हर आत्मा को मृत्यु का स्वाद चखना होगा

परिचय

मृत्यु एक ऐसी हकीकत है, जिससे कोई इंसान बच नहीं सकता। यह वह पल है जब रूह जिस्म से जुदा होकर अपने खालिक (सृजनकर्ता) की ओर लौटती है। इस्लाम में मृत्यु को न सिर्फ जिंदगी का अंत माना गया है, बल्कि यह आखिरत (परलोक) की ओर जाने का रास्ता भी है। कुरआन और हदीस हमें सिखाते हैं कि मृत्यु हर इंसान की नियति है, और इसके लिए हमें हर वक्त तैयार रहना चाहिए। पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि मृत्यु की याद इंसान को गुनाहों से रोकती है और नेकी की राह दिखाती है। आज के दौर में, जब लोग दुनिया की चमक-दमक में खोए रहते हैं, मृत्यु की याद हमें जिंदगी का मकसद समझाती है। मृत्यु की हकीकत

मृत्यु वह पल है जब रूह जिस्म से जुदा हो जाती है। इस्लाम में रूह को अल्लाह की अमानत माना गया है, जो जिस्म को जिंदगी देती है। जब अल्लाह का तय वक्त आता है, मलकुल मौत (अज्राईल अलैहिस्सलाम) रूह को निकाल लेता है। यह दुनिया से आखिरत की ओर जाने का रास्ता है। कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है:

كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ ۗ وَإِنَّمَا تُوَفَّوْنَ أُجُورَكُمْ يَوْمَ الْقِيَامَةِ

"हर जीव को मौत का स्वाद चखना है, और तुम्हें तुम्हारे कर्मों का फल कयामत के दिन मिलेगा।" [1]

यह आयत साफ बताती है कि मृत्यु हर जीव की नियति है। इमाम गजाली अपनी किताब इह्या उलूमिद्दीन में लिखते हैं। : "الموت حقيقة لا مفر منها، وهو بداية الرحلة إلى الآخرة."
: "
मृत्यु एक ऐसी हकीकत है जिससे कोई बच नहीं सकता, और यह आखिरत की यात्रा की शुरुआत है।" [2]

मृत्यु न तो उम्र देखती है, न अमीरी-गरीबी, न मर्द-औरत। यह सबके लिए बराबर है। पैगंबरों, सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम, और नेक लोगों ने भी मृत्यु का स्वाद चखा। कुरआन में इरशाद है:

وَمَا جَعَلْنَا لِبَشَرٍ مِنْ قَبْلِكَ الْخُلْدَ ۖ أَفَإِنْ مِتَّ فَهُمُ الْخَالِدُونَ

 "हमने तुमसे पहले किसी इंसान को हमेशा की जिंदगी नहीं दी, तो क्या अगर तुम मर गए तो वे हमेशा जिंदा रहेंगे?" [3]

साफीउर रहमान मुबारकपुरी अल रहीकुल मख्तूम  में लिखते हैं। : "Death is a universal truth that spares no one, not even the prophets." "मृत्यु एक ऐसी सच्चाई है जो किसी को नहीं छोड़ती, न पैगंबरों को।" [4] यह उद्धरण मृत्यु की व्यापकता बताता है।

मृत्यु की याद और तैयारी

पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी उम्मत को मृत्यु की याद करने की ताकीद की। मृत्यु की याद इंसान को दुनिया की मोहब्बत से बचाती है और नेकी की राह दिखाती है। हदीस में फरमाया गया:

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "أَكْثِرُوا ذِكْرَ هَادِمِ اللَّذَّاتِ"

 "अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: खुशियों को तोड़ने वाली चीज (मृत्यु) की याद ज्यादा करो।" [5]

यह हदीस मृत्यु की याद को नेकी का रास्ता बताती है। पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सिखाया कि इंसान को दुनिया में एक मुसाफिर की तरह रहना चाहिए। हदीस में है:

عَنْ ابْنِ عُمَرَ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ: "كُنْ فِي الدُّنْيَا كَأَنَّكَ غَرِيبٌ أَوْ عَابِرُ سَبِيلٍ"

 "इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु ने कहा: रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया: दुनिया में ऐसे रहो जैसे तुम गैर हो या राहगीर हो।" [6]

हजरत अब्दुल्लाह इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु इस पर अमल करते थे। वे कहते थे: "शाम को सुबह का इंतजार न करो, और सुबह को शाम का। सेहत में बीमारी की तैयारी करो, और जिंदगी में मौत की।" अल-बयहकी अपनी किताब शुब अल-ईमान में लिखते हैं। : "التذكر بالموت يدفع الإنسان إلى الأعمال الصالحة.""मृत्यु की याद इंसान को नेक कामों की ओर धकेलती है।" [7]

यह उद्धरण मृत्यु की याद की अहमियत बताता है। सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने इस नसीहत पर अमल करके नेक जिंदगी जी।

मृत्यु का समय और प्रक्रिया

इस्लाम में मृत्यु का समय अल्लाह के हुक्म से तय है। कोई जल्दी या देर से नहीं मरता। मलकुल मौत (अज्राईल अलैहिस्सलाम) अल्लाह के हुक्म से रूह निकालता है। कुरआन में इरशाद है:

قُلْ يَتَوَفَّاكُمْ مَلَكُ الْمَوْتِ الَّذِي وُكِّلَ بِكُمْ ثُمَّ إِلَىٰ رَبِّكُمْ تُرْجَعُونَ

 "कहो: मलकुल मौत, जो तुम पर मुकर्रर किया गया है, तुम्हारी रूह निकालेगा, फिर तुम अपने रब की ओर लौटाए जाओगे।" [8]

यह आयत मलकुल मौत की जिम्मेदारी बताती है। नेक लोगों की रूह निकालते वक्त फरिश्ते रहम और सुकून के साथ आते हैं, जबकि गुनहगारों के लिए सख्ती होती है। कुरआन में इरशाद है:

الَّذِينَ تَتَوَفَّاهُمُ الْمَلَائِكَةُ طَيِّبِينَ ۙ يَقُولُونَ سَلَامٌ عَلَيْكُمُ ادْخُلُوا الْجَنَّةَ بِمَا كُنْتُمْ تَعْمَلُونَ

 "जिनकी रूह फरिश्ते पाक हालत में निकालते हैं, कहते हैं: सलाम हो तुम पर, जन्नत में दाखिल हो जाओ अपने अमलों की वजह से।" [9]

गुनहगारों के लिए:

وَلَوْ تَرَىٰ إِذْ يَتَوَفَّى الَّذِينَ كَفَرُوا ۙ الْمَلَائِكَةُ يَضْرِبُونَ وُجُوهَهُمْ وَأَدْبَارَهُمْ

 "और काश तुम देखते जब फरिश्ते काफिरों की रूह निकालते हैं, उनके मुंह और पीठ पर मारते हैं।" [10]

इमाम तबरि तफसीर तबरि में लिखते हैं। : "الملائكة تأتي المؤمن برحمة والكافر بعذاب."
"
फरिश्ते मोमिन के पास रहम के साथ और काफिर के पास अजाब के साथ आते हैं।" [11]

यह उद्धरण प्रक्रिया की व्याख्या करता है।

बरजख की जिंदगी

मृत्यु के बाद रूह बरजख में जाती है, जो कयामत तक का दौर है। नेक रूहें जन्नत की नेमतें पाती हैं, और गुनहगार रूहें अजाब। कुरआن में इरशाद है:

وَمِنْ وَرَائِهِمْ بَرْزَخٌ إِلَىٰ يَوْمِ يُبْعَثُونَ

 "और उनके पीछे बरजख है, उस दिन तक जब वे दोबारा उठाए जाएंगे।" [12]

बिलाल फिलिप्स The Grave में लिखते हैं। : "Barzakh is the intermediary phase where souls experience reward or punishment until the Day of Resurrection."
 "
बरजख वह दौर है जहां रूहें कयामत के दिन तक इनाम या सजा पाती हैं।" [13]

यह उद्धरण बरजख की व्याख्या करता है। कोई मौत के बाद लौटकर नहीं बता सका, इसलिए कुरआन और हदीस पर भरोसा करते हैं।

मृत्यु की समानता और सबक

मृत्यु किसी को नहीं छोड़ती। पैगंबर, सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम, और नेक लोग भी मरे। सिर्फ हजरत ईसा अलैहिस्सलाम बाकी हैं, जो बाद में मृत्यु पाएंगे। कुरआन में इरशाद है:

كُلُّ نَفْسٍ ذَائِقَةُ الْمَوْتِ ۖ وَنَبْلُوكُمْ بِالشَّرِّ وَالْخَيْرِ فِتْنَةً ۖ وَإِلَيْنَا تُرْجَعُونَ

 "हर जीव को मौत का स्वाद चखना है। हम तुम्हें अच्छे-बुरे हालात से आजमाते हैं, और हमारी ओर लौटना है।" [14]

हजरत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु ने पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विसाल पर कहा: "जो मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पूजा करता था, वह जान ले कि वे मर गए, और जो अल्लाह की इबादत करता है, वह जिंदा और बाकी है।" यह मृत्यु की समानता दिखाता है। अबू नईम हिल्यातुल औलिया में लिखते हैं। "الموت يساوي بين الجميع، فلا يفرق بين نبي وغيره."
: "
मृत्यु सबके लिए बराबर है, यह पैगंबर और गैर के बीच फर्क नहीं करती।" [15]मृत्यु हमें नेकी की राह दिखाती है।

निष्कर्ष

हर आत्मा को मृत्यु का स्वाद चखना होगा। यह कुरआन की सच्चाई है, जो हमें आखिरत की याद दिलाती है। पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा रज़ियल्लाहु अन्हुम ने मृत्यु की याद से नेक जिंदगी जी। मृत्यु दुनिया से आखिरत का रास्ता है, जहां नेक अमल जन्नत और गुनाह जहन्नम ले जाते हैं।

फुटनोट्स और संदर्भ

  1. सूरह आले-इमरान: 185,
  2. इह्या उलूमिद्दीन, इमाम गजाली
  3. सूरह अल-अंबिया: 34
  4. The Sealed Nectar, सफीउर रहमान मुबारकपुरी, पृष्ठ 450-460
  5. सुनन तिर्मिजी
  6. सही बुखारी
  7. शुब अल-ईमान, अल-बयहकी
  8. सूरह अस-सजदा: 11
  9. सूरह अन-नहल: 32
  10. सूरह अल-अनफाल: 50
  11. तफसीर तबरि, इमाम तबरि
  12. सूरह अल-मोमिनून: 100
  13. The Grave, an article बिलाल फिलिप्स
  14. सूरह अल-अंबिया: 35
  15. हिल्यातुल औलिया, अबू नईम

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