भारतीय मुसलमानों की भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका

परिचय

भारत का स्वतंत्रता संग्राम एक ऐसा ऐतिहासिक आंदोलन था, जिसमें देश के हर वर्ग, धर्म और समुदाय ने एकजुट होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी। इस संघर्ष में भारतीय मुसलमानों ने भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। अक्सर यह धारणा बनाई जाती है कि मुसलमानों की भूमिका स्वतंत्रता संग्राम में सीमित थी या वे केवल अपने धार्मिक हितों के लिए लड़े, लेकिन यह सच्चाई से कोसों दूर है। भारतीय मुसलमानों ने अपनी जान, माल और सम्मान की कुर्बानी देकर आजादी की लड़ाई में हिस्सा लिया। चाहे वह 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हो या गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग और भारत छोड़ो आंदोलन, मुसलमानों ने हर मोर्चे पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई।

स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत और मुस्लिम योगदान

भारत का स्वतंत्रता संग्राम 19वीं सदी से शुरू हुआ, और इसमें मुसलमानों की भूमिका शुरू से ही महत्वपूर्ण रही। 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, जिसे सिपाही विद्रोह भी कहा जाता है, इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यह विद्रोह केवल सैनिकों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें आम जनता, विशेष रूप से मुसलमानों का बड़ा योगदान था। किताब The Last Mughal में विलियम डैलरिंपल लिखते हैं कि इस विद्रोह ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट किया और मुसलमानों ने इसमें नेतृत्व और बलिदान दोनों दिया।(1)

  1. 1857 का विद्रोह और मुस्लिम नायक

1857 के विद्रोह में मुसलमानों ने न केवल सैनिकों के रूप में हिस्सा लिया, बल्कि नेतृत्व भी प्रदान किया। दिल्ली में, मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर को विद्रोहियों ने अपना प्रतीकात्मक नेता चुना। हालांकि जफर उम्रदराज और कमजोर थे, फिर भी उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुटता का संदेश दिया। दिल्ली के मुस्लिम समुदाय ने जफर के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी। विद्रोह के दमन के बाद, जफर को रंगून (अब यांगून) निर्वासित कर दिया गया, और कई मुस्लिम विद्रोहियों को फांसी दी गई।

बेगम हजरत महल का नेतृत्व
अवध में, बेगम हजरत महल ने 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किया। लखनऊ में, उन्होंने ब्रिटिश सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध छेड़ा और अपने साहस से लोगों को प्रेरित किया। बेगम हजरत महल ने हिंदुओं और मुसलमानों को एकजुट किया और लखनऊ की रक्षा के लिए कड़ा संघर्ष किया। विद्रोह के असफल होने के बाद, उन्हें नेपाल में शरण लेनी पड़ी, लेकिन उनकी बहादुरी आज भी प्रेरणा देती है।

मौलवी अहमदुल्लाह शाह

मौलवी अहमदुल्लाह शाह, जिन्हें फैजाबाद के मौलवी के नाम से जाना जाता है, 1857 के विद्रोह के एक प्रमुख नेता थे। उन्होंने अवध में ब्रिटिश सेना के खिलाफ जिहाद का ऐलान किया और हजारों लोगों को अपने साथ जोड़ा। उनकी रणनीति और साहस ने ब्रिटिश अधिकारियों को हैरान कर दिया। मौलवी शाह की शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम में मुस्लिम समुदाय की कुर्बानी को उजागर किया।

राष्ट्रीय आंदोलन में मुस्लिम नेताओं की भूमिका

जैसे-जैसे स्वतंत्रता संग्राम ने संगठित रूप लिया, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और अन्य संगठनों में मुस्लिम नेताओं ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनमें से कुछ प्रमुख नाम हैं:

  1. मौलाना अबुल कलाम आजाद

मौलाना अबुल कलाम आजाद स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े मुस्लिम नेताओं में से एक थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे युवा अध्यक्ष बने और एकजुट भारत के लिए हमेशा लड़े। उनकी किताब India Wins Freedom में वे बताते हैं कि कैसे उन्होंने मुस्लिम लीग के "दो-राष्ट्र सिद्धांत" का विरोध किया और हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया।मौलाना आजाद ने अपने लेखों और भाषणों, जैसे कि उनके अखबार अल-हिलाल के माध्यम से, युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।(2)

अल-हिलाल का प्रभाव
1912
में, मौलाना आजाद ने उर्दू अखबार अल-हिलाल शुरू किया, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ मुसलमानों को जागरूक करने का एक सशक्त माध्यम बना। इस अखबार में उन्होंने इस्लाम की शिक्षाओं को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा और हिंदू-मुस्लिम एकता पर जोर दिया। ब्रिटिश सरकार ने इस अखबार पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन तब तक यह हजारों लोगों तक अपनी बात पहुंचा चुका था।

  1. खान अब्दुल गफ्फार खान

खान अब्दुल गफ्फार खान, जिन्हें "सीमांत गांधी" कहा जाता है, ने उत्तर-पश्चिम सीमा प्रांत (अब पाकिस्तान का हिस्सा) में अहिंसक आंदोलन चलाया। उन्होंने "खुदाई खिदमतगार" संगठन बनाया, जिसके हजारों पठान कार्यकर्ता गांधीजी के सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांतों को मानते थे। किताब Nonviolent Soldier of Islam में ईसन बी. ईसन लिखते हैं कि खान अब्दुल गफ्फार खान ने मुस्लिम समुदाय को अहिंसा के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया, जो उस समय एक अनोखा योगदान था।(3)

पेशावर में नरसंहार
23
अप्रैल 1930 को, पेशावर के किस्सा ख्वानी बाजार में ब्रिटिश पुलिस ने खुदाई खिदमतगारों पर गोली चलाई, जिसमें सैकड़ों निहत्थे प्रदर्शनकारी शहीद हुए। इस घटना ने खान अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व और मुस्लिम समुदाय के साहस को विश्व स्तर पर उजागर किया।

  1. हकीम अजमल खान

हकीम अजमल खान एक प्रसिद्ध चिकित्सक और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और खिलाफत आंदोलन को समर्थन दिया। वे हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल समर्थक थे और स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए अपने आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा के ज्ञान का उपयोग किया।

महत्वपूर्ण आंदोलन और मुस्लिम भागीदारी

  1. खिलाफत आंदोलन (1919-1924)

खिलाफत आंदोलन भारतीय मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर था, जिसमें उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी ताकत दिखाई। प्रथम विश्व युद्ध के बाद, जब मित्र राष्ट्रों ने उस्मानी खलीफा के पद को खत्म करने की कोशिश की, तो भारतीय मुसलमानों ने इसका विरोध किया। मौलाना मोहम्मद अली जौहर और मौलाना शौकत अली ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। गांधीजी ने भी इस आंदोलन को समर्थन दिया, जिससे हिंदू-मुस्लिम एकता को बल मिला। किताब The Khilafat Movement में गेल मिनॉल्ट लिखती हैं कि इस आंदोलन ने मुसलमानों को राष्ट्रीय स्तर पर संगठित होने का मौका दिया।(4)

 चौरी-चौरा कांड (1922)
खिलाफत आंदोलन के दौरान, 1922 में उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में एक हिंसक घटना हुई, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने एक पुलिस थाने पर हमला कर दिया। इस घटना में कई मुस्लिम कार्यकर्ता शामिल थे। गांधीजी ने इस हिंसा के कारण असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया, लेकिन इसने मुस्लिम समुदाय की स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी को दर्शाया।

  1. असहयोग आंदोलन (1920-1922)

गांधीजी के नेतृत्व में शुरू हुए असहयोग आंदोलन (No-Cooperation Movement) में मुसलमानों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इस आंदोलन में ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार, सरकारी नौकरियों से इस्तीफा और स्वदेशी को अपनाने का आह्वान किया गया। कई मुस्लिम व्यापारियों ने ब्रिटिश कपड़ों का बहिष्कार किया और स्वदेशी कपड़े अपनाए। जामिया मिलिया इस्लामिया जैसी संस्थाओं ने स्वदेशी शिक्षा को बढ़ावा दिया।

  1. सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-1934)

सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil Disobedience Movement), विशेष रूप से नमक सत्याग्रह, में भी मुसलमानों ने हिस्सा लिया। पेशावर में, खान अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व में हजारों पठानों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। 1930 में पेशावर में हुए नरसंहार में कई मुस्लिम कार्यकर्ता शहीद हुए, जो उनके बलिदान का प्रतीक बना।

  1. भारत छोड़ो आंदोलन (1942)

1942 के भारत छोड़ो (Quit India Movement) आंदोलन में मुसलमानों ने देशव्यापी प्रदर्शनों में हिस्सा लिया। बिहार और बंगाल में मुस्लिम युवाओं ने रेलवे लाइनों और टेलीग्राफ तारों को नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। किताब India’s Struggle for Independence में बिपन चंद्रा लिखते हैं कि इस आंदोलन में मुस्लिम समुदाय ने गांधीजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया।(5)

घटना: बिहार में भूमिगत आंदोलन
1942
में, बिहार के मुस्लिम छात्रों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भूमिगत गतिविधियों में हिस्सा लिया। उन्होंने पर्चे बांटे और ब्रिटिश संचार व्यवस्था को बाधित किया। कई युवा गिरफ्तार हुए, लेकिन उनकी बहादुरी ने स्वतंत्रता संग्राम को नई ताकत दी।

मुस्लिम महिलाओं का योगदान

स्वतंत्रता संग्राम में मुस्लिम महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बेगम हजरत महल के अलावा, बिहार की बेगम निशातुन्निसा और बंगाल की बेगम रोकेया सखावत हुसैन ने अपने लेखन और सामाजिक कार्यों के माध्यम से स्वतंत्रता के विचार को फैलाया। बेगम रोकेया ने महिलाओं की शिक्षा और स्वतंत्रता के लिए काम किया, जिसने मुस्लिम समुदाय को स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

बेगम रोकेया का लेखन
बेगम रोकेया ने अपनी किताब सुल्तानाज ड्रीम में एक काल्पनिक समाज की रचना की, जहां महिलाएं स्वतंत्र और सशक्त थीं। उनके लेखन ने मुस्लिम महिलाओं को स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया।

चुनौतियां और बलिदान

मुसलमानों को स्वतंत्रता संग्राम में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश सरकार की "फूट डालो और राज करो" की नीति ने हिंदू-मुस्लिम एकता को तोड़ने की कोशिश की। मुस्लिम लीग के उदय ने कुछ मुसलमानों को अलगाववादी विचारधारा की ओर खींचा। फिर भी, मौलाना आजाद, खान अब्दुल गफ्फार खान और अन्य नेताओं ने एकजुट भारत के लिए लड़ाई लड़ी।

कई मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डाला गया, उनकी संपत्ति जब्त की गई, और कुछ को फांसी दी गई। 1857 के विद्रोह के बाद, दिल्ली और लखनऊ में कई मुस्लिम विद्रोहियों को क्रूर सजा दी गई। इन बलिदानों ने स्वतंत्रता संग्राम को और मजबूत किया।

निष्कर्ष

भारतीय मुसलमानों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपनी जान, माल और सम्मान की कुर्बानी देकर महत्वपूर्ण योगदान दिया। 1857 के विद्रोह से लेकर 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन तक, उन्होंने हर कदम पर देश की आजादी के लिए संघर्ष किया। मौलाना अबुल कलाम आजाद, खान अब्दुल गफ्फार खान, बेगम हजरत महल और अन्य नायकों ने न केवल मुस्लिम समुदाय को प्रेरित किया, बल्कि पूरे देश को एकजुटता का संदेश दिया। उनकी कुर्बानियां और योगदान आज भी हमें यह सिखाते हैं कि भारत की ताकत उसकी विविधता और एकता में है। स्वतंत्रता संग्राम में मुसलमानों की भूमिका को याद करना हमें यह समझने में मदद करता है कि भारत की आजादी सभी समुदायों के साझा प्रयासों का नतीजा है।

संदर्भ

(1): डैलरिंपल, विलियम. The Last Mughal: The Fall of a Dynasty, Delhi, 1857. नई दिल्ली: पेंगुइन बुक्स, 2006.
(2):
आजाद, अबुल कलाम. India Wins Freedom. नई दिल्ली: ओरिएंट ब्लैकस्वान, 1988.
(3):
ईसन, बी. ईसन. Nonviolent Soldier of Islam: Badshah Khan, A Man to Match His Mountains. कैलिफोर्निया: नीलगिरी प्रेस, 1999.
(4):
मिनॉल्ट, गेल. The Khilafat Movement: Religious Symbolism and Political Mobilization in India. नई दिल्ली: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1982.
(5):
चंद्रा, बिपन. India’s Struggle for Independence. नई दिल्ली: पेंगुइन बुक्स, 1989.

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