सूरह यासीन: कुरान का दिल और आखिरत की याद

परिचय 

सूरह यासीन कुरान पाक की 36वीं सूरह है, जो मक्की है और 83 आयतों पर मुश्तमिल है। पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसे "कुरान का दिल" कहा है, क्योंकि इसमें तौहीद, रिसालत, आखिरत और अल्लाह की कुदरत की मिसालें हैं जो ईमान को मजबूत करती हैं। यह सूरह मुसलमानों के लिए रौशनी है, जो दुनिया की जिंदगी की हकीकत बताती है और आखिरत की तैयारी पर जोर देती है। जब दुनिया में भौतिकवाद और गफलत बढ़ रही है, सूरह यासीन हमें अल्लाह की याद दिलाती है और नेकी की तरफ बुलाती है। हदीस में आता है: 

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "سُورَةٌ مِنَ الْقُرْآنِ هِيَ قَلْبُ الْقُرْآنِ، لَا يَقْرَؤُهَا رَجُلٌ يُرِيدُ اللَّهَ وَالدَّارَ الْآخِرَةَ إِلَّا غُفِرَ لَهُ، اقْرَؤُوهَا عَلَى مَوْتَاكُمْ" 

"हजरत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: कुरान की एक सूरह है जो कुरान का दिल है, जो शख्स अल्लाह और आखिरत की तलब में इसे पढ़े, उसके लिए मगफिरत है, इसे अपने मृतकों के पास पढ़ो।"

यह हदीस सूरह यासीन के फजाइल बताती है। इब्ने कसीर अपनी तफसीर में लिखते हैं।: "سورة يس قلب القرآن، تحتوي على أصول الإيمان والتوحيد." "सूरह यासीन कुरान का दिल है, जिसमें ईमान और तौहीद के उसूल हैं।" सूरह यासीन की तिलावत से दिल को सुकून मिलता है और आखिरत की याद ताजा होती है, जो आज के व्यस्त जीवन में हमें अल्लाह की तरफ मोड़ती है। 

सूरह यासीन का अवतरण और संदर्भ 

सूरह यासीन मक्का के दौर में नाजिल हुई, जब पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर विरोध बढ़ रहा था। यह सूरह कुरैश को चेतावनी देती है कि पहले की उम्मतों ने रसूलों को झुटलाया और अजाब आया। इसमें अल्लाह की कसम से शुरू होती है, जो पैगम्बर की सच्चाई की तसदीक करती है। सूरह का नाम "यासीन" पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नाम या हुरूफ-ए-मुकत्तआत है। अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है: 

يسٓ وَٱلْقُرْءَانِ ٱلْحَكِيمِ إِنَّكَ لَمِنَ ٱلْمُرْسَلِينَ عَلَىٰ صِرَٰطٍۢ مُّسْتَقِيمٍۢ 

"यासीन। कसम है हिकमत वाले कुरान की। बेशक तू मुरसलों (भेजे गए) में से है, सीधे रास्ते पर।"

यह आयत पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रिसालत की तसदीक करती है। इमाम तबरि अपनी तफसीर में लिखते हैं।: "يس حروف مقطعة، وهي إشارة إلى معجزة القرآن، وتأكيد لنبوة محمد." "यासीन हुरूफ-ए-मुकत्तआत हैं, जो कुरान की मोजिजा की तरफ इशारा हैं और पैगम्बर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नुबूवत की तसदीक।"

  हदीस में आता है: 

عَنْ أَنَسِ بْنِ مَالِكٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "مَنْ قَرَأَ سُورَةَ يس فِي لَيْلَةٍ ابْتِغَاءَ وَجْهِ اللَّهِ غُفِرَ لَهُ" 

"हजरत अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: जो शख्स सूरह यासीन को एक रात में अल्लाह की रजा के लिए पढ़े, उसके लिए मगफिरत है।"

इब्ने हिशाम "सीरत रसूलल्लाह" में लिखते हैं कि मक्का के दौर में यह सूरह काफिरों को चेतावनी थी। "سورة يس نزلت في مكة لتحذير قريش من عاقبة الكفر." "सूरह यासीन मक्का में नाजिल हुई ताकि कुरैश को कुफ्र की अंजाम से डराया जाए।" सूरह हमें सिखाती है कि कुरान हिदायत है, और इसे पढ़कर ईमान मजबूत होता है। 

सूरह यासीन में तौहीद और अल्लाह की कुदरत 

सूरह यासीन का मुख्य विषय तौहीद है। इसमें अल्लाह की कुदरत की मिसालें हैं, जैसे आसमान, जमीन, फल, जानवर और इंसान की पैदाइश। यह बताती है कि अल्लाह ने सब कुछ हिकमत से बनाया है। अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है: 

أَوَلَمْ يَرَوْا۟ أَنَّا خَلَقْنَا لَهُم مِّمَّا عَمِلَتْ أَيْدِينَآ أَنْعَٰمًۭا فَهُمْ لَهَا مَٰلِكُونَ وَذَلَّلْنَٰهَا لَهُمْ فَمِنْهَا رَكُوبُهُمْ وَمِنْهَا يَأْكُلُونَ 

"क्या उन्होंने नहीं देखा कि हमने उनके लिए अपनी कुदरत से मवेशी पैदा किए, तो वे उनके मालिक हैं। और हमने उन्हें उनके लिए वशीभूत किया, तो उनमें से कुछ उनकी सवारी हैं और कुछ वे खाते हैं।"

यह आयत अल्लाह की कुदरत बताती है। इब्ने कसीर तफसीर में लिखते हैं। : "هذه الآية تذكر بقدرة الله في خلق الكون، ودعوة للتوحيد." "यह आयत अल्लाह की कुदरत की याद दिलाती है और तौहीद की दावत है।"

आखिरत और कयामत की याद 

सूरह यासीन में आखिरत का जिक्र है, जैसे कयामत का दिन, हिसाब और जन्नत-जहन्नम। यह बताती है कि दुनिया फानी है और आखिरत हमेशा की है। हदीस में आता है: 

عَنْ مَعْقِلِ بْنِ يَسَارٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "اقْرَؤُوا يس عَلَى مَوْتَاكُمْ" 

"हजरत माकिल बिन यसार रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: सूरह यासीन अपने मुरदों पर पढ़ो।"

यह हदीस मरने वालों पर पढ़ने की ताकीद करती है। अल-वाकिदी "किताब अल-मगाजी" में लिखते हैं कि सूरह यासीन आखिरत की तैयारी सिखाती है।

"سورة يس تذكر بالموت والقيامة، وهي دليل على الحياة الأبدية."

"सूरह यासीन मौत और कयामत की याद दिलाती है, और हमेशा की जिंदगी का सबूत है।" सूरह हमें सिखाती है कि दुनिया की मोहब्बत छोड़कर आखिरत की तैयारी करें। 

पहली उम्मतों की मिसालें और दावत 

सूरह में पहले की उम्मतों की मिसालें हैं, जैसे काफिरों ने रसूलों को झुटलाया और अजाब आया। यह पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तसल्ली देती है। अल्लाह इरशाद फरमाता है: 

وَضَرَبَ لَنَا مَثَلًۭا وَنَسِىَ خَلْقَهُۥ ۖ قَالَ مَن يُحْىِ ٱلْعِظَٰمَ وَهِىَ رَمِيمٌۭ قُلْ يُحْيِيهَا ٱلَّذِىٓ أَنشَأَهَآ أَوَّلَ مَرَّةٍۢ ۖ وَهُوَ بِكُلِّ خَلْقٍ عَلِيمٌۭ 

"और हमारे लिए मिसाल बयान की और अपनी पैदाइश भूल गया। कहता है: कौन जिंदा करेगा हड्डियां जबकि वे गली हुई हैं। कहो: उन्हें जिंदा करेगा जिसने पहली बार उन्हें पैदा किया, और वह हर पैदाइश को जानने वाला है।"

यह आयत दोबारा जिंदा होने का सबूत देती है। इब्ने कसीर "अल-बिदाया वन-निहाया" में लिखते हैं। :

"قصص الأمم السابقة في يس عبرة للكافرين، وتذكير بالعقاب."

"सूरह यासीन में पिछली उम्मतों की कहानियां काफिरों के लिए सबक हैं और अजाब की याद।"

हदीस में फरमाया गया: 

عَنْ أَبِي سَعِيدٍ الْخُدْرِيِّ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: "مَنْ قَرَأَ سُورَةَ يس فِي يَوْمٍ وَلَيْلَةٍ حَتَّى يُخَتِمَهَا كَانَتْ لَهُ شَفَاعَةً يَوْمَ الْقِيَامَةِ" 

"हजरत अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: जो सूरह यासीन को दिन-रात में पढ़े यहां तक कि खत्म करे, उसके लिए कयामत के दिन शफाअत होगी।"

यह हदीस शफाअत का वादा करती है। इब्ने साद "तबकात अल-कुब्रा" में लिखते हैं कि सूरह यासीन दावत-ए-इस्लाम की मिसाल है। "سورة يس دعوة للإيمان، وتحذير من الكفر كما في قصص الأنبياء." "सूरह यासीन ईमान की दावत है और कुफ्र से चेतावनी, जैसे पैगम्बरों की कहानियां।"

सूरह यासीन की शिक्षाएं और फजाइल 

सूरह यासीन का चरित्र हिदायत, याद-ए-आखिरत और तौहीद है। यह मुसलमानों को सिखाती है कि अल्लाह की याद में सुकून है और दुनिया फानी है। हजरत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा कहती थीं कि पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इसे पढ़ते थे। अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है: 

وَإِنَّهُۥ لَتَنزِيلُ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ نَزَلَ بِهِ ٱلرُّوحُ ٱلْأَمِينُ عَلَىٰ قَلْبِكَ لِتَكُونَ مِنَ ٱلْمُنذِرِينَ 

"और बेशक यह रब्बुल आलमीन का नाजिल किया हुआ है। इसे रूहुल अमीन (जिब्रील) ने तेरे दिल पर उतारा ताकि तू डराने वालों में से हो।" हदीस में फरमाया गया: 

عَنْ جُنْدَبِ بْنِ عَبْدِ اللَّهِ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: "مَنْ قَرَأَ يس فِي لَيْلَةٍ وَهُوَ يَخَافُ الْفَقْرَ أَغْنَاهُ اللَّهُ" 

"हजरत जुनदब बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: जो सूरह यासीन को रात में पढ़े जबकि गरीबी का डर हो, अल्लाह उसे गनी कर देगा।"

यह हदीस फजाइल बताती है। इब्ने कसीर "अल-बिदाया" में लिखते हैं। :

 "فضائل سورة يس كثيرة، منها الشفاء والغنى والمغفرة."

"सूरह यासीन के फजाइल बहुत हैं, जैसे शिफा, गनी और मगफिरत।" सूरह हमें सिखाती है कि तिलावत से मुश्किलें दूर होती हैं। 

 

निष्कर्ष 

सूरह यासीन कुरान का दिल है और ईमान की रौशनी। इसमें तौहीद, आखिरत और अल्लाह की कुदरत की मिसालें हैं जो हमें नेकी की तरफ बुलाती हैं। कुरान और हदीस इसकी तारीफ करते हैं, और उलेमा ने इसकी तफसीर की। आज के दौर में यह सूरह हमें गफलत से बचाती है और अल्लाह की याद दिलाती है। हमें चाहिए कि इसे रोज पढ़ें और अमल करें। अल्लाह हमें इसके फजाइल हासिल करने की तौफीक दे।

 

संदर्भ 

सुनन तिर्मिजी 

  1. तफसीर इब्ने कसीर,
  2. सूरह यासीन
  3. तफसीर तबरि
  4. सुनन इब्ने माजा
  5. सीरत रसूलल्लाह, इब्ने हिशाम
  6. सुनन अबू दाऊद
  7. किताब अल-मगाजी, अल-वाकिदी, जिल्द 1  
  8. अल-बिदाया वन-निहाया, इब्ने कसीर
  9. मुस्तदरक हाकिम
  10. तबकात अल-कुब्रा, इब्ने साद
  11. सुनन दारमी

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