भोजन की बर्बादी से बचने के बारे में  क़ुरआनी आयतें और हदीसें

परिचय

भोजन इंसान के लिए अल्लाह की सबसे बड़ी नेमतों में से एक है। यही हमारी ज़िंदगी को चलाता है, हमें शक्ति देता है और हमारी सेहत को बनाए रखता है। हर दाना, हर क़तरा और हर निवाला अल्लाह की दया और कृपा है। लेकिन आज की दुनिया में भोजन की बर्बादी एक बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है। करोड़ों टन खाना रोज़ फेंक दिया जाता है, जबकि दूसरी तरफ़ करोड़ों लोग भूखे सोते हैं। यह स्थिति न सिर्फ़ समाज के लिए नुकसानदेह है, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी गलत मानी जाती है।

इस्लाम एक पूरा जीवन-मार्ग है जो इंसान को शुक्र (कृतज्ञता), सादगी और ज़िम्मेदारी सिखाता है। क़ुरआन बार-बार इंसान को समझाता है कि अल्लाह की नेमतों को बर्बाद न करो, और नबी मुहम्मद ﷺ ने अपनी ज़िंदगी के हर काम से हमें दिखाया कि खाने को कितनी इज़्ज़त और सम्मान देना चाहिए। इस्लाम में खाना बर्बाद करना सिर्फ़ एक आदत नहीं, बल्कि अल्लाह की दी हुई नेमत के प्रति नाशुक्री समझा जाता है।

क़ुरआनी मार्गदर्शन: संतुलन और बर्बादी की मनाही

क़ुरआन खाने-पीने के बारे में बहुत स्पष्ट हिदायतें देता है। अल्लाह ने खाना अपनी दया और कृपा से पैदा किया है और इंसान को इसे समझदारी से उपयोग करने का आदेश दिया है। सुरह अल-आराफ़ में फ़रमाया गया है:

وَكُلُوا وَاشْرَبُوا وَلَا تُسْرِفُوا ۚ إِنَّهُ لَا يُحِبُّ الْمُسْرِفِينَ (سورة الأعراف)

"खाओ, पियो, लेकिन फिज़ूलखर्ची (अति) मत करो। अल्लाह फिज़ूलखर्ची करने वालों को पसंद नहीं करता।" (सुरह अल-आराफ़ 7:31)

यह आयत इस्लामी शिक्षा की बुनियाद है। इसमें बताया गया है कि खाना-पीना जायज़ है, लेकिन हद से ज़्यादा खाना, ज़रूरत से ज़्यादा पकाना और भोजन को बर्बाद करना अल्लाह को पसंद नहीं है। इस्लाम इंसान को एक संतुलित (मध्यम) रास्ता अपनाने की सीख देता है — न भूखे रहो, और न फिज़ूलखर्ची करो।एक दूसरी आयत सुरह बनी इस्राईल में है:

إِنَّ الْمُبَذِّرِينَ كَانُوا إِخْوَانَ الشَّيَاطِينِ وَلَا تُبَذِّرْ تَبْذِيرًا (سورة الإسراء)

"बर्बादी मत करो। बेशक जो लोग बर्बादी करते हैं, वे शैतान के भाई हैं।" (सुरह अल-इस्रा 17:26–27)

यह बहुत कड़ी चेतावनी है। खाने को बर्बाद करना सिर्फ़ एक छोटी गलती नहीं, बल्कि एक ऐसा काम है जिसे शैतान से जोड़ा गया है। हर दाना जो हम फ़ेंकते हैं, वह किसी भूखे इंसान के पेट में जा सकता था। इस आयत से मालूम होता है कि खाना बर्बाद करना इस्लाम में कितना नापसंद है।

हदीसों से सीख: खाने का सम्मान और संयम

नबी मुहम्मद ﷺ की ज़िंदगी भोजन की कद्र करने का सबसे अच्छा उदाहरण थी। आपने कभी खाना बर्बाद नहीं किया और दूसरों को भी इसकी हिदायत दी। सहीह मुस्लिम की एक मशहूर हदीस है:

إِذَا سَقَطَتْ لُقْمَةُ أَحَدِكُمْ فَلْيُمِطْ عَنْهَا الأَذَى ثُمَّ لِيَأْكُلْهَا، وَلَا يَدَعَهَا لِلشَّيْطَانِ (صحيح مسلم)

"अगर किसी का निवाला गिर जाए, तो उसे साफ़ करे और खा ले, उसे शैतान के लिए न छोड़े।"

आज कई लोग प्लेट भर कर खाना फ़ेंक देते हैं, लेकिन नबी ﷺ ने सिखाया कि गिरी हुई लुक़मा भी बर्बाद न करो। यह खाने की इज़्ज़त का सबक है।

एक दूसरी हदीस में है:

فَإِنَّكُمْ لَا تَدْرُونَ فِي أَيِّ طَعَامِكُمُ الْبَرَكَةُ (صحيح مسلم)

"तुम नहीं जानते कि तुम्हारे खाने के किस हिस्से में बरकत है।"

इसलिए प्लेट में खाना छोड़ने और उसे कूड़े में फ़ेंकने की आदत इस्लामी सिखावन के खिलाफ़ है। नबी ﷺ ने पेट भरकर खाने से भी मना किया। सनन तिर्मिज़ी की मशहूर हदीस:

"‏ مَا مَلأَ آدَمِيٌّ وِعَاءً شَرًّا مِنْ بَطْنٍ بِحَسْبِ ابْنِ آدَمَ أُكُلاَتٌ يُقِمْنَ صُلْبَهُ فَإِنْ كَانَ لاَ مَحَالَةَ فَثُلُثٌ لِطَعَامِهِ وَثُلُثٌ لِشَرَابِهِ وَثُلُثٌ لِنَفَسِهِ ‏"‏ ‏) جامع الترمذي(

“इंसान ने अपने पेट से ज़्यादा बुरा कोई बर्तन नहीं भरा। आदम की औलाद के लिए कुछ कौर (निवाले) ही काफी हैं जो उसकी कमर को सीधा रख दें। लेकिन अगर (पूरा पेट भरना) ही पड़े, तो एक-तिहाई खाना, एक-तिहाई पानी और एक-तिहाई सांस (के लिए जगह) रखे।”

यह हदीस इंसान को संयम, सेहत और आत्मनियंत्रण सिखाती है। ज़्यादा खाना बीमारी, सुस्ती और ग़फ़लत का कारण बनता है, जबकि संतुलित भोजन इंसानी सेहत, इबादत और सोच को मज़बूत करता है। ज़्यादा खाना बर्बादी भी लाता है और बीमारी भी। इस्लाम में संयम (मॉडरेशन) इबादत का हिस्सा है।

खाने की बर्बादी के रूहानी, नैतिक और सामाजिक नुकसान

इस्लाम के नज़दीक खाने की बर्बादी सिर्फ़ ज़ाहिरी (भौतिक) नुकसान नहीं है, बल्कि यह रूहानी बीमारी भी है। क़ुरआन में अल्लाह फ़रमाता है:

لَئِنْ شَكَرْتُمْ لَأَزِيدَنَّكُمْ (سورة إبراهيم)

"अगर तुम शुक्र करोगे, तो मैं तुम्हें और ज़्यादा दूँगा।" (सुरह इब्राहीम 14:7)

शुक्र सिर्फ़ ज़बान का काम नहीं  बल्कि अमल का भी है। खाना बर्बाद करके इंसान अल्लाह की नेमत की बेअदबी करता है।

नबी ﷺ का फरमान है:

 ليسَ المؤمنُ الَّذي يشبَعُ وجارُهُ جائعٌ إلى جنبِهِ (  صحيح الجامع)

"वह मोमिन नहीं जो खुद पेट भर कर खाए और उसका पड़ोसी भूखा रहे।"

जब हमारे आसपास लोग भूखे हों, तब खाना बर्बाद करना इस्लाम की नैतिकता के खिलाफ़ है। इस्लाम सिखाता है कि खाना बांटो, दान करो, और ज़रूरतमंदों का खयाल रखो।

इसके अलावा, खाने की बर्बादी से पर्यावरण (environment) को भी नुकसान होता है जमीन, पानी, किसानों की मेहनत और समाज का पैसा सब व्यर्थ जाता है। इस्लाम इंसान को धरती का रखवाला (खलीफा) बनाता है। इसलिए बर्बादी करना इस जिम्मेदारी के भी खिलाफ़ है।

आधुनिक ज़िंदगी में खाने की बर्बादी रोकने के इस्लामी तरीके

क़ुरआन और हदीस की तालीम आज की जिंदगी में पूरी तरह लागू की जा सकती है।

कुछ आसान इस्लामी तरीके:

  1. प्लेट में उतना ही लो जितना खा सको।
  2. पहले कम लो, फिर ज़रूरत हो तो बढ़ाओ।

3.बचे हुए खाने को फेंको मत, बचाओ, दोबारा इस्तेमाल करो या किसी जरूरतमंद को दे दो।

  1. खरीदारी सोच समझकर करो।
  2. घर में सादगी का माहौल रखो, दिखावे के लिए ज़्यादा पकाने की जरूरत नहीं।
  3. शादी, दावत और इफ्तार जैसे मौकों पर खाना बर्बाद न होने दें।
  4. बच्चों को छोटे से ही खाने की कद्र सिखाएं।

नबी ﷺ ने तो बहुत सादा खाना पसंद किया  जिससे हमें सीख मिलती है कि सादगी से जीना बरकत लाता है और बर्बादी कम करता है।

हदीस है:

أَفْشُوا السَّلَامَ وَأَطْعِمُوا الطَّعَامَ (صحيح مسلم)

"सलाम फैलाओ और खाना खिलाओ।" दूसरों को खिलाना बुराई खत्म करता है और सवाब बढ़ाता है। (सहीह मुस्लिम)

एक दूसरी  रिवायत आती  है :

عَنۡ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللهُ عَنْهُ: مَا عَابَ رَسُولُ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ طَعَامًا قَطُّ، إِنِ اشۡتَهَاهُ أَكَلَهُ، وَإِنۡ كَرِهَهُ تَرَكَهُ. (صحيح البخاري و مسلم)

हज़रत अबू हुरैरा (रज़ि.) बयान करते हैं:
रसूलुल्लाह ने कभी किसी खाने में ऐब (ख़राबी) नहीं निकाली।
अगर खाना पसंद आया तो खा लिया, और अगर पसंद नहीं आया तो बिना बुराई किए छोड़ दिया।

यह हदीस हमें सिखाती है कि खाने की क़दर करनी चाहिए और कभी किसी खाने की बुराई नहीं करनी चाहिए। अगर पसंद आए तो शुक़्र के साथ खा लें, और अगर नापसंद हो तो बिना शिकायत किए छोड़ दें। इससे शिष्टाचार और शुक्रगुज़ारी पैदा होती है।

निष्कर्ष

इस्लाम खाने को इज़्ज़त देने, बरकत समझने और बर्बादी से बचने की पूरी तालीम देता है। क़ुरआन फिज़ूलखर्ची को नापसंद करता है और उसे शैतान का काम बताता है। नबी ﷺ ने हर निवाले की कद्र सिखाई और संयम (moderation) को इबादत बताया।

आज दुनिया खाने की बर्बादी की बड़ी समस्या से जूझ रही है। इस्लामी तालीमें—शुक्र, मियानापन, दया और जिम्मेदारी—इस समस्या का शानदार हल देती हैं।अगर मुसलमान इन सिखावनों को अपनी जिंदगी में अपनाएं, तो घरों से लेकर समाज तक खाने की बर्बादी कम होगी और एक बरकत वाली, न्यायपूर्ण और दयालु दुनिया बन सकती है।

 संदर्भ:

  1. सुरह अल-आराफ़ (7:31)
  2. सुरह अल-इस्रा (17:26–27)
  3. सुरह इब्राहीम (14:7)

4.सहीह मुस्लिम

  1. सुनन तिर्मिज़ी
  2. सहीह बुखारी

लेखक:

अमन रज़ा , कक्षा 11 का छात्र, क़ुरतुबा, किशनगंज, बिहार

Disclaimer

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