सलाहुद्दीन अय्यूबी: इस्लाम का महान योद्धा और मस्जिद-ए-अक्सा का फातिह

परिचय

सलाहुद्दीन अय्यूबी (1137-1193 ई.) इस्लाम के इतिहास में एक ऐसे शख्स हैं, जिन्हें न सिर्फ मुसलमान बल्कि गैर-मुसलमान भी सम्मान की नजर से देखते हैं। उनका पूरा नाम अन-नासिर सलाहुद्दीन यूसुफ इब्न अय्यूब था, और वे कुर्द मूल के सुन्नी मुसलमान थे। सलाहुद्दीन ने मिस्र और सीरिया में अय्यूबी सल्तनत की नींव रखी और तीसरे सलीबी जंग में यरूशलम को सलीबियों से आजाद करवाया। उनकी बहादुरी, उदारता और इंसाफ के लिए दुनिया भर में मशहूर हैं। वे सिर्फ एक योद्धा नहीं थे, बल्कि एक नेक आध्यात्मिक इंसान भी थे, जो अल्लाह के रास्ते में जिहाद करते थे और मुसलमानों को एकजुट करने में कामयाब हुए।

सलाहुद्दीन की जिंदगी हमें सिखाती है कि सच्चा मुसलमान वह है जो अल्लाह की नेमतों पर शुक्र करे, दुश्मनों से लड़ते हुए भी इंसाफ करे, और उम्मत को एकजुट रखे। वे इस्लाम के लिए एक मिसाल हैं, जिन्होंने हक का जिहाद  लोगों के जरिए मुसलमानों की इज्जत बचाई। आइए, उनकी जिंदगी की शुरुआत से शुरू करते हैं।

 

सलाहुद्दीन का प्रारंभिक जीवन

सलाहुद्दीन का जन्म 1137 ई. में इराक के तिकरीत शहर में हुआ था। उनके वालिद, नजमुद्दीन अय्यूब, तिकरीत के गवर्नर थे। उनका परिवार कुर्द था, और वे सुन्नी इस्लाम को मानने वाले थे। बचपन से ही सलाहुद्दीन को धार्मिक और सैन्य शिक्षा दी गई। वे बालबेक और दमिश्क में पले-बढ़े, जहां उन्होंने कुरान, हदीस, फिकह और जंगी रणनीति सीखी। उनके चाचा असदुद्दीन शीरकूह ने उन्हें सैन्य ट्रेनिंग दी। सलाहुद्दीन की तालीम में इल्म हासिल करने पर जोर था, जो इस्लाम की बुनियाद है।कुरान में इल्म की अहमियत पर इरशाद है:

اقْرَأْ بِاسْمِ رَبِّكَ الَّذِي خَلَق

"पढ़ो अपने रब के नाम से, जिसने पैदा किया।" [1]

यह आयत बताती है कि इल्म हासिल करना मुसलमान का फर्ज है। सलाहुद्दीन ने इसी पर अमल किया। वे मदरसे में पढ़े, जहां नूरुद्दीन जंगी जैसे बड़े मुस्लिम लीडर तैयार हुए। उनकी जिंदगी में इल्म और अमल का मेल था। हदीस में फरमाया गया:

عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ عُمَرَ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "إِنَّ اللَّهَ يُحِبُّ الْعَبْدَ الْمُؤْمِنَ الَّذِي يَجْتَهِدُ فِي طَلَبِ الْعِلْمِ"

तर्जुमा: "अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ि.) ने कहा: रसूलल्लाह (स.अ.व.) ने फरमाया: अल्लाह उस मोमिन बंदे से मोहब्बत करता है, जो इल्म हासिल करने में मेहनत करता है।" [2]

सलाहुद्दीन की शुरुआती जिम्मेदारी तब शुरू हुई जब वे युवा थे। उनके चाचा शीरकूह ने उन्हें मिस्र में सैन्य अभियानों में शामिल किया। 1164 ई. में, नूरुद्दीन जंगी के हुक्म पर, शीरकूह और सलाहुद्दीन मिस्र गए, जहां फातिमी खलीफा अल-आदिद के वजीर की नियुक्ति को लेकर झगड़ा था। सलाहुद्दीन ने अपनी सूझबूझ और बहादुरी से मिस्र में सुन्नी हुकूमत को मजबूत किया। 1169 में शीरकूह की मौत के बाद, सलाहुद्दीन को मिस्र का वजीर बनाया गया। उन्होंने फातिमी शिया खिलाफत को खत्म कर सुन्नी इस्लाम को बहाल किया, और सुन्नी अय्यूबी सल्तनत को क़ायम किया जो इस्लाम में उनके बड़े योगदान की शुरुआत थी। इस दौरान उन्होंने मिस्र की सेना को मजबूत किया और आर्थिक सुधार किए, जैसे नहरें बनवाईं और मदरसे कायम किए। उनकी ये कोशिशें मुसलमानों को एकजुट करने की दिशा में थीं।

उनके जीवनीकार बहाउद्दीन इब्न शद्दाद अपनी किताब "अस-सिरा अस-सलाहुद्दीनिया" में उनकी शुरुआती जिंदगी के बारे में लिखते हैं।: "كان صلاح الدين يوسف بن أيوب من أسرة كردية، وتربى في دمشق وبعلبك، حيث تعلم القرآن والحديث والفقه."

"सलाहुद्दीन यूसुफ इब्न अय्यूब एक कुर्द परिवार से थे, और दमिश्क तथा बालबेक में पले-बढ़े, जहां उन्होंने कुरान, हदीस और फिकह सीखा।" [3]

यह उद्धरण बताता है कि उनकी तालीम धार्मिक थी, जो उनकी नेक जिंदगी की बुनियाद बनी। युवावस्था में ही उन्होंने साबित कर दिया कि वे एक नेक लीडर हैं, जो अल्लाह के रास्ते पर चलते हैं।

 

सलाहुद्दीन की सैन्य उपलब्धियां

सलाहुद्दीन को सबसे ज्यादा शोहरत 1187 ई. में हत्तीन की जंग और यरूशलम की फतह से मिली। उन्होंने सलीबियों (ईसाई सेनाओं) को हराकर मस्जिद-ए-अक्सा को आजाद करवाया, जो मुसलमानों के लिए तीसरा सबसे पवित्र जगह है। उनकी सैन्य कामयाबियां इस्लाम के लिए बड़ा योगदान हैं, क्योंकि उन्होंने मुसलमानों की जमीनों को दुश्मनों से बचाया।

कुरान में इरशाद है:

وَأَعِدُّوا لَهُمْ مَا اسْتَطَعْتُمْ مِنْ قُوَّةٍ وَمِنْ رِبَاطِ الْخَيْلِ تُرْهِبُونَ بِهِ عَدُوَّ اللَّهِ وَعَدُوَّكُمْ

"और तुम अपनी ताकत और घोड़ों की तादाद जितनी हो सके तैयार करो, ताकि इसके जरिए तुम अल्लाह के दुश्मनों और अपने दुश्मनों को डराओ।" [4]

यह आयत सलाहुद्दीन की जिंदगी में अमल हुई। उन्होंने सेना को तैयार किया और मुसलमानों को एकजुट किया। हत्तीन की जंग (4 जुलाई 1187) उनकी सबसे बड़ी जीत थी। इसमें उन्होंने सलीबियों की बड़ी सेना को हराया। सलाहुद्दीन ने रणनीति से सलीबियों को पानी और छाया से महरूम कर दिया, जिससे उनकी सेना कमजोर हो गई। इस जंग में सलीबियों के गाय डी लुज़िन्यां (Guy de Lusignan) और रेनॉल्ड डी चैटिलॉन को कैद किया गया। रेनॉल्ड को सलाहुद्दीन ने खुद कत्ल किया क्योंकि वह मुसलमानों का दुश्मन था और पैगंबर (स.अ.व.) के काफिले पर हमला किया था।

 

इब्न अल-असीर अपनी किताब "अल-कामिल फी अत-तारीख" में हत्तीन की जंग का जिक्र करते हैं।: "كانت هذه الوقعة من أعظم الوقائع، وكانت مصيبة لم يصب الإفرنج مثلها." "यह जीत सबसे बड़ी घटनाओं में से एक थी। यह एक ऐसी आपदा थी जिससे फ्रैंक (सलीबी) उबर नहीं सके।" [5]

यह उद्धरण बताता है कि हत्तीन की जंग ने सलीबियों को कमजोर कर दिया। इस जीत के बाद, सलाहुद्दीन ने एकरे, बैरूत, जाफा जैसे शहरों पर कब्जा किया और यरूशलम को घेर लिया।

हत्तीन की जंग से पहले सलाहुद्दीन ने सीरिया और मिस्र को एक किया। 1174 में नूरुद्दीन जंगी की मौत के बाद, उन्होंने दमिश्क पर कब्जा किया और जंगीदों को हराया। 1183 में उन्होंने अलेप्पो पर कब्जा किया, जो उनके लिए बड़ा कदम था। इन कामयाबियों से मुसलमानों की ताकत बढ़ी और सलीबियों का डर बढ़ा। सलाहुद्दीन की सैन्य उपलब्धियां सिर्फ जंगें जीतना नहीं थीं, बल्कि उन्होंने मदरसे, अस्पताल और पुल बनवाए, जो इस्लाम की तरक्की के लिए थे। उन्होंने जिहाद को आध्यात्मिक और सैन्य दोनों रूप दिया, जो इस्लाम में उनके योगदान को दिखाता है।

 

सलाहुद्दीन का आध्यात्मिक जीवन

 

सलाहुद्दीन सिर्फ एक योद्धा नहीं, बल्कि एक बहुत बड़ा आध्यात्मिक शख्स भी थे। वे नमाज, रोजा और कुरान की तिलावत के बहुत पाबंद थे। कहा जाता है कि वे तहज्जुद की नमाज पढ़ने वालों को अपनी सेना में शामिल करते थे, क्योंकि उनका मानना था कि नफ्स की जंग बाहरी जिहाद की बुनियाद है। उनकी आध्यात्मिक जिंदगी इस्लाम में बड़ा योगदान है, क्योंकि उन्होंने मुसलमानों को ईमान की ताकत सिखाई।

हदीस में फरमाया गया:

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "مَنْ قَامَ رَمَضَانَ إِيمَانًا وَاحْتِسَابًا غُفِرَ لَهُ مَا تَقَدَّمَ مِنْ ذَنْبِهِ"

"अबू हुरैरह (रज़ि.) ने कहा: रसूलल्लाह (स.अ.व.) ने फरमाया: जो शख्स रमजान में ईमान और सवाब की उम्मीद के साथ रात को नमाज पढ़े, उसके पिछले गुनाह माफ कर दिए जाएंगे।" [6]

 

सलाहुद्दीन इस पर अमल करते थे। वे रात को तहज्जुद पढ़ते और दिन में जिहाद करते। उनकी कुरान के प्रति मोहब्बत का शौक था। वे ऐसे इमाम चुनते थे जिनकी तिलावत खूबसूरत और किरदार नेक हो। एक बार दमिश्क में उन्होंने एक इमाम को सुना और उसे अपनी मस्जिद में नियुक्त किया।

 

बहाउद्दीन इब्न शद्दाद अपनी किताब में सलाहुद्दीन के आध्यात्मिक चरित्र पर लिखते हैं। मूल "كان السلطان رحمه الله عالماً بالقرآن، يحب سماع التلاوة، وكان يصلي بانتظام، ويحتقر الفلاسفة والمنجمين."

"सल्तन, अल्लाह उन पर रहम करे, कुरान के जानकार थे, तिलावत सुनना पसंद करते थे, नियम से नमाज पढ़ते थे, और फिलॉसफरों तथा ज्योतिषियों को नापसंद करते थे।" [7]

यह उद्धरण उनकी पवित्रता दिखाता है। सलाहुद्दीन ने सुन्नी मदरसे बनवाए और सूफी खानकाहों को बढ़ावा दिया, ताकि मुसलमानों में ईमान मजबूत हो। उनकी जिंदगी में इबादत और अमल का बैलेंस था, जो आज के मुसलमानों के लिए मिसाल है।

सलाहुद्दीन और मस्जिद-ए-अक्सा

मस्जिद-ए-अक्सा को आजाद करवाना सलाहुद्दीन का सबसे बड़ा कारनामा था। 1099 ई. में सलीबियों ने यरूशलम पर कब्जा कर लिया था और मस्जिद-ए-अक्सा को अपवित्र किया था। सलाहुद्दीन ने इसे अपनी जिंदगी का मकसद बनाया और 1187 में आजाद करवाया। यह इस्लाम में उनका बड़ा योगदान है, क्योंकि मस्जिद-ए-अक्सा मुसलमानों का किबला-ए-अव्वल है।

अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है:

سُبْحَانَ الَّذِي أَسْرَىٰ بِعَبْدِهِ لَيْلًا مِنَ الْمَسْجِدِ الْحَرَامِ إِلَى الْمَسْجِدِ الْأَقْصَى الَّذِي بَارَكْنَا حَوْلَهُ

"पाक है वह (अल्लाह), जिसने अपने बंदे को रात में मस्जिद-ए-हराम से मस्जिद-ए-अक्सा तक सैर कराई, जिसके आसपास हमने बरकत दी।" [8]

यह आयत मस्जिद-ए-अक्सा की अहमियत बताती है। 2 अक्टूबर 1187 को सलाहुद्दीन ने यरूशलम पर कब्जा किया। उन्होंने सलीबियों से बातचीत की और शहर को बिना ज्यादा खूनखराबे के हासिल किया। उनकी उदारता की मिसाल यह थी कि उन्होंने ईसाइयों को सुरक्षित जाने की इजाजत दी और उनके धार्मिक स्थलों की हिफाजत की।

बहाउद्दीन इब्न शद्दाद यरूशलम की फतह पर लिखते हैं। "دخل السلطان المدينة يوم الجمعة، وصلى الجمعة في المسجد الأقصى، وكان يوماً مشهوداً."

"सल्तन ने शहर में शुक्रवार को प्रवेश किया, और मस्जिद-ए-अक्सा में जुमे की नमाज अदा की, और वह एक गवाही वाला दिन था।" [9]

 

यह उद्धरण फतह की खुशी दिखाता है। फतह के बाद उन्होंने मस्जिद-ए-अक्सा को साफ किया और जुमे की नमाज अदा की। यह घटना मुसलमानों के लिए प्रेरणा है। मस्जिद-ए-अक्सा की आजादी ने मुसलमानों को एकजुट किया और जिहाद की रूह पैदा की।

सलाहुद्दीन का इंसाफ और उदारता

सलाहुद्दीन इंसाफ और रहमदिली के प्रतीक थे। वे दुश्मनों के साथ भी नेक सलूक करते थे। उनकी उदारता की वजह से यूरोप में भी उन्हें "नाइटली गुणों" का मालिक माना जाता था।

हदीस में फरमाया गया:

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "الْمُسْلِمُ مَنْ سَلِمَ الْمُسْلِمُونَ مِنْ لِسَانِهِ وَيَدِهِ"

तर्जुमा: "अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है के: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: मुसलमान वह है, जिसके जुबान और हाथ से दूसरे मुसलमान महफूज रहें।" [10]

 

सलाहुद्दीन इस पर अमल करते थे। तीसरे सलीबी जंग में उनका सामना इंग्लैंड के बादशाह रिचर्ड द लायनहार्ट से हुआ। 1192 में उन्होंने जाफा की संधि की, जिसमें यरूशलम मुसलमानों के पास रहा, लेकिन ईसाई हाजियों को आने की इजाजत दी। जब रिचर्ड बीमार पड़ा, तो सलाहुद्दीन ने अपना हकीम और दवाइयां भेजीं।

 

स्टैनली लेन-पूल अपनी किताब "Saladin and the Fall of the Kingdom of Jerusalem" में रिचर्ड के साथ उदारता पर लिखते हैं। "When Richard was ill with fever, Saladin sent him peaches and pears and snow from the mountains to cool his drinks." "जब रिचर्ड बुखार से बीमार था, तो सलाहुद्दीन ने उसे आड़ू और नाशपाती भेजे और पहाड़ों से बर्फ भेजी ताकि उसके पेय ठंडे हो सकें।" [11]

यह उद्धरण उनकी नेकदिली दिखाता है। हत्तीन की जंग में उन्होंने गाय लुज़िन्यां को रिहा किया, लेकिन उसने धोखा दिया। फिर भी सलाहुद्दीन ने इंसाफ का रास्ता नहीं छोड़ा। उनका इंसाफ इस्लाम की सच्ची तस्वीर था।

 

सलाहुद्दीन की मौत और विरासत

सलाहुद्दीन की मौत 4 मार्च 1193 को दमिश्क में हुई। मरते वक्त उनके पास इतना माल नहीं था कि कफन खरीदा जा सके, क्योंकि उन्होंने दौलत लोगों को दे दी थी। वे दमिश्क में उमय्याद मस्जिद के पास दफन हैं। उनकी मौत के बाद अय्यूबी सल्तनत उनके बेटों ने संभाली, लेकिन वे कामयाब नहीं हुए।

उनकी विरासत आज भी जीवित है। वे इस्लाम के सबसे बड़े योद्धा हैं, जिन्होंने यरूशलम आजाद करवाया और इंसाफ की मिसाल कायम की। उनकी जिंदगी हमें सिखाती है कि सच्चा जिहाद नफ्स और दुश्मनों दोनों से लड़ना है।

 

निष्कर्ष

सलाहुद्दीन अय्यूबी इस्लाम के इतिहास में चमकता सितारा हैं। उनकी बहादुरी, इंसाफ और आध्यात्मिकता ने उन्हें मशहूर किया। हत्तीन की जंग, यरूशलम की फतह और रिचर्ड के साथ उदारता उनकी मिसालें हैं। वे दिखाते हैं कि सच्चा मुसलमान अल्लाह की राह में मेहनत करे और इंसाफ करे। आज के दौर में उनकी जिंदगी एकता और इंसाफ की प्रेरणा देती है। अल्लाह हमें उनकी तरह नेक बनाए।

 

फुटनोट्स और संदर्भ

  1. सूरह अलक: 1
  1. सुनन इब्ने माजा
  1. अस-सिरा अस-सलाहुद्दीनिया, बहाउद्दीन इब्न शद्दाद,
  1. सूरह अल-अनफाल: 60
  1. अल-कामिल फी अत-तारीख, इब्न अल-असीर, जिल्द 10,
  1. सही बुखारी,
  1. अस-सिरा अस-सलाहुद्दीनिया, बहाउद्दीन इब्न शद्दाद
  1. सूरह अल-इसरा: 1
  1. अस-सिरा अस-सलाहुद्दीनिया, बहाउद्दीन इब्न शद्दाद
  1. सही बुखारी

11. सालादिन एंड द फॉल ऑफ द किंगडम ऑफ जेरूसलम, स्टैनली लेन-पूल

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