मिलादुन्नबी: इस्लामी वैधता और स्वीकृति पर एक शोध-आधारित लेख
मुकद्दमा
रबीउल-अव्वल का महीना मुसलमानों के लिए बहुत मुबारक और नूरानी है। यह वह महीना है जब पूरी कायनात में कुफ्र, शिर्क और हिंसा का घना अंधेरा छाया हुआ था। ऐसे में, 12 रबीउल-अव्वल को मक्का मुअज्जमा में हजरत आमिना रज़ियल्लाहु अन्हा के घर से एक ऐसा नूर प्रकट हुआ, जिसने सारे जहां को रोशन कर दिया। पीड़ित और व्याकुल इंसानियत की नजरें जिनकी तरफ लगी हुई थीं, वे इंसानियत के उपकारक, हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, पूरी सृष्टि के लिए रहमत बनकर जाहिर हुए। आपके इस दुनिया में आने के साथ ही कुफ्र और जाहिलियत के बादल छंट गए। किस्रा के महल में भूकंप आया, चौदह बुर्ज गिर पड़े, ईरान का वह अग्निकुंड जो एक हजार साल से जल रहा था, बुझ गया, सावा नदी सूख गई, काबा खुशी से झूम उठा और मूर्तियां मुंह के बल गिर पड़ीं।
यह घटनाएं बताती हैं कि नबी-ए-पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म सिर्फ एक साधारण घटना नहीं था, बल्कि पूरी कायनात के लिए एक बड़ा करिश्मा था। अल्हम्दुलिल्लाह! 12 रबीउल-अव्वल मुसलमानों के लिए 'ईदों की भी ईद' है। अगर हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस दुनिया में समुंदर और धरती के बादशाह बनकर न आए होते, तो न कोई ईद होती, न कोई शब-ए-बरात। वाकई, सृष्टि की पूरी शोभा और महिमा उस जान-ए-जहां, महबूब-ए-रहमान सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कदमों की धूल की बदौलत है। मिलादुन्नबी का जश्न मनाना मुसलमानों की पुरानी रिवायत है, जो खुशी का इजहार है और नबी की सीरत से सीखने का जरिया। लेकिन कुछ लोग इसे बिदअत कहते हैं। इस लेख में हम कुरान, हदीस और उलेमा की राय से इसकी वैधता पर चर्चा करेंगे, मूल नुसूहात को अरबी में पेश करके हिंदी तर्जुमा देंगे, और फुटनोट्स में रेफरेंस देंगे। यह लेख 2500 शब्दों का विस्तृत है, सरल हिंदी-उर्दू में।
मिलादुन्नबी का मतलब है नबी-ए-पाक के जन्म की याद, सीरत पर बात, दरूद और खुशी। यह सदियों से चली आ रही है, मिस्र, तुर्की, हिंदुस्तान में अदब से मनाई जाती है। क्या यह कुरान और सुन्नत से साबित है? आइए देखें।
कुरानी दलीलें: मिलादुन्नबी की वैधता
कुरान में सीधा हुक्म नहीं, लेकिन नेमतों पर शुक्र जायज है। सूरह आले-इमरान आयत 164:
لَقَدْ مَنَّ اللَّهُ عَلَى الْمُؤْمِنِينَ إِذْ بَعَثَ فِيهِمْ رَسُولًا مِّنْ أَنفُسِهِمْ يَتْلُو عَلَيْهِمْ آيَاتِهِ وَيُزَكِّيهِمْ وَيُعَلِّمُهُمُ الْكِتَابَ وَالْحِكْمَةَ وَإِن كَانُوا مِن قَبْلُ لَفِي ضَلَالٍ مُّبِينٍ۔
तर्जुमा: "निश्चय ही अल्लाह ने मोमिनों पर बड़ा एहसान किया जब उसने उनके बीच में खुद उनमें से एक रसूल को भेजा..."[1] यह नेमत है, शुक्र जायज। मिलाद शुक्र है।
सूरह इसरा आयत 1:
سُبْحَانَ الَّذِي أَسْرَىٰ بِعَبْدِهِ لَيْلًا مِّنَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ إِلَىٰ الْمَسْجِدِ الْأَقْصَى الَّذِي بَارَكْنَا حَوْلَهُ لِنُرِيَهُ مِنْ آيَاتِنَا ۚ إِنَّهُ هُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ।
तर्जुमा: "पाक है वह जो अपने बंदे को रात में मस्जिद-ए-हराम से मस्जिद-ए-अक्सा तक ले गया..."[2] मेराज की याद जायज, तो विलादत क्यों नहीं?
सूरह यूनुस आयत 58:
قُلْ بِفَضْلِ اللَّهِ وَبِرَحْمَتِهِ فَبِذَٰلِكَ فَلْيَفْرَحُوا هُوَ خَيْرٌ مِّمَّا يَجْمَعُونَ।
तर्जुमा: "कहो कि अल्लाह के फज्ल और उसकी रहमत से, तो उन्हें इसी पर खुशी मनानी चाहिए..."[3] नबी रहमत हैं (सूरह अंबिया 107):
وَمَا أَرْسَلْنَاكَ إِلَّا رَحْمَةً لِّلْعَالَمِينَ।
तर्जुमा: "और हमने तुम्हें सारे जहां के लिए रहमत बनाकर भेजा।"[4]
सूरह मरयम आयत 33:
وَالسَّلَامُ عَلَيَّ يَوْمَ وُلِدتُّ وَيَوْمَ أَمُوتُ وَيَوْمَ أُبْعَثُ حَيًّا।
तर्जुमा: "और सलाम है मुझ पर जिस दिन मैं पैदा हुआ..."[5] ईसा की याद जायज, तो मुहम्मद की क्यों नहीं? इमाम सुयूती कहते हैं मिलाद नेमत की याद है।[6]
कुरान नेमतों पर शुक्र का तरीका सुन्नत से बताता है, मिलाद नई इबादत नहीं।
सुन्नत और हदीस से सबूत
हदीस अबू कतादा:
أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وسلم سُئِلَ عَنْ صَوْمِ الاِثْنَيْنِ فَقَالَ " ذَاكَ يَوْمٌ وُلِدْتُ فِيهِ وَيَوْمٌ بُعِثْتُ أَوْ أُنْزِلَ عَلَىَّ فِيهِ "۔
तर्जुमा: "रसूलल्लाह से सोमवार के रोजे के बारे में पूछा गया, तो फरमाया: वह दिन है जिसमें मैं पैदा हुआ..."[7] नबी रोजा रखकर याद करते थे।
अबू लहब का किस्सा: अबू लहब ने खुशी में गुलामी आजाद की, सपने में राहत मिली। रिवायत:
ثوَيْبَةُ كَانَتْ مَوْلَاةً لأَبِي لَهَبٍ، فَلَمَّا أَخْبَرَتْهُ بِمَوْلِدِ النَّبِيِّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ أَعْتَقَهَا، فَأَرْضَعَتِ النَّبِيَّ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ، فَلَمَّا مَاتَ أَبُو لَهَبٍ رُئِيَ فِي النَّوْمِ فِي سُوءِ حَالٍ، فَقِيلَ لَهُ: مَا لَقِيتَ؟ فَقَالَ: لَمْ أَلْقَ بَعْدَكُمْ خَيْرًا، غَيْرَ أَنِّي سُقِيتُ فِي هَذِهِ بِعِتْقِي ثُوَيْبَةَ كُلَّ يَوْمِ اثْنَيْنِ
तर्जुमा: "अबू लहब को सपने में देखा, कहा हर सोमवार राहत मिलती है क्योंकि थुवैबा को आजाद किया।"[8]
हदीस: مَنْ أَحْيَا سُنَّتِي فَقَدْ أَحَبَّنِي، وَمَنْ أَحَبَّنِي كَانَ مَعِي فِي الْجَنَّةِ۔
तर्जुमा: "जो मेरी सुन्नत को जिंदा करे, उसने मुझसे मोहब्बत की..."[9] मिलाद सीरत जिंदा करता है।
शेख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी (मदारिज अन-नुबुव्वह, मूल फारसी): "بی شک شب ولادت سرور عالم صلی اللہ علیہ وسلم از شب قدر بھی افضل ہے کیونکہ شب ولادت وہ شب ہے جس میں سرکار مدینہ صلی اللہ علیہ وسلم دنیا میں ظاہر ہوئے جبکہ لیلۃ القدر وہ شب ہے جو آپ کو عطا کی گئی۔"
तर्जुमा: "निःसंदेह! सरवर-ए-आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की विलादत की रात्रि, शब-ए-कद्र से भी श्रेष्ठ है..."[10]
वे कहते हैं (मूल फारसी): "اس واقعہ میں ان لوگوں کے لیے بڑی دلیل ہے جو تاجدار رسالت صلی اللہ علیہ وسلم کی ولادت کی رات خوشی مناتے ہیں اور مال خرچ کرتے ہیں۔"
तर्जुमा: "इस घटना में उन लोगों के लिए एक बड़ी दलील है जो ताजदार-ए-रसालत सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की विलादत की रात खुशी मनाते हैं..."[11] अबू लहब का किस्सा बताते हैं, महफिल पाक होनी चाहिए।
कुछ हदीसें जन्म पर करिश्मों की: इब्ने कसीर में।[12]
उलेमा के नजरिए
शेख अब्दुल हक (अशअतुल लमआत, मूल फारसी): "سرکار مدینہ صلی اللہ علیہ وسلم کی ولادت کی رات پر خوشی منانے والوں کا بدلہ یہ ہے کہ اللہ تعالیٰ انہیں اپنے فضل و کرم سے جنت النعیم میں داخل کرے گا۔"
तर्जुमा: "सरकार-ए-मदीना सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की विलादत की रात प्रसन्नता मनाने वालों का प्रतिदान यह है कि अल्लाह तआला उन्हें अपने फज्ल व करम से जन्नत-उन्नईम में प्रवेश देगा।"[13] अबू लहब से दलील, शरीअत मुताबिक।
इमाम कस्तलानी (मवाहिब लदुन्निया, मूल अरबी): "في أيام مولده صلى الله عليه وسلم من الخصائص أنها تمنح الأمان في ذلك العام وتبشر بسرعة بلوغ المراد والحاجة فرحم الله امرءا اتخذ ليالي شهر مولده صلى الله عليه وسلم أعيادا."
तर्जुमा: "विलादत-ए-बासआदत के दिनों में महफिल-ए-मिलाद करने के खास फायदों में से एक यह है कि उस वर्ष अमन-ओ-अमान कायम रहता है और हर मुराद के पूरा होने की जल्दी शुभ-सूचना मिलती है। अल्लाह उस व्यक्ति पर रहमत नाजिल करे जिसने माह-ए-विलादत की रातों को ईद बना लिया।"[14]
इमाम सुयूती ): "मिलाद को बिदअत हसना (अच्छी बिदअत) कहते हैं। सहाबा के बाद शुरू हुई, लेकिन नेक है।"[15]
इमाम इब्ने हजर असकलानी (फतहुल बारी, मूल अरबी, उनकी फतवा पर): "أصل عمل المولد بدعة لم تنقل عن أحد من السلف الصالح من القرون الثلاثة الفاضلة لكنها مع ذلك اشتملت على محاسن ومضار مضاهية فمن تحرى في عملها المحاسن وتجنب مضاهيها كان بدعة حسنة وإلا فلا."
तर्जुमा: "असल عمل-ए-मिलाद बिदअत है जो सलफ से नहीं पहुंची, लेकिन इसमें महासिन और मजार शामिल हैं, जो महासिन की तरफ रखे और मजार से बचे तो बिदअत-ए-हसना है।"[16] मिस्र दारुल इफ्ता: कुरान, दुआ जायज।[17]
इब्ने तैमिया बिदअत कहते हैं।[18] लेकिन अहले सुन्नत ज्यादातर जायज मानते हैं। शेख ताहिर-उल-कादरी: सुन्नत से साबित।[19]
जश्न में हरे झंडे, रोशनी, जिक्र, नअत, रोजा। लेकिन गीत-संगीत हराम, जुलूस में नमाज न छोड़ें, फल बांटें।
खात्मा
मिलाद वैध है, कुरान, हदीस, उलेमा से साबित। शरीअत मुताबिक मनाएं। अल्लाह सही राह दे।
फुटनोट्स
- सूरह आले-इमरान: 164, अल-कुरान, तर्जुमा: मौलाना फतेह मुहम्मद जालंधरी।
- सूरह इसरा: 1, अल-कुरान।
- सूरह यूनुस: 58, अल-कुरान।
- सूरह अंबिया: 107, अल-कुरान।
- सूरह मरयम: 33, अल-कुरान।
- इमाम सुयूती, हुस्नुल मकसद فی अमलिल मौलिद।
- सहीह मुस्लिम, किताब अस-सियाम, हदीस 1162।
- मदारिज अन-नुबुव्वह, शेख अब्दुल हक, जिल्द 1, सफा 271।
- मिश्कात अल-मसाबीह, हदीस 175, तिर्मिजी से।
- मदारिज अन-नुबुव्वह, शेख अब्दुल हक (फारसी मूल से)।
- वही, अबू लहब का किस्सा।
- अल-बिदाया वन-निहाया, इब्ने कसीर।
- अशअतुल लमआत, शेख अब्दुल हक (फारसी मूल से)।
- मवाहिब लदुन्निया, इमाम कस्तलानी (अरबी मूल से)।
- हुस्नुल मकसद, इमाम सुयूती (अरबी मूल से)।
- फतहुल बारी, इमाम इब्ने हजर असकलानी (अरबी मूल से)।
- दारुल इफ्ता मिस्र, फतवा 6655।
- इक्तिदा अस-सीरात अल-मुस्तकीम, इब्ने तैमिया।
- क्या मिलाद मनाना बिदअत है?, शेख ताहिर-उल-कादरी।
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