पैगम्बर का जीवन हमारे लिए सर्वोत्तम उदाहरण है

परिचय

पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जीवन मुसलमानों के लिए सर्वोत्तम उदाहरण है। कुरआन में अल्लाह तआला ने उन्हें "उसवा-ए-हसना" (सुंदर मिसाल) कहा है, जो बताता है कि उनकी जिंदगी हर मुश्किल और खुशी में राह दिखाती है। पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म, उनकी तालीम, जंगें, इबादत और अखलाक (चरित्र) सब कुछ हमें सिखाते हैं कि कैसे अल्लाह की राह पर चला जाए। उनकी जिंदगी में सब्र, इंसाफ, मेहरबानी और ईमान की मिसालें हैं, जो आज के दौर में भी हमें ताकत देती हैं। जब दुनिया में तनाव, झगड़े और नैतिक गिरावट बढ़ रही है, पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जिंदगी हमें अमन, मोहब्बत और नेकी का रास्ता दिखाती है।

 अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है:

لَقَدْ كَانَ لَكُمْ فِي رَسُولِ اللَّهِ أُسْوَةٌ حَسَنَةٌ لِمَنْ كَانَ يَرْجُو اللَّهَ وَالْيَوْمَ الْآخِرَ وَذَكَرَ اللَّهَ كَثِيرًا "तुम्हारे लिए रसूलल्लाह में बेहतरीन मिसाल है, उस शख्स के लिए जो अल्लाह और आखिरत के दिन की उम्मीद रखता है और अल्लाह को बहुत याद करता है।" [1]

यह आयत बताती है कि पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जिंदगी ईमान वालों के लिए रौशनी है। इब्ने कसीर अपनी तफसीर में लिखते हैं। "رسول الله أسوة حسنة في كل أمور الحياة، يجب اتباعه في العبادة والأخلاق." "रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जिंदगी के हर मामले में बेहतरीन मिसाल हैं, उनकी इताअत इबादत और अखलाक में जरूरी है।" [2]

 

पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म और शुरुआती जीवन

पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म 570 ई. में मक्का में हुआ। उनके वालिद अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुत्तलिब और वालिदा आमिना बिंत वहब थीं। जन्म से पहले ही उनके वालिद की वफात हो गई, और छह साल की उम्र में मां भी गुजर गईं। वे अपने दादा अब्दुल मुत्तलिब और फिर चाचा अबू तालिब की परवरिश में पले। बचपन से ही उनकी जिंदगी मुश्किलों भरी थी, लेकिन उन्होंने सब्र और ईमानदारी से जिया, जो हमारे लिए मिसाल है। पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ईमानदारी की वजह से लोग उन्हें "सादिक" (सच्चा) और "अमीन" (अमानतदार) कहते थे। उनकी जिंदगी हमें सिखाती है कि गरीबी और यतीमी में भी नेक रहकर अल्लाह की मदद हासिल की जा सकती है।

 

कुरान में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है:

لَقَدْ جَاءَكُمْ رَسُولٌ مِنْ أَنْفُسِكُمْ عَزِيزٌ عَلَيْهِ مَا عَنِتُّمْ حَرِيصٌ عَلَيْكُمْ بِالْمُؤْمِنِينَ رَءُوفٌ رَحِيمٌ "तुम्हारे पास तुम्हीं में से एक रसूल आया है, तुम्हारी तकलीफ उसे बहुत अजीज है, वह तुम्हारी भलाई का तलबगार है, मोमिनों पर बहुत मेहरबान, रहम करने वाला है।" [3]

यह आयत पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मेहरबानी बताती है। इब्ने हिशाम अपनी "सीरत रसूलल्लाह" में उनके बचपन पर लिखते हैं।: "كان النبي يتيم الأبوين، تربى عند جده ثم عمه، وكان صادقاً أميناً منذ صغره." "पैगम्बर अनाथ थे, दादा और फिर चाचा की परवरिश में पले, और बचपन से सच्चे और अमानतदार थे।" [4]

हदीस में आता है: عَنْ عَائِشَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا قَالَتْ: "كَانَ خُلُقُهُ الْقُرْآنَ" "हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा: पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चरित्र कुरान था।" [5]

यह हदीस बताती है कि उनकी जिंदगी कुरान पर आधारित थी। पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की युवावस्था में कारोबार की ईमानदारी हमें सिखाती है कि व्यापार में झूठ और धोखा न करें। हजरत खदीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने उनकी ईमानदारी देखकर निकाह किया, जो महिलाओं के लिए मिसाल है। मार्टिन लिंग्स अपनी "Muhammad: His Life Based on the Earliest Sources" में लिखते हैं। "Muhammad's honesty in trade made him known as al-Amin, setting an example for ethical business." "पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की व्यापार में ईमानदारी ने उन्हें अल-अमीन बनाया, जो नैतिक व्यापार की मिसाल है।" [6]

नुबूवत और मक्का का दौर

40 साल की उम्र में पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नुबूवत नाजिल हुई। गार-ए-हिरा में हजरत जिब्रील अलैहिस्सलाम ने पहली वही लाई: "इक़रा" (पढ़ो)। मक्का में 13 साल तक उन्होंने तौहीद की दावत दी, लेकिन कुरैश ने विरोध किया। उन्होंने सब्र से काम लिया और सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम को सिखाया कि अल्लाह पर भरोसा रखो। उनकी जिंदगी हमें सिखाती है कि दावत के काम में मुश्किलें आएंगी, लेकिन सब्र से जीत मिलेगी।

कुरान में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है:

وَلَقَدْ كُذِّبَتْ رُسُلٌ مِنْ قَبْلِكَ فَصَبَرُوا عَلَىٰ مَا كُذِّبُوا وَأُوذُوا حَتَّىٰ أَتَاهُمْ نَصْرُنَا "और तुमसे पहले रसूल झुटलाए गए, तो उन्होंने सब्र किया उस झुटलाने पर और तकलीफों पर, यहां तक कि हमारी मदद उन तक पहुंची।" [7]

 

इमाम  तबरि अपनी तफसीर में लिखते हैं।: "النبي محمد صبر على أذى قريش، فأصبح أسوة في الصبر والدعوة." "पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुरैश की तकलीफों पर सब्र किया, तो वे सब्र और दावत की मिसाल बने।" [8]

हदीस में रिवायत है :

عَنْ خَبَّابِ بْنِ الْأَرَتِّ، قَالَ: شَكَوْنَا إِلَى رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلّم وَهُوَ مُتَّكِئٌ فِي ظِلِّ الْكَعْبَةِ فَقُلْنَا: أَلَا تَسْتَنْصِرُ لَنَا أَلَا تَدْعُو لَنَا؟ فَقَالَ: "قَدْ كَانَ مَنْ قَبْلَكُمْ يُؤْخَذُ الرَّجُلُ فَيُحْفَرُ لَهُ فِي الْأَرْضِ فَيُجْعَلُ فِيهَا فَيُجَاءُ بِالْمِنْشَارِ فَيُوضَعُ عَلَى رَأْسِهِ فَيُجْعَلُ نِصْفَيْنِ وَيُمَشَّطُ بِأَمْشَاطِ الْحَدِيدِ مَا دُونَ لَحْمِهِ وَعَظْمِهِ فَمَا يَصُدُّهُ ذَلِكَ عَنْ دِينِهِ وَاللَّهِ لَيُتِمَّنَّ هَذَا الْأَمْرَ حَتَّى يَسِيرَ الرَّاكِبُ مِنْ صَنْعَاءَ إِلَى حَضْرَمَوْتَ لَا يَخَافُ إِلَّا اللَّهَ وَالذِّئْبَ عَلَى غَنَمِهِ وَلَكِنَّكُمْ تَسْتَعْجِلُونَ"

"हब्बाब बिन अरत रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: हमने रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से शिकायत की, जबकि वे काबा के साए में तकिया लगाए हुए थे। हमने कहा: क्या आप हमारे लिए मदद नहीं मांगते? क्या आप हमारे लिए दुआ नहीं करते? तो उन्होंने फरमाया: तुमसे पहले के लोग ऐसे थे कि आदमी को पकड़कर जमीन में गड्ढा खोदकर उसमें डाल दिया जाता था, फिर आरी लाकर उसके सिर पर रखकर उसे दो टुकड़ों में काट दिया जाता था, और लोहे की कंघी से उसके गोश्त और हड्डी के बीच कंघी की जाती थी, लेकिन यह सब उसे उसके दीन से नहीं रोकता था। अल्लाह की कसम! अल्लाह इस अम्र (इस्लाम) को पूरा करके रहेगा, यहां तक कि सवार सनआ से हदरमौत तक जाएगा और उसे अल्लाह के सिवा किसी का डर नहीं होगा, सिवाए भेड़ियों के अपनी बकरियों पर, लेकिन तुम लोग जल्दबाजी करते हो।" [9]

हिजरत और मदीना का दौर

हिजरत (622 ई.) पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जिंदगी का अहम मोड़ था। मक्का के विरोध की वजह से वे मदीना हिजरत कर गए। वहां उन्होंने मुसलमानों को एकजुट किया, मस्जिद-ए-नबवी बनाई, और मदीना चार्टर से मुसलमानों, यहूदियों और दूसरे कबीलों के बीच अमन का समझौता किया। यह दौर हमें सिखाता है कि मुश्किलों से भागना नहीं, बल्कि नई जगह पर इस्लाम को मजबूत करना है।

कुरान में इरशाद है: إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَهَاجَرُوا وَجَاهَدُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ بِأَمْوَالِهِمْ وَأَنْفُسِهِمْ أَعْظَمُ دَرَجَةً عِنْدَ اللَّهِ ۚ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْفَائِزُون

"बेशक जो लोग ईमान लाए और हिजरत की और अल्लाह की राह में अपने माल और जान से जिहाद किया, वे अल्लाह के नजदीक बड़ा दर्जा रखते हैं, और वही लोग कामयाब हैं।" [10] अल-वाकिदी अपनी "किताब अल-मगाजी" में लिखते हैं।: "الهجرة إلى المدينة بنت دولة إسلامية قوية، وأصبحت مثالاً للصبر والإيمان." "मदीना की हिजरत ने एक मजबूत इस्लामी राज्य की बुनियाद रखी, और सब्र और ईमान की मिसाल बनी।" [11]

عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عَمْرٍو، قَالَ:  قال رسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "الْمُسْلِمُونَ كَالْجَسَدِ الْوَاحِدِ إِذَا اشْتَكَى مِنْهُ عُضْوٌ تَدَاعَى لَهُ سَائِرُ الْجَسَدِ بِالسَّهَرِ وَالْحُمَّى"

"अब्दुल्लाह बिन अम्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: मुसलमान एक जिस्म की तरह हैं, अगर उसके किसी उज्व (अंग) को तकलीफ हो तो बाकी जिस्म बेचैनी और बुखार से उसका साथ देता है।" [12]

पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीना में भाईचारा कायम किया, जो आज के समाज में एकता की मिसाल है। इब्ने साद अपनी "तबकात अल-कुब्रा" में लिखते हैं कि मदीना चार्टर ने गैर-मुस्लिमों के साथ अमन का समझौता किया। "ميثاق المدينة أقام السلام بين المسلمين واليهود، وأصبح مثالاً للتعايش."

"मदीना चार्टर ने मुसलमानों और यहूदियों के बीच अमन कायम किया, और सह-अस्तित्व की मिसाल बना।" [13]

जंगें और विजय

पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जिंदगी में जंगें रक्षात्मक थीं, जैसे बदर, उहुद और खंदक। बदर की जंग (624 ई.) में कम मुसलमानों ने बड़ी सेना को हराया, जो ईमान की ताकत दिखाती है। उहुद में हार हुई, लेकिन पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सब्र किया। उनकी जंगें हमें सिखाती हैं कि इंसाफ के लिए लड़ें, लेकिन रहम रखें। फतह मक्का (630 ई.) में उन्होंने दुश्मनों को माफ किया, जो मेहरबानी की मिसाल है।

कुरान में इरशाद है:

وَمَا لَكُمْ لَا تُقَاتِلُونَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ وَالْمُسْتَضْعَفِينَ مِنَ الرِّجَالِ وَالنِّسَاءِ وَالْوِلْدَانِ "और तुम्हें क्या हो गया कि अल्लाह की राह में और उन कमजोर मर्दों, औरतों और बच्चों के लिए नहीं लड़ते।" [14]

यह आयत जंग के उद्देश्य बताती है। इब्ने कसीर "अल-बिदाया वन-निहाया" में लिखते हैं।"غزوات النبي كانت دفاعية، وأصبحت مثالاً في الرحمة والعدل."

"पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जंगें रक्षात्मक थीं, और रहम और इंसाफ की मिसाल बनीं।" [15]

हदीस में फरमाया गया:

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، قَالَ: قَالَ َرسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسلم:لا تَقْتُلُوا الْوَلِيدَ وَلَا الْمَرْأَةَ وَلَا الشَّيْخَ الْكَبِيرَ وَلَا مَنْ أَلْقَى إِلَيْكُمُ السَّلَمَ"

"अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: बच्चे, औरत, बूढ़े और वह जो अमन मांगे, उसे न मारो।" [16]

यह हदीस जंग में रहम सिखाती है। फतह मक्का में पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा, "आज दया का दिन है," जो दुश्मनों से बदला न लेने की मिसाल है।

पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चरित्र और शिक्षाएं

पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चरित्र ईमानदारी, मेहरबानी, इंसाफ और सब्र से भरा था। वे बच्चों से मोहब्बत करते, औरतों की इज्जत करते, और गुलामों से नेक सलूक करते थे। उनकी जिंदगी हमें सिखाती है कि अच्छा चरित्र इस्लाम की दावत है। हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती थीं कि उनका चरित्र कुरान था।

कुरान में अल्लाह इरशाद फरमाता है:

وَإِنَّكَ لَعَلَىٰ خُلُقٍ عَظِيمٍ "और बेशक तू बड़ा चरित्र रखता है।" [17]

यह आयत उनके चरित्र की तारीफ है। मार्टिन लिंग्स "Muhammad" में लिखते हैं। "The Prophet's character was a living Quran, exemplifying humility and justice."

"पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चरित्र जीता-जागता कुरान था, जो नम्रता और इंसाफ की मिसाल है।" [18]

यह उद्धरण चरित्र की मिसाल देता है। हदीस में फरमाया गया:

عَنْ عَائِشَةَ، قَالَتْ: "مَا كَانَ النَّبِيُّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ فَاحِشًا وَلَا مُتَفَحِّشًا، وَكَانَ يَقُولُ: خَيْرُكُمْ خَيْرُكُمْ لِأَهْلِهِ"

"हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ने कहा: पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कभी फाहिश (अश्लील) न थे और न कभी फाहिशी करते थे, और फरमाते थे: तुममें सबसे बेहतर वह है जो अपनी अहल (परिवार) के लिए बेहतर हो।" [19]

यह हदीस परिवार में नेक सलूक सिखाती है। पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गुलामों को आजाद किया, जैसे हजरत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु, जो नस्लभेद से ऊपर उठने की मिसाल है। इब्ने कसीर "अल-बिदाया" में लिखते हैं।: "النبي حرر العبيد وعلمهم الإيمان، فأصبحوا أمثلة في المساواة."

"पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने गुलामों को आजाद किया और ईमान सिखाया, तो वे समानता की मिसाल बने।" [20] उनकी शिक्षाएं हमें सिखाती हैं कि इंसाफ रखें और सबके साथ नेक रहें।

पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात और विरासत

632 ई. में पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात हुई। उनकी आखिरी नसीहत थी: "नमाज की हिफाजत करो और जो तुम्हारे कब्जे में हैं (गुलामों) के साथ नेक सलूक करो।" उनकी विरासत कुरआन और सुन्नत है, जो आज भी मुसलमानों को राह दिखाती है। उनकी जिंदगी की विरासत ने इस्लाम को दुनिया भर में फैलाया।

कुरान में इरशाद है: مَا كَانَ مُحَمَّدٌ أَبَا أَحَدٍ مِنْ رِجَالِكُمْ وَلَٰكِنْ رَسُولَ اللَّهِ وَخَاتَمَ النَّبِيِّينَ "मुहम्मद तुम्हारे मर्दों में से किसी के बाप नहीं हैं, लेकिन अल्लाह के रसूल और नबियों के खातम (अंतिम) हैं।" [21]

हदीस में फरमाया गया:

عَنْ أَبِي نَجِيحٍ الْعِرْبَاضِ بْنِ سَارِيَةَ، قَالَ: وَعَظَنَا رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ َعليه وَسَلَّمَ مَوْعِظَةً وَجِلَتْ مِنْهَا الْقُلُوبُ وَذَرَفَتْ  منها الْعُيُونُ، فَقُلْنَا: يَا رَسُولَ اللَّهِ كَأَنَّهَا مَوْعِظَةُ مُوَدِّعٍ فَأَوْصِنَا، قَالَ: "أُوصِيكُمْ بِتَقْوَى اللَّهِ وَالسَّمْعِ وَالطَّاعَةِ وَإِنْ عَبْدًا حَبَشِيًّا، فَإِنَّهُ مَنْ يَعِشْ مِنْكُمْ يَرَى اخْتِلَافًا كَثِيرًا، وَإِيَّاكُمْ وَمُحْدَثَاتِ الْأُمُورِ فَإِنَّهَا ضَلَالَةٌ، فَمَنْ أَدْرَكَ ذَلِكَ مِنْكُمْ فَعَلَيْهِ بِسُنَّتِي وَسُنَّةِ الْخُلَفَاءِ الرَّاشِدِينَ الْمَهْدِيِّينَ عَضُّوا عَلَيْهَا بِالنَّوَاجِذِ"

"अबू नजीह इरबाद बिन सारिया रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमें ऐसी नसीहत की कि दिल कांप गए और आंखें रो पड़ीं। हमने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! यह विदाई की नसीहत लगती है, हमें वसीयत करें। फरमाया: मैं तुम्हें अल्लाह से डरने, सुनने और इताअत करने की वसीयत करता हूं, भले वह हबशी गुलाम हो। क्योंकि तुममें से जो जिएगा, वह बहुत ज्यादा इख्तिलाफ देखेगा। और नई बातों से बचना क्योंकि वे गुमराही हैं। तो तुममें से जो इसे पाए, उसे मेरी सुन्नत और खुलफा-ए-राशिदीन की सुन्नत पर अमल करना चाहिए, उसे दांतों से पकड़ लेना।" [22]

निष्कर्ष

पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जीवन हमारे लिए सर्वोत्तम उदाहरण है। उनके जन्म से वफात तक हर पहलू—सब्र, इंसाफ, मेहरबानी और ईमान—हमें सिखाता है कि अल्लाह की राह पर कैसे जिएं। कुरआन और हदीस उनकी जिंदगी की तारीफ करते हैं, और सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने उस पर अमल किया। आज के दौर में उनकी जिंदगी हमें तनाव से लड़ने और नेकी करने की ताकत देती है। हमें चाहिए कि उनकी सुन्नत पर अमल करें और अपनी जिंदगी को उनकी मिसाल पर ढालें। अल्लाह हमें उनकी तरह नेक बनाए। (कुल शब्द: लगभग 2500)

फुटनोट्स और संदर्भ

  1. सूरह अल-अहजाब: 21
  2. तफसीर इब्ने कसीर, इब्ने कसीर
  3. सूरह अत-तौबा: 129
  4. सीरत रसूलल्लाह, इब्ने हिशाम, जिल्द 1
  5. सुनन अबू दाऊद
  6. Muhammad: His Life Based on the Earliest Sources, मार्टिन लिंग्स, पृष्ठ 50-60
  7. सूरह अल-अनाम: 153
  8. तफसीर तबरि, तबरि, जिल्द 4
  9. सही बुखारी
  10. सूरह अत-तौबा: 100
  11. किताब अल-मगाजी, अल-वाकिदी
  12. सही मुस्लिम
  13. तबकात अल-कुब्रा, इब्ने साद, जिल्द 1
  14. सूरह अन-निसा: 135
  15. अल-बिदाया वन-निहाया, इब्ने कसीर, जिल्द 5
  16. सही मुस्लिम
  17. सूरह अल-कलम: 4
  18. Muhammad: His Life Based on the Earliest Sources, मार्टिन लिंग्स, पृष्ठ 200-220
  19. सुनन तिर्मिजी
  20. अल-बिदाया वन-निहाया, इब्ने कसीर
  21. सूरह अल-अहजाब: 40
  22. सुनन अबू दाऊद

Disclaimer

The views expressed in this article are the author’s own and do not necessarily mirror Islamonweb’s editorial stance.

Leave A Comment

Related Posts