नमाज़: अल्लाह से राब्ते का सबसे मज़बूत ज़रिया

परिचय

इस संसार में इंसान की ज़िंदगी एक अनोखी और जटिल यात्रा है, जिसमें वह असंख्य नेमतों, परेशानियों, खुशियों, दुखों और इम्तिहानों से गुज़रता है। कभी वह सफलता के शिखर पर पहुंचकर खुशी से झूम उठता है, तो कभी कठिनाइयों के बोझ तले दबकर खुद को असहाय महसूस करता है। कभी उसका दिल खुशियों से लबरेज़ हो जाता है, तो कभी वह अंदर से पूरी तरह टूटा हुआ और उदास महसूस करता है। इन सभी उतार-चढ़ाव भरे हालातों में इंसान का दिल किसी ऐसी सर्वशक्तिमान हस्ती की तलाश करता है जो उसे सहारा दे, उसकी हर बात सुने, उसकी हर मुश्किल को समझे और उसे गहरा, स्थायी सुकून प्रदान करे। इस्लाम धर्म ने इंसान को इसी सुकून, सहारे और मार्गदर्शन के लिए "नमाज़" जैसी बेहतरीन, पाक और रूहानी इबादत अता की है। नमाज़ अल्लाह तआला और उसके बंदे के बीच एक सीधा, अटूट और सबसे मज़बूत संबंध स्थापित करती है। यह वह पुल है जो इंसान को उसके रब से जोड़कर रखता है, उसे दुनिया की हर मुश्किल से निपटने की ताक़त देता है और आखिरत की कामयाबी की राह दिखाता है।

नमाज़ सिर्फ पांच वक़्त की एक रस्मी इबादत या शारीरिक व्यायाम नहीं है, बल्कि यह जीवन का एक संपूर्ण रास्ता, एक जीवनशैली और एक रूहानी सफर है जो इंसान को हर पहलू में संवारती है, उसकी रूह को पाक करती है और उसके दिल को अल्लाह की याद से भर देती है। इसमें इंसान अपने रब के सामने खड़ा होता है, खुद को उसके रहम और करम के हवाले करता है, अपनी कमजोरियों, गुनाहों और जरूरतों को स्वीकार करता है और उससे मार्गदर्शन, माफी, मदद और बरकत मांगता है। कुरआन मजीद में अल्लाह तआला ने नमाज़ की अहमियत को बार-बार ज़ाहिर किया है। मिसाल के तौर पर, सूरह ताहा में फरमाया गया है:

إِنَّنِي أَنَا اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا أَنَا فَاعْبُدْنِي وَأَقِمِ الصَّلَاةَ لِذِكْرِي (طه: 14)

बेशक मैं अल्लाह हूं, कोई माबूद नहीं सिवाय मेरे, तो मेरी इबादत करो और नमाज़ कायम करो मेरी याद के लिए।

यह आयत नमाज़ को अल्लाह की याद, इबादत और राब्ते का मूल बताती है। इसी तरह, हदीस में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है:

الصَّلاَةُ عِمَادُ الدِّينِ  (شعب الإيمان للبيهقي)

नमाज़ दीन का स्तंभ है।”

एक और हदीस में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:

إِنَّ أَوَّلَ مَا يُحَاسَبُ بِهِ العَبْدُ يَوْمَ القِيَامَةِ مِنْ عَمَلِهِ صَلَاتُهُ، فَإِنْ صَلَحَتْ فَقَدْ أَفْلَحَ وَأَنْجَحَ، وَإِنْ فَسَدَتْ فَقَدْ خَابَ وَخَسِرَ)سنن الترمذي(

क़ियामत के दिन बंदे के आमाल (कामों) में सबसे पहले नमाज़ का हिसाब होगा। अगर उसकी नमाज़ दुरुस्त (ठीक) हुई, तो वह कामीयाब और सफल होगा। और अगर उसकी नमाज़ खराब हुई, तो वह नुकसान उठाने वाला और नाकाम होगा।

इन कुरआनी आयतों और अहादीस से साफ़ ज़ाहिर होता है कि नमाज़ पूरे दीन की बुनियाद है और अल्लाह से राब्ते का सबसे मज़बूत, सबसे पाक और सबसे प्रभावी ज़रिया है। नमाज़ की अहमियत को समझने के लिए हमें इसके विभिन्न पहलुओं पर गौर करना चाहिए। यह न सिर्फ रूहानी सुकून देती है, बल्कि जीवन में अनुशासन लाती है, चरित्र को निखारती है, अल्लाह से सीधा संवाद स्थापित करती है, समाज में एकता पैदा करती है, स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है और इंसान को शुक्रगुज़ारी सिखाती है। नमाज़ इंसान को दुनिया की व्यस्तताओं से अलग करके उसके रब की ओर मोड़ती है, जहां वह अपनी सारी चिंताओं, दुखों और खुशियों को रख सकता है। यह इबादत न सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर फायदेमंद है, बल्कि परिवार, समाज और पूरी उम्मत को भी एकजुट और मजबूत बनाती है।

नमाज़ दिल और दिमाग को सुकून देने का ज़रिया

मानव जीवन परेशानियों और तनाव से भरा होता है। आज की तेज़ रफ़्तार दुनिया में इंसान बाहर से मजबूत और व्यस्त दिखाई देता है, लेकिन अंदर से वह थका हुआ, टूटा हुआ और बेचैन होता है। काम का दबाव, रिश्तों की मुश्किलें, पैसों की चिंता, सेहत की समस्या, समाज का दबाव और भविष्य की टेंशन उसे हर समय परेशान रखती है।

ऐसे में नमाज़ उसे अंदर से एक रूहानी ताक़त देती है। यह ताक़त उसे समस्याओं से लड़ने की हिम्मत, धैर्य और सुकून देती है। जब इंसान वुज़ू करके साफ दिल और ध्यान के साथ नमाज़ के लिए खड़ा होता है, तो उसकी चिंता, स्ट्रेस और बुरे ख़याल धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं।

वुज़ू खुद एक ताज़गी देने वाली चीज़ है। यह न सिर्फ शरीर को साफ करता है, बल्कि दिल और रूह को भी पवित्र बनाता है और इंसान को अल्लाह की इबादत के लिए तैयार करता है।

सज्दे में जाने का वह क्षण इंसान के जीवन का सबसे सुंदर, सबसे करीबी और सबसे रूहानी पल होता है। सज्दा वह स्थिति है जिसमें इंसान अल्लाह से सबसे नज़दीक होता है, अपनी माथे को ज़मीन पर रखकर अपनी कमज़ोरी स्वीकार करता है और अल्लाह की महानता को महसूस करता है। हदीस में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है:

أَقْرَبُ مَا يَكُونُ الْعَبْدُ مِنْ رَبِّهِ وَهُوَ سَاجِدٌ فَأَكْثِرُوا الدُّعَاءَ (صحيح مسلم)

बन्दा अपने रब से सबसे ज़्यादा क़रीब सज्दे की हालत में होता है, इसलिए उस में ख़ूब दुआ करो।”

सज्दे में इंसान अपनी सारी चिंताएं, दुख, तकलीफें, गुनाह और जरूरतें अल्लाह के सामने रख देता है, और उसके दिल में एक अनजाना, गहरा सुकून उतर आता है। नमाज़ के बाद दिल हल्का, संतुष्ट और ऊर्जावान महसूस होता है, मानो किसी ने उसके दिल का सारा बोझ उठा लिया हो।

कुरआन मजीद में अल्लाह तआला फरमाता है:

وَاسْتَعِينُوا بِالصَّبْرِ وَالصَّلَاةِ ۚ وَإِنَّهَا لَكَبِيرَةٌ إِلَّا عَلَى الْخَاشِعِينَ (البقرة: 45)

मदद मांगो धैर्य और नमाज़ से, और वह निश्चित रूप से भारी है सिवाय उनके लिए जो विनम्र हैं।”

यह आयत बताती है कि नमाज़ मुश्किलों में धैर्य, सुकून और सहारा का स्रोत है। एक और हदीस में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:

يَا بِلَالُ أَقِمِ الصَّلاَةَ أَرِحْنَا بِهَا (سنن أبي داود(

ऐ बिलाल! नमाज़ क़ायम कर, हमें उस से चैन दे।”

यह हदीस दर्शाती है कि नमाज़ रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए भी सुकून और आराम का ज़रिया थी। जब दुनिया की तकलीफ़ें और जंगों की मुश्किलें बढ़तीं, तो आप फरमाते: “हमें नमाज़ से आराम दो।” आज भी जो शख़्स नमाज़ को इस नज़र से पढ़ता है, उसका दिल हल्का हो जाता है और चिंताएँ दूर हो जाती हैं।

वैज्ञानिक दृष्टि से भी, नमाज़ की हरकतें जैसे रुकू, सज्दा, कियाम और तशह्हुद, शरीर में एंडोर्फिन्स और सेरोटोनिन जैसे हार्मोन को बढ़ाती हैं, जो तनाव कम करती हैं, अवसाद से लड़ती हैं और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाती हैं। नमाज़ पढ़ने वाले लोग चिंता, डिप्रेशन और स्ट्रेस से कम प्रभावित होते हैं, क्योंकि यह इबादत उन्हें अल्लाह की कुदरत, रहमत और तवक्कुल पर भरोसा करना सिखाती है। मिसाल के तौर पर, अगर कोई व्यक्ति नौकरी की चिंता, परिवार की मुश्किलों या स्वास्थ्य की परेशानियों में घिरा है, तो नमाज़ में वह अल्लाह से दुआ करता है और महसूस करता है कि सब कुछ उसके हाथ में है। इससे उसका मन शांत हो जाता है और वह नई ऊर्जा के साथ ज़िंदगी का सामना करता है।

नमाज़ न सिर्फ व्यक्तिगत सुकून देती है, बल्कि परिवार और समाज में भी शांति लाती है। जब घर के सभी सदस्य नमाज़ पढ़ते हैं, तो घर में एक सकारात्मक, रूहानी ऊर्जा फैलती है। बच्चे इसे देखकर सीखते हैं और बड़े होकर खुद इसे अपनाते हैं। समाज में जब लोग मस्जिद में जमाअत से नमाज़ पढ़ते हैं, तो वहां एक सामूहिक सुकून और एकता का एहसास होता है। इस तरह, नमाज़ आत्मिक और मानसिक सुकून का एक अटूट, बहुमुखी और सर्वव्यापी स्रोत है, जो इंसान को दुनिया की हर मुश्किल से ऊपर उठाती है और उसे अल्लाह के करीब लाती है।

नमाज़ — अनुशासन, समय की पाबंदी और ज़िंदगी का संतुलन

नमाज़ की सबसे बड़ी और खास बात यह है कि यह हमारी ज़िंदगी में नियम, अनुशासन और संतुलन लाती है। दिन में पाँच बार तय वक़्त पर नमाज़ पढ़ना सिर्फ एक मज़हबी फ़र्ज़ नहीं, बल्कि समय को सही तरह इस्तेमाल करने और जीवन को व्यवस्थित रखने का एक तरीका भी है। आज की व्यस्त दुनिया में लोग अक्सर समय की कमी, अव्यवस्था और आलस की शिकायत करते हैं, लेकिन नमाज़ इंसान को सिखाती है कि समय का सही इस्तेमाल कैसे किया जाए और दिन को किस तरह हिस्सों में बाँटा जाए।

फज्र की नमाज़ सुबह जल्दी उठने की आदत डालती है और आलस दूर करती है जिससे इंसान पूरे दिन ताज़गी और फुर्ती महसूस करता है।
ज़ुहर की नमाज़ दिन की दौड़–भाग में एक छोटी सी राहत देती है और इंसान को रूहानी सुकून मिलता है।
असर की नमाज़ दिन के बीच में संतुलन बनाए रखती है और याद दिलाती है कि वक़्त तेज़ी से गुजर रहा है।
मगरिब की नमाज़ दिन के ख़त्म होने पर दिल को सुकून देती है और इंसान दिनभर के कामों पर ग़ौर कर सकता है।
ईशा की नमाज़ रात को सुकून के साथ खत्म करने में मदद करती है और अच्छी नींद का सहारा बनती है।

कुरआन में अल्लाह इरशाद फरमाता है:

أَقِمِ الصَّلَاةَ لِدُلُوكِ الشَّمْسِ إِلَىٰ غَسَقِ اللَّيْلِ وَقُرْآنَ الْفَجْرِ ۖ إِنَّ قُرْآنَ الْفَجْرِ كَانَ مَشْهُودًا (الإسراء: 78)

नमाज़ कायम करो सूरज के ढलने से रात के अंधेरे तक और फज्र की कुरान (पठन) की, बेशक फज्र का कुरान गवाही वाला है।”

यह आयत नमाज़ के निर्धारित वक़्तों की अहमियत बताती है और फज्र की विशेषता पर ज़ोर देती है। हदीस में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:

مَنْ صَلَّى الْبَرْدَيْنِ دَخَلَ الْجَنَّةَ (صحيح البخاري)

जिस ने दो ठंडी नमाज़ें (फज्र और असर) पढ़ीं वह जन्नत में दाख़िल होगा।”

फज्र और असर का ख़ास ज़िक्र इसलिए है कि ये दोनों वक़्त इंसान के लिए सबसे मुश्किल होते हैं – फज्र नींद की वजह से, असर काम की मशरूफ़ियत की वजह से। जो इन पर ग़ालिब आ गया, उसकी पूरी ज़िंदगी में अनुशासन आ गया। एक और हदीस में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया:

الْعَهْدُ الَّذِي بَيْنَنَا وَبَيْنَهُمُ الصَّلَاةُ فَمَنْ تَرَكَهَا فَقَدْ كَفَرَ (سنن الترمذي(

हमारे और उन (मुनाफ़िक़ों) के बीच का फ़र्क़ नमाज़ है। जिस ने इसे छोड़ा उस ने कुफ़्र किया।”

यह सख़्त हदीस बताती है कि नमाज़ का वक़्त पर अदा करना मुसलमान की पहचान है और अनुशासन की कुंजी है।

नमाज़ की आदत इंसान को ज़िम्मेदार, समय पर काम करने वाला और संतुलित बनाती है। चाहे छात्र हो, व्यापारी, डॉक्टर, किसान, घर की औरत हो या ऑफिस में काम करने वाला—नमाज़ हर किसी को दिन को सही तरीके से चलाना सिखाती है।

अगर एक व्यस्त व्यापारी ज़ुहर की नमाज़ के लिए थोड़ी देर रुकता है, तो उसे दिल का सुकून भी मिलता है और दिमाग भी ताज़ा हो जाता है। इससे वह अपने काम में और अच्छी तरह ध्यान दे पाता है।
बच्चे जब घर में बड़ों को नमाज़ पढ़ते देखते हैं, तो वे भी समय की अहमियत समझते हैं और पढ़ाई, स्कूल और खेल में संतुलन बनाना सीखते हैं।

समाज में भी, जब लोग मस्जिद में एक साथ नमाज़ पढ़ते हैं, तो उनमें अनुशासन और नियमों की आदत बढ़ती है। इससे ज़िंदगी के दूसरे काम—जैसे ट्रैफ़िक, दफ़्तर और समाज—सब बेहतर चलते हैं।

आख़िर में, नमाज़ इंसान की ज़िंदगी को सलीकेदार और मक़सद वाला बनाती है, और अल्लाह से उसका रिश्ता मज़बूत करती है।

नमाज़ — चरित्र की सफ़ाई, बुराइयों से बचाव और अच्छाई की तालीम

नमाज़ सिर्फ रुकू-सज्दा करने या कुछ आयतें पढ़ने का नाम नहीं है। यह एक ऐसी इबादत है जो इंसान के दिल, सोच, व्यवहार और पूरे चरित्र को बदल देती है। नमाज़ पढ़ने वाला इंसान ईमानदारी, भलाई, सच बोलने, दया, सब्र, नर्मी और अच्छे कामों की तरफ़ झुकने लगता है। वह झूठ, धोखा, गुस्सा, जलन और बुराइयों से दूर रहता है।

नमाज़ इंसान को बुरे कामों से रोकती है, गुनाहों से बचाती है और उसे एक अच्छा, नेक और समाज के लिए फ़ायदेमंद इंसान बनाती है। कुरआन में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है:

إِنَّ الصَّلَاةَ تَنْهَىٰ عَنِ الْفَحْشَاءِ وَالْمُنكَرِ (العنكبوت: 45)

बेशक, नमाज़ इंसान को बेहूदा (गंदी) बातों और बुरे कामों से रोकती है।”

यह आयत स्पष्ट करती है कि नमाज़ चरित्र निर्माण में कितनी महत्वपूर्ण है। नियमित नमाज़ इंसान को गलत कामों से दूर रखती है, क्योंकि वह जानता है कि उसे अल्लाह के सामने जवाबदेह होना है और हर नमाज़ में वह अपनी कमियों का मुहासबा करता है।

हदीस में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:

مَثَلُ الصَّلَوَاتِ الْخَمْسِ كَمَثَلِ نَهَرٍ جَارٍ عَذْبٍ بِبَابِ أَحَدِكُمْ يَغْتَسِلُ مِنْهُ كُلَّ يَوْمٍ خَمْسَ مَرَّاتٍ فَمَا يَبْقَى مِنَ الدَّرَنِ؟ (صحيح مسلم(

पाँच वक़्त की नमाज़ों की मिसाल उस नहर जैसी है जो किसी के दरवाज़े पर बहती हो और वह उस में दिन में पाँच बार नहाए। फिर बताओ उस पर मैल रह सकता है?”

यह हदीस बताती है कि हर नमाज़ पिछले गुनाहों को धो देती है और चरित्र की सफाई करती है। एक और हदीस में है:

الصَّلاَةُ مِفْتَاحُ الْجَنَّةِ (سنن الترمذي)

नमाज़ जन्नत की कुंजी है।”

नमाज़ इंसान को विनम्र बनाती है और उसके अंदर का घमंड खत्म करती है। जब कोई रुकू और सज्दा करता है, तो उसे महसूस होता है कि वह कितना छोटा और कमज़ोर है और अल्लाह कितना बड़ा और ताक़तवर। यह एहसास उसे नरम दिल, सहनशील और इंसाफ़ पसंद बनाता है। ऐसे लोग समाज में अच्छे नागरिक बनते हैं—वे दूसरों की मदद करते हैं, बुराई से रोकते हैं और भलाई फैलाते हैं।

मिसाल के तौर पर, अगर कोई गुस्से वाला व्यक्ति नमाज़ शुरू करता है, तो उसका गुस्सा कम होता है, वह शांत हो जाता है और घर–परिवार में सुकून पैदा करता है। अगर कोई व्यापारी पहले धोखा देता था और नमाज़ पढ़ना शुरू कर देता है, तो वह ईमानदार बनता है और लोगों का भरोसा बढ़ता है।

नमाज़ इंसान के चरित्र को इतना मजबूत करती है कि वह मुश्किल वक़्त में भी सही रास्ता चुनता है, गुनाहों से बचता है और अच्छे कामों की तरफ़ बढ़ता है। नमाज़ इंसान को अल्लाह का डर और प्यार सिखाती है—और यही अच्छे चरित्र की असली नींव है।

नमाज़ — अल्लाह से सीधा संवाद और मिराज-ए-मोमिन का जरिया है

नमाज़ को इस्लाम में "मिराज-ए-मोमिन" कहा गया है। यह वह अवसर है जब इंसान बिना किसी माध्यम, वास्ते या बिचौलिए के सीधे अल्लाह से बात करता है, अपनी जरूरतें रखता है और दुआ करता है। सूरह अल-फातिहा में "इय्याक नअबुदु व इय्याक नस्तईन" कहते हुए वह स्वीकार करता है कि वह केवल अल्लाह की इबादत करता है और केवल उसी से मदद मांगता है। सज्दे में दुआ करते हुए वह अपनी समस्याओं को हल करने, गुनाहों की माफी और नेकी के रास्ते पर स्थिरता की गुहार लगाता है। कुरआन में फरमाया गया है:

قَدْ أَفْلَحَ الْمُؤْمِنُونَ الَّذِينَ هُمْ فِي صَلَاتِهِمْ خَاشِعُونَ (المؤمنون: 1-2)

सफल हो गए वे मोमिन जो अपनी नमाज़ों में विनम्र होते हैं।”

यह संवाद इंसान को तवक्कुल सिखाता है, जो चिंताओं से मुक्ति देता है और अल्लाह से राब्ते को गहरा करता है।

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नमाज़ को “मोमिन की मिराज” कहा। जिस तरह मिराज की रात आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सिदरतुल-मुन्तहा तक गए और अल्लाह से मुलाकात की, उसी तरह हर नमाज़ में मोमिन अल्लाह के क़ुर्ब तक पहुँचता है और सीधा संवाद करता है। यह राब्ता इंसान को मजबूत बनाता है और उसकी दुआओं को क़ुबूलियत की मंजिल तक पहुंचाता

नमाज़ — सामाजिक समानता, एकता और भाईचारे का प्रतीक

नमाज़ न सिर्फ व्यक्तिगत इबादत है, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी एकता और समानता का प्रतीक है। जब लोग मस्जिद में जमाअत से नमाज़ पढ़ते हैं, तो वहां अमीर-गरीब, ऊँच-नीच, बड़ा-छोटा, काला-गोरा जैसा कोई भेदभाव नहीं होता। सभी एक ही पंक्ति में खड़े होते हैं, एक ही दिशा (किबला) की ओर रुख करते हैं और एक ही अल्लाह के सामने सज्दा करते हैं। यह दृश्य अपने आप में समानता, भाईचारे, इंसानियत और सामाजिक न्याय का अनोखा संदेश देता है। हदीस में रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:

إِنَّمَا الْمُؤْمِنُونَ إِخْوَةٌ (صحيح البخاري)

मोमिन आपस में भाई हैं।”

नमाज़ की जमाअत इस भाईचारे को मजबूत करती है। समाज में नमाज़ विभेद मिटाती है, प्रेम बढ़ाती है और एकता पैदा करती है।

निष्कर्ष

नमाज़ इंसान और अल्लाह के बीच सबसे मजबूत और सबसे खूबसूरत रिश्ता बनाती है। यह दिल को सुकून देती है, ज़िंदगी में नियम लाती है, चरित्र को अच्छा बनाती है, अल्लाह से बात करने का तरीका देती है, सबको बराबर सिखाती है और ज़िंदगी में बरकत भर देती है। रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आख़िरी वसीयत थी:

الصَّلاَةَ الصَّلاَةَ وَمَا مَلَكَتْ أَيْمَانُكُمْ (سنن ابن ماجه)

नमाज़! नमाज़! और जो तुम्हारे दाहिने हाथ जिसके मालिक हैं (गुलाम ) का भी ख़याल रखो।”

जब तक नमाज़ हमारे जीवन में ज़िंदा रहेगी, अल्लाह से हमारा राब्ता ज़िंदा रहेगा। इसलिए, इसे अपनाएं और जीवन को सफल बनाएं।

 

संदर्भ

  1. सूरह ता-हा
  2. सूरह अल-बक़रा
  3. सूरह अल-इस्रा
  4. सूरह अल-अनकबूत
  5. सूरह अल-मोमिनून
  6. सहीह बुख़ारी
  7. सहीह मुस्लि
  8. सुनन तिर्मिज़ी
  9. सुनन अबी दाऊद
  10. सुनन इब्न माजा

मुहम्मद सनाउल्लाह

दारुल हुदा इस्लामिक यूनिवर्सिटी,मलप्पुरम, केरल के डिग्री सेकंड ईयर के छात्र हैं। वे बिहार से ताल्लुक रखते हैं। उनका रुझान इतिहास के क्षेत्र में है।

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