तज़किया: इस्लाम में ज़हन और रूह की पाकीज़गी
परिचय
इस्लाम में तज़किया का मतलब है ज़हन (मन) और रूह (आत्मा) को गुनाहों, बुरे ख़यालों, और दुनिया की ग़लत चाहतों से पाक करना। यह इस्लाम का एक अहम उसूल है, जो इंसान को अल्लाह के करीब लाता है और उसकी ज़िंदगी को सुकून व मकसद देता है। कुरआन और हदीस में तज़किया को तक़वा (अल्लाह का डर), इख़लास (ख़ालिस नीयत), और अच्छे अखलाक़ (नैतिकता) का ज़रिया बताया गया है। तज़किया सिर्फ़ इबादत तक सीमित नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में ख़यालों, आदतों, और बर्ताव को बेहतर बनाने का नाम है। आज के दौर में, जहाँ तनाव, लालच, और गलत रास्तों का दबाव बढ़ रहा है, तज़किया हमें सही राह दिखाता है।
तज़किया की अहमियत
तज़किया का मतलब है "पाक करना" या "शुद्ध करना"। इस्लाम में यह ज़हन और रूह को बुराइयों से बचाने और अल्लाह की रज़ा के लिए ज़िंदगी जीने का तरीक़ा है। कुरआन में तज़किया को इंसान की कामयाबी का ज़रिया बताया गया है।
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है:
وَنَفْسٍ وَمَا سَوَّاهَا فَأَلْهَمَهَا فُجُورَهَا وَتَقْوَاهَا قَدْ أَفْلَحَ مَنْ زَكَّاهَا وَقَدْ خَابَ مَنْ دَسَّاهَا
"और नफ़्स (रूह) की क़सम और उसकी जिसने उसे बनाया। फिर उसने उसे उसकी बुराई और तक़वा की समझ दी। बेशक वह कामयाब हुआ जिसने अपने नफ़्स को पाक किया, और वह नाकाम रहा जिसने उसे गंदा किया।" (सूरह अश-शम्स 91:7-10)
हदीस में है:
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "إِنَّمَا الْعِلْمُ بِالتَّعَلُّمِ وَالْحِلْمُ بِالتَّحَلُّمِ وَمَنْ يَتَصَبَّرْ يُصَبِّرْهُ اللَّهُ"
अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: "इल्म सीखने से आता है, और सब्र की आदत डालने से, और जो शख्स सब्र की कोशिश करे, अल्लाह उसे सब्र अता करता है।" (सही बुखारी)
तज़किया का मकसद है दिल और ज़हन को साफ़ करना, ताकि इंसान अल्लाह की इबादत ख़ालिस नीयत से करे और दूसरों के साथ अच्छा बर्ताव करे। यह गुनाहों, ग़ुस्से, और जलन जैसे बुरे ख़यालों से बचाता है।
पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी ज़िंदगी में तज़किया की मिसाल दी। मक्का के क़ुरैश ने उन पर ज़ुल्म किए, लेकिन उन्होंने सब्र और मेहरबानी दिखाई। मक्का फ़तह के वक़्त उन्होंने दुश्मनों को माफ़ कर दिया, जो रूह की पाकीज़गी की मिसाल है।(1)
तज़किया के तरीक़े
तज़किया के कई तरीक़े कुरआन और हदीस में बताए गए हैं, जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लागू किए जा सकते हैं।
ज़िक्र (अल्लाह की याद)
ज़िक्र अल्लाह को याद करने का आसान और असरदार तरीक़ा है, जो दिल को सुकून देता है।
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है:
الَّذِينَ آمَنُوا وَتَطْمَئِنُّ قُلُوبُهُمْ بِذِكْرِ اللَّهِ ۗ أَلَا بِذِكْرِ اللَّهِ تَطْمَئِنُّ الْقُلُوبُ
"वे लोग जो ईमान लाए और उनके दिल अल्लाह के ज़िक्र से सुकून पाते हैं। सुनो! अल्लाह के ज़िक्र से ही दिलों को सुकून मिलता है।" (सूरह अर-रअद 13:28)
रोज़मर्रा में ज़िक्र: सुबह-शाम "सुब्हानअल्लाह", "अल्हम्दुलिल्लाह", और "अल्लाहु अकबर" जैसे ज़िक्र पढ़ना ज़हन को साफ़ रखता है।
हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने ग़ुलामी में ज़ुल्म सहे, लेकिन "अहदुन अहद" (अल्लाह एक है) का ज़िक्र किया, जो उनकी रूह की तज़किया की मिसाल है।(2)
नमाज़ और इबादत
नमाज़ तज़किया का अहम ज़रिया है, जो इंसान को दिन में पाँच बार अल्लाह से जोड़ती है।
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है:
اتْلُ مَا أُوحِيَ إِلَيْكَ مِنَ الْكِتَابِ وَأَقِمِ الصَّلَاةَ ۖ إِنَّ الصَّلَاةَ تَنْهَىٰ عَنِ الْفَحْشَاءِ وَالْمُنْكَرِ
"जो किताब तुम्हारी तरफ़ वही के ज़रिए भेजी गई है, उसे पढ़ो और नमाज़ क़ायम करो। बेशक नमाज़ बुराई और गलत कामों से रोकती है।" (सूरह अल-अनकबूत 29:45)
रोज़मर्रा में नमाज़: पाँच वक़्त की नमाज़ और नफ़्ल इबादत तज़किया को बढ़ाती है।
मिसाल: हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा रात में तहज्जुद पढ़ती थीं, जो उनकी रूह की पाकीज़गी की मिसाल थी।(3)
सब्र और शुकूर
सब्र (धैर्य) और शुकूर (शुक्रिया) तज़किया के अहम हिस्से हैं। सब्र मुश्किलों में हिम्मत देता है, और शुकूर नेमतों की क़द्र सिखाता है।
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है:
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اسْتَعِينُوا بِالصَّبْرِ وَالصَّلَاةِ ۚ إِنَّ اللَّهَ مَعَ الصَّابِرِينَ
"ऐ ईमान वालो! सब्र और नमाज़ के ज़रिए मदद माँगो। बेशक अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है।" (सूरह अल-बक़रा 2:153)
हदीस में है:
عَنْ صُهَيْبٍ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "عَجَبًا لِأَمْرِ الْمُؤْمِنِ إِنَّ أَمْرَهُ كُلَّهُ خَيْرٌ... إِنْ أَصَابَتْهُ سَرَّاءُ شَكَرَ فَكَانَ خَيْرًا لَهُ، وَإِنْ أَصَابَتْهُ ضَرَّاءُ صَبَرَ فَكَانَ خَيْرًا لَهُ"
सुहैब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: "मोमिन का मामला अजीब है। उसका हर हाल ख़ैर है... अगर उसे ख़ुशी मिले तो वह शुकूर करता है, जो उसके लिए बेहतर है, और अगर उसे तकलीफ़ मिले तो वह सब्र करता है, जो उसके लिए बेहतर है।" (सही मुस्लिम)
रोज़मर्रा में सब्र और शुकूर: मुश्किलों में सब्र करना, जैसे नौकरी में नाकामी, और नेमतों पर "अल्हम्दुलिल्लाह" कहना।
हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने ग़ुलामी और जेल में सब्र किया। उनकी कहानी (सूरह यूसुफ़) तज़किया और सब्र की मिसाल है(4)
तज़किया और अखलाक़
तज़किया का बड़ा हिस्सा अच्छे अखलाक़ को अपनाना है, जैसे मेहरबानी, सच्चाई, और हया।
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है:
وَإِنَّكَ لَعَلَىٰ خُلُقٍ عَظِيمٍ
"और बेशक तुम (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) बड़े अखलाक़ पर हो।" (सूरह अल-क़लम 68:4)
हदीस में है:
عَنْ أَبِي الدَّرْدَاءِ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "مَا مِنْ شَيْءٍ أَثْقَلُ فِي مِيزَانِ الْمُؤْمِنِ يَوْمَ الْقِيَامَةِ مِنْ حُسْنِ الْخُلُقِ"
अबू दर्दा रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: "क़ियामत के दिन मोमिन के तुला में अच्छे अखलाक़ से ज़्यादा वज़नदार कुछ नहीं होगा।" (सुनन तिर्मिज़ी)
रोज़मर्रा में अखलाक़:
- मेहरबानी: पड़ोसियों और सहकर्मियों के साथ अच्छा बर्ताव।
- सच्चाई: झूठ से बचना और सच बोलना।
- हया: शालीनता के साथ ज़िंदगी जीना।
मिसाल: हज़रत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने ग़रीबों और यतीमों की मदद की। उन्होंने अपनी सारी दौलत अल्लाह की राह में दान कर दी, जो उनके अखलाक़ और तज़किया की मिसाल है।(5)
तज़किया और समाज
तज़किया निजी ज़िंदगी तक सीमित नहीं, बल्कि समाज को बेहतर बनाता है। साफ़ दिल और ज़हन वाला इंसान इंसाफ़ और मोहब्बत फैलाता है।
अल्लाह तआला कुरआन में फरमाता है:
وَلْتَكُنْ مِنْكُمْ أُمَّةٌ يَدْعُونَ إِلَى الْخَيْرِ وَيَأْمُرُونَ بِالْمَعْرُوفِ وَيَنْهَوْنَ عَنِ الْمُنْكَرِ ۚ وَأُولَٰئِكَ هُمُ الْمُفْلِحُونَ
"तुम में से एक जमात ऐसी होनी चाहिए जो भलाई की तरफ़ बुलाए, अच्छे काम का हुक्म दे, और बुरे काम से रोके। यही लोग कामयाब हैं।" (सूरह आल-ए-इमरान 3:104)
समाज में तज़किया:
- मदद करना: ग़रीबों और ज़रूरतमंदों की मदद।
- इंसाफ़: बराबरी और हक़ की बात करना।
- अमन: मोहब्बत और भाईचारा बढ़ाना।
मिसाल: मलाला यूसुफ़ज़ई ने लड़कियों की तालीम के लिए संघर्ष किया। उनकी किताब आई एम मलाला में वे बताती हैं कि इस्लाम दूसरों की भलाई सिखाता है। 2014 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला।(6)
निष्कर्ष
तज़किया इस्लाम का अहम उसूल है, जो ज़हन और रूह को पाक करता है। कुरआन और हदीस हमें सिखाते हैं कि ज़िक्र, नमाज़, सब्र, और अच्छे अखलाक़ से ज़िंदगी बेहतर बनती है। हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु, हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा, और मलाला यूसुफ़ज़ई जैसी मिसालें दिखाती हैं कि तज़किया निजी और सामाजिक ज़िंदगी को रौशन करता है। आधुनिक युग में टेक्नोलॉजी और जागरूकता ने तज़किया को आसान बनाया है। हमें तज़किया के तरीक़ों को अपनाना चाहिए, दूसरों के लिए मिसाल बनना चाहिए, और ऐसी ज़िंदगी जीनी चाहिए जो अल्लाह की रज़ा और समाज की भलाई के लिए हो।
सन्दर्भ
- इब्न हिशाम, सीरत रसूलल्लाह, खंड 2, पृ. 150-170 (पैगंबर की तज़किया)।
- इब्न साद, तबकात अल-कुब्रा, खंड 3, पृ. 123-130 (हज़रत बिलाल)।
- इब्न साद, तबकात अल-कुब्रा, खंड 8, पृ. 123-130 (हज़रत आयशा)।
- कुरआन, सूरह यूसुफ़ (12:1-101) (हज़रत यूसुफ़)।
- तबरी, तारीख अल-उमम वल-मुलूक, खंड 3, पृ. 80-100 (हज़रत अबू बक्र)।
- मलाला यूसुफ़ज़ई, आई एम मलाला, पृ. 100-150 (तालीम का संघर्ष)।
Disclaimer
The views expressed in this article are the author’s own and do not necessarily mirror Islamonweb’s editorial stance.
Leave A Comment