खौफे खुदा

परिचय

खौफे खुदा, जिसे इस्लाम में "तकवा" कहा जाता है, इंसान की जिंदगी को सही राह पर ले जाने वाली सबसे बड़ी ताकत है। तकवा का मतलब है अल्लाह की नाराजगी से डरना, उसके हुक्मों का पालन करना और गुनाहों से बचना। यह डर इंसान को नेकी की ओर ले जाता है और आखिरत में कामयाबी का जरिया बनता है। कुरआन और हदीस में तकवा को मोमिन की सबसे बड़ी खासियत बताया गया है। पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि तकवा दिल में होता है, जो इंसान को सच्चाई और ईमानदारी की राह दिखाता है। आज के दौर में, जब लोग दुनिया की चमक-दमक में खोए हैं, अल्लाह का डर हमें गुनाहों से बचाता है और जिंदगी में सुकून देता है।

तकवा का मतलब और अहमियत

तकवा का मतलब है अल्लाह की नाराजगी से डरना, उसके हुक्मों पर चलना, और हर उस काम से बचना जो उसे पसंद न हो। यह डर दिल में होता है, जो इंसान को गुनाहों से दूर रखता है। तकवा सिर्फ डर नहीं, बल्कि अल्लाह की मोहब्बत और उसकी इबादत का जज्बा भी है। कुरआन में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है:

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ حَقَّ تُقَاتِهِ وَلَا تَمُوتُنَّ إِلَّا وَأَنْتُمْ مُسْلِمُونَ "ऐ ईमान वालो! अल्लाह से डरो जैसा उससे डरने का हक है, और तुम्हें मौत न आए मगर मुसलमान हालत में।" [1]

यह आयत तकवा की अहमियत बताती है। इमाम गजाली अपनी किताब इह्या उलूमिद्दीन में लिखते हैं।
"
التقوى خوف القلب من الله يقود إلى طاعته" "तकवा दिल का वह डर है जो अल्लाह की इताअत की ओर ले जाता है।" [2]

तकवा के तीन मुख्य प्रकार हैं:

  1. गुनाहों से बचना: झूठ, चोरी, और गीबत जैसे गुनाहों से परहेज करना।
  2. इबादत में इखलास: नमाज, रोजा, और जकात को सच्चाई से अदा करना।
  3. दिल की पाकी: नीयत को साफ रखना और अल्लाह की रजा के लिए काम करना।

तकवा से इंसान की रूह को सुकून मिलता है, और समाज में भरोसा और अमन बढ़ता है। यह इंसान को अल्लाह की रहमत का हकदार बनाता है।

कुरआन और हदीस में अल्लाह का डर

कुरआन में तकवा को जन्नत का रास्ता बताया गया है। यह वह खासियत है जो मोमिन को गुनाहों से बचाती है और अल्लाह की माफी का जरिया बनती है। कुरआन में इरशाद है:

وَسَارِعُوا إِلَىٰ مَغْفِرَةٍ مِنْ رَبِّكُمْ وَجَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمَاوَاتُ وَالْأَرْضُ أُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِينَ

"और अपने रब की माफी और उस जन्नत की ओर दौड़ो जिसकी चौड़ाई आसमानों और जमीन जितनी है, जो मुत्तकियों के लिए तैयार की गई है।" [3]

यह आयत बताती है कि तकवा जन्नत का रास्ता है। हदीस में पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया:

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "التقوى هاهنا" وأشار إلى صدره

 "अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: तकवा यहां है, और अपने सीने की ओर इशारा किया।" [4]

पैगंबर और सहाबा में तकवा की मिसालें

पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तकवा की सबसे बड़ी मिसाल थे। उनकी जिंदगी हर कदम पर अल्लाह के डर और उसकी मोहब्बत से भरी थी। एक बार जब उनसे पूछा गया कि सबसे अच्छा इंसान कौन है, तो उन्होंने फरमाया कि वह जो अल्लाह से सबसे ज्यादा डरता है। कुरआन में इरशाद है:

إِنَّمَا يَتَقَبَّلُ اللَّهُ مِنَ الْمُتَّقِينَ

 "बेशक अल्लाह मुत्तकियों से ही कबूल करता है।" [6]

हजरत उमर रज़ियल्लाहु अन्हु की खिलाफत तकवा की मिसाल है। एक बार उन्होंने जकात का माल बांटते वक्त अपने लिए कुछ भी न लिया, क्योंकि उन्हें अल्लाह का डर था। मौलाना जलालुद्दीन रूमी मसनवी में लिखते हैं।
"
ترس از خدا دل را زنده می‌کند و انسان را به سوی خیر هدایت می‌کند."
 "
अल्लाह का डर दिल को जिंदा करता है और इंसान को भलाई की ओर ले जाता है।" [7]

हजरत अबू बक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने खलीफा बनने के बाद कहा: "मैं अल्लाह और उसके रसूल का हुक्म मानूंगा, क्योंकि मुझे उसका डर है।" उनकी जिंदगी तकवा का नमूना थी।

तकवा के फायदे

तकवा के फायदे दुनिया और आखिरत दोनों में हैं। यह इंसान को गुनाहों से बचाता है, रिजक में बरकत देता है, और जन्नत का रास्ता दिखाता है। कुरआन में इरशाद है:

وَمَنْ يَتَّقِ اللَّهَ يَجْعَلْ لَهُ مَخْرَجًا ۝ وَيَرْزُقْهُ مِنْ حَيْثُ لَا يَحْتَسِبُ

 "और जो अल्लाह से डरे, वह उसके लिए निकलने का रास्ता बनाएगा और उसे वहां से रिजक देगा जहां से उसने सोचा भी न हो।" [8]

हदीस में फरमाया गया:

عَنْ عُمَرَ بْنِ الْخَطَّابِ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "لَوْ أَنَّكُمْ تَوَكَّلُوا عَلَى اللَّهِ حَقَّ تَوَكُّلِهِ لَرُزِقْتُمْ كَمَا يُرْزَقُ الطَّيْرُ"
"
उमर बिन खत्ताब रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: अगर तुम अल्लाह पर पूरा भरोसा करो, तो तुम्हें वैसे रिजक मिलेगा जैसे परिंदों को मिलता है।" [9]

इमाम बगवी मआलिमुत तंजील में लिखते हैं।
"
التقوى تجلب الرزق وتحمي من العذاب."
"
तकवा रिजक लाता है और अजाब से बचाता है।" [10]

तकवा से दिल को सुकून मिलता है, मुश्किलें आसान होती हैं, और आखिरत में जन्नत की बशारत मिलती है।

गुनाहों से बचाव और तकवा

तकवा इंसान को गुनाहों से रोकता है और नेकी की राह दिखाता है। कुरआन में अल्लाह तआला  इरशाद फरमाता है:

يَا أَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوا رَبَّكُمُ الَّذِي خَلَقَكُمْ مِنْ نَفْسٍ وَاحِدَةٍ
: "
ऐ लोगो! अपने रब से डरो जिसने तुम्हें एक जान से पैदा किया।" [11]

हदीस में रिवायत है:

عَنْ ابْنِ عَبَّاسٍ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "إِنَّ أَكْرَمَكُمْ عِنْدَ اللَّهِ أَتْقَاكُمْ"
 "
इब्ने अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: तुम में सबसे इज्जत वाला अल्लाह के नजदीक वह है जो सबसे ज्यादा तकवा वाला है।" [12]

अबू नईम हिल्यातुल औलिया में लिखते हैं।
 "
التقوى درع المؤمن ضد الذنوب."
"
तकवा मोमिन का वह ढाल है जो गुनाहों से बचाता है।" [13] तकवा इंसान को गुनाहों से रोकता है और उसे अल्लाह की रजा की ओर ले जाता है।

निष्कर्ष

अल्लाह का डर, यानी तकवा, इंसान की जिंदगी को नेकी और सच्चाई से भर देता है। कुरआन और हदीस में तकवा को मोमिन की सबसे बड़ी खासियत बताया गया है, जो जन्नत का रास्ता दिखाता है। पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम की जिंदगी तकवा की मिसाल है। आज के दौर में, जब गुनाह आसान लगते हैं, तकवा हमें सही राह दिखाता है, रिजक में बरकत देता है, और दिल को सुकून देता है। हमें चाहिए कि हम तकवा को अपनाएं, अल्लाह के हुक्मों पर चलें, और उसकी रहमत की दुआ करें। अल्लाह हमें तकवा की तौफीक दे और जन्नत नसीब फरमाए।

फुटनोट्स और संदर्भ

  1. सूरह आले-इमरान: 102, अल-कुरान, : मौलाना फतेह मुहम्मद जालंधरी।
  2. इह्या उलूमिद्दीन, इमाम गजाली, जिल्द 2, सफा 200-210
  3. सूरह आले-इमरान: 133, अल-कुरान।
  4. सही मुस्लिम, हदीस 2564
  5. मारिफुल कुरआन, मुफ्ती शफी उस्मानी, जिल्द 1, पृष्ठ 100-110
  6. सूरह अल-माइदा: 27, अल-कुरान।
  7. मसनवी, मौलाना जलालुद्दीन रूमी, जिल्द 3, सफा 150-160
  8. सूरह अत-तलाक: 2-3, अल-कुरान।
  9. सुनन तिर्मिजी, हदीस 2340
  10. मआलिमुत तंजील, इमाम बगवी, जिल्द 4, सफा 120-130
  11. सूरह अन-निसा: 1, अल-कुरान।
  12. सूरह अल-हुजुरात: 13, अल-कुरान।
  13. हिल्यातुल औलिया, अबू नईम, जिल्द 2, सफा 200-210

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