इस्लामी तालीमात की रोशनी में बेवजह तलाक़ से बचाव के तरीके़...

इस्लाम एक मुकम्मल निज़ाम-ए-ह़यात है। ज़िन्दगी के हर हिस्से की रहनुमाई इस्लाम के दामन में मौजूद है। मज़हब-ए-इस्लाम ने चैन और सुकून पाने, और इंसानी नस्ल को बढ़ाने के लिए निकाह जैसा पाकीज़ा अमल दिया है। लेकिन अगर एक-दूसरे के साथ जिंदगी गुज़ारना मुश्किल हो तो तलाक़ दे कर छुटकारा हासिल करने की भी इजाज़त दी है।

 

चूंकि इस्लाम आपस में एक-दूसरे से रिश्ता तोड़ने पर नहीं, बल्कि जोड़ने पर जो़र देता है, इसलिए त़लाक का नज़रिया देने के साथ-साथ ऐसे रहनुमा उसूल और नियम भी दिए हैं, कि जिनको अपनाकर इंसान जितना संभव हो सके तलाक की राह से बच सकता है। इस तरह समाज में त़लाक की घटना कम से कम होगी ।

निकाह से पहले करने के काम

निकाह करने से पहले खुदको नेक इंसान बन लो इसलिए कि आमतौर पर अच्छी तबीयत वाले मर्द को अच्छी तबीयत वाली औरत मिलती है। बुरे चरित्र वाले को बुरी चरित्र वाली मिलती है ।

नेक इंसान बनने के बाद सही औरत का चुनाव करना है।

जैसा कि नबी ए करीम ﷺ ने इरशाद फरमाया :

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، عَنِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، قَالَ: تُنْكَحُ الْمَرْأَةُ لِأَرْبَعٍ: لِمَالِهَا، وَلِحَسَبِهَا، وَلِجَمَالِهَا، وَلِدِينِهَا، فَاظْفَرْ بِذَاتِ الدِّينِ تَرِبَتْ يَدَاكَ ۔ (بخاري ومسلم)

 

अर्थ: नबी करिम ﷺ ने फरमाया कि औरत से निकाह चार वजहों से किया जाता है:

उसके माल की वजह से, उसके खानदान के शरफ़ की वजह से, उसकी खूबसूरती की वजह से,

उसके दीन की वजह से,  तो तुम दीनदार औरत से निकाह़ करके कामयाबी हासिल करो  ।

दूसरी हदीस में है:

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ ، قَالَ : قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : «إِذَا أَتَاكُمْ مَنْ تَرْضَوْنَ خُلُقَهُ وَدِينَهُ فَزَوِّجُوهُ ، إِلَّا تَفْعَلُوا تَكُنْ فِتْنَةٌ فِي الْأَرْضِ وَفَسَادٌ عَرِيضٌ» (سنن ابن ماجه)

अर्थ: अगर आपके पास ऐसा व्यक्ति आए जिसका अख़लाक़ और दीन आपको पसंद हो, तो उससे शादी कर लो, अगर ऐसा नहीं करोगे तो धरती में फितना और फसाद फैल जाएगा।

औरत और मर्द के दीनदार होने का फायदा

निकाह़ के समय अगर इन चीज़ों का ख्याल रखा जाए, तो मियां-बीवी की ज़िन्दगी पुरसुकून होगी, क्योंकि जो औरत दीनदार होगी, वह हमेशा अपने शौहर की इताअत ग़ुज़ार और आदेश का पालन करेगी। इसके अलावा, उसके ज़हन में तलाक मांगने का ख्याल शायद ही कभी आए।

अगर कभी तलाक का विचार आ भी जाए तो अल्लाह के रसूल ﷺ का ये फरमान ही उसे सुधारने के लिए काफी होगा:

عَنْ ثَوْبَانَ، ‌‌‌‌‌‏قَالَ:‌‌‌‏ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:‌‌‌‏ أَيُّمَا امْرَأَةٍ سَأَلَتْ زَوْجَهَا طَلَاقًا فِي غَيْرِ مَا بَأْسٍ، ‌‌‌‌‌‏فَحَرَامٌ عَلَيْهَا رَائِحَةُ الْجَنَّةِ . (سنن أبي داؤد)

अर्थ: जो औरत बिना वजह अपने पति से तलाक मांगती है, उस पर जन्नत की खुशबू ह़राम है।

इसी तरह, बिना जरूरत शौहर के दिमाग़ में भी तलाक की सोच नही आएगी । अगर कभी उसके ज़हन में ख्याल आ भी जाए तो नबी ए करीम ﷺ का ये फरमान उसे चेतावनी देने के लिए काफी है:

عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عُمَرَ ، قَالَ : قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ : «أَبْغَضُ الْحَلَالِ إِلَى اللَّهِ الطَّلَاقُ» (سنن أبي داؤد و ابن ماجه)

अर्थ: अल्लाह के नजदीक ह़लाल चीज़ों में सबसे ना पसंदीदा चीज़ तलाक़ है।

समस्याओं का ह़ल

अगर निकाह के बाद कुछ असहमति की समस्याएँ पैदा हों, या बीवी की कोई आदत या खसलत पति को अच्छी न लगे, तो तुरंत तलाक देना कोई समाधान नहीं है। क्योंकि शायद बीवी में कुछ कमियां हों, लेकिन अच्छाइयाँ उनसे कई गुना ज़्यादा हों। इसलिए जल्दबाजी़ में फ़ैसला करने की सूरत में सिर्फ पछ=वा होगा ।

क़ुरआन में है:

فَاِنۡ کَرِهْتُمُوۡهُنَّ فَعَسٰۤی اَنۡ تَکۡرَهُوۡا شَیۡئًا وَّ یَجۡعَلَ اللّٰہُ فِیۡہِ خَیۡرًا کَثِیۡرًا۔ (سورة النساء، آیت١٩)

अर्थ: अगर तुम उन्हें नापसंद करो तो हो सकता है कि तुम किसी चीज़ को नापसंद करो और अल्लाह उसमें बहुत भलाई रख दे।

त़लाक देने से पहले यह काम करें

अगर पत्नी की नाफ़रमानियाँ इतनी बढ़ जाएँ कि उसके साथ और ज़िंदगी बिताना मुश्किल लगे, और आपने त़लाक का इरादा कर लिया है, तो रुक जाइए! सबसे पहले क़ुरआन ने जो तरीके बताए हैं, उन्हें अपनाइए। शायद अब भी हालात सुधर जाएँ।

क़ुरआन में है:

وَالّٰتِیۡ تَخَافُوۡنَ نُشُوۡزَهُنَّ فَعِظُوۡهُنَّ وَاهْجُرُوۡهُنَّ فِی الۡمَضَاجِعِ وَاضۡرِبُوۡهُنَّ . (سورة النساء، آیت٣٤)

अर्थ: जिन औरतों की नाफ़रमानी का तुम्हें अंदेशा हो, तो उन्हें समझाओ, और उनसे अलग सोओ और उन् मारो ।

इस आयत में तीन चीजें बताई गई हैं:

1) नसीहत करना – उन्हें समझाओ, अल्लाह का डर दिलाओ, आख़िरत का अज़ाब याद दिलाओ, और आज्ञा का पालन करने के फायदे और नाफरमानी के नुक़सान बताओ ।

अगर उसके दिल में अल्लाह का खौफ और नबी ए करीमﷺ की मोहब्बत होगी तो यही पहला तरीका ही हा़लात को सुधारने के लिए काफी होगा।

2) बिस्तर अलग करना – अगर नसीहत असर ना करे तो कुछ समय के लिए बिस्तर अलग कर दो। अगर बीवी के दिल में शौहर की मोहब्बत है तो यह दूर होना उसके लिए मुश्किल होगा, और इत़ाअत क़ुबूल कर लेगी।

3) हल्की मार – अगर तब भी हा़लात न सुधरें तो बहुत हल्का मारने की इजाज़त है, जैसे हाथ से या मिस्वाक जैसी पतली लकड़ी से, और वो भी चेहरे व नाज़ुक अंगों पर बिल्कुल नहीं। ज़्यादा पीटना, घूंसे, लातें मारना या ज़ख़्मी करना इस्लाम में नाजाइज़ व हराम है, और जाहिलाना काम है।

अगर ये तीनों तरीकें भी असर न करें तो थोड़ा और सब्र करो और कुरान के इस फरमान पर अमल करो;

وَاِنۡ خِفۡتُمۡ شِقَاقَ بَیۡنِهِمَا فَابۡعَثُوۡا حَکَمًا مِّنۡ اَھْلِهٖ وَحَکَمًا مِّنۡ اَهْلِهَا ۚ اِنۡ یُّرِیۡدَاۤ اِصۡلَاحًا یُّوَفِّقِ اللّٰہُ بَیۡنَهُمَا ؕ اِنَّ اللّٰہَ کَانَ عَلِیۡمًا خَبِیۡرًا ﴿۳۵﴾

(سورة النساء، آيت٣٥)

अगर तुमको मियां बीवी के झगड़े का खौफ हो तो एक मुन्सिफ़ मर्द के घरवालों की तरफ से भेजो और एक मुन्सिफ़ औरत के घर वालों की तरफ से, यह दोनों अगर सुलह़ कराना चाहेंगे तो अल्लाह उनके दरमियान इत्तेफाक पैदा कर देगा, बेशक अल्लाह खूब जानने वाला, खबरदार है ।

त़लाक़ देने की इजाज़त

ऊपर बयान किए गए मेलजोल के तमाम तरीके नाकाम हो जाएं, मोहब्बत व उल्फत के साथ जिंदगी गुजा़रने की कोई सूरत ना बचे तो ऐसी नाज़ुक हालत में मज़हब ए इस्लाम घुटन वाली जिंदगी एक साथ गुजारने पर मजबूर नहीं करता, बल्कि उससे निपटने के लिए इस्लाम ने तलाक का तसव्वुर दे रखा है, ताकि ऐसा ना हो कि शौहर बीवी की वजह से या बीवी शौहर की वजह से अपने आप को हलाकत में डालें या खुदकुशी कर ले, ऐसी खबरें अखबार की सुर्खियां बने इससे बेहतर है कि शौहर तलाक दे दे, और दोनों अकेले-अकेले या किसी और से निकाह करके राहत व चैन वाली जिंदगी गुजारें।

त़लाक़ कब और कोन्सी दें

औरत को हैज़ के दौरान तलाक मत दो, इस हालत में तलाक देना गुनाह है। ना ही उस पाकी (तहारत) के जमाने में जिसमें उससे हमबिस्तरी की हो। तलाक सिर्फ उस पाकी के जमाने में दो जिसमे उसके साथ हमबिस्तरी न की हो, इसलिए कि यह ज़माना रग़बत और चाहत का जमाना होता है, इस ज़माने में दिल-दिमाग बिला ज़रूरत तलाक देने के इरादे को बदल सकता है।

 

सिर्फ एक तलाके रजईं (طلاق رجعی) दो, क्योंकि अल्लाह ने फ़रमाया :

لَا تَدۡرِیۡ لَعَلَّ اللّٰہَ یُحۡدِثُ بَعۡدَ ذٰلِکَ اَمۡرًا﴿۱﴾ (سورة الطلاق آيت١)

अर्थ: तुमको मालूम नहीं शायद उसके बाद अल्लाह कोई नई सूरत पैदा कर दे।

एक त़लाके रजई़ देने का फायदा यह है कि तलाक देने के बाद अगर शौहर को अपनी ग़लती का एहसास हो जाए, उसके दिल में फिर उसी औरत के लिए चाहत और मोहब्बत पैदा हो जाए, तो अगर औरत इद्दत में है तो बगैर निकाह के उस औरत से रजअ़त कर सकता है, और अगर इद्दत खत्म हो चुकी है तो भी निकाह करके दुबारा उसे अपनी बीवी बना सकता है ।

अगर दोबारा निकाह करने के बाद भी हालात बेहतर नहीं हुए, दोबारा एक तलाक दे देता है तो अब भी ऊपर बयान किए गए तरीके के मुताबिक तीसरी बार भी निकाह कर सकता है । लेकिन अगर तीसरी बार निकाह करने के बाद भी तीसरी बार तलाक देता है तो अब ऐसी सूरत में वह औरत उस पर हराम(حرمت غلیظہ) हो जाएगी।

 अब निकाह से भी वह औरत उस पर हलाल ना होगी वरना तो ज़माने जाहिलिय्यत की तरह शौहर बार-बार तलाक दे और बार-बार रजअ़त कर ले तो इस तरह वह औरत शौहर के हाथों का खेल बनकर रह जाएगी, इसलिए शरीअ़त ने एक हद बयान कर दी है कि शौहर दो बार तलाक देकर निकाह़ में वापस ला सकता है, और तीसरी बार तलाक दिया है तो हुरमत ए ग़लीजा साबित हो जाएगी ।

तीसरी बार देने के बाद  उस औरत से शादी नहीं कर सकता है। मगर औरत के लिए मुकम्मल इजाज़त है कि वह अकेले जिंदगी गुजा़रे या किसी दूसरे मर्द से शादी कर ले, अगर औरत दूसरे मर्द से शादी कर लेती है तो जब तक वह चाहे उसी दूसरे शौहर के साथ अपनी जिंदगी गुजारे, लेकिन अगर दूसरे शौहर के साथ भी कोई अनबन हो जाए और वहां से भी छुटकारा मिल जाए, तो औरत अब चाहे तो तीसरे मर्द से निकाह कर ले, या ऐसी सूरत में उसे इजाज़त है की दूसरे शौहर से तलाक पाने और इद्दत मुकम्मल होने के बाद अपने पहले ही शौहर से निकाह कर ले, इसलिए कि यह औरत पहले शौहर के लिए ह़लाल हो चुकी है ।

पहले शौहर के लिए ह़लाल हो जाने को ह़लाला का नाम भी दिया जाता है। जिस लफ्ज़ को कुछ जाहिलों ने तोड़ मरोड़ कर पेश किया, मज़हब ए इस्लाम को बदनाम करने की कोशिश की, और यह बतलाने की कोशिश की कि ह़लाला इस्लाम मे औरतों पर जुल्मों ज्यादती का नाम है। हालांकि इस्लाम मे जुल्मों ज्यादती का कोई तस्ववुर नहीं है। इस्लाम अदल व इंसाफ का दर्स देता है। इस्लाम की नज़र में अमीर- ग़रीब, छोटा- बड़ा, गोरा- काला, मर्द और औरत सब बराबर हैं।

अल्लाह पाक हम सभी को मज़हब ए इस्लाम को सही तौर पर समझने और उसके मुताबिक जिंदगी गुजा़रने की तौफीक़ अता फरमाए।

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