तौबा: क़ुरआन, हदीस और तसव्वुफ़ के आलोक में इसकी फज़ीलत

परिचय

इमाम ज़ैनुद्दीन अल-मखदूम अल-कबीर बिन अली अल-मबारी अल-मलयाबारी अल-शफी (अल्लाह उन पर रहम करे) ने अपनी किताब “हिदायतुल-अज़किया इला तारीख़ील अवलिया” में बताया है कि जो इंसान सूफ़ीवाद के रास्ते पर चलना चाहता है, उसे 9 हुक्मों का पालन करना चाहिए। हैरानी की बात है कि यह तौबा भी है, जो 9 हुक्मों में से एक है।

तौबा का सीधा मतलब है الرجوع, जिसका मतलब है लौटना। और शरीयत  में, इसका मतलब है शरीयत  के हिसाब से सभी बुरे और बुरे कामों से दूर होकर उन कामों की तरफ़ मुड़ना जो शरीयत  के हिसाब से अच्छे हैं।

तौबा की फज़ीलत

क़ुरआन में अल्लाह तआला ने तौबा करने वालों की तारीफ़ की है। जैसे कि वह फ़रमाता है:

"إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ التَّوَّابِينَ وَيُحِبُّ الْمُتَطَهِّرِينَ"
 (सूरह अल-बक़रा, 2:222)
 "निश्चित ही अल्लाह तौबा करने वालों और शुद्ध रहने वालों को पसंद करता है।"

यह आयत हमें बताती है कि जो व्यक्ति सच्चे दिल से अपनी गलती पर पछताता है और तौबा करता है, अल्लाह उसे अपनी रहमत से नवाज़ता है। तौबा न केवल गुनाहों से मुक्ति का ज़रिया है, बल्कि यह इंसान को शुद्ध भी बनाती है, ताकि वह अल्लाह के करीब पहुंच सके।

रसूलुल्लाह ﷺ ने तौबा की फज़ीलत को इस हदीस में बयान किया:

"التَّائِبُ مِنَ الذَّنْبِ كَمَن لَّا ذَنْبَ لَهُ"
 (ابن ماجة)

 "जो व्यक्ति तौबा करता है, वह ऐसा है जैसे उसने कोई गुनाह नहीं किया।" (इब्न माजा)

इस हदीस से यह समझ आता है कि तौबा के बाद इंसान पूरी तरह से अच्छा हो जाता है, जैसे कि उसने कभी गुनाह किया ही नहीं। यह अल्लाह की यह बहुत बड़ी एहसान की निशानी है, जो किसी भी सच्चे तौबा करने वाले को माफ़ कर देता है।

अल्लाह ने सूरह नूर में एक और आयत में तौबा के बारे में कहा:

"وَتُوبُوا إِلَى اللَّهِ جَمِيعًا أَيُّهَا الْمُؤْمِنُونَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ"
 (सूरह नूर, 24:31)
 " ईमान वालों! तुम सब अल्लाह की तरफ तौबा करो ताकि तुम कामयाब हो जाओ।"

यह आयत साफ़ तौर पर बताती है कि तौबा केवल दीन की सफलता का रास्ता नहीं है, बल्कि यह हमारी दुनिया और आख़िरत दोनों में कामयाबी का रास्ता है। तौबा करने से इंसान का दिल पाक होता है और अल्लाह की रहमत का दरवाज़ा उसके लिए खुल जाता है।

रसूलुल्लाह ﷺ ने एक और हदीस में तौबा के दरवाज़े की खुली स्थिती के बारे में बताया:

"إِنَّ اللَّهَ يَبْسُطُ يَدَهُ بِالْلَّيْلِ لِيَتُوبَ مُسِيءُ النَّهَارِ، وَيَبْسُطُ يَدَهُ بِالنَّهَارِ لِيَتُوبَ مُسِيءُ اللَّيْلِ، حَتَّى تَطْلُعَ الشَّمْسُ مِنْ مَغْرِبِهَا"
 (सहीह मुस्लिम)
 "निश्चित रूप से अल्लाह तआला रात के समय अपना हाथ फैलाते हैं, ताकि दिन के गुनाहगार तौबा कर सकें, और वह दिन में अपना हाथ फैलाते हैं, ताकि रात के गुनाहगार तौबा कर सकेंयहाँ तक कि सूरज पश्चिम से उगने लगे।"

यह हदीस हमें यह बताती है कि अल्लाह ने तौबा करने का दरवाज़ा रात और दिन दोनों समय खोल रखा है। इंसान चाहे जब अपनी गलती पर अफसोस कर सकता है और सच्चे दिल से अल्लाह से माफी माँग सकता है, और अल्लाह उसकी तौबा को कबूल करता है।

तौबा एक ऐसी राह है जो इंसान को गुनाहों से पाक करती है और उसे अल्लाह के करीब ले जाती है। यह हमें अपनी गलतियों पर पछताने और फिर से सही रास्ते पर चलने का एक मौका देती है।

तौबा की फज़ीलत पर एक मशहूर हदीस की कहानी

रसूलुल्लाह ﷺ ने एक असरदार कहानी बयान की है जो सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम दोनों में मौजूद है।

वह यह है:

एक व्यक्ति था जिसने 99 लोगों की हत्या कर दी थी। एक दिन उसके दिल में ख्याल आया कि क्या उसकी तौबा कबूल हो सकती है? उसने गाँव वालों से पूछा कि इस गाँव में सबसे बड़ा आलिम कौन है? लोगों ने कहा, "एक राहिब है" (जो बानी इस्राईल के दौर का एक जाहीद अबिद था)।

वह राहिब के पास गया और बोला, “मैंने 99 लोगों को मार डाला है, क्या मेरी तौबा हो सकती है?”
 राहिब ने कहा, “नहीं! तेरी तौबा नहीं हो सकती।”

यह सुनकर वह आदमी ग़ुस्से में आ गया और राहिब को भी मार डाला — यानी अब वह 100 लोगों का क़ातिल बन गया।

फिर उसने फिर से लोगों से पूछा, “क्या कोई ऐसा है जो सच्चा आलिम हो?”
 लोगों ने बताया कि एक आलिम व्यक्ति है। वह उसके पास पहुँचा और वही सवाल किया।

आलिम ने जवाब दिया:
 “हाँ, तेरी तौबा हो सकती है। लेकिन तू अपने इस बुरे माहौल से निकलकर एक नेक लोगों वाले गाँव में चला जा। वहाँ रहकर अल्लाह की इबादत करना, क्योंकि तेरा मौजूदा इलाका तुझको गुनाह की तरफ ले जाता है।”

वह आदमी अलिम की बात मानकर अपने गाँव से चल पड़ा। रास्ते में ही उसकी मौत हो गई।

अब फ़रिश्ते आए — जन्नत के और जहन्नम के।
 जन्नत के फ़रिश्ते बोले: "यह बंदा तौबा करके अल्लाह की तरफ लौट रहा था, इसलिए इसका ठिकाना जन्नत है।" जबकि जहन्नम के फ़रिश्ते बोले: "इसने 100 लोगों की हत्या की, यह जहन्नम का हक़दार है।"

दोनों के बीच झगड़ा हुआ। तब अल्लाह ने एक और फ़रिश्ता भेजा, जिसने कहा:
“तुम दोनों झगड़ा मत करो, दोनों जगह का फ़ासला नापो — अगर यह नेक लोगों वाले गाँव के करीब है तो यह जन्नती है, और अगर अपने पुराने गाँव के करीब है तो जहन्नमी।"

जब नापा गया तो पाया गया कि यह नेक लोगों वाले गाँव के ज़्यादा करीब था।
 अल्लाह ने रहमत दिखाते हुए उसे माफ़ कर दिया और फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि उसे जन्नत में दाख़िल कर दो।

(सहीह बुखारी, किताबुत तौबा)

यह कहानी तौबा की ताकत को ज़िंदा उदाहरण की तरह सामने रखती है — चाहे इंसान कितनी भी बड़ी गलती कर ले, अगर वह सच्चे दिल से लौट आए तो अल्लाह उसे माफ़ कर देता है।

तौबा की असली शर्तें

तौबा करने के लिए कुछ जरूरी बातें हैं जिनका ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। जब हम तौबा करते हैं, तो ये शर्तें हमें सही रास्ते पर चलने में मदद करती हैं और हमारी तौबा को अल्लाह के पास क़ुबूल करवाती हैं।

  1. गुनाह पर पछतावा – तौबा की सबसे पहली शर्त है कि हमें दिल से पछताना चाहिए कि हमने गुनाह किया। जब हम अपनी गलती को समझकर अफसोस करते हैं, तो हमारी तौबा सच्ची होती है।

  2. इरादा – हमें ये पक्का इरादा करना चाहिए कि हम अब वही गुनाह दोबारा नहीं करेंगे। अगर हम तौबा करते हैं और फिर वही गुनाह करते हैं, तो हमारी तौबा पूरी नहीं मानी जाएगी।

  3. गुनाह छोड़ना – जब हम तौबा करते हैं, तो हमें अपने गुनाहों से दूर रहना चाहिए। अगर किसी ने झूठ बोला, ग़ीबत की या कोई और गुनाह किया, तो उसे छोड़ देना चाहिए। सच्ची तौबा तब होती है जब हम अपने गुनाहों से पूरी तरह दूर हो जाते हैं।

  4. हक़ अदा करना – अगर किसी का हक़ मारा है, जैसे किसी का दिल दुखाया या उसका माल लिया है, तो वह हक़ वापस करना चाहिए। तौबा का मतलब सिर्फ़ अल्लाह से माफी मांगना नहीं, बल्कि किसी का अधिकार वापस करना भी है।

इमाम ज़ैनुद्दीन अल-मख़दूम अल-कबीर अल-मलयाबरी रहमतुल्लाहि हलैह ने तौबा की इन शर्तों को एक शेर में बहुत सुंदर तरीके से समझाया है:

اُطلبْ متاباً بالنَّدامةِ مُقلِعاً
 وبعزمِ تركِ الذنبِ في ما استقبلا
 وبراءةٍ من كلِّ حقٍّ آدمِيٍّ
 ولهذهِ الأركانِ فارعِ وكمِّلا

"अफ़सोस के साथ तौबा करो,
 
गुनाह को छोड़ने का पक्का इरादा करो,
 
और किसी का भी हक़ लौटाकर,
 
इन शर्तों को पूरा करो और अच्छी तरह से निभाओ।"

इस शेर से हम समझ सकते हैं कि तौबा सच्ची तभी होती है जब हम गुनाहों से पूरी तरह दूर हो जाएं और अगर किसी का हक़ मारा है, तो उसे वापस करें। अगर हम इन शर्तों का पालन करें, तो अल्लाह हमारी तौबा को कबूल करता है और हमें अपनी रहमत से नवाज़ता है।

 

तौबा के लाभ

  1. रूहानी सुकून: तौबा करने से इंसान का दिल शांति और सुकून पाता है। जब हम अपने गुनाहों पर पछताते हैं और अल्लाह से माफी मांगते हैं, तो दिल की परेशानियाँ दूर हो जाती हैं और हमें एक ताजगी का एहसास होता है।

  2. अल्लाह की रहमत: तौबा करने से अल्लाह अपने बंदों को माफ़ करता है और उन्हें एक नई ज़िंदगी देता है। यह अल्लाह की असीम रहमत का एक बहुत बड़ा आशीर्वाद है, जिससे इंसान को दूसरा मौका मिलता है।

  3. सफलता और बरकत: तौबा करने से इंसान को न केवल आख़िरत में सफलता मिलती है, बल्कि अल्लाह उसे इस दुनिया में भी सफलता और बरकत देता है। तौबा करने से जीवन में खुशियाँ और समृद्धि आती है।

तौबा इंसान को सही रास्ते पर चलने और अल्लाह के करीब आने का एक रास्ता है।

निष्कर्ष

तौबा इस्लाम की सबसे खूबसूरत नेमतों में से एक है, जो इंसान को उसकी गलतियों से आज़ाद करती है और उसे अल्लाह के करीब ले जाती है। यह हमें सिखाती है कि कोई भी गुनाह इतना बड़ा नहीं कि अल्लाह के सामने तौबा करने से माफ़ न किया जा सके। हमें रोज़ाना अपने गुनाहों पर विचार करना चाहिए और सच्चे दिल से तौबा करनी चाहिए। तौबा सिर्फ़ अल्लाह से माफी मांगने का नाम नहीं, बल्कि अपनी ज़िंदगी को सही दिशा में बदलने का भी नाम है। तौबा का दरवाज़ा तब तक खुला रहता है जब तक सूरज पश्चिम से नहीं निकल आता, यानी जब तक हमारी मौत न आ जाए। इसलिए, हमें अपनी ज़िंदगी में तौबा की अहमियत को समझना चाहिए और इसे अपनाकर अपनी आत्मा को पाक करना चाहिए।

संदर्भ (References):

  1. सूरह  अल-बकरा
  2.  सूरह अन-नूर
  3.  इमाम ज़ैनुद्दीन अल-मख़दूम अल-कबीर अल-मलयाबरी अल-शाफ़ी। (साल)। हिदायतुल अज़किया इल तरीकिल अवलिया
  4. सहीह मुस्लिम
  5.  सहीह बुखारी

 

मुहम्मद कामरान

सेकेंडरी फाइनल ईयर, दारुल हुदा इस्लामिक यूनिवर्सिटी, पश्चिम बंगाल

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