क़ुरआन में जैव विविधता वैज्ञानिक और इस्लामी नज़रिया
आज पूरी दुनिया जैव विविधता (Biodiversity) को लेकर बहुत परेशान है। जंगल कट रहे हैं, नदियाँ गंदी हो रही हैं, कई तरह की प्रजातियाँ (species) खत्म होती जा रही हैं, और जलवायु परिवर्तन (climate change) इंसान और जानवरों—दोनों को प्रभावित कर रहा है। विज्ञान का कहना है कि धरती का संतुलन (ecological balance) तभी ठीक रहेगा जब हर जीव, हर पौधा, पानी और पूरा पर्यावरण तंत्र (ecosystem) अपनी सही हालत में बना रहे।
लेकिन दिलचस्प बात यह है कि क़ुरआन ने लगभग 1400 साल पहले ही बता दिया था कि यह दुनिया बहुत नाज़ुक संतुलन (balance) पर चल रही है, और इंसान को इस संतुलन को संभालने की ज़िम्मेदारी दी गई है। क़ुरआन में जैव विविधता (biodiversity) और प्राकृतिक संतुलन (natural balance) दोनों का खास ज़िक्र मिलता है।
क़ुरआन हमें सिखाता है कि हर जीव, पौधा, पानी और पूरा पर्यावरण — ये सब अल्लाह की निशानियाँ (Signs of Allah) हैं। इसलिए इंसान का फर्ज़ है कि वह इनकी हिफ़ाज़त (protection) करे और इस संतुलन को बनाए रखे।
कुदरत के रंग–रूप (Natural Diversity): अल्लाह की बनाई हुई निशानी
अल्लाह तआला फ़रमाता है:
وَمِنْ آيَاتِهِ خَلْقُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَاخْتِلَافُ أَلْسِنَتِكُمْ وَأَلْوَانِكُمْ
“और उसकी निशानियों में से आसमानों और ज़मीन की रचना, और तुम्हारी भाषाओं और रंगों का अलग-अलग होना है।”
(सूरह रूम, 22)
इस आयत से यह समझ में आता है कि अल्लाह की सृष्टि (creation of Allah) में हर चीज़ का अपना महत्व और उद्देश्य है। यह केवल इंसानों की विविधता (diversity) के बारे में नहीं, बल्कि पूरी सृष्टि की विविधता के बारे में है। अल्लाह ने जो दुनिया बनाई है, उसमें हर प्राणी, हर रंग, और हर रूप में फर्क है, और यही फर्क उसकी सुंदरता और शक्ति का प्रमाण है।
विज्ञान के अनुसार, धरती पर करीब 8.7 मिलियन प्रजातियाँ (species) मौजूद हैं, और हर प्रजाति का आकार, रंग और काम अलग होता है। हर जीव का अपना एक खास उद्देश्य (purpose) होता है। जैसे—कुछ प्रजातियाँ पौधों और फसलों को बढ़ने में मदद करती हैं, और कुछ धरती के संतुलन (balance) को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।
यह विविधता कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं है, बल्कि यह अल्लाह की निशानी (sign of Allah) है। अल्लाह ने हर चीज़ को एक हिकमत (wisdom) के साथ बनाया है, और उसकी सृष्टि (creation) में हर जीव की अपनी अहमियत है।
इसलिए हमें इस विविधता का सम्मान (respect) करना चाहिए और समझना चाहिए कि अल्लाह की बनाई हुई इस दुनिया की हिफ़ाज़त (protection) करना हमारी ज़िम्मेदारी है।
पानी: जीवन की बुनियाद (क़ुरआन की वैज्ञानिक सच्चाई)
क़ुरआन में अल्लाह तआला ने फ़रमाया:
وَجَعَلْنَا مِنَ الْمَاءِ كُلَّ شَيْءٍ حَيٍّ
“हमने हर जीवित चीज़ को पानी से पैदा किया।”
(सूरह अल-अंबिया, 30)
यह आयत जीवन के बारे में एक अहम वैज्ञानिक तथ्य को दर्शाती है। आज के वैज्ञानिक अध्ययन में भी यह बात कही जाती है कि जीवन की शुरुआत पानी से हुई थी। आधुनिक विज्ञान ने यह साबित किया है कि धरती पर सभी जीवों का अस्तित्व पानी के बिना संभव नहीं। पानी न केवल जीवन का आधार है, बल्कि यह जीवन की हर गतिविधि का हिस्सा है, जैसे पौधों का भोजन बनाना (Photosynthesis), जानवरों का रक्त प्रवाह, मानव शरीर की मेटाबॉलिक क्रियाएँ और समुद्री जीवों का विकास—इन सब में पानी की भूमिका अहम है।
यह आयत जीवन के बारे में एक बहुत अहम वैज्ञानिक बात बताती है। आज के वैज्ञानिक शोध (scientific studies) भी यही कहते हैं कि जीवन की शुरुआत पानी (water) से हुई थी। आधुनिक विज्ञान (modern science) ने यह साबित किया है कि धरती पर कोई भी जीव पानी के बिना ज़िंदा नहीं रह सकता।
पानी सिर्फ़ जीवन का आधार (basic requirement) नहीं है, बल्कि जीवन की हर प्रक्रिया में शामिल है—
पौधों का भोजन बनाना (Photosynthesis)
जानवरों के शरीर में रक्त प्रवाह (blood circulation)
इंसान के शरीर की चयापचय क्रियाएँ (metabolic functions)
समुद्री जीवों का विकास (marine life development)
यहाँ से हम पता चला कि अगर पानी न होता, तो दुनिया में कुछ भी बाकी न रहता। जैसे हम जानते हैं कि पानी की वजह से पेड़ों में प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) होती है, जिससे वे अपना खाना तैयार करते हैं। अब सोचिए, अगर पानी बिल्कुल न होता तो पेड़ अपना खाना कैसे बनाते? पेड़ न होते तो हवा में ऑक्सीजन भी न होती।
इसी तरह जानवरों के शरीर में रक्त (blood) का बहाव भी पानी पर चलता है। और समुद्र के अंदर जो लाखों तरह के जीव रहते हैं, उनका पूरा जीवन पानी पर ही आधारित है। अगर पानी न होता तो समुद्री जीव भी पैदा न होते। और अगर समुद्री जीव न होते, तो इंसान समेत पूरी जीवन-व्यवस्था टूट जाती, क्योंकि हमारा पूरा पर्यावरण समुद्र और पानी से जुड़ा हुआ है।
सच्चाई यह है कि अगर पानी न होता, तो न इंसान होते, न जानवर, न पेड़, न यह धरती—कुछ भी नहीं। पानी अल्लाह की वह नेमत है जिसके बिना जीवन की कल्पना भी मुमकिन नहीं।
पानी की बर्बादी = जीवन की बर्बादी:
पानी की बर्बादी यानी जीवन (life) की बर्बादी है। आज दुनिया में water scarcity (पानी की कमी) और प्रदूषण (pollution) तेजी से बढ़ रहे हैं, जिससे जैव विविधता को भारी नुकसान हो रहा है। नदियाँ इतनी गंदगी से भर चुकी हैं कि जलजीव (aquatic life) खतरे में है। समुद्र का तापमान बढ़ रहा है, जो सीधा जलवायु परिवर्तन (climate change) से जुड़ा है। प्लास्टिक का कचरा पानी में घुलकर समुद्री जीवों (marine life) को धीरे-धीरे खत्म कर रहा है। कई जगह सूखा और कई जगह बहुत ज़्यादा बारिश होना मौसमी असंतुलन (weather imbalance) का संकेत है—इन सब समस्याओं की जड़ पानी की बर्बादी और उसे सुरक्षित न रखना है।
जल संरक्षण के लिए कुरान की शिक्षाएँ
क़ुरआन हमें यह याद दिलाता है कि पानी सिर्फ एक साधारण संसाधन नहीं है, बल्कि यह अमानत है। इसका संरक्षण करना हमारी जिम्मेदारी है, ताकि जीवन का संतुलन बना रहे। पानी का सही तरीके से इस्तेमाल और उसकी हिफ़ाज़त करना हम सभी का कर्तव्य है। इस अमानत की रक्षा करके ही हम अपने और आने वाली पीढ़ियों के जीवन को सुरक्षित रख सकते हैं।
कीड़े-मकौड़ों और जानवरों का ज्ञान: कुरान की अनोखी झलक (Knowledge of Insects and Animals: A Unique Insight of the Qur’an)
क़ुरआन छोटे-छोटे जीवों का ज़िक्र करके हमें बताता है कि अल्लाह की हर मख़लूक़ में हिकमत और सीख मौजूद है। आज का विज्ञान भी यही साबित करता है कि जैव विविधता (biodiversity) में इन जीवों की भूमिका बहुत अहम है।
(A) मधुमक्खी: अनुशासन और व्यवस्था का मॉडल
अल्लाह तआला फ़रमाता है:
وَأَوْحَىٰ رَبُّكَ إِلَى النَّحْل
“और तुम्हारे रब ने मधुमक्खियों की ओर वह़ी (प्रेरणा/संदेश) भेजा।” (सूरह नहल, 68)
यह आयत बताती है कि अल्लाह ने मधुमक्खी को एक खास हिदायत दी है, जिससे उसका पूरा समाज बेहद अनुशासित और व्यवस्थित बनता है। विज्ञान भी इसकी पुष्टि करता है कि मधुमक्खियों का सिस्टम तीन मुख्य वर्गों पर चलता है—
रानी, कर्मी, और रक्षक।
हर वर्ग की जिम्मेदारियाँ अलग हैं और वे टीम की तरह मिलकर काम करती हैं।
दुनिया की लगभग 70% फसलें मधुमक्खियों के परागण (Pollination) की वजह से तैयार होती हैं। अगर मधुमक्खियाँ खत्म हो जाएँ, तो कई फल, सब्ज़ियाँ और कृषि उत्पाद पैदा नहीं हो पाएँगे, और इंसानी खाद्य व्यवस्था पर गंभीर असर पड़ेगा।
क़ुरआन हमें यह सिखाता है कि एक छोटा सा जीव भी दुनिया की बड़ी व्यवस्था में कितना अहम और जरूरी है।
(B) चींटी: समुदाय, संचार और अनुशासन (Ant: Community, Communication, and Discipline)
क़ुरआन में चींटी का एक बेहद दिलचस्प वाक़या बयान होता है। अल्लाह तआला फ़रमाता है:
قَالَتْ نَمْلَةٌ يَا أَيُّهَا النَّمْلُ ادْخُلُوا مَسَاكِنَكُمْ لَا يَحْطِمَنَّكُمْ سُلَيْمَانُ وَجُنُودُهُ وَهُمْ لَا يَشْعُرُون
(सूरह अन-नम्ल, 18)
“एक चींटी ने कहा: ऐ चींटियों! अपने घरों में दाख़िल हो जाओ, कहीं ऐसा न हो कि सुलेमान और उनका लश्कर तुम्हें बे-ख़बरी में रौंद दे।”
यह आयत दिखाती है कि चींटियों में संचार, चेतावनी देने और समुदाय को बचाने की क्षमता मौजूद है। विज्ञान भी यही बताता है कि चींटियाँ फेरोमोन (Pheromone) नाम की खास “रासायनिक भाषा” से एक-दूसरे तक संदेश पहुँचाती हैं।
उनका समाज बेहद संगठित होता है—
कुछ चींटियाँ भोजन ढूँढ़ने के लिए निकलती हैं,
कुछ सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाती हैं,
कुछ घर बनाने और रास्ते साफ़ करने का काम करती हैं,
और रानी चींटी की देखभाल अलग टीम करती है।
क़ुरआन का यह बयान आधुनिक विज्ञान के बिल्कुल अनुरूप है, और दिखाता है कि छोटे जीव भी अल्लाह की बनाई हुई हिकमत का बड़ा नमूना हैं।
(C) पक्षी: दिशा पहचानने की अल्लाही क़ुदरत
अल्लाह तआला फ़रमाता है:
أَلَمْ يَرَوْا إِلَى الطَّيْرِ مُسَخَّرَاتٍ فِي جَوِّ السَّمَاءِ ۚ مَا يُمْسِكُهُنَّ إِلَّا اللَّه
(सूरह नहल, 79)
“क्या वे नहीं देखते कि पक्षी आसमान में किस तरह उड़ रहे हैं? उन्हें हवा में थामे रखने वाला अल्लाह के सिवा कोई नहीं।”
क़ुरआन पक्षियों की उड़ान को अल्लाह की क़ुदरत की निशानी बताता है। विज्ञान भी बताता है कि पक्षियों में एक अद्भुत नेविगेशन सिस्टम (navigation system) होता है, जिसकी मदद से वे लंबी यात्राओं में रास्ता नहीं भूलते। पक्षियों में दिशा पहचानने की अद्भुत क्षमता होती है। वे पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र (Earth’s magnetic field), सूरज की रोशनी और उसकी स्थिति (sunlight & solar position), हवा के दबाव (air pressure) जैसी प्राकृतिक संकेतों को पढ़कर लंबी यात्राओं का सही रास्ता तय करते हैं। रात के समय कई प्रवासी पक्षी सितारों (stars) के सहारे हज़ारों किलोमीटर का सफ़र करते हैं, और सबसे हैरानी की बात यह है कि वे अक्सर वही मार्ग (route) चुनते हैं, जो उनके पुरखों ने सदियों से अपनाया होता है।
विज्ञान चाहे जितनी भी बातें समझा दे, लेकिन आखिर में यह हैरतअंगेज़ क्षमता उसी अल्लाह की रहनुमाई और क़ुदरत की निशानी है, जिसका ज़िक्र क़ुरआन में बहुत खूबसूरती से किया गया है।
पौधों की विविधता: क़ुरआन का सीधा संदेश
क़ुरआन कहता है:
وَمِنْ كُلِّ الثَّمَرَاتِ جَعَلَ فِيهَا زَوْجَيْنِ اثْنَيْن
“और हर फल में हमने जोड़े बनाए।”
(सूरह रा‘द, 3)
यह आयत बताती है कि अल्लाह ने पौधों और फलों में भी “जोड़े” और विविधता पैदा की है। आज का विज्ञान इसे genetic diversity (आनुवंशिक विविधता), species variation (प्रजातीय विविधता) और reproduction system (प्रजनन प्रणाली) का नाम देता है। हर पौधे का अपना तरीका होता है—कुछ बीज से बढ़ते हैं, कुछ pollination (परागण) से, कुछ vegetative propagation (वनस्पति प्रजनन) से, और कुछ हवा या पानी के ज़रिये seed dispersal (बीज फैलाव) के माध्यम से फैलते हैं।
विज्ञान यह भी बताता है कि अगर पौधों की विविधता घट जाए, तो पूरी food chain (खाद्य श्रृंखला) और ecosystem balance (पर्यावरणीय संतुलन) टूट सकता है। जंगल climate regulation (जलवायु नियंत्रण) करते हैं, बारिश लाते हैं और धरती को ठंडा रखते हैं। पौधे हमें oxygen (ऑक्सीजन), medicinal compounds (औषधीय तत्व), fruits & vegetables (फल और सब्ज़ियाँ) और मिट्टी की fertility (उर्वरता) प्रदान करते हैं।
ये सब इंसान को याद दिलाते हैं कि प्रकृति का हर हिस्सा एक biological system (जीववैज्ञानिक प्रणाली) का हिस्सा है, जिसे अल्लाह ने बेहद हिकमत और संतुलन के साथ बनाया है।
क़ुरआन का संदेश बहुत साफ़ है— अगर पौधे बचे रहेंगे, तो इंसान की ज़िंदगी भी सुरक्षित रहेगी।
प्रकृति का संतुलन: क़ुरआन का “मिज़ान” सिद्धांत (Balance of Nature: The Qur’an’s Principle of “Mizan” (Balance/Equilibrium)
अल्लाह तआला फ़रमाता है:
وَأَنْبَتْنَا فِيهَا مِنْ كُلِّ شَيْءٍ مَوْزُون
“हमने धरती में हर चीज़ को एक संतुलन के साथ पैदा किया।”
(सूरह हिज्र, 19)
क़ुरआन की यह आयत बताती है कि अल्लाह ने दुनिया की हर चीज़—पानी, हवा, पहाड़, पौधे, जानवर—सबको एक ख़ास मिज़ान (Balance/Equilibrium) के साथ बनाया है। “मौज़ून” (Measured & Ordered) का मतलब है नाप-तौल, नियम, तरतीब और व्यवस्था। यानी प्रकृति किसी अव्यवस्था पर नहीं, बल्कि एक तय सिस्टम (System) पर चल रही है। आधुनिक विज्ञान भी इसी सिद्धांत को इकोसिस्टम बैलेंस (Ecosystem Balance) कहता है—जहाँ सभी जीव, पौधे, सूक्ष्मजीव (Micro-organisms), मिट्टी, पानी और मौसम एक-दूसरे के साथ तालमेल में हों तो धरती पर जीवन स्थिर और स्वस्थ रहता है।
लेकिन जब इंसान इस संतुलन को बिगाड़ देता है, तो उसके गंभीर परिणाम सामने आते हैं—जैसे फूड चेन (Food Chain) का टूटना, शिकार और शिकारी के नेचुरल प्रिडेटर-प्रे रिलेशन (Natural Predator–Prey Relation) का बदल जाना, मौसम के पैटर्न (Weather Patterns) का गड़बड़ होना, कहीं बहुत बारिश और कहीं सूखा, जंगल कटने से ग्लोबल वॉर्मिंग (Global Warming) बढ़ना, पानी का असंतुलन, फसलों का नष्ट होना, मिट्टी का बंजर होना, और कई बार नई डिज़ीज़ व पैंडेमिक्स (Diseases & Pandemics) पैदा होना। यह सब बताता है कि प्रकृति का यह मिज़ान ही दुनिया की असल खूबसूरती और स्थिरता को बनाए रखता है।
क़ुरआन बार-बार बताता है कि धरती का मिज़ान बिगाड़ना एक तरह का फसाद (corruption) है।
इसका मतलब यह है कि पर्यावरण को नुकसान पहुँचाना केवल वैज्ञानिक समस्या नहीं, बल्कि एक नैतिक और धार्मिक ज़िम्मेदारी का उल्लंघन भी है।
इंसान की ज़िम्मेदारी: धरती का रखवाला (ख़लीफ़ा)
अल्लाह तआला फ़रमाता है:
اسْتَعْمَرَكُمْ فِيهَا
“अल्लाह ने तुम्हें (धरती पर) बसाया और इसे विकसित करने का काम सौंपा।”
(सूरह हूद, 61)
क़ुरआन साफ़ बताता है कि इंसान धरती का मालिक नहीं, बल्कि अमानतदार है। यह दुनिया अल्लाह की बनाई हुई है, और इंसान को इसमें ख़लीफ़ा यानी रखवाला बनाकर भेजा गया है। इसलिए इंसान पर यह फर्ज़ है कि वह धरती को नुकसान न पहुँचाए, बल्कि उसकी हिफाज़त करे।
इंसान की तीन बड़ी ज़िम्मेदारियाँ (Human Responsibilities toward Nature)
इस्लाम के मुताबिक इंसान पर प्रकृति की तीन अहम ज़िम्मेदारियाँ हैं। पहली है संरक्षण (Protection)—यानि जंगल, नदियाँ, पहाड़, मिट्टी, जानवर और पक्षी सब अल्लाह की मख़लूक़ हैं, और इनकी रक्षा करना, इन्हें नुकसान न पहुँचाना हमारी बुनियादी ड्यूटी है। दूसरी ज़िम्मेदारी है संतुलित उपयोग (Sustainable Use)—इस्लाम फ़िज़ूलखर्ची, बर्बादी और अनावश्यक नुक़सान को हराम कहता है। पानी, लकड़ी, ऊर्जा और ज़मीन जैसी हर नेमत का इस्तेमाल बैलेंस के साथ होना चाहिए। क़ुरआन कहता है: “अल्लाह फ़साद को पसंद नहीं करता,” यानी पर्यावरण को नुकसान पहुँचाना एक नैतिक (Ethical) और धार्मिक गलती (Religious Wrong) है। तीसरी बड़ी ज़िम्मेदारी है आने वाली नस्लों का हक़ (Intergenerational Responsibility)—हम सिर्फ आज के लिए नहीं जीते, बल्कि हमारी ज़िम्मेदारी आने वाली पीढ़ियों पर भी है। अगर हम आज पानी, पेड़-पौधे और नदी-झीलें बर्बाद कर देंगे, तो भविष्य की पीढ़ियों का हक़ मारेंगे। इस्लाम यह सिखाता है कि अगली नस्लों के लिए धरती को सुरक्षित और रहने लायक छोड़ना हमारा फ़र्ज़ है।
नबी ﷺ फ़रमाते हैं:
«إِنَّ الدُّنْيَا حُلْوَةٌ خَضِرَةٌ، وَإِنَّ اللهَ مُسْتَخْلِفُكُمْ فِيهَا، فَيَنْظُرُ كَيْفَ تَعْمَلُونَ…»
(सहीह मुस्लिम)
“दुनिया खूबसूरत और हरी-भरी है, और अल्लाह ने तुम्हें इसमें अपना प्रतिनिधि बनाया है। वह देख रहा है कि तुम इसमें कैसे अमल करते हो।”
यह हदीस बताती है कि दुनिया की सुंदरता और इसकी नेमतें इंसान के लिए परीक्षा भी हैं।
अल्लाह देख रहा है कि हम इस धरती को कैसे संभालते हैं, बेहतर बनाते हैं या नुक़सान पहुँचाते हैं।
नतीजा यह निकला के, इस्लाम इंसान को धरती का मुहाफ़िज़ (protector) बनाता है। जंगलों की रक्षा, पानी की हिफाज़त, जानवरों से रहम, और प्रकृति का संतुलन—यह सब इबादत का हिस्सा है।
जैव विविधता को नज़रअंदाज़ करने का विस्तृत अंजाम
क़ुरआन कहता है कि इंसान की गलतियों से धरती और समुद्र में फसाद फैलता है:
ظَهَرَ الْفَسَادُ فِي الْبَرِّ وَالْبَحْر
“इंसान के कामों की वजह से ज़मीन और समुद्र में फसाद फैल गया।”
(सूरह रूम, 41)
आज के वैज्ञानिक संकट साफ़ तौर पर उस सच्चाई को साबित करते हैं जिसकी चेतावनी क़ुरआन ने दी थी। इंसान की लापरवाही और प्रकृति के मिज़ान (Balance/Equilibrium) को बिगाड़ने से कई बड़े पर्यावरणीय जोखिम पैदा हो गए हैं। सबसे पहले, जंगलों का उखड़ना (Deforestation)—जो धरती के फेफड़े कहलाते हैं—तेज़ी से बढ़ रहा है। जंगल कार्बन रोकते हैं, हवा को साफ़ रखते हैं, बारिश लाते हैं और लाखों जीवों का घर हैं, लेकिन इंसानी कटाई के कारण हर साल करोड़ों पेड़ खत्म हो रहे हैं। इससे जानवर बेघर हो जाते हैं, प्रजातियाँ समाप्त हो जाती हैं, मिट्टी कटती है और जलवायु अस्थिर होती जाती है—यह मिज़ान के टूटने की बड़ी मिसाल है।
दूसरा बड़ा संकट है ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) और जलवायु परिवर्तन (Climate Change)—फैक्ट्रियों, वाहनों और उद्योगों से निकलने वाली गैसें धरती को गर्म कर रही हैं। इस बढ़ते तापमान के कारण गर्मी असामान्य रूप से बढ़ रही है, ग्लेशियर (Glaciers) पिघल रहे हैं, समुद्र का पानी बढ़ रहा है और weather patterns (मौसमी पैटर्न) बदल रहे हैं।
तीसरा मुद्दा है समुद्री जीवन का नष्ट होना (Marine Life Degradation)—समुद्रों में प्लास्टिक, तेल और केमिकल जाने से पानी ज़हरीला होता जा रहा है। Overfishing (ज़रूरत से ज़्यादा मछली पकड़ना) से food chain (खाद्य-श्रृंखला) टूट रही है, जिसका असर मछलियों, coral reefs (प्रवाल भित्तियों) और पूरे समुद्री ecosystem पर पड़ रहा है—यह वही “फसाद (Corruption/Destruction)” है जिसकी क़ुरआन में चेतावनी दी गई है।
चौथा संकट है महामारियों का बढ़ना (Zoonotic Diseases)—जब इंसान जंगलों को काट देता है, जानवरों का घर उजड़ता है और वायरस इंसानों के करीब आ जाते हैं। COVID-19, Nipah, Ebola जैसी बीमारियाँ इसी प्रक्रिया का परिणाम हैं। विज्ञान भी चेतावनी देता है कि अगर biodiversity (जैव विविधता) नष्ट हुई, तो भविष्य में और खतरनाक महामारियाँ फैल सकती हैं।
पाँचवा खतरा है बाढ़, सूखा और चक्रवात (Floods, Droughts & Cyclones)—जलवायु परिवर्तन ने मौसम के संतुलन को बिगाड़ दिया है। नतीजे के तौर पर कहीं अचानक भारी बारिश, कहीं लम्बा सूखा, कहीं तेज़ चक्रवात आते हैं और कई जगह फसलें नष्ट हो जाती हैं। पहले जहाँ 20–30 साल में एक बड़ी बाढ़ आती थी, अब हर साल आने लगी है। छठा और अत्यंत गंभीर मुद्दा है मिट्टी का मरना (Soil Degradation)—रासायनिक खाद, pesticides, और लगातार दोहन (overuse) ने मिट्टी के ज़रूरी पोषक तत्व (nutrients) को धीरे-धीरे खत्म कर दिया है। इससे फसलें कमजोर हो रही हैं, किसान गरीबी में जा रहे हैं और food security (खाद्य सुरक्षा) खतरे में पड़ गई है। अगर मिट्टी बीमार हो जाए, तो धरती की उत्पादकता लगभग समाप्त हो जाती है।
आख़िरकार, यह सब दिखाता है कि क़ुरआन ने जिस “फसाद फिल-अरज़ (Corruption on Earth)” की चेतावनी दी थी, वह आज की दुनिया में पूरी तरह नज़र आ रही है। इन सभी संकटों की जड़ इंसानी ग़लतियाँ और प्रकृति के मिज़ान को बिगाड़ना है—और जब मिज़ान टूटता है, तो धरती अपनी पूरी व्यवस्था में संकट पैदा करती है।
निष्कर्ष
क़ुरआन की नज़र में जैव विविधता (Biodiversity) सिर्फ़ विज्ञान का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह अल्लाह की कुदरत और उसकी बनाई हुई निशानियों (Signs) का बड़ा हिस्सा है। चींटी, मधुमक्खी (Bee), पक्षी (Birds), पौधे (Plants), पहाड़ (Mountains), नदियाँ (Rivers)—हर मख़लूक़ का अपना एक काम है, और सब मिलकर धरती का संतुलन (Balance) बनाए रखते हैं।
इस्लाम हमें यह सिखाता है कि इंसान धरती का ख़लीफ़ा (Steward/Caretaker) है। यानी इंसान इस दुनिया का मालिक नहीं, बल्कि अमानतदार (Trustee) और रखवाला (Guardian) है। इसलिए उसकी जिम्मेदारी है कि प्रकृति को नुकसान पहुँचाने के बजाय उसकी हिफ़ाज़त (Protection) और देखभाल (Care) करे।
क़ुरआन बार-बार मिज़ान (Balance/System) का ज़िक्र करता है। मतलब यह कि अल्लाह ने दुनिया को एक खास तरतीब, कानून और सिस्टम के साथ बनाया है, और इंसान को इसी संतुलन को बनाए रखना चाहिए।
अगर इंसान इस संतुलन को तोड़ देगा, तो धरती पर फसाद (Corruption/Disorder), बीमारियाँ और तबाही बढ़ेगी—और सबसे ज़्यादा नुकसान इंसान ही उठाएगा।
इसलिए, अल्लाह की बनाई हुई दुनिया की देखभाल करना सिर्फ़ एक environmental responsibility नहीं, बल्कि इबादत (Worship) का हिस्सा है। जो इंसान प्रकृति की हिफ़ाज़त करता है, वह दरअसल अल्लाह की दी हुई अमानत (Trust) को पूरा कर रहा होता है।
संदर्भ (References)
सूरह अर-रूम
सूरह अल-अंबिया
सूरह अन-नहल
सूरह अन-नम्ल
सूरह अर-रा‘
सूरह अल-हिज्र
सूरह हूद
सहीह मुस्लिम, हदीस संख्या 2742
Islamonweb English: Biodiversity in the Qur’an — Scientific and Qur’anic Insights
United Nations Environment Programme (UNEP) — Biodiversity Assessment Reports
World Wildlife Fund (WWF) — A
nnual Biodiversity Index and Global Living Planet Reports
लेखक
मुहम्मद कामरान
सेकेंडरी फाइनल ईयर, दारुल हुदा इस्लामिक यूनिवर्सिटी, पश्चिम बंगाल
Disclaimer
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