क़यामत की गर्मी में सात ठंडे साए

परिचय 

क़यामत का दिन इंसान की ज़िंदगी का सबसे बड़ा इम्तिहान होगा, जब सूरज सिर पर आएगा, गर्मी से लोग पसीने में तर-बतर होंगे, और कोई साया न होगा सिवाय अल्लाह के अर्श के साए के। कुरआन में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है: يَوْمَ يَقُومُ النَّاسُ لِرَبِّ الْعَالَمِينَ "जिस दिन लोग सारे जहानों के रब के सामने खड़े होंगे।" यह दिन इतना खौफनाक होगा कि लोग अपने गुनाहों की वजह से पछताएंगे, लेकिन कुछ खुशकिस्मत लोग होंगे जो अल्लाह के साए में ठंडक पाएंगे। पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: سَبْعَةٌ يُظِلُّهُمُ اللَّهُ فِي ظِلِّهِ يَوْمَ لَا ظِلَّ إِلَّا ظِلُّهُ "सात तरह के लोग होंगे जिन्हें अल्लाह अपने साए में जगह देगा, जब कोई और साया न होगा।" 

यह हदीस हमें बताती है कि दुनिया की ज़िंदगी में नेक अमल करके हम आखिरत की गर्मी से बच सकते हैं। इन सात गुणों में इंसाफ, इबादत, मस्जिद से मोहब्बत, अल्लाह के लिए दोस्ती, गुनाह से परहेज, गुप्त सदका और तन्हाई में अल्लाह की याद शामिल हैं। आज के दौर में जब दुनिया की चकाचौंध और फितने बढ़ रहे हैं, ये गुण हमें राह दिखाते हैं कि कैसे अल्लाह की रहमत हासिल करें। इब्ने कसीर अपनी तफसीर में लिखते हैं। : "هذه الحديث تبين أن السبعة أصناف هم أهل الجنة، يظلهم الله في يوم الحساب." "यह हदीस बताती है कि ये सात तरह के लोग जन्नत वाले हैं, जिन्हें अल्लाह हिसाब के दिन अपने साए में रखेगा।" 

 

क़यामत का खौफनाक मंजर 

क़यामत का दिन ऐसा होगा कि सूरज इंसानों के सिर पर एक मील की दूरी पर होगा, गर्मी से लोग पिघल रहे होंगे। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: تَدْنُو الشَّمْسُ يَوْمَ الْقِيَامَةِ مِنَ الْخَلْقِ حَتَّى تَكُونَ مِنْهُمْ كَمِقْدَارِ مِيلٍ فَيَكُونُ النَّاسُ عَلَى قَدْرِ أَعْمَالِهِمْ فِي الْعَرَقِ فَمِنْهُمْ مَنْ يَأْخُذُهُ إِلَى كَعْبَيْهِ وَمِنْهُمْ مَنْ إِلَى رُكْبَتَيْهِ وَمِنْهُمْ مَنْ إِلَى حُجْزَتِهِ وَمِنْهُمْ مَنْ يُلْجِمُهُ الْعَرَقُ "क़यामत के दिन सूरज इतना करीब होगा कि वह इंसानों से सिर्फ एक मील की दूरी पर होगा, और लोग अपने अमलों के मुताबिक पसीने में डूबे होंगे—कुछ टखनों तक, कुछ घुटनों तक, कुछ कमर तक, और कुछ गले तक।" 

यह मंजर इतना डरावना है कि लोग अपने रिश्तेदारों से भी कट जाएंगे। कुरआन में इरशाद है: يَوْمَ يَفِرُّ الْمَرْءُ مِنْ أَخِيهِ وَأُمِّهِ وَأَبِيهِ وَصَاحِبَتِهِ وَبَنِيهِ "जिस दिन इंसान अपने भाई, मां, बाप, बीवी और बच्चों से भागेगा।" इमाम तबरि अपनी तफसीर में लिखते हैं। : "يوم القيامة يوم الخوف والحساب، لا ينفع فيه إلا العمل الصالح." "क़यामत का दिन डर और हिसाब का दिन है, जिसमें सिर्फ नेक अमल काम आएगा।" 

लेकिन अल्लाह की रहमत से सात तरह के लोग इस गर्मी से महफूज रहेंगे। इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हुमा की रिवायत में आता है कि ये गुण दुनिया में अपनाने से आखिरत की ठंडक मिलती है। अब हम इन सातों को तफसील से देखते हैं, और देखते हैं कि कैसे हम अपनी ज़िंदगी में इन्हें अपना सकते हैं। 

 

  1. इंसाफ करने वाला शासक

पहला गुण है इंसाफ करने वाले हाकिम का। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: إِمَامٌ عَادِلٌ "वो शासक जो इंसाफ करने वाला हो।" यह गुण बताता है कि ताकत में भी हक का साथ देना अल्लाह को पसंद है। कुरआन में इरशाद है:

 يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا كُونُوا قَوَّامِينَ بِالْقِسْطِ شُهَدَاءَ لِلَّهِ وَلَوْ عَلَىٰ أَنْفُسِكُمْ أَوِ الْوَالِدَيْنِ وَالْأَقْرَبِينَ

"ऐ ईमान वालो! इंसाफ पर कायम रहो, अल्लाह के लिए गवाही दो, भले वह तुम्हारे खुद के, मां-बाप या रिश्तेदारों के खिलाफ हो।" 

इब्ने कसीर "अल-बिदाया वन-निहाया" में लिखते हैं। : "الإمام العادل يظله الله لأنه يقيم الحق في الأرض." "इंसाफ करने वाला शासक इसलिए अल्लाह के साए में आएगा क्योंकि वह जमीन पर हक कायम करता है।" हदीस में आता है:

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ: "إِنَّهُ يَكُونُ بَعْدِي أَئِمَّةٌ لَا يَهْتَدُونَ بِهُدَايَ وَلَا يَسْتَنُّونَ بِسُنَّتِي وَسَيَقُومُ فِيهِمْ رِجَالٌ قُلُوبُهُمْ قُلُوبُ الشَّيَاطِينِ فِي جُثْمَانِ إِنْسٍ"

"मेरे बाद ऐसे इमाम आएंगे जो मेरी हिदायत पर न चलेंगे और न मेरी सुन्नत पर, और उनमें ऐसे लोग उठेंगे जिनके दिल शैतानों के दिल जैसे होंगे इंसानी जिस्म में।" यह हदीस बताती है कि इंसाफ न करने वाले हाकिम की क्या हालत होगी। 

हजरत उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने एक यहूदी के हक में मुसलमान के खिलाफ फैसला दिया, जो इंसाफ की मिसाल है। मार्टिन लिंग्स अपनी "Muhammad: His Life Based on the Earliest Sources" में लिखते हैं: "Umar's justice exemplified fairness, setting a precedent for rulers." "उमर का इंसाफ निष्पक्षता की मिसाल था, जो हाकिमों के लिए उदाहरण है।"

  1. इबादत में बड़ा होने वाला युवा

दूसरा गुण है उस जवान का जो इबादत में बड़ा होता है। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: وَشَابٌّ نَشَأَ فِي عِبَادَةِ رَبِّهِ "वो जवान जो अपनी जवानी अपने रब की इबादत में गुजारे।" जवानी की उम्र में शैतान की चालें ज्यादा होती हैं, लेकिन इबादत से बचाव होता है। कुरआन में इरशाद है: وَاذْكُرْ رَبَّكَ فِي نَفْسِكَ تَضَرُّعًا وَخِيفَةً وَدُونَ الْجَهْرِ مِنَ الْقَوْلِ بِالْغُدُوِّ وَالْآصَالِ وَلَا تَكُنْ مِنَ الْغَافِلِينَ

"और अपने रब को अपने दिल में याद करो, गिड़गिड़ाकर और डरते हुए, और सुबह-शाम बिना ऊंची आवाज के, और गाफिलों में से न हो।" 

इमाम तबरि अपनी तफसीर में लिखते हैं। : "الشاب الذي ينمو في العبادة يظله الله لأنه يغلب الشهوات." "वो जवान जो इबादत में बड़ा होता है, अल्लाह उसे साया देगा क्योंकि वह ख्वाहिशों पर गालिब आता है।" हदीस में रिवायत आती है:

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "سَبْعَةٌ يُظِلُّهُمُ اللَّهُ فِي ظِلِّهِ يَوْمَ لَا ظِلَّ إِلَّا ظِلُّهُ وَذَكَرَ مِنْهُمْ شَابًّا نَشَأَ فِي عِبَادَةِ اللَّهِ"

"सात लोग जिन्हें अल्लाह अपने साए में रखेगा, उनमें वो जवान जो अल्लाह की इबादत में बड़ा हुआ।" 

हजरत उस्मान गनी रज़ियल्लाहु अन्हु जवानी से इबादत में मशगूल थे। इब्ने हिशाम "सीरत रसूलल्लाह" में लिखते हैं। : "عثمان كان يقيم الصلاة ويصوم منذ شبابه." "उस्मान जवानी से नमाज और रोजा कायम रखते थे।"

  1. मस्जिद से दिल लगाने वाला

तीसरा गुण है उसका जिसका दिल मस्जिदों से जुड़ा हो। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: وَرَجُلٌ قَلْبُهُ مُعَلَّقٌ فِي الْمَسَاجِدِ "वो इंसान जिसका दिल मस्जिदों से जुड़ा हो।" मस्जिद अल्लाह का घर है, और दिल का जुड़ाव इमान की निशानी है। कुरआन में इरशाद है:

 إِنَّمَا يَعْمُرُ مَسَاجِدَ اللَّهِ مَنْ آمَنَ بِاللَّهِ وَالْيَوْمِ الْآخِرِ وَأَقَامَ الصَّلَاةَ وَآتَى الزَّكَاةَ وَلَمْ يَخْشَ إِلَّا اللَّهَ

 "अल्लाह की मस्जिदों को वही आबाद करता है जो अल्लाह और आखिरत पर ईमान रखता है, नमाज कायम करता है, जकात देता है और अल्लाह के सिवा किसी से नहीं डरता।" 

इब्ने कसीर अपनी तफसीर में लिखते हैं। : "القلب المعلق بالمساجد دليل على الإيمان القوي." "मस्जिदों से जुड़ा दिल मजबूत ईमान की दलील है।" हदीस में आता है:

 عَنْ أَبِي سَعِيدٍ الْخُدْرِيِّ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "إِذَا رَأَيْتُمُ الرَّجُلَ يَعْتَادُ الْمَسَاجِدَ فَاشْهَدُوا لَهُ بِالْإِيمَانِ"

 "जब तुम किसी को मस्जिदों का आदी देखो, तो उसके ईमान की गवाही दो।" 

हजरत अबू बक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहु अन्हु मस्जिद-ए-नबवी से इतना जुड़े थे कि हर नमाज वहां पढ़ते। अल-वाकिदी "किताब अल-मगाजी" में लिखते हैं। : "أبو بكر كان معلق قلبه بالمسجد النبوي." "अबू बक्र का दिल मस्जिद-ए-नबवी से जुड़ा था।"

  1. अल्लाह के लिए मोहब्बत करने वाले दो दोस्त

चौथा गुण है दो लोगों का जो अल्लाह के लिए मोहब्बत करें। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: وَرَجُلَانِ تَحَابَّا فِي اللَّهِ اجْتَمَعَا عَلَيْهِ وَتَفَرَّقَا عَلَيْهِ "दो लोग जो अल्लाह के लिए एक-दूसरे से मोहब्बत करें, उसी पर मिलें और उसी पर जुदा हों।" यह मोहब्बत नेकी की बुनियाद पर होती है। कुरआन में इरशाद है: وَالْمُؤْمِنُونَ وَالْمُؤْمِنَاتُ بَعْضُهُمْ أَوْلِيَاءُ بَعْضٍ "मोमिन मर्द और औरतें एक-दूसरे के दोस्त हैं।" 

इमाम तबरि अपनी तफसीर में लिखते हैं। : "المحبة في الله تظل أصحابها يوم القيامة." "अल्लाह के लिए मोहब्बत उसके चाहने वालों को क़यामत के दिन साया देगी।" हदीस में आता है:

 عَنْ مُعَاذِ بْنِ جَبَلٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ يَقُولُ: "قَالَ اللَّهُ عَزَّ وَجَلَّ: وَجَبَتْ مَحَبَّتِي لِلَّذِينَ تَحَابُّوا فِيَّ وَتَجَالَسُوا فِيَّ وَتَبَاذَلُوا فِيَّ"

"अल्लाह फरमाता है: मेरी मोहब्बत उन पर वाजिब है जो मेरे लिए मोहब्बत करें, मेरे लिए बैठें और मेरे लिए दें।" 

मिसाल: हजरत मुआज बिन जबल और हजरत अबू दर्दा रज़ियल्लाहु अन्हुमा की दोस्ती अल्लाह के लिए थी। इब्ने साद "तबकात अल-कुब्रा" में लिखते हैं। : "معاذ وابو الدرداء تحابا في الله." "मुआज और अबू दर्दा ने अल्लाह के लिए मोहब्बत की।"

  1. गुनाह की दावत ठुकराने वाला

पांचवां गुण है उसका जो सुंदर महिला की दावत ठुकराए। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: وَرَجُلٌ دَعَتْهُ امْرَأَةٌ ذَاتُ مَنْصِبٍ وَجَمَالٍ فَقَالَ إِنِّي أَخَافُ اللَّهَ "वो व्यक्ति जिसे कोई सुंदर और सम्मानित औरत गुनाह की दावत दे और वह कहे: मैं अल्लाह से डरता हूं।" यह गुण तकवा की मिसाल है। कुरआन में इरशाद है: وَلَا تَقْرَبُوا الزِّنَا ۖ إِنَّهُ كَانَ فَاحِشَةً وَسَاءَ سَبِيلًا "और जिना के करीब भी न जाओ, वह फाहिशा है और बुरा रास्ता है।" 

इब्ने कसीर "अल-बिदाया वन-निहाया" में लिखते हैं। : "من يخاف الله في الشهوات يظله الله." "जो ख्वाहिशों में अल्लाह से डरता है, अल्लाह उसे साया देगा।" हदीस में आता है:

 عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ مَسْعُودٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: "الْعَيْنَانِ تَزْنِيَانِ وَالْيَدَانِ تَزْنِيَانِ وَالرِّجْلَانِ تَزْنِيَانِ وَالْفَرْجُ يُصَدِّقُ ذَلِكَ أَوْ يُكَذِّبُهُ

 "आंखें जिना करती हैं, हाथ जिना करते हैं, पांव जिना करते हैं, और फर्ज उसे सच्चा या झूठा करता है।" 

हजरत यूसुफ अलैहिस्सलाम ने जुलैखा की दावत ठुकराई। इब्ने हिशाम "सीरत" में लिखते हैं कि यह तकवा की मिसाल है।

  1. गुप्त सदका करने वाला

छठा गुण है गुप्त दान करने वाले का। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: وَرَجُلٌ تَصَدَّقَ بِصَدَقَةٍ فَأَخْفَاهَا حَتَّى لَا تَعْلَمَ شِمَالُهُ مَا تُنْفِقُ يَمِينُهُ "वो इंसान जो इतनी गुप्त रूप से सदका करे कि उसके बाएं हाथ को भी पता न चले कि दाएं हाथ ने क्या दिया।" यह इखलास की निशानी है। कुरआन में इरशाद है: إِنْ تُبْدُوا الصَّدَقَاتِ فَنِعِمَّا هِيَ ۖ وَإِنْ تُخْفُوهَا وَتُؤْتُوهَا الْفُقَرَاءَ فَهُوَ خَيْرٌ لَكُمْ "अगर तुम सदकात जाहिर करो तो अच्छा है, और अगर छुपाकर गरीबों को दो तो यह तुम्हारे लिए बेहतर है।" 

इमाम तबरि अपनी तफसीर में लिखते हैं। : "الصدقة السرية تطفئ غضب الرب." "गुप्त सदका रब के गुस्से को बुझाती है।" हदीस में आता है:

 عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "صَدَقَةُ السِّرِّ تُطْفِئُ غَضَبَ الرَّبِّ"

 "गुप्त सदका रब के गुस्से को बुझाती है।" 

हजरत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने तीन दिन इफ्तार का खाना गुप्त रूप से गरीबों को दिया। कुरआन में सूरह अल-इंसान में तारीफ हुई।

  1. तन्हाई में अल्लाह को याद कर रोने वाला

सातवां गुण है तन्हाई में रोने वाले का। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: وَرَجُلٌ ذَكَرَ اللَّهَ خَالِيًا فَفَاضَتْ عَيْنَاهُ "वो इंसान जो तन्हाई में अल्लाह को याद करे और उसकी आंखों से आंसू बह पड़ें।" यह खौफ और मोहब्बत की निशानी है। कुरआन में इरशाद है: إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ الَّذِينَ إِذَا ذُكِرَ اللَّهُ وَجِلَتْ قُلُوبُهُمْ "मोमिन वही हैं कि जब अल्लाह का जिक्र होता है तो उनके दिल कांप जाते हैं।" 

इब्ने कसीर अपनी तफसीर में लिखते हैं। : "البكاء من خشية الله يظل صاحبه." "अल्लाह के डर से रोना उसके करने वाले को साया देगा।" हदीस में आता है:

 عَنْ أَبِي أُمَامَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ قَالَ رسول اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "لَيْسَ شَيْءٌ أَحَبُّ إِلَى اللَّهِ مِنْ قَطْرَتَيْنِ وَأَثَرَيْنِ قَطْرَةُ دُمُوعٍ مِنْ خَشْيَةِ اللَّهِ وَقَطْرَةُ دَمٍ فِي سَبِيلِ اللَّهِ"

"अल्लाह को दो बूंदों और दो निशानों से ज्यादा कुछ पसंद नहीं: अल्लाह के डर से आंसू की बूंद और अल्लाह की राह में खून की बूंद।" 

हजरत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु तन्हाई में रोते थे। इब्ने साद "तबकात" में लिखते हैं कि उनका रोना ईमान की दलील था।

 

इन सात गुणों का महत्व 

ये गुण न सिर्फ आखिरत में साया देते हैं, बल्कि दुनिया में भी अमन, सुकून और नेकी लाते हैं। इंसाफ से समाज मजबूत होता है, इबादत से दिल पाक, मस्जिद से रूह ताकतवर, मोहब्बत से रिश्ते मजबूत, परहेज से गुनाह कम, सदका से गरीबी दूर, और रोना से तौबा होती है। इब्ने कसीर "अल-बिदाया" में लिखते हैं कि ये गुण पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत पर आधारित हैं। 

 

निष्कर्ष 

क़यामत की गर्मी में ये सात साए अल्लाह की रहमत हैं। हमें चाहिए कि इन गुणों को अपनाएं और अल्लाह से तौफीक मांगें। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हदीस हमें राह दिखाती है कि नेक अमल से आखिरत की ठंडक हासिल करें। अल्लाह हमें इनमें शामिल करे। आमीन। 

संदर्भ

सूरह अल-मुतफ्फिफीन:

सही बुखारी

तफसीर तबरि

सीरत रसूलल्लाह, इब्ने हिशाम

सूरह अत-तौबा

तफसीर इब्ने कसीर

सही मुस्लिम

 अल-बिदाया वन-निहाया, इब्ने कसीर

तबकात अल-कुब्रा, इब्ने साद

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