तौहीद: इस्लाम का मूल सिद्धांत
परिचय
तौहीद इस्लाम का सबसे महत्वपूर्ण और बुनियादी सिद्धांत है, जिसका अर्थ है एकेश्वरवाद, यानी केवल एक अल्लाह पर विश्वास करना। यह विश्वास इस्लाम की नींव है और हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है। तौहीद को तीन मुख्य श्रेणियों में बांटा गया है: तौहीद अर-रुबूबिय्या (रब की एकता), तौहीद अल-उलूहिय्या (इबादत की एकता), और तौहीद अल-अस्मा वस-सिफात (नामों और गुणों की एकता)। ये तीनों प्रकार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और इस्लाम के विश्वास को पूर्ण करते हैं। तौहीद का मतलब है कि अल्लाह ही सृष्टिकर्ता है, इबादत के योग्य है, और उसके गुण अनोखे हैं। शिर्क (साझी ठहराना) तौहीद का उल्टा है, जो इस्लाम में सबसे बड़ा गुनाह है। पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी जिंदगी में तौहीद की दावत दी और लोगों को शिर्क से बचाया।
तौहीद इस्लाम का दिल है, जो मुसलमान को अल्लाह से जोड़ता है और जिंदगी के हर पहलू में मार्गदर्शन करता है। अगर तौहीद मजबूत हो, तो इबादत सही होती है और शिर्क से बचाव होता है।
तौहीद अर-रुबूबिय्या (रब की एकता)
तौहीद अर-रुबूबिय्या का अर्थ है यह विश्वास करना कि अल्लाह ही एकमात्र सृष्टिकर्ता, पालनहार और संसार का संचालक है। वह हर चीज का मालिक है, और वही जीवन, मृत्यु, और सृष्टि के सारे कामों को नियंत्रित करता है। इस तौहीद में यह मानना शामिल है कि कोई और सृष्टि, पालन-पोषण या प्रबंधन में अल्लाह का साझीदार नहीं है। यह तौहीद बताती है कि ब्रह्मांड की हर चीज अल्लाह की बनाई हुई है, और वह अकेला इसका मालिक है। अगर कोई यह सोचे कि कोई देवता या तारा जीवन देता है, तो वह शिर्क करता है।
कुरान में इस पर इरशाद है:
اللَّهُ لَا إِلَٰهَ إِلَّا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ ۚ لَا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلَا نَوْمٌ ۚ لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ مَنْ ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِنْدَهُ إِلَّا بِإِذْنِهِ
"अल्लाह, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं, वह सदा जीवित और सब कुछ संभालने वाला है। उसे न झपकी आती है, न नींद। जो कुछ आकाशों में और धरती पर है, सब उसी का है। कौन है जो उसके पास बिना उसकी इजाजत के सिफारिश कर सके?" [1]
यह आयत बताती है कि अल्लाह ही सृष्टि का पालनहार है, और कोई उसका साझीदार नहीं। इब्ने कसीर अपनी तफसीर में इस आयत की व्याख्या करते हैं। "فإن هذه الآية الكريمة أعظم آية في كتاب الله تعالى، تضمنت توحيد الربوبية والأسماء والصفات." "यह महान आयत अल्लाह की किताब में सबसे बड़ी आयत है, जो रब की एकता, नामों और गुणों की एकता को शामिल करती है।" [2]
यह उद्धरण बताता है कि आयतुल कुर्सी तौहीद अर-रुबूबिय्या की सबसे बड़ी दलील है।
मक्का में पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मूर्तिपूजकों को तौहीद अर-रुबूबिय्या की दावत दी। कुरैश के लोग मानते थे कि मूर्तियां उनकी सिफारिश करती हैं, लेकिन पैगंबर ने उन्हें समझाया कि केवल अल्लाह ही सृष्टिकर्ता और पालनहार है। एक बार कुरैश ने पैगंबर से पूछा कि अल्लाह कहां है। जवाब में अल्लाह ने यह आयत नाजिल की:
أَوَلَمْ يَنْظُرُوا فِي مَلَكُوتِ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ وَمَا خَلَقَ اللَّهُ مِنْ شَيْءٍ
"क्या उन्होंने आकाशों और धरती के साम्राज्य पर और अल्लाह की बनाई हर चीज पर गौर नहीं किया?" [3]
पैगंबर ने इस आयत के जरिए मूर्तिपूजकों को बताया कि सृष्टि की हर चीज अल्लाह की बनाई हुई है, और उसका कोई साझीदार नहीं। इस घटना से तौहीद अर-रुबूबिय्या का महत्व समझ में आता है।
हदीस में फरमाया गया:
عَنْ ابْنِ عَبَّاسٍ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "اعْرِفُوا اللَّهَ فِي الرَّخَاءِ يَعْرِفْكُمْ فِي الشِّدَّةِ"
"इब्न अब्बास रज़ियल्लाहु अन्हु रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमसे ने फरमाया: खुशहाली में अल्लाह को पहचानो, वह मुसीबत में तुम्हें पहचानेगा।" [5]
यह हदीस बताती है कि अल्लाह की रुबूबियत को मानना जिंदगी की हर हालत में मदद करता है। तौहीद अर-रुबूबिय्या मुसलमान को यह यकीन दिलाती है कि अल्लाह ही हर चीज का मालिक है, और वह अकेला मददगार है। अगर कोई यह सोचे कि डॉक्टर या दवा जीवन देती है, बिना अल्लाह की इजाजत के, तो वह गलती करता है। उलेमा जैसे इमाम ताहावी अपनी एक्वीडा में कहते हैं कि तौहीद रुबूबिय्या बिना उलूहिय्या के अधूरी है। [6] यह प्रकार तौहीद की बुनियाद है, जो सृष्टि की सच्चाई समझाता है। अब हम तौहीद अल-उलूहिय्या पर बात करते हैं।
तौहीद अल-उलूहिय्या (इबादत की एकता)
तौहीद अल-उलूहिय्या का अर्थ है कि सारी इबादत—नमाज, दुआ, कुरबानी, और हर तरह की पूजा—केवल अल्लाह के लिए होनी चाहिए। इसमें यह विश्वास शामिल है कि कोई और इबादत का हकदार नहीं है, चाहे वह मूर्ति हो, कोई इंसान हो, या कोई और चीज। यह तौहीद इस्लाम का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यह इंसान को शिर्क से बचाती है। शिर्क अल-अकबर (बड़ा शिर्क) इसी में होता है, जब कोई अल्लाह के साथ किसी को इबादत में शरीक करता है।
कुरान में इरशाद है: إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ "हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझी से मदद मांगते हैं।" [7]
यह आयत सूरह फातिहा की है, जो हर नमाज में पढ़ी जाती है, और बताती है कि इबादत और मदद केवल अल्लाह से है। इब्ने कसीर अपनी तफसीर में कहते हैं।: "إياك نعبد أي لا نعبد غيرك وإياك نستعين أي لا نستعين بغيرك." "हम तेरी ही इबादत करते हैं, यानी हम तेरे सिवा किसी की इबादत नहीं करते, और तुझी से मदद मांगते हैं, यानी तेरे सिवा किसी से मदद नहीं मांगते।" [8] यह उद्धरण तौहीद उलूहिय्या की साफ व्याख्या है।
जब पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्का को फतह किया (630 ई.), तो उन्होंने काबा के अंदर और आसपास की 360 मूर्तियों को तोड़ दिया। यह कदम तौहीद अल-उलूहिय्या को स्थापित करने का प्रतीक था। उन्होंने लोगों को समझाया कि केवल अल्लाह ही इबादत के योग्य है। इस घटना ने मक्का के लोगों पर गहरा प्रभाव डाला, और कई ने इस्लाम स्वीकार किया।
कुरान में इरशाद है:
أَلَا لِلَّهِ الدِّينُ الْخَالِصُ ۚ وَالَّذِينَ اتَّخَذُوا مِنْ دُونِهِ أَوْلِيَاءَ مَا نَعْبُدُهُمْ إِلَّا لِيُقَرِّبُونَا إِلَى اللَّهِ زُلْفَىٰ
"खबरदार! खालिस दीन (इबादत) केवल अल्लाह के लिए है। और जिन लोगों ने उसके सिवा औरों को दोस्त बनाया, (वह कहते हैं) हम उनकी इबादत इसलिए करते हैं ताकि वे हमें अल्लाह के करीब ले जाएं।" [9]
इस आयत में मूर्तिपूजकों की गलत धारणा को खारिज किया गया, जो तौहीद अल-उलूहिय्या के खिलाफ थी। पैगंबर ने लोगों को सिखाया कि इबादत केवल अल्लाह के लिए होनी चाहिए।
इब्ने हिशाम अपनी सीरत में इस फतह का जिक्र करते हैं।: "دخل النبي صلى الله عليه وسلم الكعبة فوجد فيها أصناماً فأمر بها فأخرجت وكسرها." "पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम काबा में दाखिल हुए और वहां मूर्तियां पाईं, तो हुक्म दिया कि उन्हें निकाला जाए और तोड़ दिया जाए।" [10]
हदीस में फरमाया गया:
عَنْ مُعَاذِ بْنِ جَبَلٍ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "حَقُّ اللَّهِ عَلَى الْعِبَادِ أَنْ يَعْبُدُوهُ وَلَا يُشْرِكُوا بِهِ شَيْئًا"
"मुआज बिन जबल रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलल्लाह रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: बंदों पर अल्लाह का हक है कि वे उसकी इबादत करें और उसके साथ किसी को शरीक न करें।" [11]
यह हदीस इबादत की एकता पर जोर देती है। तौहीद अल-उलूहिय्या मुसलमान को शिर्क से बचाती है और अल्लाह की इबादत पर केंद्रित करती है। अगर कोई दुआ में किसी संत को पुकारे, तो वह शिर्क करता है। "التَّوْحِيدُ هُوَ إفْرَادُ اللَّهِ بِالْعِبَادَةِ." "तौहीद अल्लाह को इबादत में अकेला करना है।"
तौहीद अल-अस्मा वस-सिफात (नामों और गुणों की एकता)
तौहीद अल-अस्मा वस-सिफात का अर्थ है अल्लाह के नामों और गुणों को उसी तरह मानना, जैसा कुरान और हदीस में बताया गया है। इसमें यह विश्वास शामिल है कि अल्लाह के नाम और गुण अनोखे हैं, और कोई भी उसकी तरह नहीं हो सकता। हमें अल्लाह के नामों और गुणों को बिना बदलाव, बिना नकार, और बिना मानवीय तुलना के स्वीकार करना चाहिए। यह तौहीद बताती है कि अल्लाह का ज्ञान, शक्ति और दया अनंत है, और सृष्टि के गुणों से अलग है।
कुरान में अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है:
لَيْسَ كَمِثْلِهِ شَيْءٌ ۖ وَهُوَ السَّمِيعُ الْبَصِيرُ "उस जैसा कोई नहीं, और वह सुनने वाला और देखने वाला है।" [13]
यह आयत अल्लाह के गुणों की एकता बताती है। इब्ने कसीर तफसीर में कहते हैं।: "نفى الله تعالى عن نفسه المثل في جميع صفاته وأفعاله وذاته." : "अल्लाह ने खुद से हर तरह की समानता को नकार दिया है, उसके गुणों, कार्यों और अस्तित्व में।" [14]
यह उद्धरण गुणों की अनोखीता दिखाता है।
पैगंबर का अल्लाह के नामों की शिक्षा देना की घटना: पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबा को अल्लाह के 99 नाम (अस्मा-उल-हुस्ना) सिखाए और बताया कि इन नामों को याद करने और समझने से जन्नत मिल सकती है। एक बार अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने पैगंबर से अल्लाह के गुणों के बारे में पूछा, तो उन्होंने हदीस में इसका जवाब दिया:
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "إِنَّ لِلَّهِ تِسْعَةً وَتِسْعِينَ اسْمًا، مَنْ أَحْصَاهَا دَخَلَ الْجَنَّةَ"
तर्जुमा: "अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: अल्लाह के निन्यानवे नाम हैं, जो कोई उन्हें गिन ले (याद कर ले), वह जन्नत में दाखिल होगा।" [15]
इस हदीस से पता चलता है कि तौहीद अल-अस्मा वस-सिफात का महत्व कितना है। पैगंबर ने सहाबा को सिखाया कि अल्लाह के नाम और गुण अनोखे हैं और हमें उन्हें वैसे ही मानना चाहिए, जैसा कुरान में बताया गया है।
उदाहरण: अल्लाह के गुणों को समझने में गलती: कुछ लोग अल्लाह के गुणों को मानवीय गुणों से मिलाने की गलती करते हैं। उदाहरण के लिए, यह कहना कि अल्लाह का "हाथ" इंसान के हाथ जैसा है, गलत है। पैगंबर ने सिखाया कि अल्लाह के गुण उसकी महानता के अनुसार हैं, और हमें उनकी तुलना सृष्टि से नहीं करनी चाहिए।
कुरान में इरशाद है:
هُوَ اللَّهُ الْخَالِقُ الْبَارِئُ الْمُصَوِّرُ ۖ لَهُ الْأَسْمَاءُ الْحُسْنَىٰ ۚ يُسَبِّحُ لَهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَالْأَرض"वह अल्लाह है, सृष्टिकर्ता, बनाने वाला, रूप देने वाला। उसके लिए सबसे अच्छे नाम हैं। जो कुछ आकाशों और धरती में है, वह उसकी तस्बीह करता है।" [16]
यह आयत अस्मा-उल-हुस्ना की याद दिलाती है।
यह उद्धरण गुणों की एकता पर जोर देता है। तौहीद अल-अस्मा वस-सिफात मुसलमान को अल्लाह की महानता समझाती है और शिर्क से बचाती है। अगर कोई अल्लाह के गुणों को नकारे या बदल दे, तो उसकी तौहीद कमजोर हो जाती है।
तौहीद के तीनों प्रकारों का आपसी संबंध
तौहीद के तीनों प्रकार—रुबूबिय्या, उलूहिय्या, और अस्मा वस-सिफात—एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। अगर कोई व्यक्ति यह मानता है कि अल्लाह ही सृष्टिकर्ता और पालनहार है (रुबूबिय्या), लेकिन वह उसकी इबादत में किसी और को शामिल करता है, तो उसकी तौहीद अधूरी है। इसी तरह, अल्लाह के नामों और गुणों को गलत तरीके से समझना भी तौहीद को नुकसान पहुंचाता है। पैगंबर ने अपनी जिंदगी में इन तीनों को एक साथ लागू करने पर जोर दिया।
अबू जहल का शिर्क की घटना: मक्का का एक प्रमुख नेता अबू जहल तौहीद अर-रुबूबिय्या को मानता था। वह स्वीकार करता था कि अल्लाह सृष्टिकर्ता है, लेकिन वह मूर्तियों की पूजा करता था, जो तौहीद अल-उलूहिय्या के खिलाफ था। पैगंबर ने उसे बार-बार समझाया, लेकिन उसने शिर्क को नहीं छोड़ा। यह घटना दर्शाती है कि तौहीद के सभी प्रकारों को मानना जरूरी है। इब्ने हिशाम सीरत में लिखते हैं। "كان أبو جهل يؤمن بالله لكنه يشرك به الأصنام في العبادة."
"अबू जहल अल्लाह पर विश्वास करता था लेकिन इबादत में मूर्तियों को शरीक करता था।" [18]
यह उद्धरण दिखाता है कि रुबूबिय्या अकेली काफी नहीं, उलूहिय्या भी जरूरी है। तौहीद के तीनों प्रकार मिलकर मुसलमान को पूर्ण बनाते हैं। शेख उथैमीन कहते हैं कि तौहीद एक है, लेकिन समझने के लिए तीन भागों में बांटा गया है। [19] यह संबंध इस्लाम की मजबूती है।
खात्मा
तौहीद इस्लाम का दिल है, और इसके तीन प्रकार—तौहीद अर-रुबूबिय्या, तौहीद अल-उलूहिय्या, और तौहीद अल-अस्मा वस-सिफात—इस विश्वास को पूर्ण करते हैं। पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी जिंदगी में इन सिद्धांतों को लागू करके लोगों को सही रास्ता दिखाया। मक्का में मूर्तियों को तोड़ना, कुरैश के साथ बहस, और अल्लाह के नामों की शिक्षा देना उनके तौहीद के प्रति समर्पण को दर्शाता है। आज के समय में, जब लोग भौतिकवाद और गलत धारणाओं में उलझे हैं, तौहीद की शिक्षा हमें सही मार्ग दिखाती है। यह हमें सिखाती है कि केवल अल्लाह ही सृष्टिकर्ता, इबादत के योग्य, और अनोखे गुणों वाला है। तौहीद से जिंदगी में सुकून मिलता है और शिर्क से बचाव होता है। अल्लाह हमें तौहीद पर मजबूत रखे।
फुटनोट्स और संदर्भ
- सूरह अल-बकरा: 255
- तफसीर इब्ने कसीर, इब्ने कसीर, जिल्द 1
- सूरह अल-अराफ: 185
- सुनन तिर्मिजी
- एक्वीडा ताहाविया, इमाम ताहावी
- सूरह अल-फातिहा: 5
- तफसीर इब्ने कसीर, इब्ने कसीर, जिल्द 1
- सूरह अज-जुमर: 3
- सीरत रसूलल्लाह, इब्ने हिशाम, जिल्द 4
- सही बुखारी
- 12. सूरह अश-शूरा: 11
- 13. तफसीर इब्ने कसीर, इब्ने कसीर, जिल्द 7
- 14. सही बुखारी
- 15. सूरह अल-हश्र: 24
- 16. सीरत रसूलल्लाह, इब्ने हिशाम, जिल्द 1
- 17. शरह किताब अत-तौहीद, शेख उथैमीन, जिल्द 1
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