हथियारों की कमी थी, हजरत उस्मान ने अपनी दौलत से सेना को तैयार किया। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके लिए दुआ की कि अल्लाह उनकी मदद करे।

हदीस में फरमाया गया:

عَنْ عَبْدِ الرَّحْمَنِ بْنِ سَمُرَةَ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "عُثْمَانُ فِي الْجَنَّةِ" "अब्दुर्रहमान बिन समुरा (रज़ि.) ने कहा: रसूलल्लाह (स.अ.व.) ने फरमाया: उस्मान जन्नत में होंगे।" [9]

हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु: चौथे खलीफा (656-661 ई.)

हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु अपनी बहादुरी, इल्म, और इंसाफ के लिए मशहूर थे। उनकी खिलाफत का दौर मुश्किलों भरा था, क्योंकि इस दौरान कई आंतरिक फितने (विवाद) उठे। फिर भी, उन्होंने इस्लाम की हिफाजत और एकता के लिए बहुत कोशिश की।

जंग-ए-जमल और सिफ्फीन:

हजरत अली को जंग-ए-जमल (656 ई.) और जंग-ए-सिफ्फीन (657 ई.) जैसे आंतरिक युद्धों का सामना करना पड़ा। ये जंगें कुछ मुसलमानों के बीच गलतफहमियों की वजह से हुईं। हजरत अली ने हमेशा शांति की कोशिश की, लेकिन जरूरत पड़ने पर जंग भी लड़ी। उनकी मंशा हमेशा इस्लाम की एकता को बनाए रखना था।

कुरान में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है: فَبِمَا رَحْمَةٍ مِنَ اللَّهِ لِنْتَ لَهُمْ ۖ وَلَوْ كُنْتَ فَظًّا غَلِيظَ الْقَلْبِ لَانْفَضُّوا مِنْ حَوْلِكَ

"अल्लाह की रहमत से तुम उनके लिए नरम हो गए। अगर तुम सख्त दिल और रूखे होते, तो वे तुम्हारे पास से बिखर जाते।" [10]

यह आयत नेक रवैये पर जोर देती है। इब्ने हिशाम सीरत में लिखते हैं। "كانت معارك علي رضي الله عنه دفاعية للحفاظ على وحدة المسلمين." "हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु की जंगें मुसलमानों की एकता की हिफाजत के लिए रक्षात्मक थीं।" [11]

अली का इंसाफ:

 हजरत अली अपने इंसाफ के लिए मशहूर थे। एक बार एक यहूदी ने उनके खिलाफ शिकायत की कि उनकी जमीन छीनी गई। हजरत अली ने काजी के सामने खुद को पेश किया और यहूदी के हक में फैसला होने दिया। यह उनकी इंसाफ और नम्रता की मिसाल थी।

हदीस में फरमाया गया:

عَنْ عَلِيٍّ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْعَدْلَ وَالْإِحْسَانَ"

"अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह (स.अ.व.) ने फरमाया: अल्लाह इंसाफ और नेकी करने वालों से मोहब्बत करता है।" [12]

यह हदीस इंसाफ पर जोर देती है। हजरत अली की खिलाफत ने इस्लाम को इल्म और इंसाफ दिया।

चार खलीफाओं की विरासत

चारों खलीफाओं ने इस्लाम को मजबूत करने के लिए अलग-अलग तरीकों से योगदान दिया: हजरत अबू बक्र ने इस्लाम को आंतरिक खतरों से बचाया और कुरान को संकलित किया। हजरत उमर ने इस्लाम को दुनिया भर में फैलाया और इंसाफ की मिसाल कायम की। हजरत उस्मान ने कुरान को मानकीकृत किया और इस्लाम को नए इलाकों में पहुंचाया। हजरत अली ने आंतरिक फितनों के बावजूद इस्लाम की एकता और इंसाफ की रक्षा की।

कुरान में इरशाद है:

وَاعْتَصِمُوا بِحَبْلِ اللَّهِ جَمِيعًا وَلَا تَفَرَّقُوا

"और अल्लाह की रस्सी को मजबूती से थाम लो सब मिलकर, और फूट न डालो।" [13]

यह आयत एकता पर जोर देती है। इब्ने कसीर अल-बिदाया में लिखते हैं। "الخلفاء الراشدون بنوا الإسلام على العدل والوحدة." "खुलफा-ए-राशिदीन ने इस्लाम को इंसाफ और एकता पर बनाया।" [14]

खलीफाओं की एकता:

 चारों खलीफाओं ने एक-दूसरे का साथ दिया। हजरत अबू बक्र ने हजरत उमर को अपना उत्तराधिकारी बनाया, हजरत उमर ने हजरत उस्मान को चुना, और हजरत उस्मान ने हजरत अली का सम्मान किया। यह उनकी एकता और इस्लाम के लिए प्यार की मिसाल थी। अल-बलाजरी फुतुह अल-बुलदान में लिखते हैं। "كانت وحدة الخلفاء الراشدين مثالاً في التعاون على الإسلام." "खुलफा-ए-राशिदीन की एकता इस्लाम पर सहयोग की मिसाल थी।" [15] यह उद्धरण उनकी एकता दिखाता है। उनकी विरासत आज भी मुसलमानों को प्रेरित करती है।

निष्कर्ष

चार खलीफाओं—हजरत अबू बक्र, उमर, उस्मान, और अली रज़ियल्लाहु अन्हुम—ने इस्लाम को मजबूत करने और दुनिया भर में फैलाने में बेमिसाल योगदान दिया। हजरत अबू बक्र ने इस्लाम को बिखरने से बचाया, हजरत उमर ने इंसाफ की मिसाल कायम की, हजरत उस्मान ने कुरान की हिफाजत की, और हजरत अली ने मुश्किल हालात में एकता भी रखी। उनकी जिंदगी हमें सिखाती है कि इस्लाम का पैगाम शांति, इंसाफ, और एकता का है। आज के दौर में, जब दुनिया में बंटवारा और नाइंसाफी बढ़ रही है, खुलफा-ए-राशिदीन की शिक्षाएं हमें शांति और भाईचारे का रास्ता दिखाती हैं। अल्लाह हमें उनकी तरह नेक बनाए।

फुटनोट्स और संदर्भ

  1. सूरह अत-तौबा: 40,
  2. अल-बिदाया वन-निहाया, इब्ने कसीर, जिल्द 3,
  3. सही बुखारी
  4. सूरह आले-इमरान: 64
  5. अल-बिदाया वन-निहाया, इब्ने कसीर, जिल्द 4,
  6. सही बुखारी, हदीस
  7. सूरह अल-हिज्र: 9
  8. तफसीर इब्ने कसीर, इब्ने कसीर, जिल्द 4,
  9. सुनन तिर्मिजी
  10. सूरह आले-इमरान
  11. सीरत रसूलल्लाह, इब्ने हिशाम, जिल्द 4
  12. सुनन इब्ने माजा
  13. सूरह आले-इमरान:
  14. अल-बिदाया वन-निहाया, इब्ने कसीर, जिल्द 1
  15. फुतुह अल-बुलदान

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