केरल के मुसलमानों में पानाक्काड परिवार की परंपरा और विरासत
परिचय
केरल के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में कुछ विशिष्ट परिवार ऐसे रहे हैं, जिन्होंने सिर्फ़ धार्मिक नेतृत्व ही नहीं किया, बल्कि राजनीति, शिक्षा, संस्कृति और सोच-विचार के मैदान में भी बड़ा असर छोड़ा। इन परिवारों में सबसे ज्यादा मशहूर और सम्मानित नाम है पानाक्काड सादात परिवार हैं। इस परिवार ने केरल के मुसलमानों की आध्यात्मिक (रूहानी) और बौद्धिक (इल्मी) सोच (Spiritual and Education Thought) को बनाने में बहुत अहम भूमिका निभाई है।
उन्होंने सिर्फ मुसलमानों का ही नेतृत्व नहीं किया, बल्कि हिंदू, ईसाई, जैन और बौद्ध—सब के साथ मोहब्बत, भाईचारा और मिलकर रहने की बेहतरीन मिसाल कायम की।
पानाक्काड परिवार का इतिहास और धार्मिक नेतृत्व
जिस परिवार को केरल की जनता आदरपूर्वक “थंगल परिवार” के नाम से जानती है, वह मूल रूप से हद्रमौत (वर्तमान यमन) से आया हुआ एक सय्यिद परिवार है। यह परिवार पैग़ंबर मुहम्मद ﷺ की वंशज है। 18वीं शताब्दी में सय्यिद अली शिहाबुद्दीन हद्रमौत से दक्षिण भारत पहुँचे और केरल में बस गए।
यह परिवार सूफ़ीवाद के बा-अलवी सिलसिले से जुड़ा हुआ था और वे इमाम शाफ़ई के फ़िक़्ह को मानने वाले थे। इसी वजह से वे मालाबार के स्थानीय मुस्लिम समाज से जल्दी घुल-मिल गए और लोगों ने उन्हें सम्मान दिया।
सय्यिद अली शिहाबुद्दीन सिर्फ़ एक धार्मिक विद्वान नहीं थे, बल्कि समाज सुधारक, सूफ़ी और इस्लाम का पैग़ाम फैलाने वाले नेता थे। उन्होंने केरल के मुसलमानों में नई जागरूकता और नई सोच पैदा की। उनके बाद आने वाले लोगों ने भी इसी रूहानी परंपरा को जारी रखा और सिर्फ़ धार्मिक शिक्षा ही नहीं दी, बल्कि समाज की राहनुमाई, फ़िक़्ह (धार्मिक कानून) पर बातचीत, और लोगों के नैतिक सुधार में भी बड़ी भूमिका निभाई।
1992 में बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद, जब पूरे भारत में तनाव का माहौल था, उस समय सय्यिद मुहम्मद अली शिहाब थंगल ने लोगों से शांति, सब्र और मिल-जुलकर रहने की अपील की। उनका यह संदेश “हम अपनी भावनाओं को काबू में रखेंगे और अपने पड़ोसियों की सुरक्षा करेंगे” केरल में सांप्रदायिक भाईचारे की मिसाल बन गया।
उनका ऐतिहासिक घर “कुदप्पनकल हाउस” सिर्फ़ एक मकान नहीं, बल्कि वह जगह है जहाँ केरल के मुस्लिम समाज की कई अहम बैठकों, फैसलों और चर्चाओं ने जन्म लिया।
आज, सय्यिद सादिक़ अली शिहाब थंगल को आधुनिक सोच, सही धार्मिक समझ और सबके द्वारा मान्य नेतृत्व का प्रतीक माना जाता है।
“थंगल” का ख़िताब और “समस्ता” संगठन से गहरा नाता
केरल की संस्कृति में “थंगल” एक बहुत सम्मान वाला ख़िताब है। यह ख़िताब ज़्यादातर उन सय्यिद परिवारों के लिए होता है जो पैग़ंबर के वंश से माने जाते हैं। “थंगल” सिर्फ़ नाम नहीं, बल्कि रूहानी और सामाजिक इज़्ज़त का निशान होता है।
पानाक्काड परिवार का प्रभाव “समस्ता केरल जमिय्यतुल उलमा” (Samastha Kerala Jamiyyathul Ulama) संगठन से गहराई से जुड़ा है — जो केरल के सुन्नी विद्वानों का सबसे बड़ा मंच है।
सय्यिद मुहम्मद अली शिहाब थंगल और बाद में सय्यिद हैदर अली शिहाब थंगल इस संगठन के अध्यक्ष रहे हैं।
‘समस्ता ’ के साथ यह संबंध पानाक्काड परिवार को केरल के मदरसों, मस्जिदों और इस्लामी शिक्षण संस्थानों के नेटवर्क (Islamic educational institutions) पर एक गहरा नैतिक (moral) और आध्यात्मिक (spiritual) अधिकार प्रदान करता है।
“कुदप्पनकल हाउस”: एक अनौपचारिक जन-अदालत
पानाक्काड में बना “कुदप्पनकल हाउस” केरल की सार्वजनिक ज़िंदगी में एक खास और अनोखी जगह बन गया है। यह सिर्फ़ एक राजनीतिक दफ़्तर या रूहानी केंद्र नहीं, बल्कि लोगों से मिलने-जुलने और सामाजिक इंसाफ़ का एक अहम स्थान है।
हर रोज़ यहाँ सैकड़ों लोग अपने पारिवारिक, आर्थिक और सामाजिक मसलों का हल ढूँढ़ने आते हैं।
थंगल परिवार के बड़े सदस्य इन मामलों में बीच-बचाव करते हैं, और उनका फैसला अक्सर ऐसा माना जाता है जैसे अदालत के बाहर ही लोगों का झगड़ा निपट गया हो।
यह तरीका दिखाता है कि यह परिवार सिर्फ़ धार्मिक या राजनीतिक नेता नहीं, बल्कि समाज में इंसाफ़ और भलाई के भी प्रतिनिधि हैं।यह बात बताती है कि यह परिवार सिर्फ़ धार्मिक या राजनीतिक नेताओं में से नहीं, बल्कि समाज में इंसाफ़ और भलाई के भी सच्चे प्रतिनिधि (representative) हैं।
तालीम, सियासत और समाज में कई तरह का योगदान
सय्यिद मुहम्मद अली शिहाब थंगल पानाक्काड परिवार के महानतम नेताओं में से एक थे। उन्होंने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में दशकों तक नेतृत्व किया।
उनके नेतृत्व में IUML केवल एक राजनीतिक दल नहीं, बल्कि एक नैतिक और शैक्षिक आंदोलन बन गया। उनके संरक्षण में सैकड़ों मदरसे, विद्यालय, दावत केंद्र और शोध संस्थान (research centres) स्थापित हुए जहाँ धार्मिक ज्ञान के साथ-साथ आधुनिक विज्ञान, इतिहास और समाजशास्त्र (sociology) की भी शिक्षा दी जाती थी।
उन्होंने युवाओं के लिए “समस्ता सुन्नी स्टूडेंट्स फेडरेशन (SKSSF)” और “इस्लामी कॉलेज समन्वय परिषद (Coordination of Islamic Colleges) (CIC)” की स्थापना की। इन संस्थानों के तहत ‘वाफ़ी’ और ‘वफ़िय्या’ पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं, जहाँ इस्लामी और सामान्य शिक्षा (General Education) का संयोजन किया जाता है।
2022 की एक मैत्री यात्रा में सय्यिद सादिक अली शिहाब थंगल ने कहा “विद्यालय शिक्षा में सह-अस्तित्व (Co-existence) के मूल्यों को शामिल करना आवश्यक है, ताकि बच्चे बचपन से ही सौहार्द और एकता का पाठ सीखें। यह बात साफ़ दिखाती है कि उनका नज़रिया समाज के लिए बहुत सकारात्मक था और वे बर्दाश्त व आपसी सम्मान को बहुत अहम मानते थे।
आधुनिक मीडिया में उपस्थिति और सामाजिक प्रभाव
पानाक्काड परिवार राजनीति में अपने साफ़ और नैतिक रुख के लिए मशहूर है। उनकी ख़ामोशी भी सोच-समझकर लिए गए फैसले का हिस्सा होती है।
जब सय्यिद अब्बास अली शिहाब थंगल ने नीलाम्बुर में एक सामाजिक मसले पर मज़बूत फैसला लिया, तो लोगों ने समझ लिया कि यह परिवार सिर्फ़ बातें करने वाला नहीं, बल्कि समाज में सीधी दख़ल देकर काम करने की ताक़त भी रखता है।
उन्होंने मीडिया और टेक्नोलॉजी के साथ भी अच्छा तालमेल बनाया है। मलप्पुरम में एक न्यूज़ यूनिट (news unit) का उद्घाटन करना और कोट्टक्कल आयुर्वेद अस्पताल को यूनिवर्सिटी लेवल (university level) तक बढ़ाने की मांग करना—यह दोनों बातें साफ़ दिखाती हैं कि वे देश की तरक़्क़ी (national development) के लिए भी पूरी तरह से समर्पित हैं।
हाल में एक क्रिसमस समारोह में ईसाई पादरियों के साथ केक काटने पर आलोचना हुई, किंतु सय्यिद सादिक थंगल ने कहा “अलग-अलग धर्मों के लोगों का मिल-जुलकर रहना समाज के बेहतर भविष्य के लिए बहुत ज़रूरी है।”
आज के दौर में पानाक्काड परिवार का महत्व
आज के दौर में, जब राजनीति में आदर्शों की कमी और समाज में नफरत बढ़ती दिखाई देती है, ऐसे समय में पानाक्काड परिवार का नेतृत्व केरल के मुसलमानों के लिए एक मजबूत और प्रेरक रास्ता दिखाने वाला बन गया है।
उन्होंने कभी कट्टर सोच या मौके का फ़ायदा उठाने वाली राजनीति नहीं की। उन्होंने हमेशा लोगों के फ़ायदे को सबसे ऊपर रखा और धर्म व राजनीति के बीच समझदारी का संतुलन बनाया।
2024 में जब मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने इस परिवार पर एक विवादित बयान दिया, तो IUML और कांग्रेस ने इसका जोरदार विरोध किया। वजह साफ़ थी — पानाक्काड परिवार हमेशा से सामाजिक एकता और अलग-अलग धर्मों के शांतिपूर्ण साथ रहने का समर्थक रहा है।
कई क्षेत्रों में नेतृत्व और धर्मों के बीच भाईचारे की मिसाल
इस परिवार का सबसे महत्वपूर्ण योगदान यह रहा कि उन्होंने विभिन्न धर्मों के बीच सौहार्द और सहयोग की संस्कृति को आगे बढ़ाया। उनका विश्वास था कि समाज की वास्तविक प्रगति धार्मिक कट्टरता से नहीं, बल्कि मानवता, पारस्परिक सम्मान और सहिष्णुता से ही संभव है।
इस परिवार की सबसे बड़ी ख़ूबी यह रही कि उन्होंने अलग-अलग धर्मों के बीच मिल-जुलकर रहने की संस्कृति को मज़बूत किया। उनका मानना था कि समाज आगे बढ़ता है कट्टरता से नहीं, बल्कि मानवता, आपसी सम्मान और बर्दाश्त से।
उन्होंने ईसाई, हिंदू, जैन और बौद्ध लोगों के साथ बातचीत और मिल-जुलकर रहने को हमेशा बढ़ावा दिया। वे शिवगिरि मठ (श्री नारायण गुरु केंद्र) में होने वाले धार्मिक संवादों में भी हिस्सा लेते रहे। एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में उन्होंने पोप फ्रांसिस (Pope Francis) से भी मुलाक़ात की, जहाँ उन्होंने केरल की भाईचारे और मेल-जोल की परंपरा को बताया।
उनकी सोच सिर्फ़ बातचीत तक ही नहीं रुकी, बल्कि सामाजिक कामों और तालीमी पहल तक भी फैल गई। आज भी उनके पास लोग केवल धार्मिक मार्गदर्शन (religious guidance) के लिए नहीं, बल्कि सामाजिक, शैक्षिक और राजनीतिक सलाह के लिए आते हैं।
उपसंहार: विरासत से प्रेरणा की ओर
अंततः, पानाक्काड सादात परिवार केरल के मुस्लिम समाज में एक अनोखी विरासत और मिसाली नेतृत्व का निशान माना जाता है। उनकी ज़िंदगी यह बताती है कि अक़्ल, नैतिकता और एकता से समाज को आगे बढ़ाया जा सकता है।
उन्होंने आध्यात्मिकता (Sprituality) को सामाजिक जिम्मेदारी (Social responsibility) से और राजनीति (Politics) को नैतिक मूल्यों (Moral values )से जोड़ा। आज वे सिर्फ़ बीते ज़माने की याद नहीं, बल्कि नई पीढ़ी के लिए भी एक बड़ी प्रेरणा हैं।
इसी भावना से हाल ही में “पानाक्काड क़ाज़ी फ़ाउंडेशन” की स्थापना की गई है, जो शिक्षा, समाजसेवा और संस्कृति के क्षेत्र में आधुनिक दृष्टिकोण से कार्य कर रही है।
नई पीढ़ी की ज़िम्मेदारी है कि वे इस विरासत से सीख लेकर इंसानियत, इंसाफ़ और एकता के उसूलों को अपनी ज़िंदगी में अपनाएँ — यही इस परिवार को दी जाने वाली असली श्रद्धांजलि होगी।
संदर्भ
- Panakkad family to figure in history of Syeds, Times of India
- Islamism and Social Reform in Kerala, South India — लेखक: Osella तथा C. Osella.
- Monsoon Islam: Trade and Faith on the Medieval Malabar Coast —लेखक: Sebastian R. Prange
- Mappila Muslim Culture — लेखक: Roland E. Miller.
लेखक:
रुबीना खातून
जिला: उत्तर दिनाजपुर
गाँव: इस्लामपुर
राज्य: पश्चिम बंगाल
Disclaimer
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